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शुक्रवार, 17 अक्टूबर 2025

अक्टूबर १७ , मुक्तिका मर्जी, छंद रविशंकर, लघुकथा, अलंकार, श्लेष, अनुप्रास, नवगीत, राम, दिवाली

सलिल सृजन अक्टूबर १७
*
राम दोहावली 
सदा रहे, हैं, रहेंगे, हृदय-हृदय में राम.
दर्शन पायें भक्तजन, सहित जानकी वाम..
0
राम नाम से जुड़ हुई, दीवाली भी धन्य. 
विजया दशमी को मिला, शुचि सौभाग्य अनन्य.. 
0
राम सिया में समाहित, सिया राम में लीन. 
द्वैत न दोनों में रहा, यह स्वर वह है बीन..
Diwali Greetings  
We are celebrting festival of light.
Devil got defeat, got the victory right. 
Deewali give message don't get disheartened 
In the end Truth wins, however tough fight. 
*
मुक्तिका . प्रजा प्रजेश चुने निर्भय हो लोकतंत्र की सदा विजय हो . औसत आय व्यक्ति की है जो वह प्रतिनिधि का वेतन तय हो . संसद चौपालों पर बैठे जनगण से दूरी का क्षय हो . अफसरशाही रहे न हावी पद-मद जनसेवा में लय हो . भारतीय भाषाएँ बहिनें गले मिलें सबकी जय-जय हो . पक्ष-विपक्ष दूध-पानी हों नहीं एकता का अभिनय हो . सब समान सुविधाएँ पाएँ 'सलिल' योग्यता-सूर्य उदय हो। १७.१०.२०२५ ०००
बात बेबात
पाक कला भूरी रही
*
भाग्य और पड़ोसी इन दोनों को कभी बदला नहीं जा सकता। यह बात पाकिस्तान को लेकर बिना किसी संशय के कही और स्वीकारी जा सकती है। पाकिस्तान की कलाएँ स्वतंत्रता के बाद से हम सब देखते आ रहे हैं। पाककला का बेजोड़ नमूना आतंकवाद है । ऐसी ही कुछ अन्य कलाएँ भारत और चीन को प्रतिस्पर्धी बनाना , अपनी ही अवाम को कुचलना और भूखे रहकर भी एटमी युद्ध करने का ख्वाब देखना है।
पिछले दिनों अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं में पाकिस्तान के हुक्मरान कश्मीर पर हाय तोबा मचाते देखे गए। पाककला का यह अध्याय हमेशा की तरह बेनतीजा और उसे ही नीचा दिखाने वाला रहा। अभी कल ही आतंकवाद को नियंत्रित करने में असफल होने पर पाकिस्तान को फरवरी तक के लिए भूरी सूची में रखा गया है। पाकिस्तान का दूरदर्शनी खबरिया और सरकार इसे अपनी बहुत बड़ी सफलता मानकर अपने अनाम की आँखों में धूल झोंकने की कोशिश करेगा। पूरी संभावना थी कि दहशत गर्ग दहशतगर्दी को नियंत्रित करने के स्थान पर, लगातार बढ़ाने के लिए पाकिस्तान को गहरी भूरी सूची या काली सूची में डाल दिया जाएगा। पाकिस्तान को चीन द्वारा मिल रहे समर्थन का परिणाम उसे कुछ माह के लिए भूरी सूची में रखे जाने के रूप में हुआ है।
पाककला मैं निपुण हर व्यक्ति जानता है कि जलने पर हर खाद्य पदार्थ काला हो जाता है। अपने जन्म के बाद से ही भारत के प्रति जलन की भावना रखता पाकिस्तान अपने कर्मों की वजह से श्याम सूची में जाने की कगार पर है। बलि का बकरा कब तक जान की खैर मनाएगा? पाककला का सर्वाधिक खतरनाक और भारत के लिए चिंताजनक पहलू यह है कि वह अपनी जमीन चीन को देकर भारत- चीन के बीच संघर्ष की स्थिति बना रहा है। कच्छ के रण में सरहद के उस पार चीन को जमीन देना भारत के लिए चिंता का विषय है। इसके पहले पाक अधिकृत कश्मीर जो मूलतः भारत का अभिन्न हिस्सा है में भी कॉरिडोर के नाम पर पाकिस्तान ने चीन को जमीन दी है। पाककला का यह पक्ष भविष्य में युद्धों की भूमिका तैयार कर सकता है।
