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सोमवार, 20 अक्टूबर 2025

अक्टूबर २०, करवा चौथ, सोरठे, महावीर छंद, उत्प्रेक्षा अलंकार, लघुकथा, दिवाली

सलिल सृजन अक्टूबर २०
*
अनुष्ठान:
लक्ष्मी मंत्र : क्यों और कैसे?
सहस्त्रों वर्ष पूर्व रचित भागवत पुराण के अनुसार कलियुग में एक अच्छा कुल (परिवार) वही कहलाएगा, जिसके पास सबसे अधिक धन होगा। आजकल धन जीवन की आवश्यकता पूर्ति का साधन मात्र नहीं, समाज में सम्मान पाने आधार है। जीवन में सफलता के दो आधार भाग्य और पौरुष हैं। तुलसी 'हुईहै सोहि जो राम रचि राखा / को करि तरक बढ़ावै साखा' के साथ 'कर्म प्रधान बिस्व करि राखा / जो जस करहि सो तस फल चाखा' कहकर इस द्वैत को व्यक्त करते हैं। शास्त्रों में 'उद्यमेन हि सिद्धन्ति कार्याणि न मनोरथैः / नहिं सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशंति मुख्य मृगा:' कहकर कर्म का महत्त्व दर्शाया गया है। गीता भी 'कर्मण्येवाधिकारस्ते माँ फलेषु कदाचन' अर्थात 'कर्म मात्र अधिकार तुम्हारा, क्या फल होगा सोच न कऱ निष्काम कर्म हेतु प्रेरित करती है।
यह भी देखा जाता है कि भाग्य में धन लिखा है तो किसी न किसी प्रकार मिल जाता है, भाग्य में न हो तो सकल सावधानी के बाद भी सब वैभव नष्ट हो जाता है। सत्य नारायण की कथा के अनुसार अपने पूर्व जन्मों के कर्म का फल भी जीव को भोगना पड़ता है। ज्योतिष शास्त्र तथा धार्मिक कर्मकांड के अनुसार अनेक शास्त्रीय उपाय हैं जिन्हें करने से मनुष्य अपनी इच्छाओं को पूर्ण करने में सक्षम होता है। ये शास्त्रीय उपाय मंत्र जाप, दान-पुण्य आदि हैं। धनवान बनने हेतु जातक की राशि के अनुसार धन की देवी लक्ष्मी के मंत्र का जाप करने से जातक पर धन-वर्षा होकर जीवन से दरिद्रता दूर होती है और वह सुखी बनता है। लक्ष्मी का आशीर्वाद जीवन में धन और खुशहाली दोनों लाते हैं।
मेष राशि- मंगल ग्रह से प्रभावित मेष जातक में कम साधनों में गुजारा करने का गुण नहीं होता। ये हमेशा जीवन से अधिक की अपेक्षा रखते हैं। मेष जातक को धन हेतु ‘श्रीं’ मंत्र का जाप १०००८ बार करना चाहिए।
वृषभ राशि- परिवार व जीवन के प्रति संवेदनशील वृषभ जातक 'ॐ सर्व बढ़ा विनिर्मुक्तो धन-धान्यसुतान्वित:। मनुष्योमत्प्रसादेन भविष्यति न संशय:।।' मंत्र की एक माला नित्य जपें।
मिथुन राशि- दोहरे व्यक्तित्ववाले मिथुन जातक अपनी धुन के पक्के तथा कार्य के प्रति समर्पित होते हैं। इन्हें 'ॐ श्रीं श्रींये नम:' मंत्र की एक माला नित्य जपनी चाहिए ।
कर्क राशि- परिवार की हर आवश्यकतापूर्ति को अपनी जिम्मेदारी समझनेवाले कर्क जातक 'ॐ श्री महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णु पत्न्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् ॐ॥' मंत्र की एक माला नित्य जपें।
सिंह राशि- सम्मान, यश व धन के प्रति बेहद आकर्षित रहनेवाले सिंह जातक 'ॐ श्रीं महालक्ष्म्यै नम:' मंत्र की एक माला नित्य जपें।
कन्या राशि- समझदार और सभी लोगों को साथ लेकर चलने वाले कन्या जातकों की जीवन के प्रति सोच सरल किन्तु शेष से भिन्न होती है। ये 'ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं महालक्ष्मी नम:' मंत्र की एक माला नित्य प्रात: जपें।
तुला राशि- समझदार और सुलझे तुला जातक' ॐ श्रीं श्रीय नम:' मंत्र की एक या अधिक माला नित्य जपें।
वृश्चिक राशि- जीवनारंभ में परेशानियाँ झेल, २८ वर्ष के होने तक संपन्न होनेवाले वृश्चिक जातक अधिक उन्नति हेतु 'ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्मीभयो नम:' मन्त्र की एक माला नित्य जपें।
मकर राशि- मेहनती-समझदार मकर जातक जल्दबाजी न कर, हर काम सोच-विचार कर करते हैं। ये ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौं ॐ ह्रीं क्लीं ह्रीं श्रीं ह्रीं क्लीं ह्रीं ॐ सौं ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं ॐ॥' मंत्र की एक माला नित्य जपें।
कुंभ राशि- कुम्भ राशि स्वामी शनि कर्मानुसार फल देने वाला ग्रह है। कुम्भ जातक कर्मानुसार शुभाशुभ फल शीघ्र पाते हैं। इन्हें 'ऐं ह्रीं श्रीं अष्टलक्ष्यम्ये ह्रीं सिद्धये मम गृहे आगच्छागच्छ नमः स्वाहा।' मंत्र की एक माला जाप नित्य जपना चाहिए।
मीन राशि- राशि स्वामी देवगुरु बृहस्पतिधन-धान्य प्रदाता हैं। मीन जातक को ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्म्यै नम:' मंत्र की दो माला नित्य जपने से फल की प्राप्ति होगी।
***
II श्री महालक्ष्यमष्टक स्तोत्र II

