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रविवार, 14 अगस्त 2016

rakhi geet

राखी पर एक रचना
बंधनों से मुक्त हो जा
*
बंधनों से मुक्त हो जा
कह रही राखी मुखर हो
कभी अबला रही बहिना
बने सबला अब प्रखर हो
तोड़ देना वह कलाई
जो अचाहे राह रोके
काट लेना जुबां जो
फिकरे कसे या तुझे टोंके
सासरे जा, मायके से
टूट मत, संयुक्त हो जा
कह रही राखी मुखर हो
बंधनों से मुक्त हो जा
*
बलि न तेरे हौसलों को
रीति वामन कर सके अब
इरादों को बाँध राखी
तू सफलता वर सके अब
बाँध रक्षा सूत्र तू ही
ज़िंदगी को ज़िंदगी दे
हो समर्थ-सुयोग्य तब ही
समय तुझको बन्दगी दे
स्वप्न हर साकार करने
कोशिशों के बीज बो जा
नयी फसलें उगाना है
बंधनों से मुक्त हो जा
*
पूज्य बन जा राम राखी
तुझे बाँधेगा जमाना
सहायक हो बँधा लांबा
घरों में रिश्ते जिलाना
वस्त्र-श्रीफल कर समर्पित
उसे जो सब योग्य दिखता
अवनि की हर विपद हर ले
शक्ति-वंदन विश्व करता
कसर कोई हो न बाकी
दाग-धब्बे दिखे धो जा
शिथिल कर दे नेह-नाते
बंधनों से मुक्त हो जा
***
सन्दर्भ-
स्कंदपुराण, पद्मपुराण तथा श्रीमद्भागवत में वामनावतार प्रसंग के अनुसार दानवेन्द्र राजा बलि का अहंकार मिटाकर उसे जनसेवा के सत्पथ पर लाने के लिए भगवान विष्णु ने वामन रूप धारणकर भिक्षा में ३ पग धरती मांग कर तीन पगों में तीनों लोकों को नाप लिया तथा उसके मस्तक पर चरणस्पर्श कर उसे रसातल भेज दिया। बलि ने भगवान से सदा अपने समक्ष रहने का वर माँगा। नारद के सुझाये अनुसार इस दिन लक्ष्मी जी ने बलि को रक्षासूत्र बाँधकर भाई माना तथा विष्णु जी को वापिस प्राप्त किया।

भविष्योत्तर पुराण के अनुसार देव-दानव युद्ध में इंद्र की पराजय सन्निकट देख उसकी पत्नी शशिकला (इन्द्राणी) ने तपकर प्राप्त रक्षासूत्र श्रवण पूर्णिमा को इंद्र की कलाई में बाँधकर उसे इतना शक्तिशाली बना दिया की वह विजय प्राप्त कर सका।

गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं- 'मयि सर्वमिदं प्रोक्तं सूत्रे मणिगणा इव' अर्थात जिस प्रकार सूत्र बिखरे हुए मोतियों को अपने में पिरोकर माला के रूप में एक बनाये रखता है उसी तरह रक्षासूत्र लोगों को जोड़े रखता है।  प्रसंगानुसार विश्व में जब-जब नैतिक मूल्यों पर संकट आता है भगवान शिव प्रजापिता ब्रम्हा द्वारा पवित्र धागे भेजते हैं जिन्हें बाँधकर बहिने भाइयों को दुःख-पीड़ा से मुक्ति दिलाती हैं। भगवान कृष्ण ने महाभारत युद्ध में विजय हेतु युधिष्ठिर को सेना सहित रक्षाबंधन पर्व मनाने का निर्देश दिया था।

