कुल पेज दृश्य

sarhad लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
sarhad लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

सोमवार, 17 सितंबर 2018

सामयिक नवगीत

नवगीत 
*
सरहद से 
संसद तक 
घमासान जारी है 
*
सरहद पर आँखों में 
गुस्सा है, ज्वाला है.
संसद में पग-पग पर 
घपला-घोटाला है.
जनगण ने भेजे हैं 
हँस बेटे सरहद पर.
संसद में.सुत भेजें 
नेता जी या अफसर.
सरहद पर 
आहुति है 
संसद में यारी है.
सरहद से 
संसद तक 
घमासान जारी है 
*
सरहद पर धांय-धांय 
जान है हथेली पर.
संसद में कांव-कांव 
स्वार्थ-सुख गदेली पर. 
सरहद से देश को
मिल रही सुरक्षा है.
संसद को देश-प्रेम 
की न मिली शिक्षा है.
सरहद है 
जांबाजी 
संसद ऐयारी है 
सरहद से 
संसद तक 
घमासान जारी है 
*
सरहद पर ध्वज फहरे 
हौसले बुलंद रहें.
संसद में सत्ता हित 
नित्य दंद-फंद रहें.
सरहद ने दुश्मन को 
दी कड़ी चुनौती है.
संसद को मिली 
झूठ-दगा की बपौती है.
सरहद है 
बलिदानी 
संसद-जां प्यारी है. 
सरहद से 
संसद तक 
घमासान जारी है 
***
२७-२-२०१८

सोमवार, 11 दिसंबर 2017

navgeet

नवगीत -
ठेंगे पर कानून 
*
मलिका - राजकुँवर कहते हैं
ठेंगे पर कानून 
संसद ठप कर लोकतंत्र का
हाय! कर रहे खून
*
जनगण - मन ने जिन्हें चुना
उनको न करें स्वीकार
कैसी सहनशीलता इनकी?
जनता दे दुत्कार
न्यायालय पर अविश्वास कर
बढ़ा रहे तकरार
चाह यही है सजा रहे
कैसे भी हो दरबार
जिसने चुना, न चिंता उसकी
जो भूखा दो जून
मलिका - राजकुँवर कहते हैं
ठेंगे पर कानून
संसद ठप कर लोकतंत्र का
हाय! कर रहे खून
*
सरहद पर ही नहीं
सडक पर भी फैला आतंक
ले चरखे की आड़
सँपोले मार रहे हैं डंक
जूते उठवाते औरों से
फिर भी हैं निश्शंक
भरें तिजोरी निज,जमाई की
करें देश को रंक
स्वार्थों की भट्टी में पल - पल
रहे लोक को भून
मलिका - राजकुँवर कहते हैं
ठेंगे पर कानून
संसद ठप कर लोकतंत्र का
हाय! कर रहे खून
*
परदेशी से करें प्रार्थना
आ, बदलो सरकार
नेताजी को बिना मौत ही
दें कागज़ पर मार
संविधान को मान द्रौपदी
चाहें चीर उतार
दु:शासन - दुर्योधन की फिर
हो अंधी सरकार
मृग मरीचिका में जीते
जैसे इन बिन सब सून
मलिका - राजकुँवर कहते हैं
ठेंगे पर कानून
संसद ठप कर लोकतंत्र का
हाय! कर रहे खून
११-१२-२०१५ 

***
www.divyanarmada.in
#हिंदी_ब्लॉगर 

बुधवार, 10 नवंबर 2010

दोहा सलिला:: दीवाली के संग : दोहा का रंग ---संजीव 'सलिल'

 दोहा सलिला:                                                                                          

दीवाली के संग : दोहा का रंग

संजीव 'सलिल' *
सरहद पर दे कटा सर, हद अरि करे न  पार.
राष्ट्र-दीप पर हो 'सलिल', प्राण-दीप बलिहार..
*
आपद-विपदाग्रस्त को, 'सलिल' न जाना भूल.
दो दीपक रख आ वहाँ, ले अँजुरी भर फूल..
*
कुटिया में पाया जनम, राजमहल में मौत.
रपट न थाने में हुई, ज्योति हुई क्यों फौत??
*
तन माटी का दीप है, बाती चलती श्वास.
आत्मा उर्मिल वर्तिका, घृत अंतर की आस..
*
दीप जला, जय बोलना, दुनिया का दस्तूर.
दीप बुझा, चुप फेंकना, कर्म क्रूर-अक्रूर..
*
चलते रहना ही सफर, रुकना काम-अकाम.
जलते रहना ज़िंदगी, बुझना पूर्ण विराम.
*
सूरज की किरणें करें नवजीवन संचार.
दीपक की किरणें करें, धरती का सिंगार..
*
मन देहरी ने वर लिये, जगमग दोहा-दीप.
तन ड्योढ़ी पर धर दिये, गुपचुप आँगन लीप..
*
करे प्रार्थना, वंदना, प्रेयर, सबद, अजान.
रसनिधि है रसलीन या, दीपक है रसखान..
*
मन्दिर-मस्जिद, राह-घर, या मचान-खलिहान.
दीपक फर्क न जानता, ज्योतित करे जहान..
*
मद्यप परवाना नहीं, समझ सका यह बात.
साक़ी लौ ले उजाला, लाई मरण-सौगात..
*

सोमवार, 5 अप्रैल 2010

खबरदार कविता: हमारी सरहद पर इंच-इंच कर कब्ज़ा किया जा रहा है --सलिल

खबरदार कविता:
खबर: हमारी सरहद पर इंच-इंच कर कब्ज़ा किया जा रहा है.
दोहा गजल:
संजीव 'सलिल'
कदम-कदम घुस रहा है, कर सरहद को पार.
हर हद को छिप-तोड़कर, करे पीठ पर वार..
*
करे प्यार से घात वह, हमें घात से प्यार.
बजा रहे हैं गाल हम, वह साधे हथियार..
*
बेहयाई से हम कहें, अब रुक भी जा यार.
घुस-घुस घर में मरता, वह हमको हर बार..
*
संसद में मतभेद क्यों?, हों यदि एक विचार.
कड़े कदम ले सके तब, भारत की सरकार.
*
असरकार सरकार क्यों?, हुई न अब तक यार.
करता है कमजोर जो, 'सलिल' वही गद्दार..
*
अफसरशाही राह का, रोड़ा- क्यों दरकार?
क्यों सेना में सियासत, रोके है हथियार..
*
दें जवाब हम ईंट का, पत्थर से हर बार.
तभी देश बच पायेगा, चेते अब सरकार..
*
मानवता के नाम पर, रंग जाते अखबार.
आतंकी मजबूत हों, थाम जाते हथियार..
*