एक रचना-
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हल्ला-गुल्ला, शोर-शराबा,
मस्ती-मौज, खेल-कूद, मनरंजन,
डेटिंग करती फ़ौज.
लेना-देना, बेच-खरीदी,
कर उपभोग. नेता-टी.व्ही.
कहते जीवन-लक्ष्य यही.
कोई न कहता लगन-परिश्रम,
संयम-नियम, आत्म अनुशासन,
कोशिश राह वरो.
हल्ला-गुल्ला, शोर-शराबा,
मस्ती-मौज, खेल-कूद, मनरंजन,
डेटिंग करती फ़ौज.
लेना-देना, बेच-खरीदी,
कर उपभोग. नेता-टी.व्ही.
कहते जीवन-लक्ष्य यही.
कोई न कहता लगन-परिश्रम,
संयम-नियम, आत्म अनुशासन,
कोशिश राह वरो.
तज उधार, कर न्यून खर्च
कुछ बचत करो.
उत्पादन से मिले सफ़लता
वही करो.
उत्पादन कर मुक्त लगे कर उपभोगों पर.
नहीं योग पर रोक लगे केवल रोगों पर.
तब सम्भव रावण मर जाए.
तब सम्भव दीपक जल पाए.
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कुछ बचत करो.
उत्पादन से मिले सफ़लता
वही करो.
उत्पादन कर मुक्त लगे कर उपभोगों पर.
नहीं योग पर रोक लगे केवल रोगों पर.
तब सम्भव रावण मर जाए.
तब सम्भव दीपक जल पाए.
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![आरती क्यों और कैसे?
पूजा के अंत में हम सभी भगवान की आरती करते हैं। आरती के दौरान कई सामग्रियों का प्रयोग किया जाता है। इन सबका विशेष अर्थ होता है। ऐसी मान्यता है कि न केवल आरती करने, बल्कि इसमें शामिल होने पर भी बहुत पुण्य मिलता है। किसी भी देवता की आरती करते समय उन्हें 3बार पुष्प अर्पित करें। इस दरम्यान ढोल, नगाडे, घडियाल आदि भी बजाना चाहिए।
एक शुभ पात्र में शुद्ध घी लें और उसमें विषम संख्या [जैसे 3,5या 7] में बत्तियां जलाकर आरती करें। आप चाहें, तो कपूर से भी आरती कर सकते हैं। सामान्य तौर पर पांच बत्तियों से आरती की जाती है, जिसे पंच प्रदीप भी कहते हैं। आरती पांच प्रकार से की जाती है। पहली दीपमाला से, दूसरी जल से भरे शंख से, तीसरा धुले हुए वस्त्र से, चौथी आम और पीपल आदि के पत्तों से और पांचवीं साष्टांग अर्थात शरीर के पांचों भाग [मस्तिष्क, दोनों हाथ-पांव] से। पंच-प्राणों की प्रतीक आरती हमारे शरीर के पंच-प्राणों की प्रतीक है। आरती करते हुए भक्त का भाव ऐसा होना चाहिए, मानो वह पंच-प्राणों की सहायता से ईश्वर की आरती उतार रहा हो। घी की ज्योति जीव के आत्मा की ज्योति का प्रतीक मानी जाती है। यदि हम अंतर्मन से ईश्वर को पुकारते हैं, तो यह पंचारतीकहलाती है। सामग्री का महत्व आरती के दौरान हम न केवल कलश का प्रयोग करते हैं, बल्कि उसमें कई प्रकार की सामग्रियां भी डालते जाते हैं। इन सभी के पीछे न केवल धार्मिक, बल्कि वैज्ञानिक आधार भी हैं।
कलश-कलश एक खास आकार का बना होता है। इसके अंदर का स्थान बिल्कुल खाली होता है। कहते हैं कि इस खाली स्थान में शिव बसते हैं।
यदि आप आरती के समय कलश का प्रयोग करते हैं, तो इसका अर्थ है कि आप शिव से एकाकार हो रहे हैं। किंवदंतिहै कि समुद्र मंथन के समय विष्णु भगवान ने अमृत कलश धारण किया था। इसलिए कलश में सभी देवताओं का वास माना जाता है।
जल-जल से भरा कलश देवताओं का आसन माना जाता है। दरअसल, हम जल को शुद्ध तत्व मानते हैं, जिससे ईश्वर आकृष्ट होते हैं।](http://profile.ak.fbcdn.net/hprofile-ak-snc4/203413_1150527592_1151661_q.jpg)



