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शुक्रवार, 28 नवंबर 2025

नवंबर २८, मैथिली, राजस्थानी, पूर्णिका, कनेर, माहिया, पंजाब, व्यंग्य गीत, संविधान, लघुकथा, घनाक्षरी,

सलिल सृजन नवंबर २८
*
शे'र
दोस्ती का दोस्त दे उपहार दोस्त को। दुनिया-ए-दिल में दौलतों की कुछ कदर नहीं।
० 
दोस्त को देखा तो बढ़ा खून दोस्त का
विटामिन डी की दवाई अब न दीजिए।।
दोस्त धूप-छाँव में न साथ छोड़ता।
दोस्त साथ तो फकीर बादशाह है।।
दोस्त था 'अर्जुन' चलाया तीर धरा पर।
घन श्याम दोस्त ने बहाई 'सलिल' धार भी।।  
००० 
पूर्णिका ० लाख छुपाओ, छुपे न भाई बात पेट की जाने दाई ० काय लुगाई जो गरीब की गाँव भरे की हो भौजाई? ० हो गिरि शिखर अगर तुम ऊँचे पाट न पाते काहे खाई? ० औसर पाकर आँधर हो गै खुद ही गटके जात मलाई? ० चाँद चाँद सी केकर काटूँ? हैरां पूछ रहो रे नाई ० जीव सबई जिंदा हैं जीसे 'सलिल' न काहे महिमा गाई? २८.११.२०२५ ०
मैथिली पूर्णिका
*
बाँटबो साहित्य
नहिं किओ पढ़ल
गुटबाजी खूम
असरदार रहल
चमचा बनि गेल
जे ओही बढ़ल
कविताक उद्देश्य
अर्थ नहिं रखल
बेतुका रिवाज
स्वार्थ-सिद्धि पुजल
समाजक विनाश
राजनीति करल
धरातल प' आउ
'सलिल' सत्य कहल
***
कनेर पर दोहे
हों प्रसन्न श्री लक्ष्मी, घर में देख कनेर।
पीला-श्वेत लगाइए, बाहर लाल अबेर।।
*
जहरीला पर कर रहा, खुद मिट जगत निरोग।
जय कनेर की कीजिए, भोग न ज्यादा भोग।।
*
बारह मास हरा रहे, धूप-छाँव हँस झेल।
करे आचरण तज गिले, संत सदृश रख मेल।।
***
एक सोरठा
सोलह करिए दान, सोलह करिए कार्य अरु।
सात वचन लें मान, सत चिरजीवी जानिए।।
सोलह संस्कार: गर्भाधान, पुंसवन, सीमन्तोन्नयन, जातकर्म, नामकरण, निष्क्रमण, अन्नप्राशन, चूडाकर्म, कर्णभेद, उपनयन, वेदारम्भ, विवाह. समावर्तन, वानप्रस्थ, संन्यास तथा अंत्येष्टि।
सोलह दान: छत्र, सेज, फल, पान, स्वर्ण, रजत, गौ, पुष्प, भू।
दीप, गंध, कुश, दान अन्न, वस्त्र, जल, पादुका।।
सात चिरंजीवी: बलि, व्यास, विभीषण, हनुमान, कृपाचार्य, परशुराम और अश्वत्थामा।
सात वचन: साथ यात्रा, संबंधी सम्मान, आजीवन साथ, पारिवारिक दायित्व, सहमति, व्यसन त्याग, संयम।
२८.११.२०१४
***
माहिया
भारत को जानें हम
मातृ भूमि अपनी
गुण गा पहचानें हम।
*
पंजाब अनोखा है।
पाँच नदी; गिद्धा
भंगड़ा भी चोखा है।।
*
गुरु नानक की बानी
सुन अमरित चखिए
है यह शुभ कल्याणी।।
*
जिंदादिल पंजाबी
मुश्किल से लड़ते
किंचित न कभी डरते।।
***
पंजाब परिचय
*
हंसवाहिनी मातु कर, कृपा मिले वरदान।
बुद्धि ज्ञान मति कला ध्वनि, नाद ताल विज्ञान।
भारत के गुण गा सकूँ, मैया देना शक्ति।
हिंदी में कह-कर सकूँ, मैया भारत-भक्ति।।
भारत को जानें वही, जो ममता से युक्त।
पानी पी पंजाब का, करें भाँगड़ा मुक्त।।
गुरु नानक की वाणी अनुपम। वाहे गुरु फहराया परचम।।
'सत श्री काल' करें अभिवादन। बलिदानी हों फागुन-सावन।।
हरमंदिर साहिब अमृतसर। पंथ खालसा सबसे बढ़कर।
गुरु गोबिंदसिंह अजरामर। सिंह रणजीत वीर नर नाहर।।
वीणा पर ओंकार गूँजता। शिव-श्री; वास्तव जगत पूजता।।
कृषि; धनेश्वरी धारा घर घर। चंचल रेखा गिद्धा सस्वर।।
है अनुपम मिठास गन्ने में। तनिक न कम माहिये सुनने में।।
ले मन जीत गोगिआ कैनी। ईद गले मिल खा ले फैनी।।
बैसाखी पुष्पा बसंत है। सिक्खी-साखी दिग-दिगंत है।।
अंजलि में अनुराधा खुशियाँ। श्वास सुनीता ले गलबहियाँ।।
सतलज रावी व्यास जल, शक्ति न राज्य विपन्न।
झेलम और चिनाब तट, रहे सलिल संपन्न।।
२८.११.२०२१
***
मुक्तक
*
रात गई है छोड़कर यादों की बारात
रात साथ ले गई है साँसों के नग्मात
रात प्रसव पीड़ा से रह एकाकी मौन
रात न हो तो किस तरह कहिए आए प्रात
*
कोशिश पति को रात भर रात सुलाती थाम
श्रांत-क्लांत श्रम-शिशु को दे जी भर आराम
