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गुरुवार, 18 जुलाई 2013

Pt. Narendra Sharma aur Mahabharat Serial -Lavnya Shah


 पं. नरेंद्र शर्मा और महाभारत धारावाहिक

लावण्या शाह
*
(भारतीय संस्कृति के आधिकारिक विद्वान, सुविख्यात साहित्यकार, चलचित्र जगत के सुमधुर गीतकार पं. नरेंद्र शर्मा की कालजयी सृजन समिधाओं  अनन्य दूरदर्शन धारावाहिक महाभारत के निर्माण में उनका अवदान है। उनकी आत्मजा सिद्धहस्त साहित्यकार लावण्या शाह जी अन्तरंग स्मृतियों में हमें सहभागी बनाकर उस पूज्यात्मा से प्रेरणा पाने का दुर्लभ अवसर प्रदान कर रही हैं। लावण्या जी के प्रति  करते  हुए प्रस्तुत है यह प्रेरक संस्मरण - संजीव)

पौराणिक कथा ' महाभारत '  को नया अवतार देने की घड़ी आ पहुंची थी! दृश्य - श्रव्य माध्यम टेलीवीज़न के छोटे पर्दे पर जयगाथा - महाभारत को प्रस्तुत करने का कोंट्रेक सुप्रसिद्ध निर्माता श्री बलदेव राज चोपरा जी की निर्माण संस्था को दूरदर्शन द्वारा सौंपा गया था  और एक दिन हमारा घर और पण्डित नरेंद्र शर्मा को खोजते हुए, उनकी लम्बी सी इम्पोर्टेड गाडी, घर के दरवाज़े के बाहर आकर रुकी !  बी आर अंकल घर पर अतिथि बन कर आए और उनसे पापा भद्रता से मिले । दोनों ने अभिवादन किया। फ़िर, उन्होंने पापाजी से  कई बार और मुलाक़ात की और उन्हें , कार्य के लिए , अनुबंधित किया । उसके बाद , पापा जी की बी . आर . फिल्म्ज़ की ऑफिस में  रोजाना मीटिंग्स होने लगीं ।

https://mail-attachment.googleusercontent.com/attachment/u/0/?ui=2&ik=dad2fa7c6e&view=att&th=13fefa7f5abc7121&attid=0.1&disp=inline&realattid=f_hj98x3ng0&safe=1&zw&saduie=AG9B_P8iolpeP3f4iPAHowfQMMHF&sadet=1374126366587&sads=kR8FnPRhN2sVH5OZk7L5MrPCLTk&sadssc=1
 महाभारत की यूनिट के साथ पं. नरेंद्र शर्मा दायें से ४ थे

पापा जी ने जैसे जैसे इस अति विशाल महाग्रंथ की कथा को स - विस्तार बतलाना शुरू किया तब यूनिट के लोगों का कहना है कि  ऐसा प्रतीत होने लगा मानो,  हम उसी कालखंड में पहुँच कर सारा दृश्य , पंडितजी की आंखों से घटता हुआ , देखने लगे ! 
पूज्य पापा जी पण्डित नरेंद्र शर्मा का ' महाभारत ' धारावाहिक में अभूतपूर्व योगदान रहा है। गीत , दोहे , परामर्श,  रूपरेखा आदि का श्रेय पंडित नरेंद्र शर्मा को ही दिया जाएगा। शीर्षक गीत ' अथ श्री महाभारत कथा ' पं. नरेंद्र शर्मा ने लिखा है। " समय " भी एक महत्त्वपूर्ण पात्र है महाभारत कथा में !  

