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मंगलवार, 24 फ़रवरी 2015

एक व्यंग्य कथा : साहित्यिक जुमला


---- पण्ड्ति जी आँखें मूँद,बड़े मनोयोग से राम-कथा सुना रहे थे और भक्तजन बड़ी श्रद्धा से सुन रहे थे। सीता विवाह में धनुष-भंग का प्रसंग था-
पण्डित जे ने चौपाई पढ़ी
"भूप सहस दस एक ही बारा
लगे उठावन टरई  न टारा "

- अर्थात हे भक्तगण ! उस सभा में "शिव-धनुष’ को एक साथ दस हज़ार राजा उठाने चले...अरे ! उठाने की कौन कहे.वो तो ...
तभी एक भक्त ने शंका प्रगट किया-- पण्डित जी !  ’दस-हज़ार राजा !! एक साथ ? कितना बड़ा मंच रहा होगा? असंभव !
पण्डित जी ने कहा -" वत्स ! शब्द पर न जा ,भाव पकड़ ,भाव । यह साहित्यिक ’जुमला’ है । कवि लोग कविता में प्रभाव लाने के लिए ऐसा लिखते ही रहते है"
भक्त- " पर तुलसी दास जी ’हज़ारों’ भी तो लिख सकते थे ....। "दस हज़ार" तो ऐसे लग रहा है जैसे "काला धन" का 15-15 लाख रुपया सबके एकाउन्ट में    आ गया
पण्डित जी- " राम ! राम ! राम! किस पवित्र प्रसंग में क्या प्रसंग घुसेड़ दिया। बेटा ! 15-15 लाख रुपया वाला ’चुनावी जुमला" था । नेता लोग चुनाव में प्रभाव लाने के लिए "चुनावी जुमला ’ कहते ही रहते हैं । ’शब्द’ पर न जा ,तू तो बस भाव पकड़ ,भाव ......

"हाँ तो भक्तों ! मैं क्या कह रहा था...हाँ- भूप सहस द्स एक ही बारा’----- पण्डित जी ने कथा आगे बढ़ाई..

-आनन्द.पाठक
09413395592

सोमवार, 23 फ़रवरी 2015

navgeet: sanjiv

नवगीत :
संजीव 
.
खिल-खिलकर 
गुल झरे 
पलाशों के 
.
ऊषा के 
रंग में
नहाये से.
संध्या को
अंग से
लगाये से.
खिलखिलकर
हँस पड़े
अलावों से
.
लजा रहे
गाल हुए
रतनारे.
बुला रहे
नैन लिये
कजरारे.
मिट-मिटकर
बन रहे
नवाबों से

*

navgeet: sanjiv

नवगीत :
संजीव 
.
प्रिय फागुन की धूप 
कबीरा 
गाती सी.
.
अलसाई सी
उठी अनमनी
झुँझलाती.
बिखरी अलकें
निखरी पलकें
शरमाती.
पवन छेड़ता
आँख दिखाती
धमकाती.
चुप फागुन की धूप
लिख रही
पाती सी.
.
बरसाने की
गैल जा रही
राधा सी.
गोकुल ठांड़ी
सुगढ़ सलौनी
बाधा सी.
यमुना तीरे
रास रचाती
बलखाती.
छिप फागुन की धूप
आ रही
जाती सी.
*

navgeet: sanjiv

नवगीत :
संजीव
.
हवाओं में
घुल गये हैं
बंद मादक
छंद के.
.
भोर का मुखड़ा
गुलाबी
हो गया है.
उषा का नखरा
शराबी
हो गया है.
कूकती कोयल
न दिखती
छिप बुलाती.
मदिर महुआ
तंग
काहे तू छकाती?
फिज़ाओं में
कस गये हैं
फंद मारक
द्वन्द  के.
.
साँझ का दुखड़ा
अँधेरा  
बो रहा है.
रात का बिरवा  
अकेला
रो रहा है.
कसमसाती
चाँदनी भी  
राह देखे.
चाँद कब आ  
बाँह में ले  
करे लेखे?
बुलावों को
डँस गये हैं
व्यंग्य मारक
नंद के.  
*

