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सोमवार, 8 अप्रैल 2019

मुक्तिका, अम्मी

मुक्तिका
अम्मी
*
माहताब की जुन्हाई में
झलक तुम्हारी पाई अम्मी
दरवाजे, कमरे आँगन में
हरदम पडी दिखाई अम्मी
कौन बताये कहाँ गयीं तुम
अब्बा की सूनी आँखों में
जब भी झाँका पडी दिखाई
तेरी ही परछाईं अम्मी
भावज जी भर गले लगाती
पर तेरी कुछ बात और थी
तुझसे घर अपना लगता था
अब बाकी पहुनाई अम्मी
बसा सासरे केवल तन है
मन तो तेरे साथ रह गया
इत्मीनान हमेशा रखना-
बिटिया नहीं परायी अम्मी
अब्बा में तुझको देखा है
तू ही बेटी-बेटों में है
सच कहती हूँ, तू ही दिखती
भाई और भौजाई अम्मी.
तू दीवाली, तू ही ईदी
तू रमजान फाग होली है
मेरी तो हर श्वास-आस में
तू ही मिली समाई अम्मी
*

सोमवार, 17 जुलाई 2017

muktika

मुक्तिका:
अम्मी
संजीव 'सलिल'
*
माहताब की जुन्हाई में, झलक तुम्हारी पाई अम्मी.
दरवाजे, कमरे आँगन में, हरदम पडीं दिखाई अम्मी.
*
बसा सासरे केवल तन है. मन तो तेरे साथ रह गया.
इत्मीनान हमेशा रखना- बिटिया नहीं पराई अम्मी.
*
भावज जी भर गले लगाती, पर तेरी कुछ बात और थी.
तुझसे घर अपना लगता था, अब बाकी पहुनाई अम्मी.
*
कौन बताये कहाँ गयी तू ? अब्बा की सूनी आँखों में,
जब भी झाँका पडी दिखाई तेरी ही परछाँई अम्मी.
*
अब्बा में तुझको देखा है, तू ही बेटी-बेटों में है.
सच कहती हूँ, तू ही दिखती भाई और भौजाई अम्मी.
*
तू दीवाली, तू ही ईदी, तू रमजान दिवाली होली.
मेरी तो हर श्वास-आस में तू ही मिली समाई अम्मी.
*
तू कुरआन, तू ही अजान है, तू आँसू, मुस्कान, मौन है.
जब भी मैंने नजर उठाई, लगा अभी मुस्काई अम्मी.
१७-७-२०१२  
salil.sanjiv@gmail.com   
#दिव्यनर्मदा 
#हिंदी_ब्लॉगर 

शुक्रवार, 5 अप्रैल 2013

muktika AMMI sanjiv 'salil'

मुक्तिका%
अम्मी

संजीव सलिल
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माहताब की जुन्हाई में
झलक तुम्हारी पाई अम्मी
दरवाजे, कमरे आँगन में
हरदम पडी दिखाई अम्मी

कौन बताये कहाँ गयीं तुम
अब्बा की सूनी आँखों में
जब भी झाँका पडी दिखाई
तेरी ही परछाईं अम्मी

भावज जी भर गले लगाती
पर तेरी कुछ बात और थी
तुझसे घर अपना लगता था
अब बाकी पहुनाई अम्मी

बसा सासरे केवल तन है
मन तो तेरे साथ रह गया
इत्मीनान हमेशा रखना-
बिटिया नहीं परायी अम्मी

अब्बा में तुझको देखा है
तू ही बेटी-बेटों में है
सच कहती हूँ, तू ही दिखती
भाई और भौजाई अम्मी.

तू दीवाली, तू ही ईदी
तू रमजान फाग होली है
मेरी तो हर श्वास-आस में
तू ही मिली समाई अम्मी
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