उसके लिए अविस्मरणीय स्वर दिया है श्री हरीश भीमानी जी ने  ! जो महाभारत की  समस्त कथा का सूत्रधार है। कभी-कभी पापा जी, कथा में इतना डूब जाते कि उठकर खड़े हो जाते या टहलते हुए, कोई कथानक तमाम पेचीदगियों के साथ,  सविस्तार बतलाते। 
महाभारत कथा के पात्रों के मनोभाव, उनके मनोमंथन या स्वभाव की बारीकियों को भी बखूबी समझाते । तब, पापा की कही कोई बात व्यर्थ न चली जाए, इस कारण से, जैसे ही, पापाजी का बोलना आरम्भ होता, टेप रेकॉर्डर को ' ओन 'न कर लिया जाता ताकि, उनकी कही हर बात बारबार सुनी जा सके और सारा वार्तालाप  आराम से बार  सुना जा सके।   एक बार  पापा जी ने कहा: पितामह भीष्म , हमेशा श्वेत वस्त्र धारण किया करते थे " -

बी . आर . अंकल और राही साहब (रही मासूम रजा) जो पटकथा लिख रहे थे वे दोनों पूछने लगे, आपको  कैसे पता ? " तब , पापा जी ने, बतला दिया कि, अमुक पन्ने पर इस का जिक्र है.. प्रसंगानुसार उदाहरण देते हुए समझाया कि, जब पितामह, मन ही मन प्रसन्न होते हुए बालक अर्जुन से शिकायत करते हैं,वत्स , देखो तुम्हारे धूलभरे , वस्त्रों से , मेरे श्वे वस्र , धूलि धूसरित हो जाते ैं ' .. इतना सुनते ही सब हैरान रह गए कि इतनी बारीकी से भला कौन कथा पढता है ?

जनाब  राही मासूम रज़ा साहब ने इसी को , पटकथा लेखक के रूप में, कलमबद्ध भी किया और भीष्म पितामह के किरदार को सजीव करनेवाले मुकेश खन्ना को , श्वेत वस्त्रों में ही , शुरू से अंत तक, सुसज्जित किया गया। ये बातें भी, महाभारत के नये स्वरूप और नये अवतार के इतिहास का एक पन्ना बन गयीं। राही साहब ने कहा है कि ' महाभारत ' की भूलभूलैया में  मैं, पण्डित जी की ऊंगली थामे  थामे,  आगे  बढ़ता  गया !'। " 

पापा जी के सुझाव पर, पाँच पांडवों में युधिष्ठिर की भूमिका के लिए जो सबसे शांत दिखलाई देते थे ऐसे कलाकार को चुना गया था। हाँ, द्रौपदी के किरदार के लिए रूपा गांगुली का नाम मेरी अम्मा , सुशीला नरेंद्र शर्मा ने सुझाया था। बी. आर. अंकल ने उन्हें कलकत्ता से  स्क्रीन टेस्ट के लिए बुलवा लिया और वे चयनित हुईं ।

महाभारत सीरीज़ को महाराज भरत के उत्तराधिकारी के चयन की दुविधा भरे प्रसंग से आरम्भ किया गया था । तब राजीव गांधी सरकार केन्द्र में थी । उनके कई चमचों ने वरिष्ठ अधिकारियों को भड़काने के लिए कहा, ये उत्तराधिकारीवाली बातइस में क्यों है ? इसे निकालें ' [ शायद नेहरू परिवार के लिए भी ये बात , लागू हो रही थी ] परन्तु , पापा जी और बी .आर . अंकल देहली गये, और पापा ने कहा ' अगर अब आप ऐसी बातों को निकालने को कहेंगें अब आप का ही बुरा दीखेगा ' और इस संवाद को , काटा नहीं गया ! ये भी यादें हैं... फ़िर , आया शांतनु राजा और मत्स्यगंधा का प्रणय बिम्ब ! यहाँ शूटिंग के बाद भी सीन , खाली-खाली सा  लग रहा था। पापा जी ने कहा,' ये गीत दे रहा हूँ , इसे इस खाली स्थान पर रखिये , अच्छा लगेगा यहाँ पर ' वो गीत था , दिन पर दिन बीत गये
चोपरा अंकल दूसरे दिन , एक चेक लेकर हमारे घर आये ! उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब पापाने यह कहते उसे लौटा दिया: चोपराजीआपने मुझे जब नु बधित किया है तब मेरा फ़र्ज़ बनता  है  कि  इस सीरीज़ की सफलता के लिये भरसक  प्रयास करूं - मैं गीतकार  भी हूँ आप ये जानते थे !  तः, इसे रहने दीजिये "  चोपरा अंकल ने बाद में , हमें कहा: 'बीसवीं  सदी में जीवित ऐसे संत - कवि को , मैं , हाथ में लौटाये हुए पैसों के चेक को थामे , बस, विस्मय से देखता ही रह गया ! " 