नमस्तेस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते I
शंख चक्र गदा हस्ते महालक्ष्मी नमोsस्तुते II१II

सुरपूजित श्रीपीठ विराजित, नमन महामाया शत-शत.
शंख चक्र कर-गदा सुशोभित, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

नमस्ते गरुड़ारूढ़े कोलासुर भयंकरी I
सर्व पापहरे देवी महालक्ष्मी नमोsस्तुते II२II

कोलाsसुरमर्दिनी भवानी, गरुड़ासीना नम्र नमन.
सरे पाप-ताप की हर्ता, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्ट भयंकरी I
सर्व दु:ख हरे देवी महालक्ष्मी नमोsस्तुते II३II

सर्वज्ञा वरदायिनी मैया, अरि-दुष्टों को भयकारी.
सब दुःखहरनेवाली, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

सिद्धि-बुद्धिप्रदे देवी भुक्ति-मुक्ति प्रदायनी I
मन्त्रमूर्ते सदा देवी महालक्ष्मी नमोsस्तुते II४II

भुक्ति-मुक्तिदात्री माँ कमला, सिद्धि-बुद्धिदात्री मैया.
सदा मन्त्र में मूर्तित हो माँ, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

आद्यांतर हिते देवी आदिशक्ति महेश्वरी I
योगजे योगसंभूते महालक्ष्मी नमोsस्तुते II५II

हे महेश्वरी! आदिशक्ति हे!, अंतर्मन में बसो सदा.
योग्जनित संभूत योग से, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

स्थूल-सूक्ष्म महारौद्रे महाशक्ति महोsदरे I
महापापहरे देवी महालक्ष्मी नमोsस्तुते II६II

महाशक्ति हे! महोदरा हे!, महारुद्रा सूक्ष्म-स्थूल.
महापापहारी श्री देवी, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

पद्मासनस्थिते देवी परब्रम्ह स्वरूपिणी I
परमेशीजगन्मातर्महालक्ष्मी नमोsस्तुते II७II

कमलासन पर सदा सुशोभित, परमब्रम्ह का रूप शुभे.
जगज्जननि परमेशी माता, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

श्वेताम्बरधरे देवी नानालंकारभूषिते I
जगत्स्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मी नमोsस्तुते II८II

दिव्य विविध आभूषणभूषित, श्वेतवसनधारे मैया.
जग में स्थित हे जगमाता!, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

महा लक्ष्यमष्टकस्तोत्रं य: पठेद्भक्तिमान्नर: I
सर्वसिद्धिमवाप्नोति राज्यंप्राप्नोति सर्वदा II९II

जो नर पढ़ते भक्ति-भाव से, महालक्ष्मी का स्तोत्र.
पाते सुख धन राज्य सिद्धियाँ, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

एककालं पठेन्नित्यं महापाप विनाशनं I
द्विकालं य: पठेन्नित्यं धन-धान्यसमन्वित: II१०II

एक समय जो पाठ करें नित, उनके मिटते पाप सकल.
पढ़ें दो समय मिले धान्य-धन, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

त्रिकालं य: पठेन्नित्यं महाशत्रु विनाशनं I
महालक्ष्मीर्भवैन्नित्यं प्रसन्नावरदाशुभा II११II

तीन समय नित अष्टक पढ़िये, महाशत्रुओं का हो नाश.
हो प्रसन्न वर देती मैया, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

II तद्रिन्कृत: श्री महालक्ष्यमष्टकस्तोत्रं संपूर्णं II

तद्रिंरचित, सलिल-अनुवादित, महालक्ष्मी अष्टक पूर्ण.
नित पढ़ श्री समृद्धि यश सुख लें, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

*******************************************
बाल गीत:
अहा! दिवाली आ गयी
आओ! साफ़-सफाई करें
मेहनत से हम नहीं डरें
करना शेष लिपाई यहाँ
वहाँ पुताई आज करें
हर घर खूब सजा गयी
अहा! दिवाली आ गयी
कचरा मत फेंको बाहर
कचराघर डालो जाकर
सड़क-गली सब साफ़ रहे
खुश हों लछमी जी आकर
श्री गणेश-मन भा गयी
अहा! दिवाली आ गयी
स्नान-ध्यान कर, मिले प्रसाद
पंचामृत का भाता स्वाद
दिया जला उजियारा कर
फोड़ फटाके हो आल्हाद
शुभ आशीष दिला गयी
अहा! दिवाली आ गयी
*
सॉनेट
दीपांजलि
*
दीपांजलि सत्कार है,
वसुधा प्रमुदित हो कहे,
रश्मि-दीप अनगिन दहे,
दिनकर का आभार है।