काट आँख ही आँख में रात उनींदी रात
सहे उपेक्षा मौन रह ऊषा ननदी वाम
२८-११-२०२०
*
एक व्यंग्य गीत
*
ऊधौ! का सरकारै सब कछु?
*
'विथ डिफ़रेंस' पार्टी अद्भुत, महबूबा से पेंग लड़ावै
बात न मन की हो पाए तो, पलक झपकते जेल पठावै
मनमाना किरदारै सब कछु?
ऊधौ! का सरकारै सब कछु?
*
कम जनमत पा येन-केन भी, लपक-लपक सरकार बनावै
'गो-आ' खेल आँख में धूला, झोंक-झोंककर वक्ष फुलावै
सत्ता पा फुँफकारै सब कछु?
ऊधौ! का सरकारै सब कछु?
*
मिले पटकनी तो रो-रोकर, नाहक नंगा नाच दिखावै
रातों रात शपथ लै छाती, फुला-फुला धरती थर्रावै
कैसऊ करो, जुगारै सब कछु
ऊधौ! का सरकारै सब कछु?
*
जोड़ी पूँजी लुटा-खर्चकर, धनपतियों को शीश चढ़ावै
रोजगार पर डाका डाले, भूखों को कानून पढ़ावै
अफरा पेट, डकारै सब कछु?
ऊधौ! का सरकारै सब कछु?
*
सरकारी जमीनसेठों को दै दै पार्टी फंड जुटावै
असफलता औरों पर थोपे, दिशाहीन हर कदम उठावै
गुंडा बन दुत्कारै सब कछु?
ऊधौ! का सरकारै सब कछु?
*
दै अनुदान खरीद वोट लै, भ्रष्ट विरोधी को बतलावै
हिंदी बोले पै ठुकाई कर, जमकर हिंदी दिवस मनावै
गिरगिट सम व्यवहारै सब कछु?
ऊधौ! का सरकारै सब कछु?
*
२८.११.२०१९
***
नवगीत
कहता मैं स्वाधीन
*
संविधान
इक हाथ दे,
दूजे से ले छीन।
*
जन ही जनप्रतिनिधि चुने,
देता है अधिकार।
लाद रहा जन पर मगर,
पद का दावेदार।।
शूल बिछाकर
राह में, कहे
फूल लो बीन।
*
समता का वादा करे,
लगा विषमता बाग।
चीन्ह-चीन्ह कर बाँटता,
रेवड़ी, दूषित राग।।
दो दूनी
बतला रहा हाय!
पाँच या तीन।
*
शिक्षा मिले न एक सी,
अवसर नहीं समान।
जनभाषा ठुकरा रह,
न्यायालय मतिमान।।
नीलामी है
न्याय की
काले कोटाधीन।
*
तब गोरे थे, अब हुए,
शोषक काले लोग।
खुर्द-बुर्द का लग गया,
इनको घातक रोग।।
बजा रहा है
भैंस के, सम्मुख
जनगण बीन।
*
इंग्लिश को तरजीह दे,
हिंदी माँ को भूल।
चंदन फेंका गटर में,
माथे मलता धूल।।
भारत को लिख
इंडिया, कहता
मैं स्वाधीन।
***
घनाक्षरी
*
नागनाथ साँपनाथ, जोड़ते मिले हों हाथ, मतदान का दिवस, फिर निकट है मानिए।
चुप रहे आज तक, अब न रहें आप चुप, ई वी एम से जवाब, दें न बैर ठानिए।।
सारी गंदगी की जड़, दलवाद है 'सलिल', नोटा का बटन चुन, निज मत बताइए-
लोकतंत्र जनतंत्र, प्रजातंत्र गणतंत्र, कैदी न दलों का रहे, नव आजादी लाइए।।
***
२८-११-२०१८
***
लघुकथा-
विकल्प
पहली बार मतदान का अवसर पाकर वह खुद को गौरवान्वित अनुभव कर रहा था। एक प्रश्न परेशान कर रहा था कि किसके पक्ष में मतदान करे? दल की नीति को प्राथमिकता दे या उम्मीदवार के चरित्र को? उसने प्रमुख दलों का घोषणापत्र पढ़े, दूरदर्शन पर प्रवक्ताओं के वक्तव्य सुने, उम्मीदवीरों की शिक्षा, व्यवसाय, संपत्ति और कर-विवरण की जानकारी ली। उसकी जानकारी और निराशा लगातार बढ़ती गई।
सब दलों ने धन और बाहुबल को सच्चरित्रता और योग्यता पर वरीयता दी थी। अधिकांश उम्मीदवारों पर आपराधिक प्रकरण थे और असाधारण संपत्ति वृद्धि हुई थी। किसी उम्मीदवार का जीवनस्तर और जीवनशैली सामान्य मतदाता की तरह नहीं थी।
गहन मन-मंथन के बाद उसने तय कर लिया था कि देश को दिशाहीन उम्मीदवारों के चंगुल से बचाने और राजनैतिक अवसरवादी दलों के शिकंजे से मुक्त रखने का एक ही उपाय है। मात्रों से विमर्श किया तो उनके विचार एक जैसे मिले। उन सबने परिवर्तन के लिए चुन लिया 'नोटा' अर्थात 'कोई नहीं' का विकल्प।
२८-११-२०१८
***
दोहा सलिला
*
तज कर वाद-विवाद कर, आँसू का अनुवाद.
राग-विराग भुला "सलिल", सुख पा कर अनुराग.
.
भट का शौर्य न हारता, नागर धरता धीर.
हरि से हारे आपदा, बौनी होती पीर.
.
प्राची से आ अरुणिमा, देती है संदेश.
हो निरोग ले तूलिका, रच कुछ नया विशेष.
.
साँस पटरियों पर रही, जीवन-गाड़ी दौड़.
ईधन आस न कम पड़े, प्यास-प्रयास ने छोड़.