navgeet: dr. issak ashq

तीन नवगीत
डॉ. इसाक ‘अश्क’
१.
गमलों खिले गुलाब
हर सिंगार
फिर झरे
कुहासों के.
दिन जैसे
मधु रंगों में-
बोरे,
गौर
गुलाबी-
नयनों के डोरे,
आँगन  
लौटे विहग
सुहासों के.
उमड़ी
गंधोंवाली-
मौन नदी,
देख जिसे
विस्मित है-
समय-सदी
गमलों
खिले गुलाब
उजासों के.
.
पुलोवर बुनती
यह जाड़े की धूप
पुलोवर
बुनती सी.
सुबह
चंपई-
तौर-तरीके जीने के,
सिखा रही
अँजुरी भर
आसव पीने के,
चीड़ वनों में
ओस कणों को
चुनती सी.
गंधों का
उत्सव-
फूलों की बस्ती में,
मना रहे
दिन-रात-
डूबकर मस्ती में,
वंशी मादल की
थापों को
सुनती सी
.
३ 
तक्षक सी हवा
भोर ने
तालों लिखे
आलेख गहरी धुंध के.
लोग बैठे
देह को-
गठरी बनाये,
खोल सकती हैं
जिन्हें बस-
ऊष्माएं,
ओसकण
जैसे की कोमल
अंतरे हों छंद के.
तेज तक्षक सी हवा-
फुंफकारती है,
डंक
बिच्छू सा उठाकर-
मारती है,
प्राण संकट में पड़े हैं
सोनचिड़िया गंध के

.   

रविवार, 22 फ़रवरी 2015

lekh: sanjiv

लेख:
जन-जन की प्रिय रामकथा 
संजीव
.
राम कथा चिरकाल से विविध अंचलों में कही-सुनी-लिखी-पढ़ी जाती रही है. भारत के अंचलों और देश के बाहर भी पंडित जन रामकथा की व्याख्या अपनि-अपनी रूचि के अनुरूप करते रहे हैं. राम कथा सर्वप्रथम महर्षि वाल्मीकि ने रामायण शीर्षक से कही. तुलसी ने इसे रामचरित मानस नाम दिया किन्तु लोक ने ‘रामायण’ को ही अपनाये रखा. राम जिन अंचलों में गये वहाँ उनका प्रभाव स्वाभाविक है किन्तु जिन अंचलों में राम नहीं जा सके वहाँ भी काल-क्रम में राम-कथा क्रमश: विस्तार पाती रही. पंजाब, गुजरात तथा महाराष्ट्र ऐसे ही अंचल हैं जहाँ राम-कथा को प्रभाव आज तक अक्षुण है.