किरण किए शृंगार है,
पवन मिलन यादें तहे,
नहीं किसी से कुछ कहे,
ऊषा पर बलिहार है।


प्रकृति प्रणय पटकथा रच,
मौन; मंद मुस्का रही,
मानव कर नित नव सृजन।


है आत्मा की प्रीत सच,
परमात्मा यश गा रही,
चाहे हो पल-पल मिलन।


मुक्तक:
सत्य-शिव-सुंदर अनुसंधान है दीपावली
सत-चित-आनंद का अनुगान है दीपावली
प्रकृति-पर्यावरण के अनुकूल जीवन हो 'सलिल'
मनुजता को समर्पित विज्ञान है दीपावली
धर्म राष्ट्र विश्व पर अभिमान है दीपावली
प्रार्थना प्रेयर सबद अजान है दीपावली
धर्म का है मर्म निरासक्त कर्म ही सलिल
निष्काम निष्ठा-लगन का सम्मान है दीपावली
पुरुषार्थ को परमार्थ की पहचान है दीपावली
नयन में पलता हसीं अरमान है दीपावली
आन-बान-शान से जीवन जियें हँसकर 'सलिल'
असत पर शुभ सत्य का जयगान है दीपावली
निस्वार्थ सेवा का सतत अभियान है दीपावली
तृषित अधरों की मधुर मुस्कान है दीपावली
सृजित कर कंकर से शंकर जो अचीन्हें रह गए
काय-स्थित ईश्वर कायस्थ है दीपावली
सर्व सुख लिये निज बलिदान है दीपावली
आस्था विश्वास निष्ठा मान है दीपावली
तूफ़ान-तम को जीतता जो 'सलिल' दृढ़ संकल्प से
उसी नन्हें दीप का जयगान है दीपावली
***