चीन की महत्वाकांक्षा और स्वार्थपरक दृष्टि भारतीय राजनेताओं और सरकारों के लिए चिंतनीय है। लोकतंत्र को दलतंत्र बना देने का दुष्परिणाम राजनीति में सक्रिय विविध वैचारिक पक्षों के नायकों के मध्य संवाद हीनता की स्थिति बना रहा है। यह देश के लिए अच्छा नहीं है। सत्ता पक्ष और उसके अंध भक्तों की आक्रामकता तथा विपक्ष को समाप्त कर देने की भावना, भारत में चीन की तरह एकदलीय सत्ता की शुरुआत कर सकता है। वर्तमान संविधान और लोकतांत्रिक परंपरा के लिए इससे बड़ा खतरा अन्य नहीं हो सकता। पाक कला भारत को उस रास्ते पर जाने के लिए विवश कर सकती है जो अभीष्ट नहीं है। निकट पड़ोसियों में नेपाल, बांग्लादेश और लंका तीनों के अतिरिक्त मालदीव जैसे क्षेत्रों में भारत विरोधी भावनाएँ भड़काकर चीन रिश्तों की चाशनी में चीनी नहीं, गरल घोल रहा है। इस परिप्रेक्ष्य में भारत की सुरक्षा और उन्नति के लिए भारत के सभी राजनीतिक दलों को राष्ट्रीय हित सर्वोपरि मानते हुए अपने पारस्परिक मतभेद और सत्ता प्रेम को भुलाकर दीर्घकालिक रणनीति तैयार करनी ही होगी अन्यथा इतिहास हमें क्षमा नहीं करेगा।
पाककला के दुष्प्रभावों का सटीक आकलन कर उसका प्रतिकार करने के लिए भारतीय राजनेता एक साथ जुड़ सकें इसकी संभावना न्यून होते हुए भी जन कामना यही है कि देश के उज्जवल भविष्य के लिए सभी दल रक्षा विदेश नीति और अर्थनीति पर उसी एक सुविचार कर कदम बढ़ाएँ जिस तरह एक कुशल ग्रहणी रसोई में उपलब्ध सामानों से स्वादिष्ट खाद्य बनाकर अपनी पाक कला का परिचय देती है।
***
मुक्तिका
आपकी मर्जी
*
आपकी मर्जी नमन लें या न लें
आपकी मर्जी नहीं तो हम चलें
*
आपकी मर्जी हुई रोका हमें
आपकी मर्जी हँसीं, दीपक जलें
*
आपकी मर्जी न फर्जी जानते
आपकी मर्जी सुबह सूरज ढलें
*
आपकी मर्जी दिया दिल तोड़ फिर
आपकी मर्जी बनें दर्जी सिलें
*
आपकी मर्जी हँसा दे हँसी को
आपकी मर्जी रुला बोले 'टलें'
*
आपकी मर्जी, बिना मर्जी बुला
आपकी मर्जी दिखा ठेंगा छ्लें
*
आपकी मर्जी पराठे बन गयी
आपकी मर्जी चलो पापड़ तलें
*
आपकी मर्जी बसा लें नैन में
आपकी मर्जी बनें सपना पलें
*
आपकी मर्जी, न मर्जी आपकी
आपकी मर्जी कहें कलियाँ खिलें
१६.१०.२०१८
***
नव छंद
गीत
*
छंद: रविशंकर
विधान:
१. प्रति पंक्ति ६ मात्रा
२. मात्रा क्रम लघु लघु गुरु लघु लघु
***
धन तेरस
बरसे रस...
*
मत निन्दित
बन वन्दित।
कर ले श्रम
मन चंदित।
रचना कर
बरसे रस।
मनती तब
धन तेरस ...
*
कर साहस
वर ले यश।
ठुकरा मत
प्रभु हों खुश।
मन की सुन
तन को कस।
असली तब
धन तेरस ...
