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मंगलवार, 8 जनवरी 2019

सरस्वती वंदना saraswati vandana

संवत १६७७ में रचित ढोला मारू दा दूहा से सरस्वती वंदना का दोहा :
सकल सुरासुर सामिनी, सुणि माता सरसत्ति.
विनय करीन इ वीनवुं, मुझ घउ अविरल मत्ति..

सभी सुरों की स्वामिनी, सुनिए शरद मात। 

विनय करूँ सर नवा- दो निर्मल मति सौगात।।
*
सरस्वती वंदना
अम्ब विमल मति दे.....
*
प्रचलित रूप

हे हंसवाहिनी! ज्ञानदायिनी!!
अंब विमल मति दे

जग सिरमौर बनायें भारत
वह बल विक्रम दे
अंब विमल मति दे

साहस शील ह्रदय में भर दे
जीवन त्याग तपोमय कर दे
संयम सत्य स्नेह का वर दे
स्वाभिमान भर दे
अंब विमल मति दे

लव कुश ध्रुव प्रह्लाद बनें हम
मानवता का त्रास हरें हम
सीता सावित्री दुर्गा माँ
फिर घर घर भर दे
अंब विमल मति दे

हे हंसवाहिनी! ज्ञानदायिनी!!
अंब विमल मति दे
*

१.
हे हंस वाहिनी! ज्ञानदायिनी!!
अम्ब विमल मति दे.....

नन्दन कानन हो यह धरती।
पाप-ताप जीवन का हरती।
हरियाली विकसे.....

बहे नीर अमृत सा पावन।
मलयज शीतल शुद्ध सुहावन।
अरुण निरख विहसे.....

कंकर से शंकर गढ़ पायें।
हिमगिरि के ऊपर चढ़ जाएँ।
आशिष अक्षय दे.....

हरा-भरा हो सावन-फागुन।
रम्य ललित त्रैलोक्य लुभावन।
सुख-समृद्धि सरसे.....

नेह-प्रेम से राष्ट्र सँवारें।
स्नेह समन्वय मन्त्र उचारें।
'सलिल' विमल प्रवहे.....
************************
२.
हे हंस वाहिनी! ज्ञानदायिनी!!
अम्ब विमल मति दे.....

जग सिरमौर बनाएँ भारत.
सुख-सौभाग्य करे नित स्वागत.
वह बल-विक्रम दे.....

साहस-शील हृदय में भर दे.
जीवन त्याग तपोमय करदे.
स्वाभिमान भर दे.....

लव-कुश, ध्रुव, प्रहलाद हम बनें.
मानवता का त्रास-तम् हरें.
स्वार्थ सकल तज दे.....

दुर्गा, सीता, गार्गी, राधा,
घर-घर हों काटें भव बाधा.
नवल सृष्टि रच दे....

सद्भावों की सुरसरि पावन.
स्वर्गोपम हो राष्ट्र सुहावन.
'सलिल' निरख हरषे...
*
३.
हे हंस वाहिनी! ज्ञानदायिनी!!
अम्ब विमल मति दे.....

नाद-ब्रम्ह की नित्य वंदना.
ताल-थापमय सलिल-साधना
सरगम कंठ सजे....,

रुन-झुन रुन-झुन नूपुर बाजे.
नटवर-नटनागर उर साजे.
रास-लास उमगे.....

अक्षर-अक्षर शब्द सजाये.
काव्य, छंद, रस-धार बहाये.
शुभ साहित्य सृजे.....

सत-शिव-सुंदर सृजन शाश्वत.
सत-चित-आनंद भजन भागवत.
आत्मदेव पुलके.....

कंकर-कंकर प्रगटें शंकर.
निर्मल करें 'सलिल' प्रलयंकर.
गुप्त चित्र प्रगटे.....
*
४.
हे हंस वाहिनी! ज्ञानदायिनी!!
अम्ब विमल मति दे.....

कलकल निर्झर सम सुर-सागर.
तड़ित-ताल के हों कर आगर.
कंठ विराजे सरगम हरदम-
सदय रहें नटवर-नटनागर.
पवन-नाद प्रवहे...

विद्युत्छटा अलौकिक वर दे.
चरणों मने गतिमयता भर डॉ.
अंग-अंग से भाव साधना-
चंचल 'सलिल' चारु चित कर दे.
तुहिन-बिंदु पुलके....

चित्र गुप्त, अक्षर संवेदन.
शब्द-ब्रम्ह का कलम निकेतन.
जियें मूल्य शाश्वत शुचि पावन-
जीवन-कर्मों का शुचि मंचन.
मन्वन्तर महके...
****************

गुरुवार, 30 जनवरी 2014

saraswati vandana 1


​​
​​सरस्वती वंदना 1 
संजीव
*
हे हंसवाहिनी! ज्ञान दायिनी!!
अम्ब विमल मति दे

*
नंदन कानन हो यह धरती
पाप-ताप जीवन का हरती
हरियाली विकसे …
*
बहे नीर अमृत सा पावन
मलयज शीतल, शुद्ध सुहावन
अरुण निरख विहँसे
*
कंकर से शंकर गढ़ पायें
हिमगिरि के ऊपर चढ़ पायें
वह बल-विक्रम दे …
​*​
​​
​हरा-भरा हो सावन-फागुन
रान्य ललित त्रैलोक्य लुभावन
सुख-समृद्धि सरसे …
*
नेह-प्रेम से राष्ट्र सँवारें
सदा समन्वय मंत्र उचारें
'सलिल' विमल प्रवहे  …
*​

Sanjiv verma 'Salil'
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