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शनिवार, 28 अप्रैल 2012

श्री चित्रगुप्त भजन सलिला: कहाँ खोजता... --संजीव 'सलिल'

श्री चित्रगुप्त भजन सलिला:
कहाँ खोजता...
संजीव 'सलिल'

*
कहाँ खोजता मूरख प्राणी!
प्रभु हैं तेरे पास में?...
*
तन तो धोता रोज
न करता मन को क्यों तू साफ़ रे.
जो तेरा अपराधी है
हँस उसको कर दे माफ़ रे.
प्रभु को देख दोस्त-दुश्मन में 
तम में और उजास में...
चित्रगुप्त प्रभु सदा चित्त में 
गुप्त, झलक तू देख ले.
आँख मूँदकर मन दर्पण में  
कर्मों की लिपि लेख ले.
आया तो जाने के पहले
प्रभु को सुमिर प्रवास में...
*
मंदिर मस्जिद काशी-काबा,
मिथ्या माया-जाल है.
वह घाट-घाट कण-कणवासी है,
बीज फूल फल दाल है.
हर्ष-दर्द उसका प्रसाद
कडुवाहट मधुर मिठास में...
*

गुरुवार, 29 जुलाई 2010

अभिनव प्रयोग दोहा-हाइकु गीत समस्या पूर्ति: प्रतिभाओं की कमी नहीं... संजीव 'सलिल'

अभिनव प्रयोग / समस्या पूर्ति:

दोहा-हाइकु गीत

प्रतिभाओं की कमी नहीं...

संजीव 'सलिल'
*

*
प्रतिभाओं की
कमी नहीं किंचित,
विपदाओं की....
*
         धूप-छाँव का खेल है
         खेल सके तो खेल.
         हँसना-रोना-विवशता
         मन बेमन से झेल.

         दीपक जले उजास हित,
         नीचे हो अंधेर.
         ऊपरवाले को 'सलिल' 
         हाथ जोड़कर टेर.

         उसके बिन तेरा नहीं
         कोई कहीं अस्तित्व.
         तेरे बिन उसका कहाँ
         किंचित बोल प्रभुत्व?

क्षमताओं की
कमी नहीं किंचित
समताओं की.
प्रतिभाओं की
कमी नहीं किंचित,
विपदाओं की....
*
       पेट दिया दाना नहीं.
       कैसा तू नादान?
       'आ, मुझ सँग अब माँग ले-
        भिक्षा तू भगवान'.

        मुट्ठी भर तंदुल दिए,
        भूखा सोया रात.
        लड्डूवालों को मिली-
        सत्ता की सौगात.

       मत कहना मतदान कर,
       ओ रे माखनचोर.
       शीश हमारे कुछ नहीं.
       तेरे सिर पर मोर.

उपमाओं की
कमी नहीं किंचित
रचनाओं की.
प्रतिभाओं की
कमी नहीं किंचित,
विपदाओं की....
*
http://divyanarmada.blogspot.com