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गुरुवार, 12 अक्टूबर 2017

deepak jala loon : mahadevi verma

कालजयी रचना:
सब बुझे दीपक जला लूँ







महादेवी वर्मा
*
सब बुझे दीपक जला लूं
घिर रहा तम आज दीपक रागिनी जगा लूं
क्षितिज कारा तोडकर अब
गा उठी उन्मत आंधी,
अब घटाओं में न रुकती
लास तन्मय तडित बांधी,
धूल की इस वीणा पर मैं तार हर त्रण का मिला लूं!
भीत तारक मूंदते द्रग
भ्रान्त मारुत पथ न पाता,
छोड उल्का अंक नभ में
ध्वंस आता हरहराता
उंगलियों की ओट में सुकुमार सब सपने बचा लूं!
लय बनी मृदु वर्तिका
हर स्वर बना बन लौ सजीली,
फैलती आलोक सी
झंकार मेरी स्नेह गीली
इस मरण के पर्व को मैं आज दीवाली बना लूं!
देखकर कोमल व्यथा को
आंसुओं के सजल रथ में,
मोम सी सांधे बिछा दीं
थीं इसी अंगार पथ में
स्वर्ण हैं वे मत कहो अब क्षार में उनको सुला लूं!
अब तरी पतवार लाकर
तुम दिखा मत पार देना,
आज गर्जन में मुझे बस
एक बार पुकार लेना
ज्वार की तरिणी बना मैं इस प्रलय को पार पा लूं!
आज दीपक राग गा लूं!
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salil.sanjiv@gmail.com, 9425183244 
http://divyanarmada.blogspot.com
#hindi_blogger

शुक्रवार, 1 अगस्त 2014

sansmaran: neem ke neeche premchand -mahadevi

संस्मरणः

नीम के नीचे प्रेमचंद की चौपाल

- महादेवी वर्मा
*
"प्रेमचंदजी से मेरा प्रथम परिचय पत्र के द्वारा ही हुआ। तब मैं 8 वीं कक्षा की विद्यार्थिनी थी । उन्होंने 'चाँद' में प्रकाशित मेरी कविता 'दीपक' पर स्वयं होकर पत्र भेजा था । मैं गर्व महसूस करती रही कि वाह कथाकार भी कविता बाँचते हैं ।
उनका प्रत्यक्ष दर्शन तो विद्यापीठ आने के उपरांत हुआ। उसकी भी एक कहानी है :
एक दोपहर को जब प्रेमचंद उपस्थित हुए तो मेरी भक्तिन ने उनकी वेशभूषा से उन्हें भी अपने समान ग्रामीण या ग्राम निवासी समझा और सगर्व उन्हें सूचना दी - "गुरुजी काम कर रही हैं।"
प्रेमचंदजी ने अपने अट्टहास के साथ उत्तर दिया - "तुम तो ख़ाली हो । घड़ी-दो घड़ी बैठकर बात करो ।"
और तब, जब कुछ समय के उपरांत मैं किसी कार्यवश बाहर आयी तो देखा - नीम के नीचे चौपाल बन गई है । विद्यापीठ के चपरासी, चौकीदार, भक्तिन के नेतृत्व में उनके चारों ओर बैठे हैं और लोक-चर्चा आरंभ है ।
तो इतने सहज थे प्रेमचंद ।"

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बुधवार, 26 सितंबर 2012

धरोहर ५. -स्व.महादेवी वर्मा

धरोहर :

इस स्तम्भ में विश्व की किसी भी भाषा की श्रेष्ठ मूल रचना देवनागरी लिपि में, हिंदी अनुवाद, रचनाकार का परिचय व चित्र, रचना की श्रेष्ठता का आधार जिस कारण पसंद है. संभव हो तो रचनाकार की जन्म-निधन तिथियाँ व कृति सूची दीजिए. धरोहर में सुमित्रा नंदन पंत, मैथिलीशरण गुप्त, नागार्जुन तथा सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला के पश्चात् अब आनंद लें  महीयसी महादेवी वर्मा जी की रचनाओं का।
 

५.
स्व.महादेवी वर्मा










स्व. भगवतीचरण वर्मा-महादेवी जी












*मेरी पसंद का कारण... प्रस्तुत हैं मेरे दो छन्द -
        शिथिल संध्या का समर्पण
        अरुण-पथ पर तिमिर अर्पण
       हो रहे पल पल समीप
       पारलौकिक   मिलन के क्षण

           जीवन जब होता मृत्यु तीर 
            बहतीं स्मृतियाँ  बन अधीर 
           मुक्ति-द्वार भयभीत धीर-
          मन, काँप काँप जाता शरीर  
***                        
चढ़ा न देवों के चरणों पर 
गूंथा गया न जिसका हार

जिसका जीवन बना न अब तक                     -

उन्मादों का स्वप्नागार

निर्जनता के किसी अँधेरे

कोने में छिप कर चुपचाप
स्वप्न-लोक की मधुर कहानी
कहता सुनता अपने आप


किसी अपरिचित डाली से
गिर कर नीरस वन का फूल

फिर पथ पर बिछ कर आँखों में
चुपके से भर लेता धूल

उसी सुमन सा पल भर हँस  कर

सूने में हो छिन्न मलीन 
झड जाने दो जीवन माली

मुझको रह कर परिचय हीन
                            (
नीहार से)
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रामगढ स्थित आवास.