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शुक्रवार, 8 जनवरी 2016

tatank / lavani chhand

रसानंद दे छंद नर्मदा : १२
ताटंक छंद   
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सोलह-चौदह यतिमय दो पद, 'मगण' अंत में आया हो
रचें छंद ताटंक कर्ण का, आभूषण लहराया हो 
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ताटंक चार चरणों का अर्ध सम मात्रिक छंद है जिसके हर पद में ३० मात्राएँ १६-१४ की यति सहित होती हैं। पंक्त्यांत में 'मगण' आवश्यक है। प्राकृत पैंगलम् तथा छंदार्णव में इसे 'चउबोला' कहा गया है

सोलह मत्तः बेवि पमाणहु, बीअ चउत्थिह चारि दहा
   मत्तः सट्ठि समग्गल जाणहु. चारि पआ चउबोल कहा    

मात्रा बाँट: सरस सहज गति-यति के लिये विषम चरण में ४ मात्राओं के चार चौकल तथा सम पद में चार मात्राओं के ३ चौकल + एक गुरु उपयुक्त है

छंद विधान: यति १६ - १४, पदांत मगण (मातारा = गुरु गुरु गुरु), सम पदान्ती द्विपदिक मात्रिक छंद 
मराठी का लावणी छंद भी १६ - १४ मात्राओं का छन्द है किन्तु उसमें पदांत में मात्रा सम्बन्धी कोई नियम नहीं होता।)
  
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उदाहरण -
०१. आये हैं लड़ने चुनाव जो, सब्ज़ बाग़ दिखलायें क्यों?
     झूठे वादे करते नेता, किंचित नहीं निभायें क्यों?
     सत्ता पा घपले-घोटाले, करें नहीं शर्मायें क्यों?
     न्यायालय से दंडित हों, खुद को निर्दोष बतायें क्यों?

     जनगण को भारत माता को, करनी से भरमायें क्यों?
     ईश्वर! आँखें मूंदें बैठे, 'सलिल' न पिंड छुड़ायें क्यों?

०२. सोरह रत्न कला प्रतिपादहिं, व्है ताटंकै मो अंतै।
     तिहि को होत भलो जग संतत, सेवत हित सों जो संतै
     कृपा करैं ताही पर केशव, दीं दयाला कंसारी
     देहीं परम धाम निज पावन सकल पाप पुंजै जारी।  -जगन्नाथ प्रसाद 'भानु' 

०३. कहो कौन हो दमयंती सी, तुम तरु के नीचे सोई
     हाय तुम्हें भी त्याग गया क्या, अलि! नल सा निष्ठुर कोई

०४. नृपति भगीरथ के पुरखे जब, तेरे जल को पायेंगे
     मोक्ष-मार्ग पर उछल-उछल वे तेरी महिमा गायेंगे
     मधुर कंठ से गंगे तेरा, सकल भुवन यश गायेगा
     जब तक सूरज-चाँद रहेगा, तेरा जल लहरायेगा।  - रामदेव लाल 'विभोर'

लावणी (शैलसुता) १६-१४, पदांत बंधन नहीं 
०५. शंभु जटा हिमवान से बनी, गंगा लट-लट में बहती
     अपनी अमर अलौकिक गाथा, लिप्त-लपट लट से कहती
     हर ने कहा अलौकिक गंगे, लट से अब ऊपर आजा
     नृपति भगीरथ के विधान हिट, गिरी कानन में लहरा जा।  - रामदेव लाल 'विभोर'
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रविवार, 10 नवंबर 2013

chhand salila: tatank chhand - sanjiv

छंद सलिला:
ताटंक छंद :
संजीव 
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(छंद विधान: यति १६ - १४, पदांत मगण, सम पदान्ती द्विपदिक मात्रिक छंद)
मराठी का लावणी छंद भी १६ - १४ मात्राओं का छन्द है किन्तु उसमें पदांत में मात्रा सम्बन्धी कोई नियम नहीं होता।)  
*
सोलह-चौदह यतिमय दो पद, मगण अंत में आया हो.
रचें छंद ताटंक कर्ण का, आभूषण लहराया हो..
*
आये हैं लड़ने चुनाव जो, सब्ज़ बाग़ दिखलायें क्यों?
झूठे वादे करते नेता, किंचित नहीं निभायें क्यों?
सत्ता पा घपले-घोटाले, करें नहीं शर्मायें क्यों?
न्यायालय से दंडित हों, खुद को निर्दोष बतायें क्यों?

जनगण को भारत माता को, करनी से भरमायें क्यों?
ईश्वर! आँखें मूंदें बैठे, 'सलिल' न पिंड छुड़ायें क्यों?
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facebook: sahiyta salila / sanjiv verma 'salil'

शनिवार, 9 नवंबर 2013

chhand salila: tatank chhand: - Dr. Satish Saxena

छंद सलिला:
ताटंक छंद 
डॉ. सतीश सक्सेना'शून्य'
मुझको हिन्दी प्यारी है

(छंद विधान-ताटंक:मात्रा ३०=१६,१४ पर विराम)

देवों की भाषा यह अनुपम जन मन गण की उत्थानी

सादा सरल सरस सुन्दर शुचि सुद्रढ़ सांस्कृतिक संधानी
सबका प्यार इसीने पाया सबकी ये जननी प्यारी
शब्द सरोबर अतुल राशि जल नवल उर्मियाँ अति प्यारी
ज्ञान और विज्ञान विपुल सत्चिन्तन की धारा भारी
विश्व रहेगा ऋणी सदा मानवता है जब तक जारी
अब भी अवसर है तुम चेतो वरना हार तुम्हारी है
करो प्रतिज्ञा आज सभी मिल हमको हिन्दी प्यारी है
मुझ को हिन्दी प्यारी है
सब को हिन्दी प्यारी है

अंग्रेज़ी वलिहारी है

(छंद विधान- वीर छंद मात्रा ३१=१६,१५ पर विराम )

पूज्य पिताजी' डेड' कहाते सड़ी लाश 'मम्मी' प्यारी
कहलाते स्वर्गीय 'लेट' जो शब्दों कीयह गति न्यारी
'ख़' को तो खागई विचारी 'घ','ड.' का तो पता नहीं
'च' 'छ' 'ज' 'झ' मिले कहीं ना 'त' 'थ' 'द' 'ध' नाम नहीं
'भ' का भाग भले ही फूटे 'श' 'ष' करी किनारी है
नहीं रीढ़ की अस्थि मगर व्याकरण कबड्डी जारी है
लिखें और कुछ पढ़ें और कुछ ये कैसी वीमारी है
तू तो 'तू' है तुम भी 'तुम' हो 'आप' नहीं लाचारी है
अंग्रेज़ी वलिहारी है ...