*
सब की सुन
कुछ की गुन।
नित ही नव
सपने बुन।
रख चादर
जस की तस।
उजली तब
धन तेरस
***
लघुकथा:
बाल चन्द्रमा
*
वह कचरे के ढेर में रोज की तरह कुछ बीन रहा था, बुलाया तो चला आया। त्यौहार के दिन भी इस गंदगी में? घर कहाँ है? वहाँ साफ़-सफाई क्यों नहीं करते? त्यौहार नहीं मनाओगे? मैंने पूछा।
'क्यों नहीं मनाऊँगा?, प्लास्टिक बटोरकर सेठ को दूँगा जो पैसे मिलेंगे उससे लाई और दिया लूँगा।' उसने कहा।
'मैं लाई और दिया दूँ तो मेरा काम करोगे?' कुछ पल सोचकर उसने हामी भर दी और मेरे कहे अनुसार सड़क पर नलके से नहाकर घर आ गया। मैंने बच्चे के एक जोड़ी कपड़े उसे पहनने को दिए, दो रोटी खाने को दी और सामान लेने बाजार चल दी। रास्ते में उसने बताया नाले किनारे झोपड़ी में रहता है, माँ बुखार के कारण काम नहीं कर पा रही, पिता नहीं है।
ख़रीदे सामान की थैली उठाये हुए वह मेरे साथ घर लौटा, कुछ रूपए, दिए, लाई, मिठाई और साबुन की एक बट्टी दी तो वह प्रश्नवाचक निगाहों से मुझे देखते हुए पूछा: 'ये मेरे लिए?' मैंने हाँ कहा तो उसके चहरे पर ख़ुशी की हल्की सी रेखा दिखी। 'मैं जाऊं?' शीघ्रता से पूछ उसने कि कहीं मैं सामान वापिस न ले लूँ। 'जाकर अपनी झोपडी, कपडे और माँ के कपड़े साफ़ करना, माँ से पूछकर दिए जलाना और कल से यहाँ काम करने आना, बाक़ी बात मैं तुम्हारी माँ से कर लूँगी।
'क्या कर रही हो, ये गंदे बच्चे चोर होते हैं, भगा दो' पड़ोसन ने मुझे चेताया। गंदे तो ये हमारे द्वारा फेंगा गया कचरा बीनने से होते हैं। ये कचरा न उठायें तो हमारे चारों तरफ कचरा ही कचरा हो जाए। हमारे बच्चों की तरह उसका भी मन करता होगा त्यौहार मनाने का।
'हाँ, तुम ठीक कह रही हो। हम तो मनायेंगे ही, इस बरस उसकी भी मन सकेगी धनतेरस। ' कहते हुए ये घर में आ रहे थे और बच्चे के चहरे पर चमक रहा था बाल चन्द्रमा।
१७-१०-२०१७
***
दोहा सलिला
प्रभु सारे जग का रखें, बिन चूके नित ध्यान।
मैं जग से बाहर नहीं, इतना तो हैं भान।।
*
कौन किसी को कर रहा, कहें जगत में याद?
जिसने सब जग रचा है, बिसरा जग बर्बाद
*
जिसके मन में जो बसा वही रहे बस याद
उसकी ही मुस्कान से सदा रहे दिलशाद
*
दिल दिलवर दिलदार का, नाता जाने कौन?