उत्तरांचल में इसे श्रावणी कहा जाता है तथा यजुर्वेदी विप्रों का उपकर्म (उत्सर्जन, स्नान, ऋषितर्पण आदि के पश्चात नवीन यज्ञोपवीत धारण किया जाता है.) राजस्थान में रामराखी (लालडोरे पर पीले फुंदने लगा सूत्र) भगवान को, चूड़ाराखी (भाभियों को चूड़ी में) या लांबा (भाई की कलाई में) बांधने की प्रथा है. मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ आदि में बहनें शुभ मुहूर्त में भाई-भाभी को तिलक लगाकर राखी बांधकर मिठाई खिलाती तथा उपहार प्राप्त कर आशीष देती हैं. महाराष्ट्र में इसे नारियल पूर्णिमा कहा जाता है. इस दिन समुद्र, नदी तालाब आदि में स्नान कर जनेऊ बदलकर वरुणदेव को श्रीफल (नारियल) अर्पित किया जाता है. उड़ीसा, तमिलनाडु व् केरल में यह अवनिअवित्तम कहा जाता है. जलस्रोत में स्नानकर  यज्ञोपवीत परिवर्तन व ऋषि का तर्पण किया जाता है. 











रविवार, 10 अगस्त 2014

haiku: sanjiv

हाइकु सलिला:

संजीव
*
रक्षाबंधन

निबल को बली का 

दे संरक्षण।
*
भाई-बहिन

हैं पौधे के दो फूल

सदा महकें।
*
मन से मन

जोड़ दूरी मिटाता

राखी त्यौहार।
*



शनिवार, 9 अगस्त 2014

विश्व बंधुत्व का महापर्व रक्षाबंधन : संजीव

: विश्व बंधुत्व का महापर्व रक्षाबंधन :
संजीव 
*
इस वर्ष इस वर्ष राखी बांधने का शास्त्रोक्त समय (अपरहरण) भद्रा से मुक्त है। रक्षाबंधन अपरान्ह १.३८ बजे से रात्रि ९.११ बजे  तक करें। अपरान्ह १.४५ बजे से ४.२३ बजे तक तथा प्रदोषकाल में संध्या ७.०१ बजे से रात्रि ९.११ बजे तक का समय विशेष शुभ है। भद्रापुच्छकाल प्रातः १०.०८ से ११.०८ भद्रामुख ११.०८ से १२.४८ तथा भद्रा मोक्ष १.३८ तक है। निर्णयसिन्धु के अनुसार:

इदं भद्रायां न कार्यं। भद्रयान द्वे न कर्तव्ये श्रावणी फाल्गुनी तथा 
श्रावणी नृपंति हन्ति ग्रामं दहति फाल्गुनी। इति संग्रहोक्ते 
ततस्त्वे तु रात्रावपि तदन्ते कुर्यादिति निर्णयामृते। 

भद्रा विना चेदपरान्हे तदापरा तत्सवे तु रात्रावप्रीत्यर्थ:

तदनुसार भद्रा में श्रावणी राजा (प्रमुख) का नाश तथा फाल्गुनी ग्राम (गृह) का दहन करती है. लोकश्रुति है कि लंकापति रावण ने भद्रा में अपनी बहिन चंद्रनखा (शूर्पणखा) से राखी बनवाई थी और एक वर्ष के अंदर उसका तथा लंका का नाश हो गया था. अत: भद्रा के पश्चात ही (भले ही रात्रि में) रक्षाबंधन करें। अपरिहार्य परिस्थिति में भद्रापुच्छकाल में रक्षासूत्र बंधन किया जा सकता है  किन्तु भद्रामुख काल में राखी कदापि न बांधें।

रक्षा बंधन के पूूर्व स्नान कर शुभ मुहूर्त में भगवान को राखी समर्पित करें। बहिन भाई-भाभी के मस्तक पर जल सिंचन कर चन्दन, हल्दी, रोली, अक्षत,पुष्प से तिलककर दाहिने हाथ की कलाई में रक्षा बंधन मंत्र- 'येनबद्धो  बलि: राजा दानवेन्द्रो महाबल: तेन त्वामभिबध्नामि रक्षे मा चालमाचल' पढ़ते हुए राखी बाँधे, मिठाई खिलाये तथा ईश्वर से उनकी विजय की कामना करे। भाई-भाभी बहन-नन्द को यथाशक्ति उपहार (शुभ वस्तुएँ वस्त्र, आभूषण, ग्रन्थ आदि) देकर चरणस्पर्श करें तथा वचन दें कि आजीवन उसके सहायक होकर रक्षा करेंगे।

