दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
कुल पेज दृश्य
deepti gupta लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
deepti gupta लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
बुधवार, 17 जुलाई 2013
nari lata- woman shaped flower
चिप्पियाँ Labels:
deepti gupta,
nari lata,
woman shaped flower
शनिवार, 29 जून 2013
Refrain Poetry : [पुनरुक्ति काव्य] : deppti-sanjiv
Refrain
Poetry : [पुनरुक्ति काव्य]
The word 'Refrain' derives from the Old French word refraindre meaning to repeat. Refrain Poetry Term is a phrase, line, or group of lines that is repeated throughout a poem, at times after each stanza or at intervals.
The word 'Refrain' derives from the Old French word refraindre meaning to repeat. Refrain Poetry Term is a phrase, line, or group of lines that is repeated throughout a poem, at times after each stanza or at intervals.
A famous example of a
refrain are the words " Nothing More" which is repeated in “The Raven” by Edgar Allan Poe.
A Refrain is a verse or phrase that is repeated
at intervals throughout a song or poem, usually after the chorus or stanza.
इस तरह की कविता में किसी कहावत या पंक्ति को आदि से अंत तक एक अंतराल के बाद और कभी प्रत्येक बंद के अंत में दोहराया जाता है! गीत में किसी कहावत, मुहावरे या लोकोक्ति को स्थायी या मुखड़े की तरह प्रयोग करें तो वह पुनरुक्ति काव्य होगा। दोहराव की पंक्तिया एक या एकाधिक भी हो सकती हैं।
इस तरह की कविता में किसी कहावत या पंक्ति को आदि से अंत तक एक अंतराल के बाद और कभी प्रत्येक बंद के अंत में दोहराया जाता है! गीत में किसी कहावत, मुहावरे या लोकोक्ति को स्थायी या मुखड़े की तरह प्रयोग करें तो वह पुनरुक्ति काव्य होगा। दोहराव की पंक्तिया एक या एकाधिक भी हो सकती हैं।
Examples:
The cat so silent
Lay curled up on the rug
The fire a blaze
The room so snug.
Lay curled up on the rug
The fire a blaze
The room so snug.
Purring, purring
Quiet and still
Purring, purring
Content from his fill.
Quiet and still
Purring, purring
Content from his fill.
Tatters the cat
Big, fat cat.
Big, fat cat.
He had just eaten
A dinner of fish
What a treat to have
Filling up his dish.
A dinner of fish
What a treat to have
Filling up his dish.
Purring, purring
Quiet and still
Purring, purring
Content from his fill.
Quiet and still
Purring, purring
Content from his fill.
Tatters the cat
Big, fat cat.
Big, fat cat.
No more cold for the day
He was in for the night
Fun he had had
When the day was light.
He was in for the night
Fun he had had
When the day was light.
Purring, purring
Quiet and still
Purring, purring
Content from his fill.
Quiet and still
Purring, purring
Content from his fill.
Tatters the cat
Big, fat cat.
Big, fat cat.
*
Presently my soul grew stronger; hesitating then no
longer,
`Sir,' said I, `or Madam, truly your forgiveness I implore; But the fact is I was napping, and so gently you came rapping, And so faintly you came tapping, tapping at my chamber door, That I scarce was sure I heard you' - here I opened wide the door; - Darkness there, and nothing more. Deep into that darkness peering, long I stood there wondering, fearing, Doubting, dreaming dreams no mortal ever dared to dream before; But the silence was unbroken, and the darkness gave no token, And the only word there spoken was the whispered word, `Lenore!' This I whispered, and an echo murmured back the word, `Lenore!' Merely this and nothing more. Back into the chamber turning, all my soul within me burning, Soon again I heard a tapping somewhat louder than before. `Surely,' said I, `surely that is something at my window lattice; Let me see then, what thereat is, and this mystery explore - Let my heart be still a moment and this mystery explore; - 'Tis the wind and nothing more!' Open here I flung the shutter, when, with many a flirt and flutter, In there stepped a stately raven of the saintly days of yore. Not the least obeisance made he; not a minute stopped or stayed he; But, with mien of lord or lady, perched above my chamber door - Perched upon a bust of Pallas just above my chamber door - Perched, and sat, and nothing more.
***
कौन किसका कब हुआ?
* कौन किसका कब हुआ? * कौन किसका कब हुआ? * खून से सींचा बड़ा कर पैर पर अपने खड़ा कर
गैर कहते खोजकर बच्चे खुआ
कौन किसका कब हुआ?
*** |
चिप्पियाँ Labels:
पुनरुक्ति काव्य,
acharya sanjiv verma 'salil',
deepti gupta,
Refrain Poetry
रविवार, 2 जून 2013
आज का विचार / Thought of the Day
आज का विचार / Thought of the Day
deepti gupta - sanjiv
गलत हुए तो हक न क्रोंध का, बचें अहम् से,
अभिमानी त्रुटि नहीं मानता, भूल भुलाता-
करता है बहसें, याद रखें फिर रहें शांति से
If you are right then there is no need to get angry,
Beware of 'Ego'! An egoist person - when wrong, is highly
deepti gupta - sanjiv
आप सही है तो नहीं क्रोध की तनिक जरूरत
अभिमानी त्रुटि नहीं मानता, भूल भुलाता-
करता है बहसें, याद रखें फिर रहें शांति से
And if you are wrong then you don't have any right to get angry.
illogical & justifies himself without heeding over his blunders.
Have a peaceful & cheerful day!
