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गुरुवार, 15 अप्रैल 2010

छत्तीसगढ़ी में दोहा: --संजीव 'सलिल'

छत्तीसगढ़ी में दोहा:

 --संजीव 'सलिल'

हमर देस के गाँव मा, सुन्हा सुरुज विहान.
अरघ देहे बद अंजुरी, रीती रोय  किसान..

जिनगानी के समंदर, गाँव-गँवई के रीत.
 जिनगी गुजरत हे 'सलिल', कुरिया-कुंदरा मीत..

महतारी भुइयाँ असल, बंदत हौं दिन-रात.
दाई! पैयाँ परत हौं. मूंडा पर धर हात..

जाँघर तोड़त सेठ बर, चिथरा झूलत भेस.
मुटियारी माथा पटक, चेलिक रथे बिदेस..

बाँग देही कुकराकस, जिनगी बन के छंद.
कुररी कस रोही 'सलिल', मावस दूबर चंद..

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divyanarmada.blogspot.com