भारतीय संस्कृति में पर्वो और महोत्सवों का महत्व सर्वविदित है। ऋतु परिवर्तन, उदात्त मूल्य संस्थापन तथा विश्व साहचर्य पर्वों को मनाने के प्रमुख कारक रहे हैं। श्रावणी पूर्णिमा को श्रवण नक्षत्र में प्रात:काल से दो प्रहर छोड़कर मनाया जानेवाला रक्षाबंधन (राखी) पर्व उक्त तीनों दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण है।इस दिन स्नान-ध्यानादि से निवृत्त होकर बहिनें भाई के मस्तक पर तिलक कर दाहिनी कलाई पर रक्षा सूत्र बाँधकर, मिष्ठान्न खिलाकर उसकी दीर्घायु तथा विजय की कामना करती हैं और भाई बहिन की रक्षा कर हर स्थिति में साथ निभाने का वचन तथा उपहार देता है।आरम्भ में यह पर्व केवल भाई-बहिन तक सीमित नहीं था। विप्र तथा सेवक अपने यजमान तथा स्वामी को रक्षासूत्र बाँधकर दक्षिणा व संरक्षण प्राप्त करते हैं। 

पौराणिक / ऐतिहासिक गाथाएँ:

स्कंदपुराण, पद्मपुराण तथा श्रीमद्भागवत में वामनावतार प्रसंग के अनुसार दानवेन्द्र राजा बलि का अहंकार मिटाकर उसे जनसेवा के सत्पथ पर लाने के लिए भगवान विष्णु ने वामन रूप धारणकर भिक्षा में ३ पग धरती मांग कर तीन पगों में तीनों लोकों को नाप लिया तथा बलि  अनुसार उसके मस्तक पर चरणस्पर्श कर उसे रसातल भेज दिया। बलि ने भगवान से सदा अपने समक्ष रहने का वर माँगा। नारद के सुझाये अनुसार इस दिन लक्ष्मी जी ने बलि को रक्षासूत्र बाँधकर भाई माना तथा विष्णु जी को वापिस प्राप्त किया।      

विष्णुपुराण के अनुसार श्रावण पूर्णिमा को भगवान विष्णु ने विद्या-बुद्धि के प्रतीक हयग्रीव का अवतार लेकर भगवान ब्रम्हा के लिए वेदों को पुनः प्राप्त किया था। गुरुपूर्णिमा को प्रारम्भ अमरनाथ यात्रा का समापन श्रवण पूर्णिमा को होता है तथा हिमानी (बर्फानी) शिवलिंग पूर्ण होता है जिसका दिव्य अभिषेक किया जाता है।

भविष्योत्तर पुराण के अनुसार देव-दानव युद्ध में इंद्र की पराजय सन्निकट देख उसकी पत्नी शशिकला (इन्द्राणी) ने तपकर प्राप्त रक्षासूत्र श्रवण पूर्णिमा को इंद्र की कलाई में बाँधकर उसे इतना शक्तिशाली बना दिया की वह विजय प्राप्त कर सका।

गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं- 'मयि सर्वमिदं प्रोक्तं सूत्रे मणिगणा इव' अर्थात जिस प्रकार सूत्र बिखरे हुए मोतियों को अपने में पिरोकर माला के रूप में एक बनाये रखता है उसी तरह रक्षासूत्र लोगों को जोड़े रखता है।  प्रसंगानुसार विश्व में जब-जब नैतिक मूल्यों पर संकट आता है भगवान शिव प्रजापिता ब्रम्हा द्वारा पवित्र धागे भेजते हैं जिन्हें बाँधकर बहिने भाइयों को दुःख-पीड़ा से मुक्ति दिलाती हैं।भगवान कृष्ण ने महाभारत युद्ध में विजय हेतु युधिष्ठिर को सेना सहित रक्षाबंधन पर्व मनाने का निर्देश दिया था। 

संप्राप्ते श्रावणस्यान्ते पौर्णमास्या दिने-दये
स्नानंकुर्वीत मतिमान श्रुति-स्मृति विधानतः 
उपाकरमोदिकं प्रोक्तमृषीणां चैव तर्पणं 
शूद्राणां मंत्ररहितं स्नानं दानं प्रशस्यते 
उपाकर्माणि कर्तव्य मृषीणां चैव पूजनं  
ततोsपरान्हसमये रक्षापोटलिकां शुभां 
कारयेदक्षतेशस्तैः सिद्धार्थेर्हेमभूषितैः।  इति 

