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गुरुवार, 26 नवंबर 2020

काव्यांजलि

काव्यांजलि 
*
सलिल-धार लहरों में बिम्बित 'हर नर्मदे' ध्वनित राकेश
शीश झुकाते शब्द्ब्रम्ह आराधक सादर कह गीतेश
जहाँ रहें घन श्याम वहाँ रसवर्षण होता सदा अनूप
कमल कुसुम सज शब्द-शीश गुंजित करता है प्रणव अरूप
गौतम-राम अहिंसा-हिंसा भव में भरते आप महेश
मानोशी शार्दुला नीरजा किरण दीप्ति चारुत्व अशेष
ममता समता श्री प्रकाश पा मुदित सुरेन्द्र हुए अमिताभ
प्रतिभा को कर नमन हुई है कविता कविता अब अजिताभ
सीता राम सदा करते संतोष मंजु महिमा अद्भुत
व्योम पूर्णिमा शशि लेखे अनुराग सहित होकर विस्मित
ललित खलिश हृद पीर माधुरी राहुल मन परितृप्त करे
कान्त-कामिनी काव्य भामिनि भव-बाधा को सुप्त करे
*
२६-११-२०१४ 

गुरुवार, 14 मई 2015

kavyanjali: amarshahid kunwar sinh -sanjiv

काव्यांजलि:
अमर शहीद कुंवर सिंह
संजीव
*
भारत माता पराधीन लख,दुःख था जिनको भारी
वीर कुंवर सिंह नृपति कर रहे थे गुप-चुप तैयारी
अंग्रेजों को धूल चटायी जब-जब वे टकराये
जगदीशपुर की प्रजा धन्य थी परमवीर नृप पाये
समय न रहता कभी एक सा काले बादल छाये
अंग्रेजी सैनिक की गोली लगी घाव कई खाये
धार रक्त की बही न लेकिन वे पीड़ा से हारे
तुरत उठा करवाल हाथ को काट हँसे मतवारे
हाथ बहा गंगा मैया में 'सलिल' हो गया लाल
शुभाशीष दे मैया खद ही ज्यों हो गयी निहाल
वीर शिवा सम दुश्मन को वे जमकर रहे छकाते
छापामार युद्ध कर दुश्मन का दिल थे दहलाते
नहीं चिकित्सा हुई घाव की जमकर चढ़ा बुखार
भागमभाग कर रहे अनथक तनिक न हिम्मत हार
छब्बीस अप्रैल अट्ठारह सौ अट्ठावन दिन काला
महाकाल ने चुपके-चुपके अपना डेरा डाला
महावीर की अगवानी कर ले जाने यम आये
नील गगन से देवों ने बन बूंद पुष्प बरसाये
हाहाकार मचा जनता में दुश्मन हर्षाया था
अग्निदेव ने लीली काया पर मन भर आया था
लाल-लाल लपटें ज्वाला की कहती अमर रवानी
युग-युग पीढ़ी दर पीढ़ी दुहराकर अमर कहानी
सिमट जायेंगे निज सीमा में आंग्ल सैन्य दल भक्षक
देश विश्व का नायक होगा मानवता का रक्षक
शीश झुककर कुंवर सिंह की कीर्ति कथा गाएगी
भारत माता सुने-हँसेगी, आँखें भर आएँगी
***



शनिवार, 5 जनवरी 2013

कालजयी गीतकार नीरज ८९ वें जन्म दिन पर काव्यांजलि: संजीव 'सलिल'

कालजयी गीतकार नीरज
मूल नाम: गोपाल दास सक्सेना 
जन्म: 4 जनवरी 1924, ग्राम पुरावली , इटावा, उत्तर प्रदेश।
एम. ए. तक सभी परीक्षाओं में ससम्मान उत्तीर्ण। हिंदी प्राध्यापक।
हिंदी-उर्दू मिश्रित शैली में सुमधुर गीतों की रचना की।
कवि सम्मेलनों के सर्वाधिक लोकप्रिय गीतकार। 
कृतियाँ: 'दर्द दिया', 'प्राण गीत', 'आसावरी', 'बादर बरस गयो', 'दो गीत', 'नदी किनारे', 'नीरज की गीतिकाएँ', संघर्ष, विभावरी, नीरज की पाती, लहर पुकारे, मुक्तक, गीत भी अगीत भी, वंशीवट सूना है, नीरज की पाती, बादलों से सलाम लेता हूँ, गीत जो गाए नहीं, गीत-अगीत, नीरज दोहावली, कुछ दोहे नीरज के। पत्र संकलन : लिख लिख भेजूँ पाती।
आलोचना : पंत कला काव्य और दर्शन।
'भदन्त आनन्द कौसल्यामन' के शब्दों में उनमें हिन्दी का ''अश्वघोष'' बनने की क्षमता है। दिनकर जी के कथनानुसार वह हिन्दी की वीणा है' कुछ समालोचकों के विचार से वह 'सन्त कवि है', कुछ आलोचकों के मत से वह 'निराश मृत्युवादी है'।
कुलपति मंगलम विश्व विद्यालय अलीगढ।
राजकपूर, शैलेन्द्र, सचिन देव बर्मन, शंकर जयकिशन आदि के साथ चलचित्रों को श्रेष्ठ साहित्यिक तथा लोकप्रिय गीत दिए। 
1. धीरे से जाना खतियाँ में ओ खटमल - किशोर कुमार, छुपा रुस्तम।
2. दिल आज शायर है, किशोर कुमार, गैम्बलर। 
3. जीवन की बगिया महकेगी, किशोर कुमार-लता जी, तेरे मेरे सपने। 
4. मैंने कसम ली, किशोर कुमार-लता जी, तेरे मेरे सपने।
5. मेघ छाये आधी रात, लता जी, शर्मीली।
6. मेरा मन तेरा प्यासा, मो. रफी, गैम्बलर। 
7. ओ मेरी शर्मीली, किशोर कुमार, शर्मीली।
8. फूलों के रंग से, दिल की कलम से, किशोर कुमार, प्रेम पुजारी ।   
9. रंगीला रे, लता जी, प्रेम पुजारी ।  
10. शोखियों में घोल जाए, किशोर कुमार-लता जी, प्रेम पुजारी । 
11. राधा ने माला जपी श्याम की, लता जी, तेरे मेरे सपने।
12. कारवां गुज़र गया, मो. रफी, नयी उमर की नयी फसल।
13. सुबह न आयी शाम न आयी, मो. रफी, चा चा चा।  
14. वो हम न थे, वो तुम न थे, मो. रफी, चा चा चा। 
15. आज मदहोश हुआ जाए रे, किशोर कुमार-लता जी, शर्मीली।
16. खिलते हैं गुल यहाँ, किशोर कुमार-लता जी, शर्मीली।
17. एक मुसाफिर हूँ मैं, मनहर उधास, साधना सरगम, गुनाह।  
सम्मान: पद्मभूषण 2007.   
अमर रचना:
बसंत की रात

