कान्हा जी आप आओ ना ......
मेरा मन तुम्हे बुला रहा है !!
अपनी मधुर मुरली सुनाओ ना ....
जो मेरे अन्दर के कोलाहल को मिटा दे !!
अपनी साँवरी छवि दिखा जाओ ना ...
जो मन, आत्मा और शरीर को निर्मल कर दे !!
अपना सुदर्शन चक्र घुमाओ ना ...
जो इस दुनिया की सारी बुराइयों को नष्ट कर दे !!
हर तरफ झूठ ही झूठ है .....
आप सत्या की स्थापना करने आओ ना !
फिर से अपना विराठ रूप दिखाओ ना !!
हे कान्हा ! तुम सारथी बनो .....
जैसे अर्जुन को राह दिखाई थी....
मुझको भी राह दिखाओ ना !!
मेरी हिम्मत टूट रही है .....
मुझको भी गीता का ज्ञान सुनाओ ना !!
जीवन की इस रण भूमि में ....
अपने ही मेरे शत्रु बने है ....
आप ही कोई सच्ची राह दिखाओ ना !!
तड़प रही हूँ इस देह की जंजीरो में ....
मुझको मुक्त कराओ ना !!
भाव सागर में डूब रही हूँ ....
तुम मुझको पार लगओ ना !!
कान्हा जी आप आओ ना ..........
कान्हा जी आप आओ ना ...........
***************
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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शुक्रवार, 14 अगस्त 2009
भजन: कान्हा जी आप आओ ना -गार्गी
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श्री कृष्ण
करें वंदना-प्रार्थना, भजन-कीर्तन नित्य.
सफल साधना हो 'सलिल', रीझे ईश अनित्य..
शांति-राज सुख-चैन हो, हों कृपालु जगदीश.
सत्य सहाय सदा रहे, अंतर्मन पृथ्वीश..
गुप्त चित्र निर्मल रहे, ऐसे ही हों कर्म.
ज्यों की त्यों चादर रखे,निभा'सलिल'निज धर्म.
बुधवार, 8 अप्रैल 2009
नव गीत- आचार्य संजीव 'सलिल'
दिन भर मेहनत
आंतें खाली,
कैसे देखें सपना?...
दाने खोज,
खीजता चूहा।
बुझा हुआ
है चूल्हा।
अरमां की
बरात सजी-
पर गुमा
सफलता दूल्हा।
कौन बताये
इस दुनिया का
कैसा बेढब नपना ?...
कौन जलाये
संझा-बाती
गयी माँजने बर्तन.
दे उधार,
देखे उभार
कलमुंहा सेठ
ढकती तन.
नयन गडा
धरती में
काटे मौन
रास्ता अपना...
ग्वाल-बाल
पत्ते खेलें
बलदाऊ
चिलम चढाएं।
जेब काटता
कान्हा-राधा छिप
बीडी सुलगाये.
पानी मिला दूध में
जसुमति बिसरी
माला जपना...
बैठ मुंडेरे
बोले कागा
झूठी आस
बंधाये।
निठुर न आया,
राह देखते
नैना हैं
पथराये.
ईंटों के
भट्टे में
मानुस बेबस
पड़ता खपना...
श्यामल 'मावस
उजली पूनम,
दोनों बदलें
करवट।
साँझ-उषा की
गैल ताकते
सूरज-चंदा
नटखट।
किसे सुनाएँ
व्यथा-कथा
घर की
घर में
चुप ढकना...
*******************
आंतें खाली,
कैसे देखें सपना?...
दाने खोज,

खीजता चूहा।
बुझा हुआ
है चूल्हा।
अरमां की
बरात सजी-
पर गुमा
सफलता दूल्हा।
कौन बताये
इस दुनिया का
कैसा बेढब नपना ?...
कौन जलाये
संझा-बाती
गयी माँजने बर्तन.
दे उधार,
देखे उभार
कलमुंहा सेठ

ढकती तन.
नयन गडा
धरती में
काटे मौन
रास्ता अपना...
ग्वाल-बाल
पत्ते खेलें
बलदाऊ
चिलम चढाएं।
जेब काटता
कान्हा-राधा छिप

बीडी सुलगाये.
पानी मिला दूध में
जसुमति बिसरी
माला जपना...
बैठ मुंडेरे
बोले कागा
झूठी आस
बंधाये।
निठुर न आया,
राह देखते
नैना हैं
पथराये.

ईंटों के
भट्टे में
मानुस बेबस
पड़ता खपना...
श्यामल 'मावस
उजली पूनम,
दोनों बदलें
करवट।
साँझ-उषा की
गैल ताकते
सूरज-चंदा
नटखट।
किसे सुनाएँ
व्यथा-कथा
घर की
घर में
चुप ढकना...
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