कुल पेज दृश्य

arakshan लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
arakshan लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शनिवार, 15 जुलाई 2017

geet

एक रचना
*
कौन है सवर्ण यह बताइए?
*
यह कायथ है, वह बामन
यह ठकुरा है, वह बनिया
एक दूसरे के सर पर-
फोड़ रहे हम ही ठीकरा
मित्रता-बन्धुत्व कुछ दिखाइए
कौन है सवर्ण यह बताइए?
*
अवसरवादी हावी हैं
मिले न श्रम को चाबी है
आम आदमी मुश्किल में
जीवन आपाधापी है
कैसे हों सफल?, जरा सिखाइए
कौन है सवर्ण यह बताइए?
*
क्यों पूजा पाखंड बनी?
क्यों आपस में ठनाठनी?
इसे चाहिए आरक्षण
उसे न मिलता, पीर घनी
नीति क्यों समान न बनाइये?
कौन है सवर्ण यह बताइए?
*
राजनीति ने डाली फूट
शासक दल करता है लूट
करे विपक्षी दल नाटक
धन-बलशाली करते शूट
काम एक-दूसरे के आइये
कौन है सवर्ण यह बताइए?
*
क्यों जातीय संस्थाएँ
हों न सवर्णी अब जाएँ?
रोटी-बेटी के सम्बन्ध
बाँध सवर्णी जुड़ जाएँ.
भेद-भाव दूरियाँ मिटाइये
कौन है सवर्ण यह बताइए?
*****
-salil.sanjiv@gmail.com
#divyanarmada
#हिंदी_ब्लॉगर

रविवार, 19 जून 2016

navgeet

एक रचना
*
होरा भूँज रओ छाती पै
आरच्छन जमदूत
पैदा होतई बनत जा रए
बाप बाप खें, पूत
*
लोकनीति बनबास पा रई
राजनीति सिर बैठ
नाच नचाउत नित तिगनी का
घर-घर कर खें पैठ
नाम आधुनिकता को जप रओ
नंगेपन खों भूत
*
नींव बगैर मकान तान रए
भौत सयाने लोग
त्याग-परिस्रम खों तलाक दें
चाह भोग लें भोग
फूँक रए रे, मिली बिरासत
काबिल भए सपूत
*
ईंट-ईंट में खेंच दिवारें
तोड़ रए हर जोड़
लाज-लिहाज कबाड़ बता रए
बेसरमी हित होड़
राह बिसर कें राह दिखा रओ
सयानेपन खों भूत
***
२०-११-२०१५
चित्रकूट एक्सप्रेस,
उन्नाव-कानपूर

सोमवार, 29 फ़रवरी 2016

navgeet

नवगीत:
आरक्षण
*
जिनको खुद पर
नहीं भरोसा
आरक्षण की भीख माँगते।
*
धन-दौलत, जमीन पाकर भी
बने हुए हैं अधम भिखारी।
शासन सब कुछ छीने इनसे
तब समझेंगे ये लाचारी।
लात लगाकर इनको इनसे
करा सके पीड़ित बेगारी।
हो आरक्षण उनका
जो बेबस
मुट्ठी भर धूल फाँकते।
*
जिसने आग लगाई जी भर
बैैंक और दुकानें लूटीं।
धन-सम्पति का नाश किया
सब आस भाई-चारे की टूटी।
नारी का अपमान किया  
अब रोएँ, इनकी किस्मत फूटी।
कोई न देना बेटी,
हो निरवंशी
भटकें थूक-चाटते।
*
आस्तीन के साँप, देशद्रोही,
मक्कार, अमानव हैं ये।
जो अबला की इज्जत लूटें
बँधिया कर दो, दानव हैं ये।
इन्हें न कोई राखी बाँधे
नहीं बहन के लायक हैं ये।
न्यायालय दे दण्ड
न क्यों फाँसी पर
जुल्म-गुनाह टाँगते?
***

laghukatha

लघुकथा
स्वतंत्रता
*
जातीय आरक्षण आन्दोलन में आगजनी, गुंडागर्दी, दुराचार, वहशत की सीमा को पार करने के बाद नेताओं और पुलिस द्वारा घटनाओं को झुठलाना, उसी जाति के अधिकारियों का जाँच दल बनाना, खेतों में बिखरे अंतर्वस्त्रों को देखकर भी नकारना, बार-बार अनुरोध किये जाने पर भी पीड़ितों का सामने न आना, राजनैतिक दलों का बर्बाद हो चुके लोगों के प्रति कोई सहानुभूति तक न रखना क्या संकेत करता है?
यही कि हमने उगायी है अविश्वास की फसल चौपाल पर हो रही चर्चा सरपंच को देखते ही थम गयी, वक्ता गण देने लगे आरक्षण के पक्ष में तर्क, दबंग सरपंच के हाथ में बंदूक को देख चिथड़ों में खुद को ढाँकने का असफल प्रयास करती सिसकती रह गयी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ।
***

laghukatha

लघुकथा:
घर
*
दंगे, दुराचार, आगजनी, गुंडागर्दी के बाद सस्ती लोकप्रियता और खबरों में छाने के इरादे से बगुले जैसे सफेद वस्त्र पहने नेताजी जन संपर्क के लिये निकले। पीछे-पीछे चमचों का झुण्ड, बिके हुए कैमरे और मरी हुई आत्मा वाली खाखी वर्दी।
बर्बाद हो चुके एक परिवार की झोपड़ी पहुँचते ही छोटी सी बच्ची ने मुँह पर दरवाजा बंद करते हुए कहा 'आरक्षण की भीख चाहनेवालों के लिये यहाँ आना मना है। यह संसद नहीं, भारत के नागरिक का घर है।
***