२०.१०.२०२५  
***
करवा चौथी सोरठे
चाँद रही है खोज, चंद्रमुखी जा चाँद पर।
करे किस तरह भोज, नहीं गगन में दिखा रहा।।
*
कहे देख लो चाँद, जीवन साथी सिर झुका।
पग-तल नीचे चाँद, चमक गँवा लज्जित हुआ।।
*
तोड़े धरती देख, नई रीत पति व्रत रखे।
तज सिंदूरी रेख, पत्नी जी आशीष दें।।
*
विक्रमनी हैरान, विक्रम उतरा चाँद पर।
मन मसोस मायूस, मिल न सकें नभ फाँद कर।।
*
प्रज्ञानिन हैरान, करवा कैसे बनाए?
बिन पानी प्रज्ञान, व्रत कैसे तुड़वाएगा??
२०.२०.२०२४
***
एक दोहा
पैर जमा ले धरा पर, तब छूना आकाश
मत पतंग; पीपल बनो, खुद को खुदी तराश
२०.१०.२०२१
***
हिन्दी के नए छंद- १४
महावीर छंद
हिंदी के नए छंदों की श्रुंखला में अब तक आपने पढ़े पाँच मात्रिक भवानी, राजीव, साधना, हिमालय, आचमन, ककहरा, तुहिणकण, अभियान, नर्मदा, सतपुडा छंद। अब प्रस्तुत है षड्मात्रिक छंद महावीर
विधान-
१. प्रति पंक्ति ६ मात्रा।
२. प्रति पंक्ति मात्रा क्रम लघु गुरु गुरु लघु।
गीत
.
नमस्कार!
निराकार!!
.
रचें छंद
निरंकार।
भरें भाव
अलंकार।
मिटे तुरत
अहंकार।
रहें देव
इसी द्वार।
नमस्कार!
निराकार!!
.
भरें बाँह
हरें दाह।
करें पूर्ण
सभी चाह।
गहें थाह
मिले वाह।
लगातार
करें प्यार
नमस्कार!
निराकार!!
२०-१०-२०१७
***
मुक्तक
आपने चाहा जिसे वह गीत चाहत के लिखेगा
नहीं चाहा जिसे कैसे वह मिलन-अमृत चखेगा?
राह रपटीली बहुत है चाह की, पग सम्हल धरना
जान लेकर हथेली पर जो चले, आगे दिखेगा
२०-१०-२०१६
***
अलंकार सलिला :
उत्प्रेक्षा अलंकार
*
जब होते दो वस्तु में, एक सदृश गुण-धर्म
एक लगे दूजी सदृश, उत्प्रेक्षा का मर्म
इसमें उसकी कल्पना, उत्प्रेक्षा का मूल.
जनु मनु बहुधा जानिए, है पहचान, न भूल..
जो है उसमें- जो नहीं, वह संभावित देख.
जानो-मानो से करे, उत्प्रेक्षा उल्लेख..
जब दो वस्तुओं में किसी समान धर्म(गुण) होने के कारण एक में दूसरे के होने की सम्भावना की जाए तब वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है. सम्भावना व्यक्त करने के लिये किसी वाचक शब्द यथा मानो, मनो, मनु, मनहुँ, जानो, जनु, जैसा, सा, सम आदि का उपयोग किया जाता है.
उत्प्रेक्षा का अर्थ कल्पना या सम्भावना है. जब दो वस्तुओं में भिन्नता रहते हुए भी उपमेय में उपमान की कल्पना की जाये या उपमेय के उपमान के सदृश्य होने की सम्भावना व्यक्त की जाये तो उत्प्रेक्षा अलंकार होता है. कल्पना या सम्भावना की अभिव्यक्ति हेतु जनु, जानो, मनु, मनहु, मानहु, मानो, जिमी, जैसे, इव, आदि कल्पनासूचक शब्दों का प्रयोग होता है..
उदाहरण:
१. चारू कपोल, लोल लोचन, गोरोचन तिलक दिए.
लट लटकनि मनु मत्त मधुप-गन मादक मधुहिं पिए..
यहाँ श्रीकृष्ण के मुख पर झूलती हुई लटों (प्रस्तुत) में मत्त मधुप (अप्रस्तुत) की कल्पना (संभावना) किये जाने के कारण उत्प्रेक्षा अलंकार है.
२. फूले कांस सकल महि छाई.
जनु वर्षा कृत प्रकट बुढाई..
यहाँ फूले हुए कांस (उपमेय) में वर्षा के श्वेत्केश (उपमान) की सम्भावना की गयी है.
३. फूले हैं कुमुद, फूली मालती सघन वन.
फूली रहे तारे मानो मोती अनगन हैं..
४. मानहु जगत क्षीर-सागर मगन है..