चिप्पियाँ Labels:
आज का विचार,
acharya sanjiv verma 'salil',
deepti gupta,
Thought of the day
शनिवार, 1 जून 2013
chhayavaad (romanticism):
हिंदी कविता का आकर्षण छायावाद Romanticism :
दीप्ति गुप्ता - संजीव 'सलिल'
*
-------------------------------------------
सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'
--------------------------------------------------
महादेवी वर्मा
-------------------------------------------------------
सुमित्रानंदन पन्त
----------------------------------
दीप्ति गुप्ता - संजीव 'सलिल'
*
जब मानवीय प्रवृत्तियों व कार्य-कलापों को प्रकृति के उपादानों के माध्यम से व्यक्त करनेवाली कविता छायावादी कविता है। प्रकृति पर मानवीय भावों का आरोपण छायावादी कविता होती है! छायावाद के चार प्रमुख स्तम्भ जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला', महादेवी वर्मा तथा सुमित्रानन्दन पन्त हैं। 







-------------------------------------------
सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'
--------------------------------------------------
महादेवी वर्मा
-------------------------------------------------------
सुमित्रानंदन पन्त
----------------------------------
अंग्रेजी काव्य में छायावाद को रोमांटिसिज्म कहा गया है।
Nature and love were a
major themes of Romanticism favoured by 18th and 19th century poets
such as Lord Byron, Percy Bysshe Shelley and John Keats. Emphasis in
such poetry is placed on the personal experiences of the individual.
The Question
by
Percy Bysshe Shelley
by
Percy Bysshe Shelley
I dreamed that, as I wandered by the way,
Bare Winter suddenly was changed to Spring,
And gentle odours led my steps astray,
Mixed with a sound of waters murmuring
प्रश्न: पर्सी ब्येश शैली
भटक रहा था पथ पर मैंने सपना देखा
कड़ी शीत को बासंती होते था लेखा
सलिल-धार की कलकल मिश्रित मदिर सुरभि ने
मेरे कदमों को यायावर कर बहकाया
Bare Winter suddenly was changed to Spring,
And gentle odours led my steps astray,
Mixed with a sound of waters murmuring
प्रश्न: पर्सी ब्येश शैली
भटक रहा था पथ पर मैंने सपना देखा
कड़ी शीत को बासंती होते था लेखा
सलिल-धार की कलकल मिश्रित मदिर सुरभि ने
मेरे कदमों को यायावर कर बहकाया
चिप्पियाँ Labels:
acharya sanjiv verma 'salil',
chhayavad,
deepti gupta,
mahadevi,
nirala,
pant,
prasad,
romanticism
गुरुवार, 30 मई 2013
thought of the day deepti - sanjiv
आज का विचार:
दीप्ति - संजीव
*
Never Think Hard about PAST, It brings Tears...!
Don't Think more about FUTURE, It brings Fears....!
Don't Think more about FUTURE, It brings Fears....!
Live this Moment with a Smile, It brings Cheers..... !!!
मत अतीत पर शोक करो आँसू आ जायेंगे
मत भविष्य का सोच करो, डर-भय ग्रस जायेंगे
चिप्पियाँ Labels:
acharya sanjiv verma 'salil',
deepti gupta,
Thought of the day
सोमवार, 20 मई 2013
lgerman laghu katha : snehil bahan deepti gupta
लघु कथा:
दीप्ति गुप्ता जी ने जर्मन लेखक C. Schmid, की प्रसिद्ध ‘बाल कथाओं’ का हिन्दी में अनुवाद किया है ! यह पुस्तक प्रकाशनाधीन है ! आज The Loving Sister का हिन्दी रूपान्तरण पढ़िए !
दीप्ति गुप्ता जी ने जर्मन लेखक C. Schmid, की प्रसिद्ध ‘बाल कथाओं’ का हिन्दी में अनुवाद किया है ! यह पुस्तक प्रकाशनाधीन है ! आज The Loving Sister का हिन्दी रूपान्तरण पढ़िए !
स्नेहिल बहन
·
· मारिया आंटी बहुत रईस थी लेकिन अकेली थी ! उसने एक नेक, उदार-दिल, मेहनती, हँसमुख और आज्ञाकारी
अनाथ लड़की को गोद लिया। एक दिन मरिया आंटी उस
लड़की से बोली-
''एनी, तुम बहुत अच्छी और प्यारी हो। मैं चाहती हूँ कि तुम्हें क्रिसमस के
मौके पर एक अच्छा सा उपहार दूँ। मैंने दुकानदार से बात कर ली है, ये रुपये लो और
दुकान पर जाकर अपने लिए एक मनपसन्द ख़ूबसूरत
ड्रेस ख़रीद लाओ।''
·
·
मारिया ने एनी को रुपये दिए, पर एनी कुछ सोचती खड़ी रही और
फिर बोली – माँ, अभी मेरे पास काफ़ी कपड़े हैं, जबकि मेरा बहन
फ़्रान्सिस फटे- पुराने कपड़े पहनती है। यदि वह मुझे नई ड्रेस पहने देखेगी तो निश्चित
ही मन ही मन थोड़ी उदास हो जायेगी। यदि आप इज़ाज़त दें तो ये रुपये मैं अपनी बहन को
भेज दूँ। वह मुझे बहुत प्यार करती है। जब मैं बीमार थी तो वह रोज़ मुझसे मिलने आती
थी और बहुत ही प्यार से मेरी देख-भाल करती थी।
·
यह सुनकर ममतामयी मारिया बोली – ''मेरी बच्ची, अपनी बहन को एक ख़त लिखो कि वह यहाँ आए और हमारे पास रहे। मैं तुम दोनो को बराबर रुपये दूँगी
क्योंकि तुम दोनो एक दूसरे को एक जैसा प्यार करती हो, एक दूसरे का ख़्याल रखती हो। मैं तुम दोनो को ही ख़ुश रखना चाहूँगी।''
“सुख के खुशनुमा और
दुख के उदास दिनों में
बहन से बेहतर कोई
दोस्त नहीं होता
जो थके और मायूस होने पे तुम्हे हँसाती है
और गुमराह होने पे रास्ता दिखाती है !!”