.
इसको भारी जिलहरी, भक्ति कर रहा नित्य.
उसे रुची है तिलहरी, लिखता सत्य अनित्य.
.
यह प्रशांत तर्रार वह, माया खेले मौन.
अजय रमेश रमा सहित, वर्ना पूछे कौन?
.
सत्या निष्ठा सिंह सदृश, भूली आत्म प्रताप.
स्वार्थ न वर सर्वार्थ तज, मिले आप से आप.
.
नेह नर्मदा में नहा, कलकल करें निनाद.
किलकिल करे नहीं लहर, रहे सदा आबाद.
२८.११.२०१७
.
मुक्तक
आइये मिलकर गले मुक्तक कहें
गले शिकवे गिले, हँस मुक्तक कहें
महाकाव्यों को न पढ़ते हैं युवा
युवा मन को पढ़ सके, मुक्तक कहें
*
बहुत सुन्दर प्रेरणा है
सत्य ही यह धारणा है
यदि न प्रेरित हो सका मन
तो मिली बहु तारणा है
*
कार्यशाला में न आये, वाह सर!
आये तो कुछ लिख न लाये, वाह सर!
आप ही लिखते रहें, पढ़ते रहें
कौन इसमें सर खपाए वाह सर!
*
जगाते रहते गुरूजी मगर सोना है
जागता है नहीं है जग यही रोना है
कह रहे हम पा सकें सब इसी जीवन में
जबकि हम यह जानते सब यहीं खोना है
२८.११.१०१६
***
मुक्तिका:
[इस रचना में हिंदी की राजस्थानी भंगिमा के उपयोग का प्रयास है. अनजानी त्रुटियों हेतु अग्रिम क्षमा प्रार्थना]
*
म्हारे आँगण चंदा उतरे, आस करूँ हूँ
नाचूँ-गाऊँ, हाथाँ माँ आकास भरूँ हूँ
.
म्हारी दोनों फूटें, थारी एक फोड़ दूँ
पड़यो अकल पे पत्थर, सत्यानास करूँ हूँ
.
लाग्या छूट्या नहीं, प्रीत-रँग चढ़यो शीश पै
किसन नहीं हूँ, पर राधा सूँ रास करूँ हूँ
.
दिवलै काणी दीठ धरूँला, कपड़ छाणकर
अबकालै सब सुपना बेचूँ, हास करूँ हूँ
.
आमू-सामू बात करैलो रामू भैया!
सुपना हाली, सगली बाताँ खास करूँ हूँ
.
उणियारे रै बसणों चावूँ चित्त-च्यानणै
रचणों चावूँ म्है खुद नै परिहास करूँ हूँ
.
जूझल रै ताराँ नै तोड़र रात-रात भर
मुलकण खातर नाहक 'सलिल' प्रयास करूँ हूँ
***
मुक्तिका (राजस्थानी)
लोग
*
कोरा सुपणां बुणताँ लोग
क्यूँ बैठा सिर धुणतां लोग
.
गैर घराणी को तकतां
गेल बुरी ही चुणतां लोग।
.
ठकुरसुहाती भली लगै
बातां भली न सुणतां लोग
.
दोष छुपाया बग्लयाँ में
गेहूँ जैसा घुणतां लोग
.
कुण निर्दोष पखेरू रा
मारूँ-खाऊँ गुणतां लोग
***
मुक्तिका :
रूप की धूप
*
रूप की धूप बिखर जाए तो अच्छा होगा
रूप का रूप निखर आए तो अच्छा होगा
*
दिल में छाया है अँधेरा सा सिमट जाएगा
धूप का भूप प्रखर आए तो अच्छा होगा
*
मन हिरनिया की तरह खूब कुलाचें भरना
पीर की पीर निथर आए तो अच्छा होगा
*
आँख में झाँक मिले नैन से नैना जबसे
झुक उठे लड़ के मिले नैन तो अच्छा होगा
*
भरो अँजुरी में 'सलिल' रूप जो उसका देखो
बिको बिन मोल हो अनमोल तो अच्छा होगा
२८.११.२०१५
***
नवगीत:
गीत पुराने छायावादी
मरे नहीं
अब भी जीवित हैं.
तब अमूर्त
अब मूर्त हुई हैं
संकल्पना अल्पनाओं की
कोमल-रेशम सी रचना की
छुई-अनछुई वनिताओं सी
गेहूँ, आटा, रोटी है परिवर्तन यात्रा
लेकिन सच भी
संभावनाऐं शेष जीवन की
चाहे थोड़ी पर जीवित हैं.
बिम्ब-प्रतीक
वसन बदले हैं
अलंकार भी बदल गए हैं.
लय, रस, भाव अभी भी जीवित
रचनाएँ हैं कविताओं सी
लज्जा, हया, शर्म की मात्रा
घटी भले ही
संभावनाऐं प्रणय-मिलन की
चाहे थोड़ी पर जीवित हैं.
कहे कुंडली
गृह नौ के नौ
किन्तु दशाएँ वही नहीं हैं
इस पर उसकी दृष्टि जब पडी
मुदित मग्न कामना अनछुई
कौन कहे है कितनी पात्रा
याकि अपात्रा?
मर्यादाएँ शेष जीवन की
चाहे थोड़ी पर जीवित हैं.
***
त्रिपदियाँ
प्राण फूँक निष्प्राण में, गुंजित करता नाद
जो- उससे करिये 'सलिल', आजीवन संवाद
सुख-दुःख जो वह दे गहें, हँस- न करें फ़रियाद।
*
शर्मा मत गलती हुई, कर सुधार फिर झूम
चल गिर उठ फिर पग बढ़ा, अपनी मंज़िल चूम
फल की आस किये बिना, काम करे हो धूम।
*
करी देश की तिजोरी, हमने अब तक साफ़
लें अब भूल सुधार तो, खुदा करेगा माफ़?
भष्टाचार न कर- रहें, साफ़ यही इन्साफ।
२८.११.२०१४