५. झुके कूल सों जल परसन हित मनहुँ सुहाए.
६. मनु आतप बारन तीर कों, सिमिटि सबै छाये रहत.
७. मनु दृग धारि अनेक जमुन निरखत ब्रज शोभा.
८. तमकि धरहिं धनु मूढ़ नृप, उठे न चलहिं लजाइ.
मनहुँ पाइ भट बाहुबल, अधिक-अधिक गुरुवाइ..
९. लखियत राधा बदन मनु विमल सरद राकेस.
१०. कहती हुए उत्तरा के नेत्र जल से भर गए.
हिम के कणों से पूर्ण मानो हो गए पंकज नए..
११. उस काल मारे क्रोध के तनु काँपने लगा.
मानो हवा के जोर से सोता हुआ सागर जगा..
१२. तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाये.
झुके कूल सों जल परसन हित मनहु सुहाए..
१३. नित्य नहाता है चन्द्र क्षीर-सागर में.
सुन्दरि! मानो तुम्हारे मुख की समता के लिए.
१४. भूमि जीव संकुल रहे, गए सरद ऋतु पाइ.
सद्गुरु मिले जाहि जिमि, संसय-भ्रम समुदाइ..
१५. रिश्ता दुनियाँ में जैसे व्यापार हो गया।
बीते कल का ये मानो अखबार हो गया।। -श्यामल सुमन
१६. नाना रंगी जलद नभ में दीखते हैं अनूठे
योधा मानो विविध रंग के वस्त्र धारे हुए हैं
१७. अति कटु बचन कहति कैकेई, मानहु लोन जरे पर देई
१८. दूरदर्शनी बहस ज्यों बच्चे करते शोर
'सलिल' न दें परिणाम ज्यों, बंजर भूमि कठोर
***
लघुकथा:
जले पर नमक
*
- 'यार! ऐसे कैसे जेब कट गयी? सम्हलकर चला करो.'
= 'कहते तो ठीक हो किन्तु कितना भी सम्हलकर चलो, कलाकार हाथ की सफाई दिखा ही देता है.'
- 'ऐसा कहकर तुम अपनी असावधानी पर पर्दा नहीं डाल सकते।'
= 'पर्दा कौन कम्बख्त डाल रहा है? जेबकतरे तो पूरी जनता जनार्दन की जेब काट रहे हैं पिछले ६७ सालों से कौन रोक पाया और कौन बच पाया?'
- 'तुम किस की बात कर रहे हो ?'
=' उन्हें की जो चुनाव की चौपड़ पर आश्वासन के पांसे फेंककर जनमत की द्रौपदी का दिल्ली के दरबार में दिन दहाड़े चीरहरण ही नहीं करते, प्यादों को शह देकर दाल, प्याज जैसी चीजों की जमाखोरी कर कई गुना ऊँचे दामों पर बिकवाकर जन गण की जेब कतरते रहते हैं. इतना ही नहीं दु:शासनी जनविरोधी नीतियों के पक्ष में दूरदर्शन पर गरज-गरज कर जन के जले मन पर नमक भी छिड़कते हैं.'
-'तुमसे तो कुछ कहना ही बेकार है .....'
***
लघुकथाः
मुखड़ा देख ले
*
कक्ष का द्वार खोलते ही चोंक पड़े संपादक जी| गाँधी जी के चित्र के ठीक नीचे विराजमान तीनों बंदर दो थिगड़े लपेटे कमर मटकाती बंदरिया को ताकते हुए मुस्कुरा रहे थे|
आँखें फाड़कर घूरते हुए पहले बंदर के गले में लटकी पट्टी पर लिखा था- 'बुरा ही देखो'|
हाथ में माइक पकड़े दिगज नेता की तरह मुँह फाड़े दूसरे बंदर का कंठहार बनी पट्टी पर अंकित था- 'बुरा ही बोलो'|
'बुरा ही सुनो' की पट्टी दीवार से कान सटाये तीसरे बंदर के गले की शोभा बढ़ा रही थी|
'अरे! क्या हो गया तुम तीनों को?' गले की पट्टियाँ बदलकर मुट्ठी में नोट थामकर मेज के नीचे हाथ क्यों छिपाये हो? संपादक जी ने डपटते हुए पूछा|
'हमने हर दिन आपसे कुछ न कुछ सीखा है| आज प्रैक्टिकल कर रहे हैं कोई कमी रह गयी हो तो बतायें|'
ठगे से खड़े संपादक जी के कानों में गूँज रहा था- 'मुखड़ा देख ले प्राणी जरा दर्पण में ...'
२०-१०-२०१५
***