चिप्पियाँ Labels:
deepti gupta,
german,
laghu katha,
snehil bahan
मंगलवार, 7 मई 2013
hindi short story daulat deepti gupta
बोध कथा :
दौलत
दीप्ति गुप्ता
बचपन में दौलत राम बहुत ग़रीब था। समय के साथ साथ उसने शहर में जाकर ख़ूब मेहनत की और बहुत पैसा कमाया। जैसे-जैसे लक्ष्मी मैया की कृपा होती गई, दौलत राम का घमण्ड बढ़ता गया और वो हर किसी को नीची निगाह से देखने लगा।
बहुत दिन
बाद वो शहर से अपने गाँव आया। दुपहर में एक बार जब वो घूमने निकला तो उसे
अपने बचपन की सारी यादें ताज़ा होने लगीं। उसे वो सारे दृश्य याद आने लगे
जहाँ उसने अपना बचपन बिताया था। एकाएक उसका ध्यान एक बरगद के पेड़ पर पड़ा
जिस के नीचे एक आदमी आराम से लेटा हुआ था। क्योंकि धूप थोड़ी तेज़ होने लगी
थी इसलिए दौलत राम सीधा वहाँ पहुँचा और देखा कि उसका
बचपन का साथी कन्हैया वहाँ आराम से लेटा हुआ है।
बजाए इस के कि दौलत राम अपने पुराने मित्र का हाल चाल पूछे, उस ने कन्हैया को टेढ़ी नज़र से देख कर कहा-
“ओ कन्हैया, तू तो बिल्कुल निठल्ला है। न पहले कुछ करता था और न अब कुछ करता है। मुझे देख मैं कहाँ से कहाँ पहुँच गया हूँ।”
यह सुनकर
कन्हैया थोड़ा बुड़बुड़ा कर बैठ गया। दौलत राम का हालचाल पूछा और कहने लगा कि
समस्या क्या है। दौलत राम के ये कहने पर कि वो काम क्यों नहीं करता, कन्हैया ने पूछा कि उस का क्या फ़ायदा होगा। दौलत राम ने कहा कि तेरे पास बहुत सारे पैसी हो जाएँगे।
“उन पैसों का मैं क्या करूँगा?” कन्हैया ने फिर प्रश्न किया।
“अरे मूर्ख, उन पैसों से तू एक बहुत बड़ा महल बनाएगा।”
“क्या करूँगा मैं उस महल का?” कन्हैया ने फिर तर्क किया।
“ओ मन्द बुद्धि उस महल में तू आराम से रहेगा, नौकर चाकर होंगे, घोड़ा गाड़ी होगी, बीवी बच्चे होंगे।” दौलत राम ने ऊँचे स्वर से गुस्से में कहा।
“फिर उसके बाद?” कन्हैया ने फिर प्रश्न किया।
अब तक दौलत राम अपना धीरज खो बैठा था। वो गुस्से में झुँझला कर बोला-
“ओ पागल कन्हैया, फिर तू आराम से लम्बी तान कर सोएगा।”
ये सुन कर कन्हैया ने मुस्कुराकर जवाब दिया- “सुन मेरे भाई दौलत, तेरे आने से पहले, मैं लम्बी तान के ही तो सो रहा था।”
ये सुनकर
दौलत राम के पास कुछ भी कहने को नहीं रहा। उसे इस चीज़ का एहसास होने लगा कि
जिस दौलत को वो इतनी मान्यता देता था वो एक सीधे-साधे कन्हैया की निगाह
में कुछ भी नहीं। आगे बढ़ कर उसने कन्हैया को गले लगा लिया और कहने लगा कि
आज उसकी आँखें खुल गई हैं। दोस्ती के आगे दौलत कुछ भी नहीं है। इंसान और
इंसानियत ही इस जग में सब कुछ है।
"gupta, deepti" <drdeepti25@yahoo.co.in>
चिप्पियाँ Labels:
दीप्ति गुप्ता,
दौलत,
बोध कथा,
daulat,
deepti gupta,
hindi short story
मंगलवार, 30 अप्रैल 2013
Forms of Poetry In English 4 : deepti gupta - sanjiv verma
अँग्रेज़ी काव्य विधाएँ-4
Blank Versedeepti gupta - sanjiv verma*
मीटर के बिना लिखी जाने वाली कविता Blank verse कविता कहलाती है. विलियम शेक्सपियर ने अपने अधिकतर नाटकों में इसका प्रयोग किया है.
Example:
From Macbeth by William Shakespeare
Tomorrow, and tomorrow, and tomorrow,
Creeps in this petty pace from day to day,
To the last syllable of recorded time;
And all our yesterdays have lighted fools
The way to dusty death. Out, out, brief candle!
Life's but a walking shadow, a poor player
That struts and frets his hour upon the stage
And then is heard no more: it is a tale
Told by an idiot, full of sound and fury,
Signifying nothing.