*** 

मंगलवार, 8 फ़रवरी 2022

सॉनेट, दोहे, नवगीत, हाइकु, मैथिली, भोजपुरी, स्वास्थ्य

कृति चर्चा :
'गाँधी के आँसू' : सामायिक विसंगतियों की तहकीकात 
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
[कृति विवरण : गाँधी के आँसू, लघुकथा संग्रह, कनल डॉ. गिरिजेश सक्सेना, प्रथम संस्करण २०२१, आकार डिमाई, आवरण बहुरंगी पेपरबैक, पृष्ठ १६४, /मूल्य २००/-, आईसेक्ट प्रकाशन भोपाल। ]
*
साहित्य समय साक्षी होता है। संवेदनशील रचनाकार समकालिक घटनाओं तथा परिवर्तनों से अनुभूत सत्य की अभिव्यक्ति अपने साहित्य में करता है। सुख का समय कब बीत जाता है, पता ही नहीं चलता जबकि दुःख का समय काटे नहीं कटता। 

छायावादी महाकवि जयशंकर प्रसाद अपनी कालजयी कृति 'आँसू' में कहते हैं-  
मादक थी मोहमयी थी मन बहलाने की क्रीड़ा। 
अब ह्रदय हिला देती है वह मधुर प्रेम की पीड़ा।।

अपने गीत 'टु ए स्कायलार्क' के १८ वें अंतरे में में शैली कहते हैं- 
'आवर स्वीटेस्ट सांग्स आर दोस हू टेल ऑफ़ सैडेस्ट थॉट'। 

चलचित्र पतिता (१९५३) के एक गीत में गीतकार शैलेन्द्र लिखते हैं-
'हैं सबसे मधुर वो गीत जिन्हें हम दर्द के सुर में गाते हैं'। 

मशहूर गीतकार आनंद बख्शी लिखते हैं 'जुबां पे दर्द भरी दास्तां चली आई'। 

केवल कवि ही नहीं साहित्य और कला के हर क्षेत्र में 'करुणा' रचनाकारों के सृजन के मूल में  रहती आई है। नवगीत, लघुकथा, व्यंग्य लेख और कहानी आदि विधाओं में सामाजिक  विसंगतियाँ और युगीन विडंबनाएँ केंद्र में इसीलिए जगह बना पति हैं कि  मानव दर्द और करुणा से अधिक जुड़ाव अनुभव करता है। संभवत:, इसका कारण मनुष्य के जन्म और मरण दोनों का दर्द और पीड़ा से अभिन्न होना हो। विवेच्य कृति का शीर्षक 'गाँधी के आँसू' तथा आवरण चित्र में अंकित गाँधी जी की उदास छवि संकेत करती हैं कि इसमें प्रकाशित अधिकांश लघुकथाओं के मूल में दर्द और पीड़ा की प्रतीति है। 