उन्होंने अपनी श्रृद्धान्जली अंग्रेज़ी में लिखी है जो पापा जी के असमय निधन के बाद छापी गयी पुस्तकशेष-अशेष " में सम्मिलित है । वे कहते हैं, ' ये कोई रीत नहीं..हमें छोड़ कर जाने की ' और उन्होंने पापाजी को एक  फ़रिश्ता - या एंजेल कहा है। आगे महाभारत कथा में ' श्री कृष्ण लीला ' का होना भी अनिवार्य है यह सुझाव भी पापा जी ने ही दिया था।  

फरवरी ११ की काल रात्रि को महाकाल मेरे पापा जी को कुरुक्षेत्र के रण  मैदान से सीधे कैलाश ले चले! पूज्य पापा जी ने विदर्भ राजकुमारी रुक्मिणी का प्रार्थना गीत लिख कर दिया था 

' विनती सुनिए नाथ हमारी ह्रदयेश्वर हरी ह्रदय विहारी मोर मुकुट पीताम्बर धारी ' और माता भवानी स्तुति ' जय जय जननी श्री गणेश की प्रतिभा परमेश्वर परेश की , सविनय विनती है प्रभु आयें , आयें अपनायें ले जायें , शुभद सुखद वेला आये माँ सर्व सुमंगल गृह प्रवेश की ' और माँ पार्वती का आशीर्वाद दोहा ' सुन ध्यान दे वरदान ले स्वर्ण वर्णा रुक्मिणी ' 

यह प्रसंग भारत की जनता टेलीविजन के पर्दे पर जब देख रही थी तब गीतकार पंडित नरेंद्र शर्मा  की आत्मा अनंत में ऊर्ध्वलोकों के प्रयाण पथ पर अग्रसर थी। हम परिवार के सभी, पापा जी के जाने से, टूट चुके थे । धारावाहिक का कार्य अथक परिश्रम और लगन के साथ पापा जी के बतलाये निर्देशानुसार और श्री बी . आर. चोपरा जी एवं उनके पुत्र श्री रवि भाई तथा अन्य सभी के सहयोग से यथावत जारी था।

सुप्रसिद्ध फिल्म निर्माता - निर्देशक श्री बी . आर . चोपरा  अंकल जी का दफ्तर , मेरी ससुराल के बंगलों  के सामने था । एक दिन की बात है कि एक  शाम  मेरे पति  दीपक जी एवं मैं, शाम को टहल रहे थे और सामने से संगीतकार श्री  राजकमल जी आते दिखलायी दिए !  ' महाभारत धारावाहिक का काम अपने चरम पर था और राजकमल जी उसे संगीत से संवार रहे थे। वे, हमें  गली के नुक्कड़ पर ही मिल गये। नमस्ते हुई और  बातें शुरू हुईं ! 

आदर और श्रद्धा विगलित स्वर से राजकमल जी कहने लगे ' पंडित जी के जाने से अपूरणीय क्षति हुई है। काम चल रहा है परन्तु उनके जैसे शब्द कौन सुझाएगा ? उनके हरेक अक्षर के साथ गीत स्वयं प्रकाशित होता था जिसे मैं स्वरबद्ध कर लेता था ! जैसे श्री कृष्ण और राधे रानी के महारास  का गीत का यह शब्द ' चतुर्दिक गूँज रही छम छम ' चतुर्दिक' शब्द ने रास और गोपियों के कान्हा और राधा के संग हुए नृत्य को चारों दिशाओं में प्रसारित कर दिया ऐसा लगता है। ' 