*
हिंदी साहित्य में छान्दस काव्य में सामान्यतः पंक्तियों का पदभार समान होता है। ब्लेंक वर्स अर्थात
अतुकांत कविता में पद संख्या, पद भार (मात्राओं / वर्णों की सामान संख्या) अथवा समान तुक का
बंधन नहीं होता।
*
हिंदी साहित्य में छान्दस काव्य में सामान्यतः पंक्तियों का पदभार समान होता है। ब्लेंक वर्स अर्थात
अतुकांत कविता में पद संख्या, पद भार (मात्राओं / वर्णों की सामान संख्या) अथवा समान तुक का
बंधन नहीं होता।
उदाहरण :
सुख - दुःख
*
सुख
आदमी को बाँटता है।
मगरूर बनाता है,
परिवेश से काटता है।
दुःख
आदमी को
आदमी से जोड़ता है।
दिल से मिलने को
दिल दौड़ता है।
फिर क्यों?
क्यों हम दुःख से दूर भागते हैं?
क्यों हमेशा ही
सुख की भीख मंगाते हैं?
काश! हम सुख को भी
दुःख की तरह बाँट पाते।
दुःख को भी
सुख की तरह चाह पाते।
सच मानो तब
अपने ही नहीं,
औरों के भी आंसू पी पाते।
आदमी से
इंसान बनकर जी पाते।
*
चिप्पियाँ Labels:
अँग्रेज़ी काव्य विधाएँ-4,
अतुकांत कविता,
Blank Verse,
deepti gupta,
Forms of Poetry In English,
sanjiv verma
सोमवार, 29 अप्रैल 2013
mubarak begum
समय-समय की बात:
मुफलिसी के दौर में मुबारक बेगम

दीप्ति गुप्ता
पता चला कि बीते ज़माने की लोप्रिय गायिका 'मुबारक बेगम' फटेहाल जिंदगी जीने को मज़बूर हैं । पैसे के अभाव से मानसिक डिप्रेशन की स्थिति में हैं । ऊपर से बेटी बीमार । टैक्सी चालक बेटा कितना कमायेगा जिससे उऩकी देखभाल होगी ?
‘कभी तन्हाइयों में, हमारी याद आएगी’
इस गीत को अपनी दिलकश आवाज देने वाली मुबारक बेगम मानो पूछ रही हैं कि किसी को कभी उनकी याद आएगी? यह सवाल उस बॉलीवुड से है जो सिर्फ उगते सूरज को सलाम करना जानता है। 60-70 के दशक में पार्श्वगीत और गजल गायकी में अपना लोहा मनवाने वाली बेगम आज गुमनामी और मुफलिसी में दिन गुजारने को मजबूर हैं। मुबारक बेगम ने कई गीत गाए, जो बेहद लोकप्रिय रहे और जिसे आज भी लोग गुनगुनाते हैं। उस दौर में बॉलीवुड में उनका रुतबा किसी स्टार से कम नहीं था, लेकिन आज उनकी जिंदगी मात्र 450 वर्ग फीट के एक कमरे में सिमटी है। जोगेश्वरी (पश्चिम) के म्हाडा कॉलोनी में उनका घर कबूतरखाने से कम नहीं है। इसी एक कमरे में वे बेटी, बेटे, बहू और पोती के साथ रहती हैं। तीन पोतियों की शादी कर चुकीं बेगम ही परिवार की आजीविका की एकमात्र स्नोत हैं। उनका बेटा प्राइवेट टैक्सी चलाता है। 40 साल की बेटी पार्किसन से पीड़ित है। बेबस लहजे में बेगम कहती हैं कि कभी-कभी उनका कोई प्रशंसक डिमांड ड्राफ्ट से पैसे भेज देता है। लेकिन अक्सर महीनों तक परिवार को पैसे-पैसे को मोहताज रहना पड़ता है। वे कहती हैं, ‘कभी-कभी तो हमारे पास इतने पैसे भी नहीं होते कि बिजली बिल चुकाएं। बेटी के इलाज पर ही हर माह करीब 6000 रुपये खर्च होते हैं। आर्थिक तंगी के कारण मैंने अपने पेट की सजर्री नहीं कराई।’
अपने समय की बेहतरीन गायिका से जब बॉलीवुड की हस्तियों ने मुंह फेर लिया तब एक समूह उनकी मदद के लिए आगे आया जो उन फिल्मी हस्तियों को आर्थिक मदद मुहैया कराता है जिन्हें बॉलीवुड ने भुला दिया।
उनका पता -
Mubarak Begum
Sultanabaad Chiraag Housing Society
Building no.22, first floor
Flat no. c-111, Behram bagh Road
Jogeshwari west, Mumbai-400102
_
चिप्पियाँ Labels:
दीप्ति गुप्ता,
मुबारक बेगम,
deepti gupta,
mubarak begum
गुरुवार, 11 अप्रैल 2013
अँग्रेज़ी काव्य विधाएँ-3 ABC Poems: वर्णाक्षरी कविता:
अँग्रेज़ी काव्य विधाएँ-3
ABC Poems:
dr. deepti gupta
*
ए- बी- सी- कविता एक भाव] संवेदना] परिकल्पना या मूड का सृजन करने वाली
वह रचना है जिसकी पहली पंक्ति में वर्णमाला का पहला अक्षर] दूसरी में
उसके बाद का] तीसरी में तीसरा वर्ण क्रमानुसार रखे जाते हैं ! कविता
मर्मस्पर्शी होती है व सुख&दुःख] पीड़ा के भावों को समेटे चलती है !
Example:1
A lthough things are not perfect
B ecause of trial or pain
C ontinue in thanksgiving
D o not begin to blame
E ven when the times are hard
F ierce winds are bound to blow
*
Example:2
BURRRR! BLIZZARD COMING DECEMBER ESKIMO FREEZING FORECAST GHOST-GROUNDS HEAVY *
अभिनव प्रयोग- वर्णाक्षरी कविता: संजीव वर्मा 'सलिल' ० अ ब तक सहा और मत सहना. आ ओ! जो मन में है कहना. इ धर व्याप्त जो सन्नाटा है ई श्वर ने वह कब बाँटा है? उ धर शोर करता है बहरा. ऊ पर से शक का है गहरा. ए क हुआ है सौ पर भारी ऐ सी भी कैसी लाचारी? ओ ढ़ रहे बेशर्मी भी क्यों? औ र रोकते बढ़ते पग को. अँ तर में गर झाँक सकेंगे अ:, सत्य कुछ आंक सकेंगे.
