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सोमवार, 12 अक्टूबर 2015

aawhan gaan

आव्हान गान:
*
जागो माँ!, जागो माँ!!
*
*
सघन तिमिर आया घिर
तूफां है हावी फिर.
गौरैया घायल है
नष्ट हुए जंगल झिर.
बेबस है राम आज
रजक मिल उठाये सिर.
जनमत की सीता को
निष्ठा से पागो माँ.
जागो माँ!, जागो माँ!!
*
शकुनि नित दाँव चले
कृष्णा को छाँव छले.
शहरों में आग लगा
हाथ सेंक गाँव जले.
कलप रही सत्यवती
बेच घाट-नाव पले.
पद-मद के दानव को
मार-मार दागो माँ
जागो माँ!, जागो माँ!!
*
करतल-करताल लिये
रख ऊँचा भाल हिये.
जस गाते झूम अधर
मन-आँगन बाल दिये.
घंटा-ध्वनि होने दो
पंचामृत जगत पिये.
प्राणों को खुद भी
ज्यादा प्रिय लागो माँ!
जागो माँ!, जागो माँ!!
*

बुधवार, 7 अप्रैल 2010

स्तुति: : हर-हर गंगे... संजीव 'सलिल'

स्तुति: : हर-हर गंगे...

संजीव 'सलिल'

हर-हर गंगे...,हर-हर गंगे...
*
सदियों से तुम सतत प्रवाहित
परिवर्तन की बनीं गवाही.
तुममें जीवन-शक्ति अनूठी
उसने पाई, जिसने चाही.
शतगुण जेठी रेवा का सुत-
मैया! तुमको नमन कर रहा -
'सलिल'-साधना सफल करो माँ
हर-हर गंगे...,हर-हर गंगे...
*
लहर-लहर में लहराती है
भागीरथ की कथा सुहानी.
पलीं पीढ़ियाँ कह, सुन, लिख-पढ़-
गंगा-सुत की व्यथा पुरानी.
हिमगिरि से सागर तक प्रवहित-
तार रहीं माँ भव-सागर से.
तर पायें तव कृपा-कोर पा.
हर-हर गंगे...,हर-हर गंगे...
*
पाप-ताप धो-धोकर माता!
हमने मैला नीर किया है.
उफ़ न कर रहीं धार सूखती.
हम शर्मिन्दा दर्द दिया है.
'सलिल' अमल-निर्मल हो फिर से
शुद्ध-बुद्ध हो नमन कर सकें-
विमल भक्ति दो, अचल शक्ति दो
हर-हर गंगे...,हर-हर गंगे...
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नेपाल यात्रा पर जाते समय २१.६.२००९ को वाराणसी में गंगा स्नान पश्चात् रची गयी.
http://divyanarmada.blogspot.com

मंगलवार, 14 अप्रैल 2009

स्तुति: माँ नर्मदे! -चित्रभूषण श्रीवास्तव 'विदग्ध'

आ गया हूँ फ़िर तुम्हारे द्वार मैं माँ नर्मदे!
चाहिए मुझको तुम्हारा प्यार हे माँ नर्मदे!॥

जन्म-मर तट पर तुम्हारे ज्ञान-गुण सन्नद्ध हो।
धर्म ही अनिवार्यता से विवश हित आबद्ध हो।
प्रगतिशाली दृष्टि से भावी सफलता के लिए-
प्रेरणा ली नित तुम्हारी धार से माँ नर्मदे!॥

दूर-दूर गया सदा निज धर्म की अनुरक्ति से।
पा सदा कुछ स्वर्ण-धन सत्संग श्रम सद्भक्ति से।
कुछ देश, कुछ परिवेश कुछ परिवार के सुख के लिए-
पा लोकसेवा का सहज आधार हे माँ नर्मदे!॥

है सदा गति में मेरी कर्तव्यबोधी भावना।
इसी से कर सदा नित श्रम समय की आराधना।
कुछ सुखद संयोग संबल नेह बल विश्वास भी-
मिल सका अब तक सदा साभार हे माँ नर्मदे!॥

शान्ति-सुख की कामना ले, आ गया फ़िर मैं यहाँ।
साधना का यह पुरातन क्षेत्र है पवन महा।
दीजिये आशीष हो साहित्य सेवा के लिए-
रस-भावना अभिव्यक्ति पर अधिकार हे माँ नर्मदे!॥

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गुरुवार, 9 अप्रैल 2009

नर्मदा स्तवन

नमन नर्मदा

- संजीव 'सलिल'

नित्य निनादित नर्मदा, नवल निरंतर नृत्य।

सत-शिव-सुन्दर 'सलिल' सम, सत-चित-आनंद सत्य।

अमला, विमला, निर्मला, प्रबला, धवला धार।

कला, कलाधर, चंचला, नवला, फला निहार।

अमरकांटकी मेकला, मंदाकिनी ललाम।

कृष्णा, यमुना, मेखला, चपला, पला सकाम।

जटाशांकरी, शाम्भवी, स्वेदा, शिवा, शिवोम्।

नत मस्तक सौंदर्य लख, विधि-हरि-हर, दिक्-व्योम।

चिरकन्या-जगजननि हे!, सुखदा, वरदा रूप।

'सलिल'साधना सफलकर, हे शिवप्रिया अनूप।

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बुधवार, 8 अप्रैल 2009

स्तवन : माँ शारदा अवनीश तिवारी

नारद के काव्य में,

मोहन की बंसी में,

नटराज के नृत्य में

सर्वत्र माँ शारदा

सुर और ताल में ,

गुण और गान में ,

वेद और पुराण में ,

सर्वत्र माँ शारदा

मस्तिष्क की संवेदना में ,

मन की वेदना में,

ह्रदय की भावना में

सर्वत्र माँ शारदा

मेरी मुक्त स्मृतियों में ,

ऋचा और कृतियों में ,

एकांत की अनुभूतियों में ,

सर्वत्र माँ शारदा
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