वे पापा जी को सजल नयनों से याद करने लगे तब दीपक जी ने उनसे कहा, ' अंकल , लावण्या ने भी कई  महाभारत से सम्बंधित दोहे,  लिखे हैं  ' उन्हें यह सुनकर आश्चर्य हुआ  और बोले,'  लिखे हैं और घर में रखे हैं, ये  क्यों भला !  ले आओ किसी  दिनहम भी सुनेंगें और अगर कहीं योग्य लगें तब उसे रख लेंगें  ' उनके आग्रह से, आश्वस्त हो कर बी . आर . अंकल के फोन पर आमंत्रण मिलने पर  जब मैं एक दोपहर उनके  दफ्तर में पहुँची तब आगामी ४ एपिसोड  बनकर तैयार हो रहे थे। बी . आर . अंकल के पैर छूकर राही मासूम रज़ा साहब के ठीक बगल वाली कुर्सी पर  मैं बैठ गयी। सच कहूँ उस वक्त मुझे मेरे  पापा जी  की बहुत याद आयी 

मैंने चारों एपिसोड के ' रशेस '  माने ' कच्चा रूप ' देखा। पार्श्व -संगीत, दोहे अभी तक जोड़े नही गये थे। सिर्फ़  रफ कोपी की प्रिंट ही तैयार थीं।
प्रसंग :

१ - सुभद्रा हरण- 
सबसे प्रथम दोहा  सुभद्रा हरण के प्रसंग पर लिखा था उसके शब्द हैं:
' बिगड़ी बात संवारना , सांवरिया की रीत ,
पार्थ सुभद्रा मिल गएहुई प्रणय की जीत

२ - द्रौपदी सुभद्रा मिलन- द्रौपदी और सुभद्रा का सर्व प्रथम बार इन्द्रप्रस्थ में द्रौपदी के अंत:पुर में मिलन:
गंगा यमुना सी मिलींधाराएं अनमोल , 
द्रवित हो उठीं द्रौपदी, सुनकर मीठे बोल "
  
३ - जरासंध - वध
''अभिमानी के द्वार पर, आए दींन दयाल,
स्वयं अहम् ने चुन लिया, अपने हाथों काल "

४  - द्रौपदी चीर हरण
सत असत सर्वत्र हैं , अबला सबला होय
नारायण पूरक बनेंपांचाली जब रोय मत रो बहना द्रौपदी , जीवन है संग्राम धीरज धर , मन शांत करसुधरेंबिगड़े काज "

५ - कीचक वध-
ये दोहा भी आपने धारावाहिक में सु
ना होगा जो श्री कृष्ण द्रौपदी को सांत्वना देते हुए पांडवों के वनवास के समय मिलने आते हैं तब कहते हैं:

चाहा छूना आग को, गयी कीचक की जान
द्रौपदी के अश्रू को, मिला आत्म -सम्मान ! " 
भीष्म पितामह को शिखंडी की आड़ लेकर अर्जुन द्वारा पितामह को बाणों से छलनी कर देने पर लिखा था ...

जानता हूँबाण है यह प्रिय र्जुन का,
नहीं शिखंडी चला सकता एक भी शर ,
बींध पाये कवच मेरा किसी भी क्षण
बहा दो संचित लहूतुम आज सारा ...' 

मैंने , और भी कुछ  दोहे लिखकर दिए जिन्हें , महाभारत टी. वी. धारावाहिक में शामिल किया गया । राजकमल भाई ने कहा ' मीटर में सही बैठ रहे हैं ' और तब गायक श्री महेन्द्र कपूर जी ने वहां आकर उन्हें गाया और वे सदा-सदा के लिए दर्शकों के हो गये ! 
 हाँ, मेरा नाम , शीर्षक में एकाध बार ही दिखलाई दिया था शायद बहुतों ने उसे  न ही देखा होगा । मुझे उस बात से कोई शिकायत नहीं! बल्कि  आत्मसंतोष है ! इस बात का कि मैं अपने दिवंगत पिता के कार्य में अपने श्रद्धा सुमन रूपी, ये दोहे, पूजा के रूप में, चढ़ा सकी ! ये एक पुत्री का पितृ - तर्पण था। 

