मुक्तिका:
तकदीर बनाना ही होगा
संजीव 'सलिल'
*
जो नाहासिल है उसको अब तकदीर बनाना ही होगा.
रेगिस्तां में उम्मीदों का फिर बाग़ लगाना ही होगा..
हों दाँत न बाकी तो क्या है? हसरत-अरमान न खत्म हुए.
हर सुबह फलक पर ख्वाब नए हँसकर दिखलाना ही होगा..
ज्यों की त्यों चादर है अपनी, रूखी-सूखी की फ़िक्र नहीं.
ढाई आखर की परिपाटी, पायी- दे जाना ही होगा..
पत्थर ने ठोकर दी, गुल ने काँटों से अगर नवाज़ा तो-
कर अदा शुक्रिया हँसकर चोटों को शर्माना ही होगा..
उपहास करे या मातम जग, तुझको क्या? तू मुस्काता रह-
जो साथ 'सलिल' का दे दिलवर दिल का अफसाना ही होगा..
***
तकदीर बनाना ही होगा
संजीव 'सलिल'
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जो नाहासिल है उसको अब तकदीर बनाना ही होगा.
रेगिस्तां में उम्मीदों का फिर बाग़ लगाना ही होगा..
हों दाँत न बाकी तो क्या है? हसरत-अरमान न खत्म हुए.
हर सुबह फलक पर ख्वाब नए हँसकर दिखलाना ही होगा..
ज्यों की त्यों चादर है अपनी, रूखी-सूखी की फ़िक्र नहीं.
ढाई आखर की परिपाटी, पायी- दे जाना ही होगा..
पत्थर ने ठोकर दी, गुल ने काँटों से अगर नवाज़ा तो-
कर अदा शुक्रिया हँसकर चोटों को शर्माना ही होगा..
उपहास करे या मातम जग, तुझको क्या? तू मुस्काता रह-
जो साथ 'सलिल' का दे दिलवर दिल का अफसाना ही होगा..
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