सोमवार, 13 अक्टूबर 2025

अक्टूबर १२, बुंदेली, मुक्तिका, सोरठे, चंद्र विजय, जिकड़ी, लँगड़ी, लघुकथा, नर्मदा नामावली,

 सलिल सृजन अक्टूबर १२

मुक्तक
बड़े भक्त हैं, बना रहे हैं देवों को भी दैत्य समान।
देख सहम जाए बच्चा मन, है सम्मान या कि अपमान।।
नहीं स्मरण रहा इन्हें क्या, कंकर-कंकर में शंकर-
वेद-पुराण युगों से कहते, कण-कण में रहते भगवान।।
ग्रंथ बताते जला विभीषण ने रावण को दिया
राम-बाण से जलवाते क्यों प्रथा रची मिथ्या
रावण वध की तिथि न दशहरा, लीला करती भ्रांत-
मर्यादा कर भंग न कंपित होता क्यों कर हिया?
हिंदी दिवस मनाने का अंग्रेजी में आदेश
तंत्र कर दमन जन गण-मन का देता क्या संदेश?
या तो अंग्रेजी बोले या हिंदी संस्कृत घोल-
सरल-सहज बोली से पाले क्यों यह पाले बैर हमेश?
१२.१०.२०२५
०००
मुक्तिका (बुंदेली)
*
कर धरती बर्बाद चाँद पै जा रओ है
चंदा डर सें पीरो, जे बर्रा रओ है
एक दूसरे की छाती पै फेंकें बम्म
लोग मरें, नेता-अफसर गर्रा रओ है
करे अमंगल धरती को मंगल जा रओ
नव ग्रह जालम आदम सें थर्रा रओ है
छुरा पीठ में भोंखें; गले मिलें जबरन
गिरगिट हेरे; हैरां हो सरमा रओ है
मैया कह रओ लूट-लूट खें धरती खों
चंदा मम्मा लूटन खों हुर्रा रओ है
***
सोरठे
चंद्रमुखी जी रूठ, जा बैठी हैं चाँद पर।
कहा न मैंने झूठ, तुम चंदा सी लग रहीं।।
चाँद
झुकें दिखा दें चाँद, निकला है नभ पर नहीं।
तोड़ूँ व्रत निष्पाप, कहे चाँदनी चाँद से।।
प्रज्ञानिन जा चाँद, अर्ध्य धरा को दे रही।
भागा कक्षा फाँद, विक्रम को आई हँसी।।
रोवर पढ़ता पाठ, कक्षा में कक्षा लगी।
लैंडर का है ठाठ, गोल मारकर घूमता।
१२-१०-२०२३
मुक्तिका
गम के बादल अंबर पर छाते जब भी
प्रियदर्शी को देख हवा हो जाते हैं
हुए गमजदा गम तो पाने छुटकारा
आँखों से झर मन का ताप मिटाते हैं
रखो हौसला होता है जब तिमिर घना
तब ही दिनकर-उषा सवेरा लाते हैं
तूफानों से नीड़ उजड़ जाए चाहे
पंछी आकर सरस प्रभाती गाते हैं
दिया शारदा ने वर गीतों का अनुपम
गम हरने वे मन-कुंडी खटकाते हैं
अमरकंटकी विष पीने की परंपरा
शब्दामृत पी विष को अमिय बनाते हैं
बे-गम हुई जिंदगी तो क्या जीतें हम
गम आ मिल मिट हमको जयी बनाते हैं
अंबर का विस्तार नहीं गम नाप सके
बारिश बन बह, भू को हरा बनाते हैं
१२-१०-२०१९
***
अभिनव प्रयोग:
प्रस्तुत है पहली बार खड़ी हिंदी में बृजांचल का लोक काव्य भजन जिकड़ी
जय हिंद लगा जयकारा
(इस छंद का रचना विधान बताइए)
*
भारत माँ की ध्वजा, तिरंगी कर ले तानी।
ब्रिटिश राज झुक गया, नियति अपनी पहचानी।। ​​​​​​​​​​​​​​
​अधरों पर मुस्कान।
गाँधी बैठे दूर पोंछते, जनता के आँसू हर प्रात।
गायब वीर सुभाष हो गए, कोई न माने नहीं रहे।।
जय हिंद लगा जयकारा।।
रास बिहारी; चरण भगवती; अमर रहें दुर्गा भाभी।
बिन आजाद न पूर्ण लग रही, थी जनता को आज़ादी।।
नहरू, राजिंदर, पटेल को, जनगण हुआ सहारा
जय हिंद लगा जयकारा।।
हुआ विभाजन मातृभूमि का।
मार-काट होती थी भारी, लूट-पाट को कौन गिने।
पंजाबी, सिंधी, बंगाली, मर-मिट सपने नए बुने।।
संविधान ने नव आशा दी, सूरज नया निहारा।
जय हिंद लगा जयकारा।।
बनी योजना पाँच साल की।
हुई हिंद की भाषा हिंदी, बाँध बन रहे थे भारी।
उद्योगों की फसल उग रही, पञ्चशील की तैयारी।।
पाकी-चीनी छुरा पीठ में, भोंकें; सोचें: मारा।
जय हिंद लगा जयकारा।।
पल-पल जगती रहती सेना।
बना बांग्ला देश, कारगिल, कहता शौर्य-कहानी।
है न शेष बासठ का भारत, उलझ न कर नादानी।।
शशि-मंगल जा पहुँचा इसरो, गर्वित हिंद हमारा।।
जय हिंद लगा जयकारा।।
सर्व धर्म समभाव न भूले।
जग-कुटुंब हमने माना पर, हर आतंकी मारेंगे।
जयचंदों की खैर न होगी, गाड़-गाड़कर तारेंगे।।
आर्यावर्त बने फिर भारत, 'सलिल' मंत्र उच्चारा।।
जय हिंद लगा जयकारा।।
६.७.२०१८
***
बाल गीत:
लँगड़ी खेलें.....
*
आओ! हम मिल
लँगड़ी खेलें.....
*
एक पैर लें
जमा जमीं पर।
रखें दूसरा
थोडा ऊपर।
बना संतुलन
निज शरीर का-
आउट कर दें
तुमको छूकर।
एक दिशा में
तुम्हें धकेलें।
आओ! हम मिल
लँगड़ी खेलें.....
*
आगे जो भी
दौड़ लगाये।
कोशिश यही
हाथ वह आये।
बचकर दूर न
जाने पाए-
चाहे कितना
भी भरमाये।
हम भी चुप रह
करें झमेले।
आओ! हम मिल
लँगड़ी खेलें.....
*
हा-हा-हैया,
ता-ता-थैया।
छू राधा को
किशन कन्हैया।
गिरें धूल में,
रो-उठ-हँसकर,
भूलें- झींकेगी
फिर मैया।
हर पल 'सलिल'
ख़ुशी के मेले।
आओ! हम मिल
लँगड़ी खेलें.....
*************
मुक्तक:
शीत है तो प्रीत भी है.
हार है तो जीत भी है.