पूज्य पापा जी की '  पंडित नरेंद्र शर्मा  सम्पूर्ण रचनावली '
मेरे लघु भ्राता भाई श्री परितोष नरेंद्र शर्मा ने शताब्दी वर्ष के पावन अवसर पर प्रकाशित की है। उसमे उनका समग्र लेखन समाहित है। 
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Compiled, Edited by Paritosh Narendra Sharma & Published by Paritosh Prakashan [A Wholly Owned Unit of ]Paritosh Holdings Pvt Ltd
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चलिए आज इतना ही , फ़िर मिलेंगें -  सब के जीवन में योगेश्वर श्री कृष्ण की कृपा , बरसती रहे यही मंगल कामना है।
***
​ प्रस्तुति: Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in


रविवार, 29 जनवरी 2012

साहित्यिक निबंध वसंतोत्सव - लावण्या शाह

 

वसंतोत्सव

- लावण्या  शाह 



वसंत ऋतु राज का स्वागत है! शताब्दियों से भारत के रसिक कवि-मनिषियों के हृदय, ऋतु-चक्र के प्राण सदृश "वसंत" का, भाव-भीने गीतों व पदों से, अभिनंदन करते रहे हैं।
प्रकृति षोडशी, कल्याणी व सुमधुर रूप लिए अठखेलियाँ दिखलाती, कहीं कलिका बन कर मुस्कुराती है तो कहीं आम्र मंजिरी बनी खिल-खिल कर हँसती है और कहीं रसाल ताल तड़ागों में कमलिनी बनी वसंती छटा बिखेरती काले भ्रमर के संग केलि करती जान पड़ती है। वसंत की अनुभूति मानव मन को शृंगार रस में डुबो के ओतप्रोत कर देती है।
भक्त शिरोमणि बाबा सूरदास गाते हैं -"ऐसो पत्र पठायो नृप वसंत तुम तजहु मान, मानिनी तुरंत! कागद नव दल अंब पात, द्वात कमल मसि भंवर-गात!लेखनी काम के बान-चाप, लिखि अनंग, ससि दई छाप!!मलयानिल पढयो कर विचार, बांचें शुक पिक, तुम सुनौ नार,"सूरदास" यों बदत बान, तू हरि भज गोपी, तज सयान!!
बसंत ऋतु के छा जाने पर पृथ्वी में नए प्राणो का संचार होता है। ब्रृज भूमि में गोपी दल, अपने सखा श्री कृष्ण से मिलने उतावला-सा निकल पड़ता है। श्री रसेश्वरी राधा रानी अपने मोहन से ऐसी मधुरिम ऋतु में कब तक नाराज़ रह सकती है? प्रभु की लीला वेनु की तान बनी, कदंब के पीले, गोल-गोल फूलों से पराग उड़ती हुई, गऊधन को पुचकारती हुई, ब्रज भूमि को पावन करती हुई, स्वर-गंगा लहरी समान, जन-जन को पुण्यातिरेक का आनंदानुभव करवाने लगती है।
ऐसे अवसर पर, वृंदा नामक गोपी के मुख से परम भगवत श्री परमानंद दास का काव्य मुखरित हो उठता है -"फिर पछतायेगी हो राधा, कित ते, कित हरि, कित ये औसर, करत-प्रेम-रस-बाधा!बहुर गोपल भेख कब धरि हैं, कब इन कुंजन, बसि हैं!यह जड़ता तेरे जिये उपजी, चतुर नार सुनि हँसी हैं!रसिक गोपाल सुनत सुख उपज्यें आगम, निगम पुकारै,"परमानन्द" स्वामी पै आवत, को ये नीति विचारै!
गोपी के ठिठोली भरे वचन सुन, राधाजी, अपने प्राणेश्वर, श्री कृष्ण की और अपने कुमकुम रचित चरण कमल लिए, स्वर्ण-नुपूरों को छनकाती हुईं चल पड़ती हैं! वसंत ऋतु पूर्ण काम कला की जीवंत आकृति धरे, चंपक के फूल-सी आभा बिखेरती राधा जी के गौर व कोमल अंगों से सुगंधित हो कर, वृंदावन के निकुंजों में रस प्रवाहित करने लगती है। लाल व नीले कमल के खिले हुये पुष्पों पर काले-काले भँवरे सप्त-सुरों से गुंजार के साथ आनंद व उल्लास की प्रेम-वर्षा करते हुए रसिक जनों के उमंग को चरम सीमा पर ले जाने में सफल होने लगते हैं।
