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शुक्रवार, 23 अगस्त 2013

muktika: sare jahan se achchha -sanjiv

मुक्तिका 
सारे जहाँ से अच्छा...
 संजीव 
*
सारे जहाँ से अच्छा है रुपैया हमारा 
डालर की कीमतों को हमने दिया सहारा
नेता हमें सिखाते, परदेश है सुरक्षित 
रिश्वत का धन जमाकर, हर रोज छिप निहारा 
काले हैं कारनामे, कुर्ते सफ़ेद पहने 
चोरों ने पाई सत्ता, संतों का भाग्य कारा 
है लक्ष्य मौज-मस्ती, श्रम-शर्म त्याज्य हमको 
कल कोई, आज कोई, कल कोई हुआ प्यारा 
वसुधा कुटुंब हमको, जग नीड़, देश भूले 
जो दे नहीं कमीशन, पल में उसे बिसारा 
हर दीन-हीन जन के, सेवक रईस हैं हम 
जिसने हमें जिताया, तत्क्षण वही है हारा 
अनुराग-मोह-माया, है हेय ले रहे हम 
उत्तम विराग लेकर, जनगण करे गुजारा 
अपने सुतों से ज्यादा, बेटे तुम्हारे प्यारे 
ली कुर्सी तुच्छ- देकर, सीमा का स्वर्ग सारा 

होकर शहीद खुद पर, तुम फख्र कर सकोगे 
सत्ता से दूर रखकर, हमने तुम्हें उबारा 
***