चिप्पियाँ Labels:
अँग्रेज़ी काव्य विधाएँ-3,
वर्णाक्षरी कविता,
ABC Poems,
acharya sanjiv verma 'salil',
deepti gupta
शनिवार, 13 अक्टूबर 2012
THE 99 CLUB? deepti gupta
Once upon a
time......there lived a King
who.....despite his luxurious lifestyle.....was
neither happy nor content. One day, the King
came upon a servant who was singing happily
while he worked. This
fascinated the King; why was he......the Supreme
Ruler of the Land..........unhappy and gloomy, while a
lowly servant had so much joy.
The King asked the servant, How come you are so happy?"
The man replied, “Your Majesty, I am nothing but a servant, but my family and I don't need too much........ ....just a roof over our heads and warm food to fill our tummies."
The king was not satisfied with that reply. Later in the day, he sought the advice of his most trusted advisor. After hearing the King's woes and the servant's story, the advisor said, Your Majesty, I believe that the servant has not been made part of
The King asked the servant, How come you are so happy?"
The man replied, “Your Majesty, I am nothing but a servant, but my family and I don't need too much........ ....just a roof over our heads and warm food to fill our tummies."
The king was not satisfied with that reply. Later in the day, he sought the advice of his most trusted advisor. After hearing the King's woes and the servant's story, the advisor said, Your Majesty, I believe that the servant has not been made part of
The 99
Club."
The 99 Club? And what exactly is that?" the King inquired.
The advisor replied, "Your Majesty, to truly know what The 99 Club is...........place 99 Gold coins in a bag and leave it at this servant's doorstep."
When the servant saw the bag.......he took it into his house. When he opened the bag, he let out a great shout of joy....... wow....so many gold coins!
He began to count them. After several counts.....he was at last convinced that there were 99 coins. He wondered, "What could've happened to that last gold coin? Surely, no one would leave 99 coins! "
He looked everywhere he could..... But that last coin was elusive. Finally, exhausted, he decided that he was going to have to work harder than ever to earn that gold coin and complete his collection.
From that day....the servant's life changed. He was overworked, horribly grumpy, and castigated his family for not helping him make that 100th gold coin. He felt so unhappy all the time.... he
stopped singing while he worked.
Witnessing this drastic transformation. ...the King was puzzled. When he sought his adviser's help,
the advisor said, “Your Majesty, the servant has now officially joined The 99 Club."
He continued, " The 99 Club is a name given to those people who have enough to be happy but are never contented... ....because they're always yearning and striving for that extra 1.......telling themselves: "Let me get that one final thing and then I will be happy for life ."
We too can be happy with very little in our lives....... but the minute we're given something bigger and better...... we need to watch out for our monkey minds ........which may want even more!
We lose our sleep........our happiness... ...we hurt the people around us.......all these as a price for our growing needs and desires.
The 99 Club? And what exactly is that?" the King inquired.
The advisor replied, "Your Majesty, to truly know what The 99 Club is...........place 99 Gold coins in a bag and leave it at this servant's doorstep."
When the servant saw the bag.......he took it into his house. When he opened the bag, he let out a great shout of joy....... wow....so many gold coins!
He began to count them. After several counts.....he was at last convinced that there were 99 coins. He wondered, "What could've happened to that last gold coin? Surely, no one would leave 99 coins! "
He looked everywhere he could..... But that last coin was elusive. Finally, exhausted, he decided that he was going to have to work harder than ever to earn that gold coin and complete his collection.
From that day....the servant's life changed. He was overworked, horribly grumpy, and castigated his family for not helping him make that 100th gold coin. He felt so unhappy all the time.... he
stopped singing while he worked.
Witnessing this drastic transformation. ...the King was puzzled. When he sought his adviser's help,
the advisor said, “Your Majesty, the servant has now officially joined The 99 Club."
He continued, " The 99 Club is a name given to those people who have enough to be happy but are never contented... ....because they're always yearning and striving for that extra 1.......telling themselves: "Let me get that one final thing and then I will be happy for life ."
We too can be happy with very little in our lives....... but the minute we're given something bigger and better...... we need to watch out for our monkey minds ........which may want even more!
We lose our sleep........our happiness... ...we hurt the people around us.......all these as a price for our growing needs and desires.
चिप्पियाँ Labels:
deepti gupta,
THE 99 CLUB?
बुधवार, 10 अक्टूबर 2012
Downloading Hindi Fonts : deepti gupta
Downloading Hindi Fonts : deepti gupta
1. Go to
Google search
: Type -
Transliteration
2. A new
page will open
with many options. Click the ‘First’
option : Type in Hindi –
Google Transliteration
Now another
new page will
open . Click at
Right top : New ! Download Google
Transliteration IME
Now a small box opens . A blue box type will be shown there. Click at : Choose your IME Language. Now many language options will roll down. Click at - Hindi
Immediately a Dialogue Box opens with 3 options
Before ‘Saving’
it may ask
for the Location, give
command save at ‘Desktop’. When
saved , you will
see an
‘Icon’
with a name of the
language - ‘google Hindi…..’ Now
Double click at this
Icon .