हिंदी लघुकथा वर्तमान में संक्रमण काल से गुजर रही है। साहित्य में स्वतंत्र विधा के रूप में मान्यता के लिए सतत जूझती लघुकथा रहत की सांस भी न ले पाई कि आकार, प्रकार और तत्वों को लेकर मत-मतान्तरों की बाढ़ ने लघुकथा के पाठकों को त्रस्त कर दिया। हिंदी लघुकथा का उत्स भारतीय पारंपरिक लोककथाएँ हैं या आयातित अंग्रेजी शार्ट स्टोरी? लघुकथा केवल विसंगति का संकेतन करे या कुछ समाधान भी सुझाए?, लघुकथा में पारंपरिक बिंब, मिथक आदि हों या न हों?, लघुकथा में उठाई गयी विसंगति व्यक्तिगत हो या सामाजिक?, शीर्षक कैसे चुना जाए?, चरित्र चित्रण, भाषा शैली, आरंभ, अंत, मारक वाक्य (पंच), संवाद आदि हर बिंदु पर मत-मतान्तर नए लघुकथाकार को भ्रमित करता है। हद तो यह कि अंतरजाल के हर लघुकथा पृष्ठ पर एक मठाधीश बैठा है जो अपनी व्यक्तिगत मान्यताओं को लघुकथा हेतु अनिवार्य बताता है और भिन्नता को नकार देता है। कनल डॉ. गिरजेश सक्सेना इस वैचारिक चक्रव्यूह से प्रभावित हुए बिना अपनी अनुभूतियों को लघुकथा के माध्यम से अभिव्यक्त करते रहे हैं। उनके प्रथम लघुकथा संकलन 'चाणक्य के दाँत' पर भी परिचर्चा में कुछ वक्ताओं ने उसमें सम्मिलित कुछ लघुकथाओं के लघुकथा होने पर प्रश्नचिन्ह लगाए थे। मैं गिरजेश जी को बधाई देता हूँ कि उन्होंने अपनी रचना प्रक्रिया, शैली और मौलिकता को बनाये रखते हुए, असहमतियों से प्रभावित हुए बिना यह दूसरा लघुकथा संग्रह प्रकाशित किया है। इस कृति में बलराम जी लिखते हैं 'साहित्य का सौंदर्य उसकी रंजनात्मक शक्ति मात्र में न होकर, चिंतन को प्रेरित करने की शक्ति में भी निहित होता है।' यह चिंतन सकारात्मक हो नकारात्मक या दिशाहीन? बलराम जी के अनुसार 'चिंतन को प्रेरित करने की उद्देश्य पूर्ति 'ज्ञानात्मक' लघुकथाएँ उतना नहीं कर पाती हैं जितना संकेतात्मक लघुकथाएँ करती हैं। क्या ये संकेतात्मक लघुकथाएँ 'अज्ञानात्मक' हों तब चिंतन को प्रेरित करने का उद्देश्य पूर्ण होगा? गिरिजेश जी ऐसे निरर्थक बौद्धिक वाग्विलास से परे रहकर अपनी अनुभूतियों की बेलाग अभिव्यक्ति की राह पर चलते हैं जो और जो कहना चाहते हैं उसे निस्संकोच कहते हैं। वे इन लघुकथाओं को न तो मानकों के पिंजरे में कैद करते हैं, न ही तथाकथित महामहिमों द्वारा स्वीकृत या अस्वीकृत किए जाने की चिंता करते हैं। इसलिए इन लघुकथाओं में संवेदना का प्रबल प्रवाह पाठक को अपने साथ बहा ले जाने में समर्थ हो पाता है। कांता रॉय इन लघुकथाओं को उपदेशात्मकता के बावजूद मानवीयता को अक्षुण्ण रखने के लिए गई तथा रोचक व सार्थक पाती हैं। श्रेष्ठ-ज्येष्ठ साहित्यकार-पत्रकार कैलाश चंद्र पंत जी इन लघुकथाओं को रचनात्मक, सकारात्मक, प्रयोगात्मक तथा वैयक्तिता से परे जाकर सामाजिकता का निर्वाह करने में समर्थ पाते हैं। गिरिजेश जी के अनुसार लघुकथाएँ कृतित्व एवं फलित यानी लेखक और पाठक  तरफ विचारोत्तेजक एवं संदेशपरक होती हैं। 

इस पृष्ठभूमि में 'गाँधी के आँसू' की १०१ लघुकथाओं को पढ़ना समय का सदुपयोग प्रतीत हुआ। गिरिजेश जी की लघुकथाओं का वैशिष्ट्य उनकी प्रयोग धर्मिता है। वे तथाकथित मानकों और मठाधीशों एक मतों की परवाह किए बिना अपनी अनुभूतियों को लघुकथा में अभिव्यक्त करते समय कथ्यानुरूप शब्द, शैली और शिल्प का चयन करते हैं। अच्छे किस्सागो होने के नाते वे रंजकता का विशेष ध्यान रखते हैं। सैन्य जीवन, चिकित्सा क्षेत्र तथा न्यायालयीन पृष्ठभूमि उन्हें लघुकथाओं के सामान्येतर विषय चयन करने में सहायक होते हैं। इन लघुकथाओं की समसामयिकता, प्रासंगिकता, सहज बोध गम्यता और सन्देशपरकता इन्हें आम पाठक के लिए सहज ग्राह्य तथा पठनीय बनाती है। लघु कथा के संबंध में गिरिजेश लिखते हैं 'लघुकेहातें मेरे विचार से हथौड़े की चोट से उपजी टंकार और मन की अंतरतम भित्तियों से परावर्तित प्रतिक्रिया होती है।' उनके मत से सहमत हों या असहमत किन्तु उनकी लघुकथाओं में विषयों का 'ट्रीटमेंट' जिस तरह से किया जाता है उसको लोकोपयोगिता से इंकार नहीं किया जा सकता। 

इस संघर्ष में आत्मग्लानि, वसीयत, मौत का डर आदि  लघुकथाओं के दो-दो रूप प्रकाशित किए हैं गिरिजेश जी ने। इनमें लघुकथाकार की कल्पनाशीलता तथा विचारशीलता का सुपरिचय मिलता है। एक ही लघुकथा दो विपरीत अंत पढ़कर, विषय के प्रति भिन्न-भिन्न दृष्टियों से सोचने की दृष्टि मिलती है।  'टी आर पी का सवाल है  / पेट का वास्ता' दो शीर्षकों से प्रस्तुत लघुकथा में वर्तमान पत्रकारिता में व्याप्त व्यावसायिकता के गाल पर तमाचा लगाया गया है। 'ये दाने हमारी जान हैं' शीर्षक लघुकथा  में अन्न को भगवान मानकर पूजने और बर्बाद न करने के भारतीय संस्कार को सामने लाया गया है।

कोविदकालीन कठिनाइयों से संत्रस्त आम जान की पीड़ा, प्रशासन की विफलता और नेताओं की संवेदनहीनता को कई लघुकथाओं में उकेरा गया है। 'आधी रोटी' लघुकथा में कोरोना काल में निजी विद्याकलयों के शिक्षकों के वतम में कटौती से ग्रहस्थी संचालन में हुई कठिनाइयों का चित्रण है।  

  


