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बुधवार, 5 दिसंबर 2012

राखी के रंग 2012:

राखी के रंग 2012:



अग्रजा आशा जिज्जी से राखी बंधवाते मैं तथा साधना जी


राखी नातों का त्यौहार साधना - आशा जिज्जी


अनुजा सुषमा तिलक लगाती 

 
राखी बंधवा ले मेरे बीर 


भाभी साधना को राखी बांधती सुषमा
 

कितना किस्मतवाला हूँ मैं: ऐसी बहिनें कहाँ मिलेंगी



मिठास की सुवास


बिन मिठाई त्यौहार न होता:


मिल-बनते बिन खाओ तो पचा न पाओ यार


 अनुज राजीव को राखी बांधती आशा जिज्जी


अनुज-वधु पूनम को राखी बांधती आशा जिज्जी


अनुज राजीव को रसगुल्ला खिलाती सुषमा




अब बारी भौजाई की




बाल मित्र अशोक तथा भाभी आशा नोगरैया को राखी
बांधती आशा जिज्जी 



मेरी बहिनें छोटी सुषमा और बड़ी आशा जिज्जी
काश पुष्पा जिज्जी और किरण जिज्जी भी होतीं


हिमाचली टोपी और बंगाली रसगुल्ला मध्य प्रदेश में
है न राष्ट्रीय एकता ...


हम किसी से कम नहीं


अगली पीढ़ी मन्वंतर, अंचित, प्रियंक, मयंक






 

अब बारी अर्पिता की









नच बलिये ...



शुक्रवार, 12 अगस्त 2011

विशेष रचना: पर्व नव सद्भाव के संजीव 'सलिल'

विशेष रचना:                                                                                
पर्व नव सद्भाव के
संजीव 'सलिल'
*
हैं आ गये राखी कजलियाँ, पर्व नव सद्भाव के.
सन्देश देते हैं न पकड़ें, पंथ हम अलगाव के..

भाई-बहिन सा नेह-निर्मल, पालकर आगे बढ़ें.
सत-शिव करें मांगल्य सुंदर, लक्ष्य सीढ़ी पर चढ़ें..

शुभ सनातन थाती पुरातन, हमें इस पर गर्व है.
हैं जानते वह व्याप्त सबमें, प्रिय उसे जग सर्व है..

शुभ वृष्टि जल की, मेघ, बिजली, रीझ नाचे मोर-मन.
कब बंधु आये? सोच प्रमुदित, हो रही बहिना मगन..

धारे वसन हरितिमा के भू, लग रही है षोडशी.
सलिला नवोढ़ा नारियों सी, कथा है नव मोद की..

शालीनता तट में रहें सब, भंग ना मर्याद हो.
स्वातंत्र्य उच्छ्रंखल न हो यह,  मर्म सबको याद हो..

बंधन रहे कुछ तभी तो हम, गति-दिशा गह पायेंगे.
निर्बंध होकर गति-दिशा बिन, शून्य में खो जायेंगे..

बंधन अप्रिय लगता हमेशा, अशुभ हो हरदम नहीं.
रक्षा करे बंधन 'सलिल' तो, त्याज्य होगा क्यों कहीं?

यह दृष्टि भारत पा सका तब, जगद्गुरु कहला सका.
रिपुओं का दिल संयम-नियम से, विजय कर दहला सका..

इतिहास से ले सबक बंधन, में बंधें हम एक हों.
संकल्पकर इतिहास रच दें, कोशिशें शुभ नेक हों..

****************************************************
टिप्पणी: हरिगीतिका मुक्त मात्रिक छंद,  दो पद, चार चरण,१६-१२ पर यति. सूत्र: हरिगीतिका हरिगीतिका हरि, गीतिका हरिगीतिका.
हरिगीतिका है छंद मात्रिक, पद-चरण दो-चार हैं.
सोलह और बारह कला पर, रुक-बढ़ें यह सार है.

Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

राखी सुहावन पर्व पावन -- आलोक सीतापुरी

हरिगीतिका:
१
सावन सुहावन आज पूरन पूनमी भिनसार है,
भैया बहन खुश हैं कि जैसे मिल गया संसार है|
राखी सलोना पर्व पावन, मुदित घर परिवार है,
आलोक भाई की कलाई पर बहन का प्यार है ||
२
भाई बहन के पाँव छूकर दे रहा उपहार है,
बहना अनुज के बाँध राखी हो रही बलिहार है|  
टीका मनोहर भाल पर शुभ मंगलम त्यौहार है
आलोक भाई की कलाई पर बहन का प्यार है ||
३
सावन पुरातन प्रेम पुनि-पुनि, सावनी बौछार है,
रक्षा शपथ ले करके भाई, सर्वदा तैयार है|
यह सूत्र बंधन तो अपरिमित, नेह का भण्डार है,
आलोक भाई की कलाई पर बहन का प्यार है||       
४
बहना समझना मत कभी यह बन्धु कुछ लाचार है,
मैंने दिया है नेग प्राणों का कहो स्वीकार है |
राखी दिलाती याद पावन, प्रेम मय संसार है,
आलोक भाई की कलाई पर बहन का प्यार है||



































































































































































