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शनिवार, 21 नवंबर 2020

द्विपदियाँ / अशआर सिगरेट

द्विपदियाँ / अशआर
सिगरेट 
संजीव 
*
गम सुलगते रहे, दर्द अंगुली हुए
मुफलिसी में बिताई जो ज़िंदगी सिगरेट है.
*
आशिक़ी सिगरेट की लत, छुड़ाए छूटे नहीं 
सुकूं देती एक पल को, ज़िंदगी बर्बाद कर 
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फूँकता तुझको रहा, तू फूँकती मुझको रही 
जेब खाली स्याह लब, सिगरेट तूने कर दिए 
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ज़िंदगी है राखदानी, हौसले हैं राख सब
कोशिशें सिगरेट जैसे, सुलग दिल सुलगा गईं 
*
२१-११-२०२० 

रविवार, 27 सितंबर 2020

कार्यशाला : सिगरेट

कार्यशाला :
सिगरेट 
संजीव 
*
ज़िंदगी सिगरेट सी जलती रही 
ऐश ट्रे में उमीदों की राख है। 
दिलजले ने दाह दी हर आह
जला कर सिगरेट, पाया चैन कुछ।  
*
राह उसकी रात तक देखा किया 
थाम कर सिगरेट, बेबस मौन दिल। 
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धौंककर सिगरेट छलनी ज़िंदगी 
बंदगी की राख ले ले ऐ खुदा!
*
अधरों पे रखा, फेंक दिया, सिगरेट की तरह। 
न उसकी कोई वज़ह रही, न इसकी है वजह।