अत्रोपाकर्मान्तरस्य पूर्णातिथावार्थिकास्योनुवादो न तु विधिः 
गौरवात प्रयोगविधिभेदेन क्रमायोगाच्छुद्रादौ तदयोगाच्च 
तेन परेद्युरूपाकरणेsपि पूर्वेद्युरपरान्हे तत्करणं सिद्धं   

राष्ट्रीय पर्व:

उत्तरांचल में इसे श्रावणी कहा जाता है तथा यजुर्वेदी विप्रों का उपकर्म (उत्सर्जन, स्नान, ऋषितर्पण आदि के पश्चात नवीन यज्ञोपवीत धारण किया जाता है.) राजस्थान में रामराखी (लालडोरे पर पीले फुंदने लगा सूत्र) भगवान को, चूड़ाराखी (भाभियों को चूड़ी में) या लांबा (भाई की कलाई में) बांधने की प्रथा है. मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ आदि में बहनें शुभ मुहूर्त में भाई-भाभी को तिलक लगाकर राखी बांधकर मिठाई खिलाती तथा उपहार प्राप्त कर आशीष देती हैं. महाराष्ट्र में इसे नारियल पूर्णिमा कहा जाता है. इस दिन समुद्र, नदी तालाब आदि में स्नान कर जनेऊ बदलकर वरुणदेव को श्रीफल (नारियल) अर्पित किया जाता है. उड़ीसा, तमिलनाडु व् केरल में यह अवनिअवित्तम कहा जाता है. जलस्रोत में स्नानकर  यज्ञोपवीत परिवर्तन व ऋषि का तर्पण किया जाता है. 
रक्षा बंधन पर बहिन को पाती:
*
बहिन! शुभ आशीष तेरा, भाग्य का मंगल तिलक
भाई वंदन कर रहा, श्री चरण का हर्षित-पुलक

भगिनियाँ शुचि मातृ-छाया, स्नेहमय कर हैं वरद
वृष्टि देवाशीष की, करतीं सतत- जीवन सुखद

स्नेह से कर भाई की रक्षा उसे उपकारतीं
आरती से विघ्न करतीं दूर, फिर मनुहारतीं

कभी दीदी, कभी जीजी, कभी वीरा है बहिन
कभी सिस्टर, भगिनी करती सदा ममता ही वहन

शक्ति-शारद-रमा की तुझमें त्रिवेणी है अगम
'सलिल' को भव-मुक्ति का साधन हुई बहिना सुगम

थामकर कर द्वयों में दो कुलों को तू बाँधती
स्नेह-सिंचन श्वास के संग आस नित नव राँधती

निकट हो दूर, देखी या अदेखी हो बहिन
भाग्य है वह भाई का, श्री चरण में शत-शत नमन 
---------------------------------------------------------
Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in

बुधवार, 21 अगस्त 2013

message to sister on raksha bandhan -sanjiv

रक्षा बंधन पर बहिन को पाती:
संजीव 
*
बहिन! शुभ आशीष तेरा, भाग्य का मंगल तिलक
भाई वंदन कर रहा, श्री चरण का हर्षित-पुलक
भगिनियाँ शुचि मातृ-छाया, स्नेहमय कर हैं वरद
वृष्टि देवाशीष की, करतीं सतत- जीवन सुखद
स्नेह से कर भाई की रक्षा उसे उपकारतीं
आरती से विघ्न करतीं दूर, फिर मनुहारतीं
कभी दीदी, कभी जीजी, कभी वीरा है बहिन
कभी सिस्टर, भगिनी करती सदा ममता ही वहन
शक्ति-शारद-रमा की तुझमें त्रिवेणी है अगम
'सलिल' को भव-मुक्ति का साधन हुई बहिना सुगम
थामकर कर द्वयों में दो कुलों को तू बाँधती
स्नेह-सिंचन श्वास के संग आस नित नव राँधती
निकट हो दूर, देखी या अदेखी हो बहिन
भाग्य है वह भाई का, श्री चरण में शत-शत नमन
---------------------------------------------------------
Sanjiv verma 'Salil'
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in