A Dialogue Box will be seen with options - Run Cancel
Now the
Google Hindi Input Installer will install
the Hindi Language on your
Desktop/Laptop. It may take 2
to 5 minutes or less. Then a
Google Hindi Input Set up Wizard
will be seen :
Click : I accept the Terms
of use…….
Then click
: next
Then
click : Close.
Now
go to the
‘language bar’ – at
the bottom right
side of desktop/Laptop. Click
at ‘Hindi’ option and
start typing.
In case, Language Bar
is not shown – click the
Right (mouse) – a small box
opens with many options. There will be
First option : Toolbar. Click at
the Toolbar. ….again a
small box opens : now
click at ‘Language Bar ’
Now you will
see a language bar at
the right bottom
of your Desktop /Laptop .
चिप्पियाँ Labels:
deepti gupta,
Downloading Hindi Fonts,
translitertion
मंगलवार, 19 जून 2012
यह हिंदी है - ३ शब्द भंडार वर्धक उपसर्ग --संजीव 'सलिल', दीप्ति गुप्ता
संवाद और साहित्य सृजन दोनों में शब्दों के बिना कम नहीं चलता. शब्द भंडार जितना अधिक होगा भावों की अभिव्यक्ति उतनी शुद्ध, सहज, सरल, सरस और सटीक होगी. कुछ शब्दों के साथ अन्य शब्द जोड़कर नये शब्द बनते हैं. नये शब्द के जुड़ने से कभी तो नये शब्द का अर्थ बदलता है, कभी नहीं बदलता.
उदाहरण :
१. 'जय' के पहले 'परा' जुड़ जाए तो एक नया शब्द 'पराजय' बनता है जिसका अर्थ मूल शब्द 'जय' से विपरीत है.
२. 'भ्रमण' के पूर्व 'परि' जुड़ जाए तो नया शब्द 'परिभ्रमण' बना जिसका अर्थ मूल शब्द के समान 'घूमना' ही है.
उपसर्ग की विशेषताएँ-
२. उपसर्ग का प्रयोग स्वतंत्र रूप से नहीं किया जा सकता.
३. उपसर्ग का कोई स्वतंत्र अर्थ नहीं होता.
४. उपसर्ग जोड़ने से बना शब्द कभी-कभी मूल शब्द के अर्थ में कोई परिवर्तन नहीं करता, कभी-कभी अर्थ में नवीनता दिखती है, कभी-कभी अर्थ विपरीत हो जाता है.
कुछ प्रचलित उपसर्ग:
अ -
अकल, अकाल, अकाम, अकिंचित, अकुलीन, अकुशल, अकूत, अकृपण, अक्रिय, अखिल, अगम, अगाध, अगोचर, अघोर, अचर, अचार, अछूत, अजर, अजरा, अजन्मा, अजित, अजीत, अजिर, अडिग, अतिथि, अदृष्ट, अधिक, अन्याय, अनृत, अनाज, अनाथ, अनाम, अनार, अनिंद्य, अनीत, अनंत, अपकार, अपरा, अपार, अपूर्ण, अबूझ, अमर, अमूल, अमृत, अलोप, अलौकिक, अलौना, अवमानना, अवतार, अवसर, अवाम, अविराम, अविश्वास, अविस्मरणीय, असत, असर, असार, असीम, असुर.
अक -
अकसर, अकसीर।
अति = अधिक, ऊपर, उस पार
अत्यंत, अतिक्रमण, अतिकाल, अतिरिक्त, अतिरेक, अतिशय, अतिसार.
अधि = श्रेष्ठ, ऊपर, समीपता
अधिकार, अध्यात्म, अध्यक्ष, अधिपति, अधिरथ, अधिष्ठाता.
अनु - पश्चात्, समानता
अनुकरण, अनुक्रम, अनुनय, अनुचर, अनुभव, अनुमान, अनुरूप, अनुरोध, अनुपात, अनुलोम, अनुवाद, अनुशासन, अनुसार.
अप = लघुता, हीनता, अभाव
अपकार, अपमान, अपयश, अपरूपा, अपवाद, अपव्यय, अपशकुन, अपशब्द, अपहरण.
अभि - समीपता, और, इच्छा प्रगट करना
अभिचार, अभिजीत, अभिभावक, अभिमान, अभिलेश, अभिवादन, अभिशाप।
अव = हीनता, अनादर, पतन
अवगत, अवधारणा, अवनत, अवमानना, अवलोकन, अवतार, अवसान.
आ = सीमा, ओर ,समेत
आकाश, आचरण, आचार, आगमन, आजन्म, आजानु, आतप, आधार, आपात, आभार, आमरण, आमोद, आराम, आलोक, आवास.
अ -
अकल, अकाल, अकाम, अकिंचित, अकुलीन, अकुशल, अकूत, अकृपण, अक्रिय, अखिल, अगम, अगाध, अगोचर, अघोर, अचर, अचार, अछूत, अजर, अजरा, अजन्मा, अजित, अजीत, अजिर, अडिग, अतिथि, अदृष्ट, अधिक, अन्याय, अनृत, अनाज, अनाथ, अनाम, अनार, अनिंद्य, अनीत, अनंत, अपकार, अपरा, अपार, अपूर्ण, अबूझ, अमर, अमूल, अमृत, अलोप, अलौकिक, अलौना, अवमानना, अवतार, अवसर, अवाम, अविराम, अविश्वास, अविस्मरणीय, असत, असर, असार, असीम, असुर.
अक -
अकसर, अकसीर।
अति = अधिक, ऊपर, उस पार
अत्यंत, अतिक्रमण, अतिकाल, अतिरिक्त, अतिरेक, अतिशय, अतिसार.