राखी सुहावन पर्व पावन
आलोक सीतापुरी
हरिगीतिका छंद :

सावन सुहावन आज पूरन पूनमी भिनसार है,
भैया बहन खुश हैं कि जैसे मिल गया संसार है|
राखी सलोना पर्व पावन, मुदित घर परिवार है,
आलोक भाई की कलाई पर बहन का प्यार है ||

भाई बहन के पाँव छूकर दे रहा उपहार है,
बहना अनुज के बाँध राखी हो रही बलिहार है|
टीका मनोहर भाल पर शुभ मंगलम त्यौहार है
आलोक भाई की कलाई पर बहन का प्यार है ||

सावन पुरातन प्रेम पुनि-पुनि, सावनी बौछार है,
रक्षा शपथ ले करके भाई, सर्वदा तैयार है|
यह सूत्र बंधन तो अपरिमित, नेह का भण्डार है,
आलोक भाई की कलाई पर बहन का प्यार है||

बहना समझना मत कभी यह बन्धु कुछ लाचार है,
मैंने दिया है नेग प्राणों का कहो स्वीकार है |
राखी दिलाती याद पावन, प्रेम मय संसार है,
आलोक भाई की कलाई पर बहन का प्यार है

मंगलवार, 9 अगस्त 2011

दोहा सलिला: अलंकारों के रंग-राखी के संग संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:                                                                                  
अलंकारों के रंग-राखी के संग
संजीव 'सलिल'
*
राखी ने राखी सदा, बहनों की मर्याद.
संकट में भाई सदा, पहलें आयें याद..
राखी= पर्व, रखना.
राखी की मक्कारियाँ, राखी देख लजाय.
आग लगे कलमुँही में, मुझसे सही न जाय..
राखी= अभिनेत्री, रक्षा बंधन पर्व.
मधुरा खीर लिये हुए, बहिना लाई थाल.
किसको पहले बँधेगी, राखी मचा धमाल..

अक्षत से अ-क्षत हुआ, भाई-बहन का नेह.
देह विदेहित हो 'सलिल', तनिक नहीं संदेह..
अक्षत = चाँवल के दाने,क्षतिहीन.
रो ली, अब हँस दे बहिन, भाई आया द्वार.
रोली का टीका लगा, बरसा निर्मल प्यार..
रो ली= रुदन किया, तिलक करने में प्रयुक्त पदार्थ.
बंध न सोहे खोजते, सभी मुक्ति की युक्ति.
रक्षा बंधन से कभी, कोई न चाहे मुक्ति..

हिना रचा बहिना करे, भाई से तकरार.
हार गया तू जीतकर, जीत गयी मैं हार..

कब आएगा भाई? कब, होगी जी भर भेंट?
कुंडी खटकी द्वार पर, भाई खड़ा ले भेंट..
भेंट= मिलन, उपहार.
मना रही बहिना मना, कहीं न कर दे सास.
जाऊँ मायके माय के, गले लगूँ है आस..
मना= मानना, रोकना.
गले लगी बहिना कहे, हर संकट हो दूर.
नेह बर्फ सा ना गले, मन हरषे भरपूर..
गले=कंठ, पिघलना.
*
Acharya Sanjiv Salil

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सोमवार, 8 अगस्त 2011

दोहा सलिला: राखी साखी स्नेह की संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:
राखी साखी स्नेह की
संजीव 'सलिल'
*
राखी साखी स्नेह की, पढ़ें-गुनें जो लोग.
बैर द्वेष नफरत 'सलिल', बनें न उनका रोग..
*
रेशम धागे में बसा, कोमलता का भाव.
स्वर्ण-राखियों में मिला, इसका सदा अभाव..
*
राखी रिश्ता प्रेम का, नहीं स्वार्थ-परमार्थ.
समरसता का भाव ही, श्रेष्ठ- करे सर्वार्थ,,
*
मन से मन का मेल है, तन का तनिक न खेल.
भैया को सैयां बना, मल में नहीं धकेल..
(ममेरे-फुफेरे भाई-बहिन के विवाह का समाचार पढ़कर)
*
भाई का मंगल मना, बहिना हुई सुपूज्य.
बहिना की रक्षा करे, भैया बन कुलपूज्य..
*
बंध न बंधन में 'सलिल', यदि हो रीत कुरीत.
गंध न निर्मल स्नेह की, गर हो व्याप्त प्रतीत..
*
बंधु-बांधवी जब मिलें, खिलें हृदय के फूल.
ज्यों नदिया की धार हो, साथ लिये निज कूल..
*
हरे अमंगल हर तुरत, तिलक लगे जब माथ.
सिर पर किस्मत बन रखे, बहिना आशिष-हाथ..
*
तिल-तिल कर संकट हरे, अक्षत-तिलक समर्थ.
अ-क्षत भाई को करे, बहिना में सामर्थ..
*
भाई-बहिन रवि-धरा से, अ-धरा उनका नेह.
मन से तनिक न दूर हों, दूर भले हो गेह..
*