बुधवार, 5 दिसंबर 2012

राखी के रंग 2012:

राखी के रंग 2012:



अग्रजा आशा जिज्जी से राखी बंधवाते मैं तथा साधना जी


राखी नातों का त्यौहार साधना - आशा जिज्जी


अनुजा सुषमा तिलक लगाती 

 
राखी बंधवा ले मेरे बीर 


भाभी साधना को राखी बांधती सुषमा
 

कितना किस्मतवाला हूँ मैं: ऐसी बहिनें कहाँ मिलेंगी



मिठास की सुवास


बिन मिठाई त्यौहार न होता:


मिल-बनते बिन खाओ तो पचा न पाओ यार


 अनुज राजीव को राखी बांधती आशा जिज्जी


अनुज-वधु पूनम को राखी बांधती आशा जिज्जी


अनुज राजीव को रसगुल्ला खिलाती सुषमा




अब बारी भौजाई की




बाल मित्र अशोक तथा भाभी आशा नोगरैया को राखी
बांधती आशा जिज्जी 



मेरी बहिनें छोटी सुषमा और बड़ी आशा जिज्जी
काश पुष्पा जिज्जी और किरण जिज्जी भी होतीं


हिमाचली टोपी और बंगाली रसगुल्ला मध्य प्रदेश में
है न राष्ट्रीय एकता ...


हम किसी से कम नहीं


अगली पीढ़ी मन्वंतर, अंचित, प्रियंक, मयंक






 

अब बारी अर्पिता की









नच बलिये ...



शुक्रवार, 12 अगस्त 2011

विशेष रचना: पर्व नव सद्भाव के संजीव 'सलिल'

विशेष रचना:                                                                                
पर्व नव सद्भाव के
संजीव 'सलिल'
*
हैं आ गये राखी कजलियाँ, पर्व नव सद्भाव के.
सन्देश देते हैं न पकड़ें, पंथ हम अलगाव के..

भाई-बहिन सा नेह-निर्मल, पालकर आगे बढ़ें.
सत-शिव करें मांगल्य सुंदर, लक्ष्य सीढ़ी पर चढ़ें..

शुभ सनातन थाती पुरातन, हमें इस पर गर्व है.
हैं जानते वह व्याप्त सबमें, प्रिय उसे जग सर्व है..

शुभ वृष्टि जल की, मेघ, बिजली, रीझ नाचे मोर-मन.
कब बंधु आये? सोच प्रमुदित, हो रही बहिना मगन..

धारे वसन हरितिमा के भू, लग रही है षोडशी.
सलिला नवोढ़ा नारियों सी, कथा है नव मोद की..

शालीनता तट में रहें सब, भंग ना मर्याद हो.
स्वातंत्र्य उच्छ्रंखल न हो यह,  मर्म सबको याद हो..

बंधन रहे कुछ तभी तो हम, गति-दिशा गह पायेंगे.
निर्बंध होकर गति-दिशा बिन, शून्य में खो जायेंगे..

बंधन अप्रिय लगता हमेशा, अशुभ हो हरदम नहीं.
रक्षा करे बंधन 'सलिल' तो, त्याज्य होगा क्यों कहीं?

यह दृष्टि भारत पा सका तब, जगद्गुरु कहला सका.
रिपुओं का दिल संयम-नियम से, विजय कर दहला सका..

इतिहास से ले सबक बंधन, में बंधें हम एक हों.
संकल्पकर इतिहास रच दें, कोशिशें शुभ नेक हों..

****************************************************
टिप्पणी: हरिगीतिका मुक्त मात्रिक छंद,  दो पद, चार चरण,१६-१२ पर यति. सूत्र: हरिगीतिका हरिगीतिका हरि, गीतिका हरिगीतिका.
हरिगीतिका है छंद मात्रिक, पद-चरण दो-चार हैं.
सोलह और बारह कला पर, रुक-बढ़ें यह सार है.

Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

राखी सुहावन पर्व पावन -- आलोक सीतापुरी

हरिगीतिका:
१
सावन सुहावन आज पूरन पूनमी भिनसार है,
भैया बहन खुश हैं कि जैसे मिल गया संसार है|
राखी सलोना पर्व पावन, मुदित घर परिवार है,
आलोक भाई की कलाई पर बहन का प्यार है ||
२
भाई बहन के पाँव छूकर दे रहा उपहार है,
बहना अनुज के बाँध राखी हो रही बलिहार है|  
टीका मनोहर भाल पर शुभ मंगलम त्यौहार है
आलोक भाई की कलाई पर बहन का प्यार है ||
३
सावन पुरातन प्रेम पुनि-पुनि, सावनी बौछार है,
रक्षा शपथ ले करके भाई, सर्वदा तैयार है|
यह सूत्र बंधन तो अपरिमित, नेह का भण्डार है,
आलोक भाई की कलाई पर बहन का प्यार है||       
४
बहना समझना मत कभी यह बन्धु कुछ लाचार है,
मैंने दिया है नेग प्राणों का कहो स्वीकार है |
राखी दिलाती याद पावन, प्रेम मय संसार है,
आलोक भाई की कलाई पर बहन का प्यार है||



































































































































































राखी सुहावन पर्व पावन
आलोक सीतापुरी
हरिगीतिका छंद :

सावन सुहावन आज पूरन पूनमी भिनसार है,
भैया बहन खुश हैं कि जैसे मिल गया संसार है|
राखी सलोना पर्व पावन, मुदित घर परिवार है,
आलोक भाई की कलाई पर बहन का प्यार है ||

भाई बहन के पाँव छूकर दे रहा उपहार है,
बहना अनुज के बाँध राखी हो रही बलिहार है|
टीका मनोहर भाल पर शुभ मंगलम त्यौहार है
आलोक भाई की कलाई पर बहन का प्यार है ||

सावन पुरातन प्रेम पुनि-पुनि, सावनी बौछार है,
रक्षा शपथ ले करके भाई, सर्वदा तैयार है|
यह सूत्र बंधन तो अपरिमित, नेह का भण्डार है,
आलोक भाई की कलाई पर बहन का प्यार है||

बहना समझना मत कभी यह बन्धु कुछ लाचार है,
मैंने दिया है नेग प्राणों का कहो स्वीकार है |
राखी दिलाती याद पावन, प्रेम मय संसार है,
आलोक भाई की कलाई पर बहन का प्यार है

शनिवार, 6 अगस्त 2011

राखी पर काव्यांजलि: शुभद राखी मन मोहे.. अम्बरीश श्रीवास्तव

राखी पर काव्यांजलि:                                                                    
शुभद राखी मन मोहे..
अम्बरीश श्रीवास्तव
*


एक छप्पय:
*
लेकर पूजन-थाल प्रात ही बहिना आई.
उपजे नेह प्रभाव, बहुत हर्षित हो भाई..
पूजे वह सब देव, तिलक माथे पर सोहे.
बँधे दायें हाथ, शुभद राखी मन मोहे..
हों धागे कच्चे ही भले, बंधन दिल के शेष हैं.
पुनि सौम्य उतारे आरती, राखी पर्व विशेष है..
दो कुण्डलियाँ:
रक्षा बंधन पर्व दे, खुशियाँ शत अनमोल,
बहना-भैया हैं मगन, मीठा-मीठा बोल.      
मीठा-मीठा बोल, सभी से बढ़कर आगे.
बंधन सदा अटूट, बने राखी के धागे,        
अम्बरीष यह नेह, मिला तो पुण्य फले हैं.
रक्षा करें बहिन की, ले संकल्प चले हैं..

आई श्रावण-पूर्णिमा, रक्षाबंधन नाम,
जन-जन में उल्लास है, हर्षित अपने राम.
हर्षित अपने राम, खिलाये सिवईं बहना,
सदा रहे खुशहाल,यही हम सबका कहना.
अम्बरीष जो आज, प्रकृति खुशहाली लाई.
सब वृक्षों को बाँध, सभी संग राखी भाई..
*