सॉनेट
परापरा 
*
सुमति-कुमति हर हृदय बसी हैं।
सुमति ज्ञान की राह दिखाती।
कुमति सत्य-पथ से भटकाती।।
अपरा-परा न दूर रही हैं।।


परा मूल है, छाया अपरा।
पुरुष-प्रकृति सम हैं यह मानो।
अपरा नश्वर है सच मानो।।
अविनाशी अक्षरा है परा।।


उपज परा से मिले परा में।
जीव न जाने जा अपरा में।
मिले परात्पर आप परा में।।


अपरा राह साध्य यह जानो।
परा लक्ष्य अक्षर पहचानो।
भूलो भेद, ऐक्य अनुमानो।।
***
कार्यशाला 
अंग्रेजी- हिंदी में समान उच्चारण, भिन्नार्थ वाले कुछ शब्द
१. गम / Gum = दुःख / adhesive, paste , fleshy tissue enveloping neck of teeth ( मसूड़ा)
२. दंग/Dung = हैरान/ Animal waste (गोबर)
३. सन /Son , Sun = पौधा जिसके रेशे से बोरे आदि बनते हैं/ Male offspring , Sol (सूरज )
४. हट /Hut = हटाना के अर्थ में / small house (झोपड़ी)
५. शोर/Shore = हल्ला / Beach (किनारा )
५. पट/ Putt = पेट के बल लेटना, तुरंत /Type of shot in golf
६. पेट/Pet= अंग / tamed animal for company (पालतू जानवर)
७. मिल / mill = भेंट होना / machine for crushing solid grains (आटा मिल )
८. हिल / hill हिलना के अर्थ में / elevation smaller than mountain (पहाड़ी )
९. मेल/Mail मैत्री / Postal mail or E mail
१०. रट/Rut : रटना के अर्थ में / furrow or track made on the ground especially by passing of vehicle (रेलवे को शुरू में रट वे भी कहा जाता था )
***
स्वास्थ्य चर्चा 
नमकीन पानी से स्नान के लाभ
*
बाथ सॉल्ट यानी एप्सम या सी साल्ट में २१ अलग-अलग तरह के मिनरल्स होते हैं जिनमें मैग्नीशियम, पोटैशियम, सोडियम, सल्फर, जिंक, कैल्शियम, क्लोराइड, आयोडाइड और ब्रोमाइड शामिल हैं जो शरीर को पोषण प्रदान करते हैं।

इसलिए थोड़ा सा नमक पानी में मिलाकर उसमें नहाने से शरीर को कई फायदे हो सकते हैं।खारे पानी से नहाने के अपने स्वास्थ्य लाभ हैं जो सामान्य पानी आपको प्रदान नहीं करते हैं।


नमक के पानी से स्नान करने के लाभ-।
उपचार और आराम:

हिमालयन बाथ सॉल्ट का उपयोग परिसंचरण को प्रोत्साहित करने, त्वचा को हाइड्रेट करने, नमी बनाए रखने को बढ़ाने और सेलुलर पुनर्जनन को बढ़ावा देने के लिए जाना जाता है। इसके अलावा, वे त्वचा को डिटॉक्सीफाई और हीलिंग करने में भी सहायक होते हैं। नमक-पानी से नहाने से मांसपेशियों और जोड़ों की सूजन कम होती है, मांसपेशियों को आराम मिलता है और दर्द और खराश से राहत मिलती है।
त्वचा के लिए अच्छा:

नमक-पानी के स्नान अपने प्राकृतिक रूप में कई खनिज और पोषक तत्व होते हैं जो त्वचा को फिर से जीवंत करने में मदद करते हैं।

मैग्नीशियम, कैल्शियम, ब्रोमाइड, सोडियम और पोटेशियम जैसे खनिज त्वचा के छिद्रों में अवशोषित हो जाते हैं, त्वचा की सतह को साफ और शुद्ध करते हैं, जिससे त्वचा स्वस्थ और चमकती रहती है।
डिटॉक्सिफिकेशन:

बाथ सॉल्ट त्वचा को डिटॉक्सीफाई करने में भी मदद करते हैं।गर्म पानी त्वचा के छिद्रों को खोलता है जिससे नमक के खनिज त्वचा में गहराई से अवशोषित हो जाते हैं, जिससे पूरी सफाई सुनिश्चित हो जाती है।

ये लवण दिन भर त्वचा द्वारा अवशोषित हानिकारक विषाक्त पदार्थों और बैक्टीरिया को बाहर निकालने में मदद करते हैं, जिससे आपकी त्वचा स्वस्थ और साफ दिखती है।
युवा चमक:

जवान दिखना और महसूस करना कौन नहीं चाहता। चेहरे पर झुर्रियों और महीन रेखाओं की उपस्थिति को कम करने के लिए नियमित रूप से नहाने के नमक का प्रयोग करें। ये आपकी त्वचा को कोमल और कोमल बनाते हैं। स्नान नमक त्वचा को मोटा करके और त्वचा की नमी को संतुलित करके इसे प्राप्त करते हैं। वे त्वचा को वह प्राकृतिक चमक भी देते हैं जो नियमित जीवन में खो जाती है।
विभिन्न समस्याओं का उपचार:

स्नान नमक न केवल आपकी त्वचा के लिए फायदेमंद होते हैं बल्कि ऑस्टियोआर्थराइटिस और टेंडिनाइटिस जैसी कुछ गंभीर स्वास्थ्य स्थितियों के इलाज में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसके अलावा, नहाने के नमक खुजली और अनिद्रा को कम करने में भी प्रभावी होते हैं।
८-२-२०२२
***
दोहा सलिला
संग सलिल के तैरतीं, शशि किरणें चिद्रूप
जैसे ही होतीं बिदा, बाँह जकड़ती धूप
*
बाँह जकड़ती धूप, छाँह भी रहे न पीछे
अवसर पाकर स्नेह, उड़ेले भुज भर भींचे
*
रवि हेरे हो तप्त, ईर्ष्या लपट घेरतीं
शशि किरणें चिद्रूप, संग सलिल के तैरतीं
८-२-२०२०
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मुक्तिका
छंद- यौगिक जातीय विद्या छंद
मापनी- २१२२ २१२२ २१२२ २१२२
बहर- फाइलातुन x ४
*
फूलने दो बाग़ में गुंचे मिलेगी खूब खुश्बू
गीत गायेंगे ख़ुशी से झूम भौंरे देख जादू
कौन बोलेगा न झूमो? कौन चाहेगा न गाओ?
राह में राही मिलेंगे, थाम लेना हाथ ही तू
उम्र का ही है तकाजा लोग मानें या न मानें
जोश में होता कहाँ है होश?, होता है न काबू
आप नेता हैं, नहीं तो आपका कोई न चर्चा
आपकी पीड़ा न पीड़ा, फेंक एसिड, मार चाकू
सांसदों को खूब भत्ते और भूखों को न दाना
वाह रे आजाद लोगो! है न आज़ादी गुड़ाखू
***
दस मात्रिक छंद
९. पदांत यगण
मनुआ! जग गा रे!
प्राची रवि लाई
ऊषा मुसकाई
रहा टेर कागा
पहुना सुधि आई
विधना झट ला रे!
कुण्डी खटकाई
गोरी झट आई
अँखियाँ टकराईं
झुक-उठ शरमाईं
मुड़कर मात जारे!
हुई मन मिलाई
सुध-बुध बिसराई
गयी खनक चूड़ी
ननदी झट आई
चट-पट छिप जा रे!
*
१०. पदांत मगण
मन क्यों आवारा?
जैसे बंजारा
हर दम चाहे हो
केवल पौबारा
*
११. पदांत तगण
ख्वाब में हैं आप
साथ में हैं आप
हम जहाँ मौजूद
न हों पर हैं आप
*
१२. पदांत रगण
बात जब कीजिए
साथ चल दीजिए
सच नहीं भी रुचे
तो नहीं खीजिए
कर मिलें, ना मिलें
मन मिला लीजिए
आँख से भी कभी
कुछ लगा पीजिए
नेह के नीर में
सँग नहा भीजिए
*
१३. पदांत जगण ६+१२१
किसे कहें अनाथ?
सभी मनुज सनाथ
सबका ईश एक
झुकाएँ नित माथ
*
१४. पदांत भगण
लाया है सावन
त्यौहार सुपावन
मिल इसे मनायें
राखी मन भावन
.
सीमा पर दुर्जन
दें मार सैन्य जन
अरि के घर मातम
बोयेगा सावन
*
१५, पदांत नगण
जब से गए सजन
बेसुध सा तन-मन
दस दिश चहल-पहल
सूना मन-मधुवन
किया सतत सुमिरन
हर दिन, हर पल-छिन
पौधारोपण कर
जी पायें फिर वन
वह दिखता रहबर
हो न कहीं रहजन
*
१६. पदांत सगण
हमको है कहना
दूर नहीं रहना
चुप, कब तक पहनें
सुधियों का गहना?
मजबूरी अपनी
विरह व्यथा तहना
सलिला कब कहती
मुझे नहीं बहना?
मंगल मन रही
क्यों केवल बहना?
*
१७. २ यगण
निहारो-निहारो
सितारों निहारो
सदा भारती की
करो आरती ही
हसीं चाँदनी को
धरा पर उतारो
सँवारो-सँवारो
धरा को सँवारो
१८. २ तगण
सीता वरें राम
सीता तजें राम
छोड़ें नहीं राग
सीता भजें राम
१९. २ रगण
आपसे काम ना
हो, यही कामना
गर्व का वास ना
हो, नहीं वासना
स्वार्थ को साध ना
छंद को साधना
माप की नाप ना
नाप ही नापना
उच्च हो भाव ना
शुद्ध हो भावना
*
२०. यगण तगण
कहीं है नीलाभ
कहीं है पीताभ
कपासी भी मेघ
कहीं क्यों रक्ताभ?
कड़े हो या नर्म
रहो जैसे डाभ
सहेगा जो हानि
कमाएगा लाभ
२१. तगण यगण
वादा न निभाया
कर्जा न चुकाया
जोड़ा धन थोड़ा
मोहे मत माया
जो पुन्य कमाया
आ अंत भुनाया
ठानो न करोगे
जो काम न भाया
२१. यगण रगण
किये जाओ मजा
चली आती क़ज़ा
किया तो भोग भी
यही दैवी रजा
कहो तो स्वार्थ को
कभी क्या है तजा?
रही है सत्य की
सदा ऊँची ध्वजा
न बोले प्रेयसी
'मुझे क्या जा-न जा'
*
२२. रगण यगण
आपका सहारा
दे रहा इशारा
हैं यही मुरादें
साथ हो हमारा
दूर जा पुकारा
पास आ निहारा
याद है न वादा?
प्यार हो न कारा?
आँख में बसा है
रूप ये तुम्हारा
*
२३. तगण रगण २२१ २१२
आओ! कहीं चलें
बोलो कहाँ मिलें?
माँगें यही दुआ
कोई नहीं छले
*
२४. रगण तगण
आज का पैगाम
जीत पाए लाम
आपका सौभाग्य
आप आये काम
सोचते हैं लोग
है विधाता वाम
चाहिए क्यों पुण्य
कर्म है निष्काम
खूब पाया नाम
बात है ये ख़ास
प्रेरणा लें आम
८-२-२०१७
***
मैथिली हाइकु
*
स्नेह करब
हमर मंत्र अछि
गरा लागब.
*
क्रिकेट के दोहे
*
चहल-पहल कर चहल ने, खड़ी करी है खाट
कम गेंदें ज्यादा विकेट, मारा धोबीपाट
*
धोनी ने धो ही दिया, सब अंग्रजी ठाठ
बल्ले-बल्ले कर रहा, बल्ला पढ़ लो पाठ
*
रैना चैना छीनकर, नैना रहा तरेर
ढेर हो गए सर झुका, सब अंग्रेजी शेर
*
है विराट के नाम की, है विराट ही धाक
कुक ने स्तीफा दिया, हाय कट गयी नाक
*
अंग्रेजों से छिन गया, ट्वंटी का भी ताज
गोरी बाला वर जयी, हुए विहँस युवराज
*
नेहरा गहरा वार कर, पहरा देता खूब
विकट नहीं या रन नहीं, गए विपक्षी डूब
***
दोहे वेलेंटाइन के
रोज, प्रप्रोज पठा रहा, नाती कैसा काल।
पोता हो लव बर्ड तो, आ जाए भूचाल।।
*
बरगद पीपल कहें आ, आँख मिचौली खेल.
इमली नीम न मानतीं, हुआ न मन का मेल.
*
दिनकर प्रिय सुधि रश्मि से, करे प्रणय शुरुआत।
विरह तिमिर का अंत कर, जगा रहा जज्बात।।
*
८-२-२०१७
***
नवगीत:
संजीव
.
तह करके
रख दिये ख्वाब सब
धूप दिखाकर
मर्तबान में
.
कोशिश-फाँकें
बाधा-राई-नोन
समय ने रखा अथाना
धूप सफलता
मिल न सकी तो
कैसा गलना, किसे गलाना?
कल ही
कल को कल गिरवी रख
मोल पा रहा वर्तमान में
.
सत्ता सूप
उठाये घूमे
कह जनगण से 'करो सफाई'
पंजा-झाड़ू
संग नहीं तो
किसने बाती कहो मिलायी?
सबने चुना
हो गया दल का
पान गया ज्यों पीकदान में.
.
८-२-२०१५
***
भोजपुरी दोहा सलिला :
संजीव 'सलिल'
*
रउआ आपन देस में, हँसल छाँव सँग धूप।
किस्सा आपन देस का, इत खाई उत कूप।।
*
रखि दिहली झकझोर के, नेता भाषण बाँच।
चमचे बदे बधाई बा, 'सलिल' न देखल साँच।।
*
चिउड़ा-लिट्टी ना रुचे, बिरयानी की चाह।
चली बहुरिया मेम बन, घर फूंकन की राह।।
*
रोटी की खातिर 'सलिल', जिनगी भयल रखैल।
कुर्सी के खातिर भइल, हाय! सियासत गैल।।
*
आजु-काल्हि के रीत बा, कर औसर से प्यार।
कौनौ आपन देस में, नहीं किसी का यार।।
*
खाली चउका देखि के, दिहले मूषक भागि।
चौंकि परा चूल्हा निरख, आपन मुँह में आगि।।
*
रउआ रख संसार में, सबकी खातिर प्रेम।
हर पियास हर किसी की, हर से चाहल छेम।।
८-२-२०१३
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मुक्तक
प्राची रश्मि उषा धरा, समझें करता प्रीत।
दुपहर संध्या निशा अरु, छाया का मनमीत।।
सात जन्म का साथ कह, पाता सबसे प्यार-
छलिया सूरज को कहे, जग क्यों 'सलिल' पुनीत?.
*
साहित्य की आराधना आनंद ही आनंद है.
काव्य-रस की साधना आनंद ही आनंद है.
'सलिल' सा बहते रहो, सच की शिला को फोड़कर.
रहे सुन्दर भावना आनंद ही आनंद है.
८-२-२०१०
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बुधवार, 8 फ़रवरी 2017