दुनिया कब समझी इसे?, बेहतर रहिए मौन
*
स्नेह न कांता से किया, समझो फूटे भाग
सावन की बरसात भी, बुझा न पाए आग
*
होती करवा चौथ यदि, कांता हो नाराज
करे कृपा तो फाँकिये, चूरन जिस-तिस व्याज
*
जो न कहीं वह सब जगह, रचता वही भविष्य
'सलिल' न थाली में पृथक, सब में निहित अदृश्य
*
जब-जब अमृत मिलेगा, सलिल करेगा पान
अरुण-रश्मियों से मिले ऊर्जा, हो गुणवान
*
हरि की सीमा है नहीं, हरि के सीमा साथ
गीत-ग़ज़ल सुनकर 'सलिल', आभारी नत माथ
*
कांता-सम्मति मानिए, तभी रहेगी खैर
जल में रहकर कीजिए, नहीं मगर से बैर
*
व्यग्र न पाया व्यग्र को, शांत धीर-गंभीर
हिंदी सेवा में मगन, गढ़ें गीत-प्राचीर
*
शरतचंद्र की कांति हो, शुक्ला अमृत सींच
मिला बूँद भर भी जिसे, ले प्राणों में भींच
*
जीवन मूल्य खरे-खरे, पालें रखकर प्रीति
डॉक्टर निकट न जाइये, यही उचित है रीति
*
कलाकार की कल्पना, जब होती साकार
एक नयी ही सृष्टि तब, लेती है आकार
***
अलंकार खोजिए:
धूप-छाँव से सुख-दुःख आते-जाते है
हम मुस्काकर जो मिलता सह जाते हैं
सुख को तो सबसे साझा कर लेते हैं
दुःख को अमिय समझकर चुप पी जाते हैं।
कृपया, बताइये :
मालिक दे डर राखी करदे, साबिर, भूखे, नंगे
- क्या यहाँ श्रुत्यानुप्रास अलंकार है? (क वर्ग: क ख ग, त वर्ग: द न, प वर्ग: ब भ म)
*
बाप मरे सिर नंगा होंदा, वीर मरे गंड खाली
माँवां बाद मुहम्मद बख्शा कौन करे रखवाली
सिर नंगा होंदा = मुंडन किया जाना, आशीष का हाथ न रहना
गंड खाली = मन सूना होना, गाँठ/गुल्लक खाली होना, राखी पर भाई भरता था
- क्या यहाँ श्लेष अलंकार है?
*
लघु कथा:
" नाम गुम जायेगा"
*
' नमस्कार ! कहिए, कैसी बात करते हैं? जैसा कहेंगे वैसा ही करूँगा… क्या? पुरस्कार लौटना है? क्यों?… क्या हो गया?… हाँ, ठीक कहते हैं … चनाव में तो लुटिया ही डूब गयी. किसने सोचा था एक दम फट्टा साफ़ हो जाएगा?… अपन लोगों का असर खत्म होता जा रहा है, ऐसा ही चलता रहा तो कुछ भी कर पाना मुश्किल हो जाएगा.
अच्छा, ऐसी योजना है. ठीक है, इससे पूरे देश नही नहीं विदेशों में भी अच्छा कवरेज मिलेगा. जितने लेखन अवार्ड लौटायेंगे, उतनी बार चर्चा और आरोप लगाने का मौक़ा। इसका कोई काट भी नहीं है. एक स्थानीय आंदोलन भी एकरो तो खर्च बहुत होता है, वर्कर मिलते नहीं। अखबार और टी वी वाले भी अब नज़र फेर लेते हैं. मेहनत, समय और खर्च के बाद किसी कार्यकर्त्ता ने जरा से गड़बड़ कर दी तो थाणे के चक्कर फिर अदालत-जमानत. यह तो बहुतै नीक है. हर लगे ना फिटकरी रंग भी चोखा आये.…
बिलकुल ठीक है. कल उन्हें लौटने दीजिए दो दिन बाद मैं लौटाऊँगा।… उनकी चिता न करें उन्हें आपने ही दिलाया था मेरी सिफारिश पर वरना कौन पूछता? उनसे अच्छे १७६० पड़े हैं. वो तो लौटाएगा ही, उसे २ लोगों की जिम्मेदारी और सौंपूँगा… उनको भी तो आपने ही दिलवाया था… मैं पूरी ताकत लगाऊंगा… अब तक गजेन्द्र चौहान के ममले में नौटंकी चलती रही, अब ये पुरस्कार लौटने का ड्रामा करेंगे अगला मुद्दा हाथ में आने तक.
