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मंगलवार, 20 सितंबर 2011

सामयिक रचना: मनमोहना बड़े झूठे... --संजीव 'सलिल'

सामयिक रचना:                                                                            
मनमोहना बड़े झूठे...
--- संजीव 'सलिल'
*
सरल सहज सज्जन दिखते थे,
इसीलिये हम ठगा गये हैं.
आँख मूँदकर किया भरोसा -
पर वे ठेंगा दिखा गये हैं..
हरियाली बोई पा ठूंठे...
*
ओबामा के मन भाये हैं.
सोच-सोचकर इतराये हैं.
कौन बताये इन्हें आइना-
ममता बिन ढाका धाये हैं.
बंधे सोनिया खूंटे...
*
अर्थशास्त्री कहे गये हैं.
अनर्थशास्त्री हमें लगे हैं.
मंहगाई से नयन लड़ाये-
घोटालों के प्रेम पगे हैं.
अन्ना से हैं रूठे...
*

Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com