पुरातन पाखंड हैं तो-
सनातन शुभ रीत भी है
***
छंद में ही सवाल करते हो
छंद का क्यों बवाल करते हो?
है जगत दन्द-फन्द में उलझा
छंद देकर निहाल करते हो
१२-१०-२०१७
***
दोहा सलिला
*
हर सिक्के में हैं सलिल, चित-पट दोनों साथ
बिना पैर के मंज़िलें, कैसे पाए हाथ
*
पुत्र जन्म हित कर दिया, पुत्री को ही दान
फिर कैसे हम कह रहे?, है रघुवंश महान?
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सत्ता के टकराव से, जुड़ा धर्म का नाम
गलत न पूरा दशानन, सही न पूरे राम
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मार रहे जो दशानन , खुद करते अपराध
सीता को वन भेजते, सत्ता के हित साध
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कैसी मर्यादा? कहें, कैसा यह आदर्श?
बेबस को वन भेजकर, चाहा निज उत्कर्ष
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मार दिया शम्बूक को, अगर पढ़ लिया वेद
कैसा है दैवत्व यह, नहीं गलत का खेद
१२-१०-२०१६
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लघुकथा
स्वजन तन्त्र
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राजनीति विज्ञान के शिक्षक ने जनतंत्र की परिभाषा तथा विशेषताएँ बताने के बाद भारत को विश्व का सबसे बड़ा जनतंत्र बताया तो एक छात्र से रहा नहीं गया। उसने अपनी असहमति दर्ज करते हुए कहा- ' गुरु जी! भारत में जनतंत्र नहीं स्वजन तंत्र है।
"किताब में ऐसे किसी तंत्र का नाम नहीं है" - गुरु जी बोले।
"कैसे होगा? यह हमारी अपनी खोज है और भारत में की गयी खोज को किताबों में इतनी जल्दी जगह मिल ही नहीं सकती। यह हमारे शिक्षा के पाठ्य क्रम में भी नहीं है लेकिन हमारी ज़िन्दगी के पाठ्य क्रम का पहला अध्याय यही है जिसे पढ़े बिना आगे का कोई पाठ नहीं पढ़ा जा सकता।" छात्र ने कहा।
"यह स्वजन तंत्र होता क्या है? यह तो बताओ" - सहपाठियों ने पूछा।
"स्वजन तंत्र ऐसा तंत्र है जहाँ चंद चमचे इकट्ठे होकर कुर्सी पर लदे नेता के हर सही-ग़लत फैसले को ठीक बताने के साथ-साथ उसके वंशजों को कुर्सी का वारिस बताने और बनाने की होड़ में जी-जान लगा देते हैं। जहाँ नेता अपने चमचों को वफादारी का ईनाम और सुख-सुविधा देने के लिए विशेष प्राधिकरणों का गठन कर भारी धन राशि, कार्यालय, वाहन आदि उपलब्ध कराते हैं जिनका वेतन, भत्ता, स्थापना व्यय तथा भ्रष्टाचार का बोझ झेलने के लिये आम आदमी को कानून की आड़ में मजबूर कर दिया जाता है। इन प्राधिकरणों में मनोनीत किये गये चमचों को आम आदमी के दुःख-दर्द से कोई सरोकार नहीं होता पर वे जन प्रतिनिधि कहलाते हैं। वे हर काम का ऊँचे से ऊँचा दाम वसूलना अपना हक मानते हैं और प्रशासनिक अधिकारी उन्हें यह सब कराने के उपाय बताते हैं।"
"लेकिन यह तो बहुत बड़ी परिभाषा है, याद कैसे रहेगी?" छात्र नेता के चमचे ने परेशानी बताई।
"चिंता मत कर। सिर्फ़ इतना याद रख जहाँ नेता अपने स्वजनों और स्वजन अपने नेता का हित साधन उचित-अनुचित का विचार किए बिना करते हैं और जनमत, जनहित, देशहित जैसी की परवाह नहीं करते वही स्वजन तंत्र है लेकिन किताबों में इसे जनतंत्र लिखकर आम आदमी को ठगा जाता है ताकि वह बदलाव की माँग न करे।"
गुरु जी अवाक् होकर राजनीति के व्यावहारिक स्वरूप का ज्ञान पाकर धन्य हो रहे थे।
१२-१०-२०१५
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नर्मदा नामावली
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पुण्यतोया सदानीरा नर्मदा.
शैलजा गिरिजा अनिंद्या वर्मदा.
शैलपुत्री सोमतनया निर्मला.
अमरकंटी शांकरी शुभ शर्मदा.
आदिकन्या चिरकुमारी पावनी.
जलधिगामिनी चित्रकूटा पद्मजा.
विमलहृदया क्षमादात्री कौतुकी.
कमलनयनी जगज्जननि हर्म्यदा.
शाशिसुता रौद्रा विनोदिनी नीरजा.
मक्रवाहिनी ह्लादिनी सौंदर्यदा.
शारदा वरदा सुफलदा अन्नदा.
नेत्रवर्धिनि पापहारिणी धर्मदा.
सिन्धु सीता गौतमी सोमात्मजा.
रूपदा सौदामिनी सुख-सौख्यदा.
शिखरिणी नेत्रा तरंगिणी मेखला.
नीलवासिनी दिव्यरूपा कर्मदा.
बालुकावाहिनी दशार्णा रंजना.
विपाशा मन्दाकिनी चित्रोंत्पला.
रुद्रदेहा अनुसूया पय-अंबुजा.
सप्तगंगा समीरा जय-विजयदा.
अमृता कलकल निनादिनी निर्भरा.
शाम्भवी सोमोद्भवा स्वेदोद्भवा.
चन्दना शिव-आत्मजा सागर-प्रिया.
वायुवाहिनी कामिनी आनंददा.
मुरदला मुरला त्रिकूटा अंजना.
नंदना नाम्माडिअस भव मुक्तिदा.
शैलकन्या शैलजायी सुरूपा.
विपथगा विदशा सुकन्या भूषिता.
गतिमयी क्षिप्रा शिवा मेकलसुता.
मतिमयी मन्मथजयी लावण्यदा.