नहीं, चैन नहीं लेने देंगे… इन्हीं प्रपंचों में उलझे रहेंगे तो कहीं न कहीं चूक कर ही जायेंगे। भैया कोशिश तो बिहार वालों ने भी की लेकिन चूक हो गयी. पहले बम नहीं फटा फिर नेता जी अपने बेटों को बढ़ाने के चक्कर में अपनों को ही दूर कर बैठे। वो तो भला हो दिल्लीवालों का उनकी शह पर हम लोग भी कुछ नकुछ करते ही रहेंगे।
पुरस्कार लौटने में नुक्सान ही क्या है? पहले पब्लिसिटी मिली, नाम हुआ तो किताबें छपीं रॉयल्टी मिली, लाइब्रेरियों में बिकीं। कॉलेजों और यूनिवर्सिटीज में सेमिनारों में गए भत्ता तो मिले ही, अपने कार्यकर्ताओं को भी जोडा.पुरस्कार लौटाने से क्या, बाकि के फायदे तो अपने हैं ही. अस्का एक और असर होगा उन्हें हम लोगों को मैंने की कोशिश में फिर अवार्ड देना पड़ेंगे नहीं तो हमारा कैम्पेन चलेगा की अपने लोगों को दे रहे हैं. ठीक है, चैन नहने लेने देंगे… हाँ, हाँ पक्का कल ही पुरस्कार लौटाने की घोषणा करता हूँ. आप राजधानी में कवरेज करा लीजियेगा। अरे नहीं, चंता न करें ऐसे कैसे नाम गुम जाएगा? अभी बहुत दमखम है. गुड नाइट… और बंद हो गया मोबाइल
****
नवाचरित नवगीत :
ज़िंदगी के मानी
*
खोल झरोखा, झाँक-
ज़िंदगी के मानी मिल जायेंगे.
मेघ बजेंगे, पवन बहेगा,
पत्ते नृत्य दिखायेंगे.....
*
बाल सूर्य के संग ऊषा आ,
शुभ प्रभात कह जाएगी.
चूँ-चूँ-चूँ-चूँ कर गौरैया
रोज प्रभाती गायेगी..
टिट-टिट-टिट-टिट करे टिटहरी,
करे कबूतर गुटरूं-गूं-
कूद-फांदकर हँसे गिलहरी
तुझको निकट बुलायेगी..
आलस मत कर, आँख खोल,
हम सुबह घूमने जायेंगे.
खोल झरोखा, झाँक-
ज़िंदगी के मानी मिल जायेंगे.....
*
आई गुनगुनी धूप सुनहरी
माथे तिलक लगाएगी.
अगर उठेगा देरी से तो
आँखें लाल दिखायेगी..
मलकर बदन नहा ले जल्दी,
प्रभु को भोग लगाना है.
टन-टन घंटी मंगल ध्वनि कर-
विपदा दूर हटाएगी.
मुक्त कंठ-गा भजन-आरती,
सरगम-स्वर सध जायेंगे.
खोल झरोखा, झाँक-
ज़िंदगी के मानी मिल जायेंगे.....
*
मेरे कुँवर कलेवा कर फिर,
तुझको शाला जाना है.
पढ़ना-लिखना, खेल-कूदना,
अपना ज्ञान बढ़ाना है..
अक्षर,शब्द, वाक्य, पुस्तक पढ़,
तुझे मिलेगा ज्ञान नया.
जीवन-पथ पर आगे चलकर
तुझे सफलता पाना है..
सारी दुनिया घर जैसी है,
गैर स्वजन बन जायेंगे.
खोल झरोखा, झाँक-
ज़िंदगी के मानी मिल जायेंगे.....
***
मुक्तिका:
*
मापनी: २१ २२२ १ २२२ १ २२
*
दर्द की चाही दवा, दुत्कार पाई
प्यार को बेचो, बड़ा बाजार भाई
.
वायदों की मण्डियाँ, हैं ढेर सारी
बचाओ गर्दन, इसी में है भलाई
.
आ गया, सेवा करेगा बोलता है
चाहता सारी उड़ा ले वो मलाई
.
चोर का ईमान, डाकू है सिपाही
डॉक्टर लूटे नहीं, कोई सुनाई
.
