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शनिवार, 5 अक्टूबर 2013

durga stuti -kusum thakur


  भगवती प्रार्थना
- कुसुम ठाकुर -
माँ मैं तो हारी] आई शरण तुम्हारी
अब जाऊँ किधर तज शरण तुम्हारी 

दर भी तुम्हारा लगे मुझको प्यारा
 तजूँ मैं कैसे अब शरण तुम्हारी 
माँ ....................
मन मेरा चंचल, धरूँ ध्यान कैसे
बसो मेरे मन मैं शरण तुम्हारी 
माँ ....................]]

जीवन की नैया मझधार में है, 
पार उतारो मैं शरण तुम्हारी
माँ ....................

तन में न शक्ति करूँ मन से भक्ति 
अब दर्शन दे दो मैं शरण तुम्हारी 
माँ ....................

रविवार, 6 नवंबर 2011

मुक्तिका;

मैं न उसमे बही सही

-- कुसुम ठाकुर 


"मैं  उसमे बही सही"

मैंने तुमसे बात कही 
जो सोचा वह नही सही 

भूली बिसरी यादें फिर भी 
आज कहूँ न रही सही 

 कितना भी दिल को समझाऊँ  
आँख हुआ नम यही सही 

वह रूठा न जाने कब से 
प्यार अलग सा कही सही 

रंग अजब दुनिया की देखी 
मैं न उसमे बही सही 

- कुसुम ठाकुर-

शुक्रवार, 28 अक्टूबर 2011

भय हरण कालिका -- कुसुम ठाकुर

भय हरण कालिका


"भय हरण कालिका"

जय जय जग जननि देवी
सुर नर मुनि असुर सेवी
भुक्ति मुक्ति दायिनी भय हरण कालिका।
जय जय जग जननि देवी।

मुंडमाल तिलक भाल 
शोणित मुख लगे विशाल 
श्याम वर्ण शोभित, भय हरण कालिका।
जय जय जग जननि देवी ।

हर लो तुम सारे क्लेश 
मांगूं नित कह अशेष 
आयी शरणों में तेरी, भय हरण कालिका ।
जय जय जग जननि देवी ।

माँ मैं तो गई हूँ हारी 
 माँगूं कबसे विचारी 
करो अब तो उद्धार तुम, भय हरण कालिका ।  
जय जय जग जननि देवी ।

-*****- 

शनिवार, 9 अक्टूबर 2010

"अर्चना" - कुसुम ठाकुर -


"अर्चना"

- कुसुम ठाकुर -
माँ कैसे करूँ आराधना ,
कैसे मैं ध्यान लगाऊँ ।
द्वार तिहारे आकर मैया ,
कैसे मैं शीश झुकाऊँ ।

मन में मेरे पाप का डेरा ,
माँ कैसे उसे निकालूं ।
न मैं जानूं भजन-आरती ,
कैसे तुम्हें सुनाऊँ ।

बीता जीवन अंहकार में ,
याद न आयी मैया ।
डूब रही है नैया ,
माँ कैसे पार लगाऊं।

कर्म ही पूजा रटते-रटते ,
बीता जीवन सारा ।
पर तन भी अब साथ न देवे ,
कैसे तुझे बुलाऊँ ।
मैं तो बस इतना ही जानूँ ,
माँ, सब की सुधि लेती ।
दौड़ उठा ले गोद में मैया ,
मैं तुझ में खो जाऊँ ।
                                            ****  


सोमवार, 6 सितंबर 2010

मैथिली हाइकु : "शिष्य देखल " कुसुम ठाकुर

मैथिली हाइकु : 

 
"शिष्य देखल "

कुसुम  ठाकुर 
*


*
विद्वान छथि
ओ शिष्य कहाबथि
छथि विनम्र
*
गुरु हुनक
सौभाग्य हमर ई
ओ भेंटलथि
*
इच्छा हुनक
बनल छी माध्यम
तरि जायब
*
भरोस छैन्ह
छी हमर प्रयास
परिणाम की ?
*
भाषा प्रेमक
नहि उदाहरण
छथि व्यक्तित्व
*
छैन्ह उद्गार
देखल उपासक
नहि उपमा
*
कहथि नहि
विवेकपूर्ण छथि
उत्तम लोक
*
सामर्थ्य छैन्ह
प्रोत्साहन अद्भुत
हुलसगर
*
प्रयास करि
उत्तम फल भेंटs
तs कोन हानि
*
सेवा करथि
गंगाक उपासक
छथि सलिल
*

रविवार, 5 सितंबर 2010

मैथिली की पाठशाला २ : कुसुम ठाकुर


मैथिली की पाठशाला २        

इस स्तम्भ में हिन्दी, मैथिली, भोजपुरी  में एक साथ रचनाकर्म करनेवाली कुसुम ठाकुर जी मैथिली सिखाएँगी. सभी सहभागिता हेतु आमंत्रित हैं. 

कुसुम ठाकुर.



कुसुम : दूसरा  पाठ.

सलिल : जी, प्रारंभ  करिए .
कुसुम : अहाँक  गाम  कतय  अछि   .
          आपका गाँव कहाँ है ? 
          हम जबलपुर के रहयवाला छी .
          मैं जबलपुर का रहनेवाला हूँ .
सलिल : अच्छा.
हम उस देस के रहयवाला छी  जहाँ  गंगा  बहत  छी.
कुसुम : ठीक  है.बताती  हूँ.
           हम ओहि देश केर रहय वाला छी, जाहि देश में गंगा मैया बहैत छथि .

आजका पाठ  इतना  ही,  कल  परीक्षा  लूँगी दो  दिनों  के  पाठ  की.
**********

मैथिली की पाठशाला: कुसुम ठाकुर

मैथिली की पाठशाला १      

इस स्तम्भ में हिन्दी, मैथिली, भोजपुरी  में एक साथ रचनाकर्म करनेवाली कुसुम ठाकुर जी मैथिली सिखाएँगी. सभी सहभागिता हेतु आमंत्रित हैं. 

कुसुम ठाकुर.

पहला वाक्य .....अहाँ केर नाम की अछि ?   = आपका  नाम  क्या है?


कुसुम : ता  आय  सा  हम  सब  मैथिलि  में  गप्प  करब.
सलिल : गप्प  में  मजा  मिलब .
मैथिली  सीख  के  विद्यापति  को  पढ़ब .
कुसुम : गप्प  निक  लगत  आ  आनादित  करत.
सलिल : गप्प  करब  से  गप्पी  तो  न  कहाब ?
कुसुम : मैथिलि  सीखी  का  विद्यापति  के  रचना  पढ़ब.
सलिल : कहाँ  पाब ?
कुसुम : हम  अहांके  पाठ  देब विद्यापतिक  रचना.
सलिल : अवश्य . कृपा करब.
कुसुम : अवश्य  ....मुदा  कृपा  नहीं  इ  हमर  सौभाग्य  होयत.

सलिल  : ई  आपका  बड़प्पन  होब.
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