maithily haiku

मैथिली हाइकु
*
स्नेह करब
हमर मंत्र अछि
गले लगबै
*

रविवार, 5 सितंबर 2010

मैथिली की पाठशाला २ : कुसुम ठाकुर


मैथिली की पाठशाला २        

इस स्तम्भ में हिन्दी, मैथिली, भोजपुरी  में एक साथ रचनाकर्म करनेवाली कुसुम ठाकुर जी मैथिली सिखाएँगी. सभी सहभागिता हेतु आमंत्रित हैं. 

कुसुम ठाकुर.



कुसुम : दूसरा  पाठ.

सलिल : जी, प्रारंभ  करिए .
कुसुम : अहाँक  गाम  कतय  अछि   .
          आपका गाँव कहाँ है ? 
          हम जबलपुर के रहयवाला छी .
          मैं जबलपुर का रहनेवाला हूँ .
सलिल : अच्छा.
हम उस देस के रहयवाला छी  जहाँ  गंगा  बहत  छी.
कुसुम : ठीक  है.बताती  हूँ.
           हम ओहि देश केर रहय वाला छी, जाहि देश में गंगा मैया बहैत छथि .

आजका पाठ  इतना  ही,  कल  परीक्षा  लूँगी दो  दिनों  के  पाठ  की.
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