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मंगलवार, 21 मई 2019

गीत

गीत 
*
मात्र मेला मत कहो
जनगण हुआ साकार है। 
*
'लोक' का है 'तंत्र' अद्भुत
पर्व, तिथि कब कौन सी है?
कब-कहाँ, किस तरह जाना-नहाना है?
बताता कोई नहीं पर
सूचना सब तक पहुँचती।
बुलाता कोई नहीं पर
कामना मन में पुलकती
चलें, डुबकी लगा लें
यह मुक्ति का त्यौहार है।
*
'प्रजा' का है 'पर्व' पावन
सियासत को लगे भावन
कहीं पण्डे, कहीं झंडे- दुकाने हैं
टिकाता कोई नहीं पर
आस्था कब है अटकती?
बुझाता कोई नहीं पर
भावना मन में सुलगती
करें अर्पित, पुण्य पा लें
भक्ति का व्यापार है।
*
'देश' का है 'चित्र' अनुपम
दृष्ट केवल एकता है।
भिन्नताएँ भुला, पग मिल साथ बढ़ते
भुनाता कोई नहीं पर
स्नेह के सिक्के खनकते।
स्नान क्षिप्रा-नर्मदा में
करे, मानें पाप धुलते
पान अमृत का करे
मन आस्था-आगार है।
*

सोमवार, 11 दिसंबर 2017

navgeet

नवगीत -
ठेंगे पर कानून 
*
मलिका - राजकुँवर कहते हैं
ठेंगे पर कानून 
संसद ठप कर लोकतंत्र का
हाय! कर रहे खून
*
जनगण - मन ने जिन्हें चुना
उनको न करें स्वीकार
कैसी सहनशीलता इनकी?
जनता दे दुत्कार
न्यायालय पर अविश्वास कर
बढ़ा रहे तकरार
चाह यही है सजा रहे
कैसे भी हो दरबार
जिसने चुना, न चिंता उसकी
जो भूखा दो जून
मलिका - राजकुँवर कहते हैं
ठेंगे पर कानून
संसद ठप कर लोकतंत्र का
हाय! कर रहे खून
*
सरहद पर ही नहीं
सडक पर भी फैला आतंक
ले चरखे की आड़
सँपोले मार रहे हैं डंक
जूते उठवाते औरों से
फिर भी हैं निश्शंक
भरें तिजोरी निज,जमाई की
करें देश को रंक
स्वार्थों की भट्टी में पल - पल
रहे लोक को भून
मलिका - राजकुँवर कहते हैं
ठेंगे पर कानून
संसद ठप कर लोकतंत्र का
हाय! कर रहे खून
*
परदेशी से करें प्रार्थना
आ, बदलो सरकार
नेताजी को बिना मौत ही
दें कागज़ पर मार
संविधान को मान द्रौपदी
चाहें चीर उतार
दु:शासन - दुर्योधन की फिर
हो अंधी सरकार
मृग मरीचिका में जीते
जैसे इन बिन सब सून
मलिका - राजकुँवर कहते हैं
ठेंगे पर कानून
संसद ठप कर लोकतंत्र का
हाय! कर रहे खून
११-१२-२०१५ 

***
www.divyanarmada.in
#हिंदी_ब्लॉगर 

शुक्रवार, 3 नवंबर 2017

दोहा सलिला

सामयिक दोहे
लोकतंत्र की माँग है, सकल देश हो एक.
जनप्रतिनिधि सेवक बने, जाग्रत रखे विवेक.
.
जनसेवक कि क्यों मिले, नेता भत्ता आज.
आम आदमी बन रहे, क्यों आती है लाज?
.
दल-दलबंदी बंद हो, हो न व्यर्थ तकरार.
राष्ट्रीय सरकार हो, संसद जिम्मेदार.
.
देश एक है, प्रान्त हैं, अलग-अलग पर संग.
भाषा-भूषा-सभ्यता, भिन्न न दिल हैं तंग.
.
निर्वाचन हो दल रहित, काबलियत आधार.
उत्तम जन प्रतिनिधि करें, सेवा तज व्यापार.
.
हर विचार के श्रेष्ठजन, बना सकें सरकार.
शेष समर्थक साथी हों, तज विरोध-व्यापार.
.
राज्य-केन्द्र में विविध दल, काम करें संग-साथ.
करें देश-निर्माण मिल, मिला हाथ से हाथ.
.
मात्र एक दल की नहीं, बने सभी सरकार.
मतदाता जाग्रत रहे, सजा यहीं दरकार.
...

रविवार, 29 अक्टूबर 2017

muktak

मुक्तक 
विदा दें, बाद में बात करेंगे, नेता सा वादा किया, आज जिसने 
जुमला न हो यह, सोचूँ हो हैरां, ठेंगा दिखा ही दिया आज उसने 
गोदी में खेला जो, बोले दलाल वो, चाचा-भतीजा निभाएं न कसमें 
छाती कठोर है नाम मुलायम, लगें विरोधाभास ये रसमें 

शुक्रवार, 27 अक्टूबर 2017

doha

दोहा सलिला
*
ताज न मंदिर-मकबरा, मात्र इमारत भव्य भूल सियासत देखिए, कला श्रेष्ठ शुचि दिव्य
*
नेताओं से लीजिए, भत्ता-सुविधा छीन भाग जाएँगे चोर सब, श्रेष्ठ सकें हम बीन
*
एंकर अनुशासित रहे, ठूँसे नहीं विचार वक्ता बोले विषय पर, लोग न हों बेज़ार
*
जानकार वक्ता रहें, दलगत करें न बात सच उद्घाटित हो तभी, सुधर सकें हालात
*
हम भी जानें बोलना, किंतु बुलाये कौन? घिसे-पिटे चेहरे बुला, सच को करते मौन
*
केंद्र-राज्य में भिन्न दल, लोकतंत्र की माँग एक न मनमानी करे, खींच न पाए टांग
*
salil.sanjiv@gmail.com, ९४२५१८३२४४
www.divyanarmada.in, #हिंदी_ब्लॉगर

मंगलवार, 19 सितंबर 2017

geet

एक रचना-
बम भोले! मत बोलो भाई
मत कहना जय राम जी!!
*
लोकतंत्र का अजब तकाज़ा
दुनिया देखे ठठा तमाशा
अपना हाथ
गाल भी अपना
जमकर मारें खुदी तमाचा
आज़ादी कुछ भी कहने की?
हुए विधाता वाम जी!
बम भोले! मत बोलो भाई
मत कहना जय राम जी!!
*
जन का निर्णय पचा न पाते
संसद में बैठे गुर्राते
न्यायालय का
कहा न मानें
झूठे, प्रगतिशील कहलाते
'ख़ास' बुद्धिजीवी पथ भूले
इन्हें न कहना 'आम' जी
बम भोले! मत बोलो भाई
मत कहना जय राम जी!!
*
कहाँ मानते हैं बातों से
कहो, देवता जो लातों के?
जैसे प्रभु
वैसी हो पूजा
उत्तर दो सब आघातों के
अवसर एक न पाएं वे
जो करें देश बदनाम जी
बम भोले! मत बोलो भाई
मत कहना जय राम जी!!
salil.sanjiv@gmail.com
#दिव्यनर्मदा
#हिंदी_ब्लॉगर