आज बसंत की रात,
गमन की बात न करना

धूप बिछाए फूल–बिछौना,
बग़िया पहने चांदी–सोना,
कलियां फेंके जादू–टोना,
महक उठे सब पात,
हवन की बात न करना
आज बसंत की रात,
गमन की बात न करना

बौराई अंबवा की डाली,
गदराई गेहूं की बाली,
सरसों खड़ी बजाए ताली,
झूम रहे जल–पात,
शयन की बात न करना
आज बसंत की रात,
गमन की बात न करना।

खिड़की खोल चंद्रमा झाँके,
चुनरी खींच सितारे टाँके,
मन करूं तो शोर मचाके,
कोयलिया अनखात,
गहन की बात न करना
आज बसंत की रात,
गमन की बात न करना।

निंदिया बैरिन सुधि बिसराई,
सेज निगोड़ी करे ढिठाई,
तान मारे सौत जुन्हाई,
रह–रह प्राण पिरात,
चुभन की बात न करना
आज बसंत की रात,
गमन की बात न करना।

यह पीली चूनर, यह चादर,
यह सुंदर छवि, यह रस–गागर,
जनम–मरण की यह रज–कांवर,
सब भू की सौग़ात,
गगन की बात न करना
आज बसंत की रात,
गमन की बात न करना।
*
दोहे वाणी के सौन्दर्य का शब्दरूप है काव्य
किसी व्यक्ति के लिए है कवि होना सौभाग्य।


जिसने सारस की तरह नभ में भरी उड़ान
उसको ही बस हो सका सही दिशा का ज्ञान।


जब तक पर्दा खुदी का कैसे हो दीदार
पहले खुद को मार फिर हो उसका दीदार।


जिसमें खुद भगवान ने खेले खेल विचित्र
माँ की गोदी से अधिक तीरथ कौन पवित्र।


कैंची लेकर हाथ में वाणी में विष घोल
पूछ रहे हैं फूल से वो सुगंध का मोल।


दिखे नहीं फिर भी रहे खुशबू जैसे साथ
उसी तरह परमात्मा संग रहे दिन रात।


मिटे राष्ट्र कोई नहीं हो कर के धनहीन
मिटता जिसका विश्व में गौरव होता क्षीण।


इंद्रधनुष के रंग-सा जग का रंग अनूप
बाहर से दीखे अलग भीतर एक स्वरूप।

*
89 वें जन्म दिन पर काव्यांजलि:
संजीव 'सलिल'




*
गीतों के सम्राट तुम्हारा अभिनन्दन,
रस अक्षत, लय रोली, छंदों का चन्दन...
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नवम दशक में कर प्रवेश मन-प्राण तरुण .
जग आलोकित करता शब्दित भाव अरुण..
कथ्य कलम के भूषण, बिम्ब सखा प्यारे.
गुप्त चित्त में अलंकार अनुपम न्यारे..
चित्र गुप्त देखे लेखे रचनाओं में-
अक्षर-अक्षर में मानवता का वंदन
गीतों के सम्राट तुम्हारा अभिनन्दन,
रस अक्षत, लय रोली, छंदों का चन्दन...
*
ऊर्जस्वित रचनाएँ सुन मन मगन हुआ.
ज्यों अमराई में कूकें सुन हरा सुआ..
'सलिल'-लहरियों की कलकल ध्वनि सी वाणी.
अन्तर्निहित शारदा मैया कल्याणी..
कभी न मुरझे गीतों का मादक मधुवन.
गीतों के सम्राट तुम्हारा अभिनन्दन,
रस अक्षत, लय रोली, छंदों का चन्दन...
*
गीति-काव्य की पल-पल जय-जयकार करी.
विरह-मिलन से गीतों में गुंजार भरी..
समय शिला पर हस्ताक्षर इतिहास हुए.
छन्दहीनता मरू गीतित मधुमास हुए..
महका हिंदी जगवाणी का नन्दन वन.
गीतों के सम्राट तुम्हारा अभिनन्दन,
रस अक्षत, लय रोली, छंदों का चन्दन...
*