अधि = श्रेष्ठ, ऊपर, समीपता
अधिकार, अध्यात्म, अध्यक्ष, अधिपति, अधिरथ, अधिष्ठाता.
अनु - पश्चात्, समानता
अनुकरण, अनुक्रम, अनुनय, अनुचर, अनुभव, अनुमान, अनुरूप, अनुरोध, अनुपात, अनुलोम, अनुवाद, अनुशासन, अनुसार.
अप = लघुता, हीनता, अभाव
अपकार, अपमान, अपयश, अपरूपा, अपवाद, अपव्यय, अपशकुन, अपशब्द, अपहरण.
अभि - समीपता, और, इच्छा प्रगट करना
अभिचार, अभिजीत, अभिभावक, अभिमान, अभिलेश, अभिवादन, अभिशाप।
अव = हीनता, अनादर, पतन
अवगत, अवधारणा, अवनत, अवमानना, अवलोकन, अवतार, अवसान.
आ = सीमा, ओर ,समेत
आकाश, आचरण, आचार, आगमन, आजन्म, आजानु, आतप, आधार, आपात, आभार, आमरण, आमोद, आराम, आलोक, आवास.
आविर + प्रगट, बाहर - आविर्भाव, आविष्कार 
इति = ऐसा - इतिहास, इतिवृत्त, इतिपूर्व उ
उचट, उचाट, उछल, उतार, उधर, उधार, उमर, उलार.
उप = निकटता, सदृश, गौड़
उपकार, उपचार, उपदेश, उपनयन, उपवन, उपवास, उत / उद = ऊपर, उत्कर्ष
उत्तम, उत्साह, उत्थान, उद्गम, उद्गार, उद्देश्य, उद्धार, उद्बोध,
चिर = बहुत - चिरकाल, चिरजीवी, चिरायु
दुर / दुस = बुरा, कठिन, दुष्ट
दुराचार, दुर्गम, दुर्जन, दुर्दशा, दुर्निवार, दुर्योधन, दुर्लभ, दुर्व्यवस्था, दु :शासन, दु :सह.
नि = भीतर, नीचे, अतिरिक्त - निवास, निदान, निरोग, निरोध, निमंत्रण, निषेध, निबन्ध, निवर्तमान, निरपेक्ष, नियोग, निषेध, निवारण, निवास, निकम्मा,
निर / निस = बाहर, निषेध, रहित
निरपराध, निरंकुश, निर्जन, निर्धन, निर्बोध, निर्बंध, निर्भय, निर्मम, निर्माण, निर्मोही, निर्लेप, निर्लोभ, निर्वसन, निर्वाचन, निर्वासन, निर्विकार, निर्विरोध, निवृत्त.
नि: / निष् = बिना, रहित
निष्कलंक, निष्काम, निष्प्राण, निष्पाप.
नि = भीतर, नीचे, अतिरिक्त
निचाट, निदान, निबंध, निभाव, नियोग, निरोध, निवार, निवारण, निवास.
परा = उल्टा, अनादर, नाश
पराक्रम, परागण, पराजय, पराभव,
बहिर = बाहर - बहिर्द्वार, बहिष्कार, बहिर्मुख
परि = आसपास, चारों ओर, अतिशय
परिक्रमा, परिचय, परिजन, परितोष, परिभ्रमण, परिवाद, परिवर्तन, पर्याप्त.
प्र = अधिक, आगे, ऊपर
प्रकाश, प्रखर, प्रचार, प्रताड़ना, प्रभार, प्रयास, प्रलय, प्रवर, प्रसन्न.
प्रति = विरोध, प्रत्येक, बराबरी
प्रत्यक्ष, प्रत्येक, प्रतिकूल, प्रतिक्षण, प्रतिनिधि, प्रतिरोध, प्रतिशोध.
बे = बेईमान, बेचारा, बेलगाम, बेदाम, बेलौस, बेबात, बेसहारा
प्र = प्रखर, प्रतुल, प्रस्तर, प्रपौत्र, प्रमाण, प्रचार, प्रसार, प्रमोद, प्रधान, प्रलाप,
प्रातस = सवेरे - प्रातःकाल, प्रातःस्मरण, प्रातःस्नान
अमा = पास - अमात्य, अमावस्या,
अलम = सुंदर - अलंकार, अलंकृत, अलंकरण
कु = बुरा - कुकर्म, कुरूप, कुविचार, कुअवसर,
तिरस् = तुच्छ - तिरस्कार, तिरोभाव,
न = अभाव - नक्षत्र, नपुंसक, नकारना, नटेरना
नाना = बहुत, विविध - नानारूप, नानाजाति, नाना प्रकार
पर = दूसरा - परदेसी, पराधीन, परोपकार, परलोक, परजात,
पुरा = पहले - पुरातत्व, पुरातन, पुरावृत्त,
स = सहित - सगोत्र, सजातीय, सजीव, सरस, सकल, सजन, सरल, सहज
प्रादुर = प्रकट - प्रादुर्भाव
प्राक = पहले का - प्राक्कथन, प्रादुर्भाव, प्राक्कर्म
पूर्व = पहले का - पूर्वार्ध, पूर्वपक्ष,
पुनर = पुनः, फिर, दोबारा - पुनर्जन्म, पुनरुक्त, पुनर्विवाह
इति = ऐसा - इतिहास, इतिवृत्त, इतिपूर्व उ
उचट, उचाट, उछल, उतार, उधर, उधार, उमर, उलार.