कौन है बोलो सगा?, कोई नहीं है
दे रहा नेता दगा, बोले भलाई
१७-१०-२०१५
***

शुक्रवार, 26 सितंबर 2025

सितंबर २५, मुक्तिका, भारत, सॉनेट, सरस्वती, श्लेष, अलंकार, गीत,

 सलिल सृजन सितंबर २५

*
पद
कान्हा! झूलें विहँस हिंडोला
*
ललिता स्वांग धरे राधा का, पहिनें बाँका चोला
लै संदेस बिसाखा आई, राज न तनकउ खोला
चित्रा हरि नैनों में उलझी, रंग प्रीत का घोला
चंपकलता भई चिंतित, कहुँ होय न मासा-तोला
कर सिंगार इंदुलेखा झट, विहँस बन गईं भोला
रंगदेवी ने कान्हा जू पै, सँकुच आलता ढोला
संख फूँक खेँ तुंगविद्या दें, माखन-मिसरी गोला
चतुर सुदेवी जल लाई, मनहर मन हर हँस बोला
कओ कितै वृषभान दुलारी, जिन पै मोहन डोला
***
राधा जी की अष्ट सखियाँ 
ललिता- अष्टसखियों में सबसे प्रमुख सखी, जो निडर और तीव्र स्वभाव की हैं। 
विशाखा- सुंदर और बुद्धिमान सखी, जो राधा और कृष्ण के संदेशवाहक के रूप में कार्य करती थीं

चित्रा- कलात्मक और रचनात्मक सखी, जो राधा-कृष्ण की लीलाओं को सुंदर बनाने में निपुण थीं

चंपकलता- चंचल और सेवा कार्यों में कुशल सखी, जो राधा जी की आवश्यकताओं का ध्यान रखती थीं

तुंगविद्या- तीक्ष्ण बुद्धि वाली सखी, जिन्हें ललित कलाओं और संगीत का गहन ज्ञान था

इंदुलेखा- प्रसन्नचित्त और सरल स्वभाव की सखी, जो राधा जी के श्रृंगार और साज-सज्जा में मदद करती थीं

रंगदेवी- जावक (महावर) लगाने और चंदन चढ़ाने में कुशल सखी, जो राधा जी के चरणों में महावर लगाती थीं

सुदेवी- अत्यंत सुंदर सखी, जो राधा जी को जल पिलाने का कार्य करती थीं और जल को शुद्ध करने का ज्ञान रखती थीं
२५.९.२०२५ 
***
मुक्तिका
सजग भारत
*
सजग भारत है सनातन।
कर्म-पोथी करे वाचन।।
काल की है यह उपासक।
सभ्यता है यह पुरातन।।
सकल सृष्टि कुटुंब इसका।
सभी का यह करे पालन।।
करे दंडित यह अनय को।
विनय को दे अग्र आसन।।
ध्वज तिरंगा चंद्रमा ले।
करे इसका कीर्ति गायन।।
आपदाओं का प्रबंधन।
करे पल-पल निपुण शासन।।
नर नरेंद्र हरेक इसका।
बल अमित है नीति ही धन।।
भारती की आरती कर।
रोक लेता हर प्रभंजन।।
है अलौकिक लोक भारत।
सजग भारत है सनातन।।
***
सॉनेट
अविश्वास
अविश्वास से राम बचाए,
जिस मन में पलती है शंका,
दाह डाह का कौन बुझाए?
निश्चय जलती उसकी लंका।
फलदायक विश्वास जानिए,
परंपरा ने हमें बताया,
बिन श्रद्धा कस ज्ञान पाइए?
जो ठगता, खुद गया ठगाया।
गुरु पर श्रद्धा अगर न हो तो
ज्ञान नहीं फलदायक होता,
मत नाराजी गुरु की न्योतो,
कर्ण न अपना जीवन खोता।
अविश्वास को जहर जानिए।
सच अमृत विश्वास मानिए।।
२६.९.२०२३
•••
शारद स्तुति
माँ शारदे!
भव-तार दे।
संतान को
नित प्यार दे।
हर कर अहं
उद्धार दे।
सिर हाथ धर
रिपु छार दे।
निज छाँव में
आगार दे।
पग-रज मुझे
उपहार दे।
आखर सिखा
आचार दे।
२५-९-२०२२
•••
बाल नव गीत
ज़िंदगी के मानी
*
खोल झरोखा, झाँक-
ज़िंदगी के मानी मिल जायेंगे.
मेघ बजेंगे, पवन बहेगा,
पत्ते नृत्य दिखायेंगे.....
*
बाल सूर्य के संग ऊषा आ,
शुभ प्रभात कह जाएगी.
चूँ-चूँ-चूँ-चूँ कर गौरैया
रोज प्रभाती गायेगी..
टिट-टिट-टिट-टिट करे टिटहरी,
करे कबूतर गुटरूं-गूं-
कूद-फांदकर हँसे गिलहरी
तुझको निकट बुलायेगी..
