माँ का होना शिलाजीत है...
उसका दर्शन, उसकी वाणी,
उसका इस दुनिया में होना,
खोकर-पाना, पाकर-खोना-
मन-आँगन में सपने बोना।
ऋचा, कीर्तन , भजन, प्रार्थना
सामवेद का प्रथम गीत है...
उसकी पीड़ा, उसके आँसू,
उसके कोमल प्रेम-प्रकम्पन,
साधे-साधे, बाँधे-बाँधे,
मन कोटर के ये स्पंदन।
प्रेम जलधि के जल से उपजा
वाल्मीकि का प्रथम गीत है...
मन में चारों धाम समेटे,
जाने कितने काम समेटे,
पाँच पांडवों में बंटती सी-
कुंती सा संग्राम समेटे।
नीलकंठ सा जीवन जीती-
शिव-भगिनी की सी प्रतीत है...
मेरी माँ का अजब तराजू,
उसमें पाँच-पाँच पलडे हैं।
पाँचों को साधे रखने में,
तीन उठे तो दो गिरते हैं।
फ़िर भी हर पलडे में बैठी,
वह सबकी अनबँटी मीत है...
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दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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शनिवार, 16 मई 2009
काव्य किरण: माँ का होना - पुष्पलता शर्मा
चिप्पियाँ Labels:
आँसू,
काव्य किरण: माँ का होना - पुष्पलता शर्मा,
पीड़ा,
प्रेम,
मातृ-दिवस
करें वंदना-प्रार्थना, भजन-कीर्तन नित्य.
सफल साधना हो 'सलिल', रीझे ईश अनित्य..
शांति-राज सुख-चैन हो, हों कृपालु जगदीश.
सत्य सहाय सदा रहे, अंतर्मन पृथ्वीश..
गुप्त चित्र निर्मल रहे, ऐसे ही हों कर्म.
ज्यों की त्यों चादर रखे,निभा'सलिल'निज धर्म.
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