घनाक्षरी सलिला: सावनी घनाक्षरी संजीव 'सलिल'

घनाक्षरी सलिला:                                                                        
सावनी घनाक्षरी
संजीव 'सलिल'
*
सावन में झूम-झूम, डालों से लूम-लूम, झूला झूल दुःख भूल, हँसिए हँसाइये.
एक दूसरे की बाँह, गहें बँधें रहे चाह, एक दूसरे को चाह, कजरी सुनाइये..
दिल में रहे न दाह, तन्नक पले न डाह, मन में भरे उछाह, पेंग को बढ़ाइए.
राखी की है साखी यही, पले प्रेम-पाखी यहीं, भाई-भगिनी का नाता, जन्म भर निभाइए..
*
बागी थे हों अनुरागी, विरागी थे हों सुहागी, कोई भी न हो अभागी, दैव से मनाइए.
सभी के माथे हो टीका, किसी का न पर्व फीका, बहनों का नेह नीका, राखी-गीत गाइए..
कलाई रहे न सूनी, राखी बाँध शोभा दूनी, आरती की ज्वाल धूनी, अशुभ मिटाइए.
मीठा खाएँ मीठा बोलें, जीवन में रस घोलें, बहना के पाँव छूलें, शुभाशीष पाइए..
*
बंधन न रास आये, बँधना न मन भाये, स्वतंत्रता ही सुहाये, सहज स्वभाव है.
निर्बंध अगर रहें, मर्याद को न गहें, कोई किसी को न सहें, चैन का अभाव है..
मना राखी नेह पर्व, करिए नातों पे गर्व, निभायें संबंध सर्व, नेह का निभाव है.
बंधन जो प्रेम का हो, कुशल का क्षेम का हो, धरम का नेम हो, 'सलिल' सत्प्रभाव है..
*
संकट में लाज थी, गिरी सिर पे गाज थी, शत्रु-दृष्टि बाज थी, नैया कैसे पार हो?
कर्मावती महारानी, पूजतीं माता भवानी, शत्रु है बली बहुत, देश की न हार हो..
राखी हुमायूँ को भेजी, बादशाह ने सहेजी, बहिन की पत राखी, नेह का करार हो.
शत्रु को खदेड़ दिया, बहिना को मान दिया, नेह का जलाया दिया, भेंट स्वीकार हो..
*
महाबली बलि को था, गर्व हुआ संपदा का, तीन लोक में नहीं है, मुझ सा कोई धनी.
मनमानी करूँ भी तो, रोक सकता न कोई, हूँ सुरेश से अधिक, शक्तिवान औ' गुनी..
महायज्ञ कर दिया, कीर्ति यश बल लिया, हरि को दे तीन पग, धरा मौन था गुनी.
सभी कुछ छिन गया, मुख न मलिन हुआ, हरि की शरण गया, सेवा व्रत  ले धुनी.

बाधा दनु-गुरु बने, विपद मेघ थे घने, एक नेत्र गँवा भगे, थी व्यथा अनसुनी.
रक्षा सूत्र बाँधे बलि, हरि से अभय मिली, हृदय की कली खिली, पटकथा यूँ बनी.
विप्र जब द्वार आये, राखी बांध मान पाये, शुभाशीष बरसाये, फिर न हो ठनाठनी.
कोई किसी से न लड़े, हाथ रहें मिले-जुड़े, साथ-साथ हों खड़े, राखी मने सावनी..
*
Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

शनिवार, 6 अगस्त 2011

राखी पर काव्यांजलि: शुभद राखी मन मोहे.. अम्बरीश श्रीवास्तव

राखी पर काव्यांजलि:                                                                    
शुभद राखी मन मोहे..
अम्बरीश श्रीवास्तव
*


एक छप्पय:
*
लेकर पूजन-थाल प्रात ही बहिना आई.
उपजे नेह प्रभाव, बहुत हर्षित हो भाई..
पूजे वह सब देव, तिलक माथे पर सोहे.
बँधे दायें हाथ, शुभद राखी मन मोहे..
हों धागे कच्चे ही भले, बंधन दिल के शेष हैं.
पुनि सौम्य उतारे आरती, राखी पर्व विशेष है..
दो कुण्डलियाँ:
रक्षा बंधन पर्व दे, खुशियाँ शत अनमोल,
बहना-भैया हैं मगन, मीठा-मीठा बोल.      
मीठा-मीठा बोल, सभी से बढ़कर आगे.
बंधन सदा अटूट, बने राखी के धागे,        
अम्बरीष यह नेह, मिला तो पुण्य फले हैं.
रक्षा करें बहिन की, ले संकल्प चले हैं..

आई श्रावण-पूर्णिमा, रक्षाबंधन नाम,
जन-जन में उल्लास है, हर्षित अपने राम.
हर्षित अपने राम, खिलाये सिवईं बहना,
सदा रहे खुशहाल,यही हम सबका कहना.
अम्बरीष जो आज, प्रकृति खुशहाली लाई.
सब वृक्षों को बाँध, सभी संग राखी भाई..
*