रतिमयी उन्मादिनी वैराग्यदा.
यतिमयी भवत्यागिनी शिववीर्यदा.
दिव्यरूपा तारिणी भयहांरिणी.
महार्णवा कमला निशंका मोक्षदा.
अम्ब रेवा करभ कालिंदी शुभा.
कृपा तमसा शिवज सुरसा मर्मदा.
तारिणी वरदायिनी नीलोत्पला.
क्षमा यमुना मेकला यश-कीर्तिदा.
साधना संजीवनी सुख-शांतिदा.
सलिल-इष्ट माँ भवानी नरमदा.
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मुक्तिका
मुस्कान
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जिस चहरे पर हो मुस्कान १५
वह लगता मितवा रस-खान..
अधर हँसें तो लगता है- १४
हैं रस-लीन किशन भगवान..
आँखें हँसती तो दिखते -
उनमें छिपे राम गुणवान..
उमा, रमा, शारदा लगें
रस-निधि रही नहीं अनजान..
'सलिल' रस कलश जन जीवन
सुख देकर बन जा इंसान..
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लघु कथा
समय का फेर
गुरु जी शिष्य को पढ़ना-लिखना सिखाते परेशां हो गए तो खीझकर मारते हुए बोले- ' तेरी तकदीर में तालीम है ही नहीं तो क्या करुँ? तू मेरा और अपना दोनों का समय बरबाद कर रहा है. जा भाग जा, इतने समय में कुछ और सीखेगा तो कमा खाएगा.'
गुरु जी नाराज तो रोज ही होते थे लेकिन उस दिन चेले के मन को चोट लग गई. उसने विद्यालय आना बंद कर दिया.'
गुरु जी कुछ दिन दुखी रहे कि व्यर्थ ही नाराज हुए, न होते तो वह आता ही रहता और कुछ न कुछ सीखता भी. धीरे-धीरे गुरु जी वह घटना भूल गए.
कुछ साल बाद गुरूजी एक अवसर पर विद्यालय में पधारे मंत्री जी का स्वागत कर रहे थे. तभी अतिथि ने पूछा- 'आपने पहचाना मुझे?'
गुरु जी ने दिमाग पर जोर डाला तो चेहरा और घटना दोनों याद आ गईं किंतु कुछ न कहकर चुप ही रहे.
गुरु जी को चुप देखकर मंत्री जी बोले- 'आपने ठीक पहचाना. मैं वही हूँ. सच ही मेरे भाग्य में विद्या पाना नहीं है, आपने ठीक कहा था किंतु विद्या देनेवालों का भाग्य बनाना मेरे भाग्य में है यह तो आपने नहीं बताया था.'
गुरु जी अवाक् होकर देख रहे थे समय का फेर.
१२-१०-२०१४
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मुक्तक
मत कहो घर में महज मेहमान हैं ये बेटियाँ
मान-मर्यादा मृदुल मुस्कान हैं ये बेटियाँ
मोह, ममता, नाज़-नखरे, अदा भी, अंदाज़ भी-
मौन की आवाज़ हैं, अरमान हैं ये बेटियाँ
१२-१०-२०१३
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बालगीत
(लोस एंजिल्स अमेरिका से अपनी मम्मी रानी विशाल सहित ददिहाल-ननिहाल भारत आई नन्हीं अनुष्का के लिए २०१० में रचा गया था यह गीत)
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लो भारत में आई अनुष्का.
सबके दिल पर छाई अनुष्का.
यह परियों की शहजादी है.
खुशियाँ अनगिन लाई अनुष्का..
है नन्हीं, हौसले बड़े हैं.
कलियों सी मुस्काई अनुष्का..
दादा-दादी, नाना-नानी,
मामा के मन भाई अनुष्का..
सबसे मिल मम्मी क्यों रोती?
सोचे, समझ न पाई अनुष्का..
सात समंदर दूरी कितनी?
कर फैला मुस्काई अनुष्का..
जो मन भाए वही करेगी.
रोको, हुई रुलाई अनुष्का..
मम्मी दौड़ी, पकड़- चुपाऊँ.
हाथ न लेकिन आई अनुष्का..
ठेंगा दिखा दूर से हँस दी .
मन भरमा भरमाई अनुष्का..
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गीत:
सहज हो ले रे अरे मन !
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मत विगत को सच समझ रे.
फिर न आगत से उलझ रे.
झूमकर ले आज को जी-
स्वप्न सच करले सुलझ रे.
प्रश्न मत कर, कौन बूझे?
उत्तरों से कौन जूझे?
भुलाकर संदेह, कर-
विश्वास का नित आचमन.
सहज हो ले रे अरे मन !
*
उत्तरों का क्या करेगा?
अनुत्तर पथ तू वरेगा?
फूल-फलकर जब झुकेगा-
धरा से मिलने झरेगा.
बने मिटकर, मिटे बनकर.
तने झुककर, झुके तनकर.
तितलियाँ-कलियाँ हँसे,
ऋतुराज का हो आगमन.
सहज हो ले रे अरे मन !
*
स्वेद-सीकर से नहा ले.
सरलता सलिला बहा ले.
दिखावे के वसन मैले-
धो-सुखा, फैला-तहा ले.
जो पराया वही अपना.
सच दिखे जो वही सपना.
फेंक नपना जड़ जगत का-
चित करे सत आकलन.
सहज हो ले रे अरे मन !
*
सारिका-शुक श्वास-आसें.
देह पिंजरा घेर-फांसे.
गेह है यह नहीं तेरा-
नेह-नाते मधुर झाँसे.
भग्न मंदिर का पुजारी
आरती-पूजा बिसारी.
भारती के चरण धो, कर
निज नियति का आसवन.
सहज हो ले रे अरे मन !
*
कैक्टस सी मान्यताएँ.
शूल कलियों को चुभाएँ.
फूल भरते मौन आहें-
तितलियाँ नाचें-लुभाएँ.
चेतना तेरी न हुलसी.
क्यों न कर ले माल-तुलसी?
व्याल मस्तक पर तिलक है-
काल का है आ-गमन.
सहज हो ले रे अरे मन !
१२-१०-२०१०
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