उप = निकटता, सदृश, गौड़
उपकार, उपचार, उपदेश, उपनयन, उपवन, उपवास, उत / उद = ऊपर, उत्कर्ष
उत्तम, उत्साह, उत्थान, उद्गम, उद्गार, उद्देश्य, उद्धार, उद्बोध,
चिर = बहुत - चिरकाल, चिरजीवी, चिरायु
दुर / दुस = बुरा, कठिन, दुष्ट
दुराचार, दुर्गम, दुर्जन, दुर्दशा, दुर्निवार, दुर्योधन, दुर्लभ, दुर्व्यवस्था, दु :शासन, दु :सह.
नि = भीतर, नीचे, अतिरिक्त - निवास, निदान, निरोग, निरोध, निमंत्रण, निषेध, निबन्ध, निवर्तमान, निरपेक्ष, नियोग, निषेध, निवारण, निवास, निकम्मा,
निर / निस = बाहर, निषेध, रहित
निरपराध, निरंकुश, निर्जन, निर्धन, निर्बोध, निर्बंध, निर्भय, निर्मम, निर्माण, निर्मोही, निर्लेप, निर्लोभ, निर्वसन, निर्वाचन, निर्वासन, निर्विकार, निर्विरोध, निवृत्त.
नि: / निष् = बिना, रहित
निष्कलंक, निष्काम, निष्प्राण, निष्पाप.
नि = भीतर, नीचे, अतिरिक्त
निचाट, निदान, निबंध, निभाव, नियोग, निरोध, निवार, निवारण, निवास.
परा = उल्टा, अनादर, नाश
पराक्रम, परागण, पराजय, पराभव,
बहिर = बाहर - बहिर्द्वार, बहिष्कार, बहिर्मुख
परि = आसपास, चारों ओर, अतिशय
परिक्रमा, परिचय, परिजन, परितोष, परिभ्रमण, परिवाद, परिवर्तन, पर्याप्त.
प्र = अधिक, आगे, ऊपर
प्रकाश, प्रखर, प्रचार, प्रताड़ना, प्रभार, प्रयास, प्रलय, प्रवर, प्रसन्न.
प्रति = विरोध, प्रत्येक, बराबरी
प्रत्यक्ष, प्रत्येक, प्रतिकूल, प्रतिक्षण, प्रतिनिधि, प्रतिरोध, प्रतिशोध.
बे = बेईमान, बेचारा, बेलगाम, बेदाम, बेलौस, बेबात, बेसहारा
प्र = प्रखर, प्रतुल, प्रस्तर, प्रपौत्र, प्रमाण, प्रचार, प्रसार, प्रमोद, प्रधान, प्रलाप,
प्रातस = सवेरे - प्रातःकाल, प्रातःस्मरण, प्रातःस्नान
अमा = पास - अमात्य, अमावस्या,
अलम = सुंदर - अलंकार, अलंकृत, अलंकरण
कु = बुरा - कुकर्म, कुरूप, कुविचार, कुअवसर,
तिरस् = तुच्छ - तिरस्कार, तिरोभाव,
न = अभाव - नक्षत्र, नपुंसक, नकारना, नटेरना
नाना = बहुत, विविध - नानारूप, नानाजाति, नाना प्रकार
पर = दूसरा - परदेसी, पराधीन, परोपकार, परलोक, परजात,
पुरा = पहले - पुरातत्व, पुरातन, पुरावृत्त,
स = सहित - सगोत्र, सजातीय, सजीव, सरस, सकल, सजन, सरल, सहज
प्रादुर = प्रकट - प्रादुर्भाव
प्राक = पहले का - प्राक्कथन, प्रादुर्भाव, प्राक्कर्म
पूर्व = पहले का - पूर्वार्ध, पूर्वपक्ष,
पुनर = पुनः, फिर, दोबारा - पुनर्जन्म, पुनरुक्त, पुनर्विवाह
स / सु / सं= सुखी, अच्छा, श्रेष्ठ सकल, सगर, सचल, सजल, सप्रेम, समर, सरस, सहर, सुकर्म, सुगम, सुघड़, सुचारू, सुजय, सुडौल, सुदीप, सुधर, सुधार, सुधीर, सुनीति, सुप्रीत, सुफल, सुभीता, सुमन, सुयश, सुलभ, संकट, संकल्प, संकुल, संगम, संगति, संग्रह, संग्राम, संचयन, संचार, सन्तान, संतोष, संभार, संयम, सन्यास, संलाप, संवाद, संरक्षण, संशय, सम्मान, सम्मुख, सम्मोहन.
स्वयं = अपने आप - स्वयंभू, स्वयंवर, स्वयंसिद्ध, स्वयंसेवक
सह = साथ - सहकारी, सहगमन, सहचर, सहज, सहोदर, सहानुभूति, सहभागी
स्व = अपना, निजी - स्वतंत्र, स्वदेश, स्वभाषा, स्वभाव, स्वराज्य, स्वलोक, स्वजाति, स्वधर्म, स्वकर्म
सत = अच्छा - सदाचार, सज्जन, सत्कर्म, सत्पात्र, सद्गुरु, सत्परामर्श, सत्कार, सद्धर्म, सत्लोक
सह = साथ - सहकारी, सहगमन, सहचर, सहज, सहोदर, सहानुभूति, सहभागी
स्व = अपना, निजी - स्वतंत्र, स्वदेश, स्वभाषा, स्वभाव, स्वराज्य, स्वलोक, स्वजाति, स्वधर्म, स्वकर्म
सत = अच्छा - सदाचार, सज्जन, सत्कर्म, सत्पात्र, सद्गुरु, सत्परामर्श, सत्कार, सद्धर्म, सत्लोक
चिप्पियाँ Labels:
उपसर्ग,
दीप्ति गुप्ता,
शब्द,
संजीव 'सलिल',
हिंदी,
deepti gupta,
hindi,
sanjiv 'salil',
shabd,
upsarg
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ (Atom)