आलस मत कर, आँख खोल,
हम सुबह घूमने जायेंगे.
खोल झरोखा, झाँक-
ज़िंदगी के मानी मिल जायेंगे.....
*
आई गुनगुनी धूप सुनहरी
माथे तिलक लगाएगी.
अगर उठेगा देरी से तो
आँखें लाल दिखायेगी..
मलकर बदन नहा ले जल्दी,
प्रभु को भोग लगाना है.
टन-टन घंटी मंगल ध्वनि कर-
विपदा दूर हटाएगी.
मुक्त कंठ-गा भजन-आरती,
सरगम-स्वर सध जायेंगे.
खोल झरोखा, झाँक-
ज़िंदगी के मानी मिल जायेंगे.....
*
मेरे कुँवर कलेवा कर फिर,
तुझको शाला जाना है.
पढ़ना-लिखना, खेल-कूदना,
अपना ज्ञान बढ़ाना है..
अक्षर,शब्द, वाक्य, पुस्तक पढ़,
तुझे मिलेगा ज्ञान नया.
जीवन-पथ पर आगे चलकर
तुझे सफलता पाना है..
सारी दुनिया घर जैसी है,
गैर स्वजन बन जायेंगे
खोल झरोखा, झाँक-
ज़िंदगी के मानी मिल जायेंगे.....
२६-९-२०२०
***
प्रश्न -उत्तर
*
हिन्द घायल हो रहा है पाक के हर दंश से
गॉधीजी के बन्दरों का अब बताओ क्या करें ? -समन्दर की मौजें
*
बन्दरों की भेंट दे दो अब नवाज़ शरीफ को
बना देंगे जमूरा भारत का उनको शीघ्र ही - संजीव
*
नवगीत
*
क्यों न फुनिया कर
सुनूँ आवाज़ तेरी?
*
भीड़ में घिर
हो गया है मन अकेला
धैर्य-गुल्लक
में, न बाकी एक धेला
क्या कहूँ
तेरे बिना क्या-क्या न झेला?
क्यों न तू
आकर बना ले मुझे चेला?
मान भी जा
आज सुन फरियाद मेरी
क्यों न फुनिया कर
सुनूँ आवाज़ तेरी?
*
प्रेम-संसद
विरोधी होंगे न मैं-तुम
बोल जुमला
वचन दे, पलटें नहीं हम
लाएँ अच्छे दिन
विरह का समय गुम
जो न चाहें
हो मिलन, भागें दबा दुम
हुई मुतकी
और होने दे न देरी
क्यों न फुनिया कर
सुनूँ आवाज़ तेरी?
२४-२५ सितंबर २०१६
***
: अलंकार चर्चा ११ :
श्लेष अलंकार
भिन्न अर्थ हों शब्द के, आवृत्ति केवल एक
अलंकार है श्लेष यह, कहते सुधि सविवेक
किसी काव्य में एक शब्द की एक आवृत्ति में एकाधिक अर्थ होने पर श्लेष अलंकार होता है. श्लेष का अर्थ 'चिपका हुआ' होता है. एक शब्द के साथ एक से अधिक अर्थ संलग्न (चिपके) हों तो वहाँ श्लेष अलंकार होता है.
उदाहरण:
१. रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून
पानी गए न ऊबरे, मोती मानस चून
इस दोहे में पानी का अर्थ मोती में 'चमक', मनुष्य के संदर्भ में सम्मान, तथा चूने के सन्दर्भ में पानी है.
२. बलिहारी नृप-कूप की, गुण बिन बूँद न देहिं
राजा के साथ गुण का अर्थ सद्गुण तथा कूप के साथ रस्सी है.
३. जहाँ गाँठ तहँ रस नहीं, यह जानत सब कोइ
गाँठ तथा रस के अर्थ गन्ने तथा मनुष्य के साथ क्रमश: पोर व रस तथा मनोमालिन्य व प्रेम है.
४. विपुल धन, अनेकों रत्न हो साथ लाये
प्रियतम! बतलाओ लाला मेरा कहाँ है?
यहाँ लाल के दो अर्थ मणि तथा संतान हैं.
५. सुबरन को खोजत फिरैं कवि कामी अरु चोर
इस काव्य-पंक्ति में 'सुबरन' का अर्थ क्रमश:सुंदर अक्षर, रूपसी तथा स्वर्ण हैं.
६. जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय
बारे उजियारौ करै, बढ़े अँधेरो होय
इस दोहे में बारे = जलाने पर तथा बचपन में, बढ़े = बुझने पर, बड़ा होने पर
७. लाला ला-ला कह रहे, माखन-मिसरी देख
मैया नेह लुटा रही, अधर हँसी की रेख
लाला = कृष्ण, बेटा तथा मैया - यशोदा, माता (ला-ला = ले आ, यमक)
८. था आदेश विदेश तज, जल्दी से आ देश
खाया या कि सुना गया, जब पाया संदेश
संदेश = खबर, मिठाई (आदेश = देश आ, आज्ञा यमक)
९. बरसकर
बादल-अफसर
थम गये हैं.
बरसकर = पानी गिराकर, डाँटकर
१०. नागिन लहराई, डरे, मुग्ध हुए फिर मौन
नागिन = सर्पिणी, चोटी
***
नवगीत:
संजीव
*
एक शाम
करना है मीत मुझे
अपने भी नाम
.
अपनों से,
सपनों से,
मन नहीं भरा.
अनजाने-
अनदेखे
से रहा डरा.
परिवर्तन का मंचन
जब कभी हुआ,
पिंजरे को
तोड़ उड़ा
चाह का सुआ.
अनुबंधों!
प्रतिबंधों!!
प्राण-मन कहें
तुम्हें राम-राम.
.
ज्यों की त्यों
चादर कब
रह सकी कहो?
दावानल-
बड़वानल
सह, नहीं दहो.
पत्थर का
वक्ष चीर
सलिल सम बहो.
पाए को
खोने का
कुछ मजा गहो.
सोनल संसार
हुआ कब कभी कहो
इस-उस के नाम?
.
संझा में
घिर आएँ
याद मेघ ना
आशुतोष
मौन सहें
अकथ वेदना.
अंशुमान निरख रहे
कालचक्र-रेख.
किस्मत में
क्या लिखा?,
कौन सका देख??
पुष्पा ले जी भर तू
ओम-व्योम, दिग-दिगंत
श्रम कर निष्काम।
***
एक गीत:
*
ह्रदय प्रफुल्लित
मुकुलित मन
अपनों से मिलकर
*
सद्भावों की क्यारी में
प्रस्फुटित सुमन कुछ
गंध बिखेरें अपनेपन की.
स्नेहिल भुजपाशों में
बँधकर बाँध लिया सुख.
क्षणजीवी ही सही
जीत तो लिया सहज दुःख
बैर भाव के
पर्वत बौने
काँपे हिलकर
ह्रदय प्रफुल्लित
मुकुलित मन
सपनों से मिलकर
*
सलिल-धार में सुधियों की
तिरते-उतराते
छंद सुनाएँ, उर धड़कन की.
आशाओं के आकाशों में
कोशिश आमुख,
उड़-थक-रुक-बढ़ने को
प्रस्तुत, चरण-पंख कुछ.
बाधाओं के
सागर सूखे
गरज-हहरकर
ह्रदय प्रफुल्लित
मुकुलित मन
छंदों से मिलकर
*
अविनाशी में लीन विनाशी
गुपचुप बिसरा, काबा-
काशी, धरा-गगन की.
रमता जोगी बन
बहते जाने को प्रस्तुत,
माया-मोह-मिलन के
पल, पल करता संस्तुत.
अनुशासन के
बंधन पल में
टूटे कँपकर.
ह्रदय प्रफुल्लित
मुकुलित मन
नपनों से मिलकर
*
मुक्त, विमुक्त, अमुक्त हुए
संयुक्त आप ही
मुग्ध देख छवि निज दरपन की.
आभासी दुनिया का हर
अहसास सत्य है.
हर प्रतीति क्षणजीवी
ही निष्काम कृत्य है.
त्याग-भोग की
परिभाषाएँ
रचें बदलकर.
ह्रदय प्रफुल्लित
मुकुलित मन
गंधों से मिलकर
***
मुक्तक:
घाट पर ठहराव कहाँ?
राह में भटकाव कहाँ?
चलते ही रहना है-
चाह में अटकाव कहाँ?
२६-९-२०१५