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रविवार, 19 नवंबर 2017

ram dohavali

राम दोहावली
लक्ष्य रखे जो एक ही, वह जन परम सुजान।
लख न लक्ष मन चुप करे, साध तीर संधान।।
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लखन लक्ष्मण या कहें, लछ्मन उसको आप

राम-काम सौमित्र का, हर लेता संताप

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सिया-सिंधु की उर्मि ला, अँजुरी रखें अँजोर

लछ्मन-मन नभ, उर्मिला मनहर उज्ज्वल भोर

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लखन-उर्मिला देह-मन, इसमें उसका वास

इस बिन उसका है कहाँ, कहिए अन्य सु-वास

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मन में बसी सुवास है, उर्मि लखन हैं फ़ूल

सिया-राम गलहार में, शोभित रहते झूल
*
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बुधवार, 21 जुलाई 2010

नव गीत: बहुत छला है..... संजीव 'सलिल'

नव गीत:

बहुत छला है.....

संजीव 'सलिल'
*











*
बहुत छला है
तुमने राम....
*
चाहों की
क्वांरी सीता के
मन पर हस्ताक्षर
धनुष-भंग कर
आहों का
तुमने कर डाले.
कैकेयी ने
वर कलंक
तुमको वन भेजा.
अपयश-निंदा ले
तुमको
दे दिये उजाले.
जनगण बोला:
विधि है वाम.
बहुत छला है
तुमने राम....
*
शूर्पनखा ने
करी कामना
तुमको पाये.
भेज लखन तक
नाक-कान
तुमने कटवाये.
वानर, ऋक्ष,
असुर, सुर
अपने हित मरवाये.
फिर भी दीनबन्धु
करुणासागर
कहलाये.
कह अकाम
साधे निज काम.
बहुत छला है
तुमने राम....
*
सीता मैया
परम पतिव्रता
जंगल भेजा.
राज-पाट
किसकी खातिर
था कहो सहेजा?
लव-कुश दे
माँ धरा समायीं
क्या तुम जीते?
डूब गए
सरयू में
इतने हुए फजीते.
नष्ट अयोध्या
हुई अनाम.
बहुत छला है
तुमने राम....
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दिव्यनर्मदा.ब्लॉगस्पोट.कॉम