कुल पेज दृश्य

bal sahitya लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
bal sahitya लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शुक्रवार, 24 अक्टूबर 2014

bal kavita: mere pita

बाल कविता: 

मेरे पिता   

संजीव 'सलिल'

जब तक पिता रहे बन साया!
मैं निश्चिन्त सदा मुस्काया!
*
रोता देख उठा दुलराया 
कंधे पर ले जगत दिखाया 
उँगली थमा,कहा: 'बढ़ बेटा!
बिना चले कब पथ मिल पाया?'  
*
गिरा- उठाकर मन बहलाया 
'फिर दौड़ो'उत्साह बढ़ाया
बाँह झुला भय दूर भगाया 
'बड़े बनो' सपना दिखलाया 
*
'फिर-फिर करो प्रयास न हारो'
हरदम ऐसा पाठ पढ़ाया
बढ़ा हौसला दिया सहारा 
मंत्र जीतने का सिखलाया 
*
लालच करते देख डराया 
आलस से पीछा छुड़वाया 
'भूल न जाना मंज़िल-राहें 
दृष्टि लक्ष्य पर रखो' सिखाया 
*
रवि बन जाड़ा दूर भगाया 
शशि बन सर से ताप हटाया 
मैंने जब भी दर्पण देखा 
खुद में बिम्ब पिता का पाया 
*

शनिवार, 6 जून 2009

बाल गीत: तोता और कैरी - कृष्णवल्लभ पौराणिक, इंदौर



तोता कैरी खाता है
कुतर -कुतर रह जाता है।

टें-टें करता रहे सदा

बच्चों के मन भाता है।

नहीं अकेला आता है।

मित्र साथ में लाता है।

टहनी पर बैठा होता जब

ताजी कैरी खाता है।

झूम-झूम लहराता है

खा-खाकर इठलाता है।

छोड़ अधूरी कैरी को

दूजी पर ललचाता है।


कभी न गाना गाता है

आम वृक्ष से नाता है।

काट कभी कैरी डंठल को
वह दाता बन जाता है।

****************************