"आई ऋतु चहुँ-दिसि, फूले द्रुम-कानन, कोकिला समूह मिलि गावत वसंत ही,मधुप गुंजरत मिलत सप्त-सुर भयो है हुलस, तन-मन सब जंत ही!मुदित रसिक जन, उमंग भरे हैं, नही पावत मन्मथ सुख अंत ही,"कुंभन-दास" स्वामिनी बेगि चलि, यह समय मिलि गिरिधर नव कंत ही!"
गोपियाँ अब अपने प्राण-वल्लभ, प्रिय सखा गोपाल के संग, फागुन ऋतु की मस्ती में डूबी हुई, उतावले पग भरती हुई, ब्रृज की धूलि को पवन करती हुई, सघन कुंजों में विहार करती हैं। पर हे देव! श्री कृष्ण, आखिर हैं कहाँ? कदंब तले, यमुना किनारे, ब्रृज की कुंज गलियों में श्याम मिलेंगे या कि फिर वे नंद बाबा के आँगन में, माँ यशोदा जी के पवित्र आँचल से, अपना मुख-मंडल पुछवा रहे होंगे? कौन जाने, ब्रृज के प्राण, गोपाल इस समय कहाँ छिपे हैं?
"ललन संग खेलन फाग चली!चोवा, चंदन, अगस्र्, कुमकुमा, छिरकत घोख-गली!ऋतु-वसंत आगम नव-नागरि, यौवन भार भरी!देखन चली, लाल गिरधर कौं, नंद-जु के द्वार खड़ी!!
आवो वसंत, बधावौ ब्रृज की नार सखी सिंह पौर, ठाढे मुरार!नौतन सारी कसुभिं पहिरि के, नवसत अभरन सजिये!नव नव सुख मोहन संग, बिलसत, नव-कान्ह पिय भजिये!चोवा, चंदन, अगरू, कुमकुमा, उड़त गुलाल अबीरे!खेलत फाग भाग बड़ गोपी, छिड़कत श्याम शरीरे!बीना बैन झांझ डफ बाजै, मृदंग उपंगन ताल,"कृष्णदास" प्रभु गिरधर नागर, रसिक कंुवर गोपाल!
ऋतु राज वसंत के आगमन से, प्रकृति अपने धर्म व कर्म का निर्वाह करती है। हर वर्ष की तरह, यह क्रम अपने पूर्व निर्धारित समय पर असंख्य फूलों के साथ, नई कोपलों और कोमल सुगंधित पवन के साथ मानव हृदय को सुखानुभूति करवाने लगता है। पेड़ की नर्म, हरी-हरी पत्तियाँ, रस भरे पके फलों की प्रतीक्षा में सक्रिय हैं। दिवस कोमल धूप से रंजित गुलाबी आभा बिखेर रहा है तो रात्रि, स्वच्छ, शीतल चाँदनी के आँचल में नदी, सरोवर पर चमक उठती है। प्रेमी युगुलों के हृदय पर अब कामदेव, अनंग का एकचक्र अधिपत्य स्थापित हो उठा है। वसंत ऋतु से आँदोलित रस प्रवाह, वसंत पंचमी का यह भीना-भीना, मादक, मधुर उत्सव, आप सभी के मानस को हर्षोल्लास से पुरित करता हुआ हर वर्ष की तरह सफल रहे यही भारतीय मनीषा का अमर संदेश है -
"आयौ ऋतु-राज साज, पंचमी वसंत आज,मोरे द्रुप अति, अनूप, अंब रहे फूली,बेली पटपीत माल, सेत-पीत कुसुम लाल,उडवत सब श्याम-भाम, भ्रमर रहे झूली!रजनी अति भई स्वच्छ, सरिता सब विमल पच्छ,उडगन पत अति अकास, बरखत रस मूलीबजत आवत उपंग, बंसुरी मृदंग चंग,यह सुख सब " छीत" निरखि इच्छा अनुकूली!!
बसंत ऋतु है, फाग खेलते नटनागर, मनोहर शरीर धारी, श्याम सुंदर मुस्कुरा रहे हैं और प्रेम से बावरी बनी गोपियाँ, उनके अंगों पर बार-बार चंदन मिश्रित गुलाल का छिड़काव कर रही हैं! राधा जी अपने श्याम का मुख तक कर विभोर है। उनका सुहावना मुख मंडल आज गुलाल से रंगे गालों के साथ पूर्ण कमल के विकसित पुष्प-सा सज रहा है। वृंदावन की पुण्य भूमि आज शृंगार-रस के सागर से तृप्त हो रही है।
प्रकृति नूतन रूप संजोये, प्रसन्न है! सब कुछ नया लग रहा है कालिंदी के किनारे नवीन सृष्टि की रचना, सुलभ हुई है "नवल वसंत, नवल वृंदावन, नवल ही फूले फूल!नवल ही कान्हा, नवल सब गोपी, नृत्यत एक ही तूल!नवल ही साख, जवाह, कुमकुमा, नवल ही वसन अमूल!नवल ही छींट बनी केसर की, भेंटत मनमथ शूल!नवल गुलाल उड़े रंग बांका, नवल पवन के झूल!नवल ही बाजे बाजैं, "श्री भट" कालिंदी के कूल!नव किशोर, नव नगरी, नव सब सोंज अरू साज!नव वृंदावन, नव कुसुम, नव वसंत ऋतु-राज!"

— लावण्या शाह



 

मंगलवार, 25 अक्टूबर 2011

ज्योति पर्व : ज्योति वंदना- नरेन्द्र शर्मा / लावण्या शाह

ज्योति पर्व : ज्योति वंदना / नरेन्द्र शर्मा 
 
जीवन की अंधियारी
रात हो उजारी!
 
धरती पर धरो चरण
तिमिर-तम हारी 
परम व्योमचारी!
 
चरण धरो, दीपंकर,
जाए कट तिमिर-पाश!
 
दिशि-दिशि में चरण धूलि
छाए बन कर-प्रकाश!
 
आओ, नक्षत्र-पुरुष,
गगन-वन-विहारी 
परम व्योमचारी!
 
आओ तुम, दीपों को 
निरावरण करे निशा!
 
चरणों में स्वर्ण-हास 
बिखरा दे दिशा-दिशा!
 
पा कर आलोक,
मृत्यु-लोक हो सुखारी 
नयन हों पुजारी!
 
दीपावली मंगलमय हो / लावण्या शाह
 
दीप शिखा की लौ कहती है, 
व्यथा कथा हर घर रहती है,
कभी छिपी तो कभी मुखर बन, 
अश्रु हास बन बन बहती है 
हाँ व्यथा सखी, हर घर रहती है ..
बिछुडे स्वजन की याद कभी, 
निर्धन की लालसा ज्योँ थकी थकी,
हारी ममता की आँखोँ मेँ नमी, 
बन कर, बह कर, चुप सी रहती है,
हाँ व्यथा सखी, हर घर रहती है !
नत मस्तक, मैँ दिवला, बार नमूँ 
आरती, माँ, महालक्ष्मी मैँ तेरी करूँ,
आओ घर घर माँ, यही आज कहूँ,
दुखियोँ को सुख दो, यह बिनती करूँ,
माँ, देक्ग, दिया, अब, प्रज्वलित कर दूँ !
दीपावली आई फिर आँगन, बन्दनवार, 
रँगोली रची सुहावन !
किलकारी से गूँजा रे प्राँगन, मिष्ठान्न 
अन्न धृत मेवा मन भावन !
देख सखी, यहाँ फूलझडी मुस्कावन !
जीवन बीता जाता ऋउतुओँ के सँग सँग,
हो सबको, दीपावली का अभिनँदन !
नव -वर्ष की बधई, हो, नित नव -रस !
http://lavanyam-antarman.blogspot.com/