पंजाब में रामकथा
पंजाब भारत के आक्रान्ताओं से सतत जूझता रहा है. यहाँ साहित्य सृजन के अनुकूल वातावरण न होने पर भी संतों ने जन सामान्य में निर्गुण पंथी विचारधारा का प्रचार-प्रसार किया और सत-शिव-सुन्दर के प्रति जनाकर्षण बनाये रखा. राम का संघर्ष, आततायियों से साधनों के आभाव में भी जूझना और आम जनों के सहयोग से विजय पाना पंजाब के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गया. निर्गुणपंथी गुरुओं ने राम-कथा के दृष्टान्तों और प्रतीकों को जन सामान्य में स्थापित कर देशप्रेम, साहस और संघर्ष की अलख जलाये रखी.
कालांतर में राम के जीवन के घटनाक्रम और राम के आचरण को आदर्श रूप में प्रस्तुत किया गया. गुरुओं के राम-प्रेम, राम-कथा गायन और राम भक्ति से अनुप्राणित आम जन ने राम को ईशावतार स्वीकार कर लिया. पंजाब को राम के ब्रम्हत्व से अधिक राम का योद्धा रूप भाया.गुरु गोबिंद सिंह ने स्वयं को रघुवंशी बताया और बृज भाषा में ‘रामावतार’ शीषक राम काव्य-कृति की रचना की.
पश्चिमी पंजाब में सन १८६८ में क्षत्रिय परिवार में जन्मे रामलुभाया अणद दिलशाद ने १९१७ में कश्मीर राज्य के पुलिस विभाग से अवकाश प्राप्त कर १९४०-४६ के मध्य वाल्मीकि रामायण में वर्णित राम-कथा के अधर पर फारसी लिपि में ‘पंजाबी रामायण’ की रचना की. कवि के पुत्र विश्वबन्धु ने इसे नागरी लिपि में प्रकाशित किया. कवि ने अप्रासंगिक कथाओं को छोड़कर मुख्या कथा को वरीयता दी. अनावश्यक विस्तार से बचते हुए ताड़का-वध, अहल्या आख्यान जैसे प्रसंगों में शालीनता और मर्यादा का पालन किया गया है. सीता स्वयंवर के प्रसंग में रावण द्वारा शिव-धनुष उठाने का प्रयास और असफल होना वर्णित है. भरत का राम-वियोग प्रसंग बारहमासा शैली में वर्णित है. उत्तर काण्ड की सकल कथा वाल्मीकि रामायण से ली गयी है किन्तु राम द्वारा शूद्र तापस की हत्या के स्थान पर उसे धन-सम्मान दे तप से विरत करना वर्णित है. संभवत: कवि संदेश देना चाहता है कि समाज में अपने दायित्व का निर्वहन करने पर आवश्यकता पूर्ति होती रहे यह देखना शासक का दायित्व है.
पंजाबी रामायण में राम को ब्रम्ह के साथ-साथ सहृदयी, पराक्रमी और सजग शासक भी बताया गया है. किस्सा शैली में रचित इस कृति में मुख्यत: २०-२० पर यति वाला बेंत छंद आदि से अंत तक प्रयोग किया गया है. हिंदी-संस्कृत के अन्य छंदों का प्रयोग अल्प है. ग्रन्थ में अरबी-फारसी के पंजाब में प्रचलित शब्दों का प्रयोग इसे आम जन के अनुकूल बनाता है. विवाहादि प्रसंगों में पंजाबी के स्थानीय प्रभाव की अनुभूति इसे जीवन्तता प्रदान करती है.
गुजरात में राम कथा
गुजरात में राम का जाना नहीं हुआ पर वह राम-कथा के प्रभाव से अछूता न रहा. यह अवश्य है की गुर्जरभूमि में कृष्ण-कथा के पश्चात् राम-कथा का प्रसार हुआ. कृष्ण कथा-प्रसंगों को मुक्तक काव्य के रूप में प्रस्तुत करने की पूर्व परंपरा के प्रभाव में आरम्भ में राम-कथा भी खंड काव्य अथवा घटना विशेष को केंद्र में रखकर मुक्तक काव्य के रूप में रची गयीं. रास शैली की गेयता इन रचनाओं को सरस बनाती है. १५ वीं सदी से जैन मुनियों ने राम-कथा को केंद्र में रखकर सृजन किया. वडोदरा के समीप जन्मे वल्लभ संप्रदाय में दीक्षित गिरिधर कवि (१७६७-१८५२) ने सन १८३५ में ‘गिरिधर रामायण’ की रचना की. गिरिधर ने उस समय तक उपलब्ध विविध राम कथों का अध्ययन कर अपनी कृति की रचना की और उसमें वाल्मीकि रामायण, अध्यात्म रामायण, आनंद रामायण, हनुमन्नाष्टक के साथ कुछ अन्य रामायणों का उल्लेख किया जो अब अप्राप्य हैं.
‘गिरिधर रामायण’ में वर्णित कथा-क्रम में रावण द्वारा कौसल्या हरण, चरु-प्रसन में कैकेयी द्वारा क्लेश, हनुमान का रामानुज होना, राम द्वारा तीर्थ यात्रा, रामाभिषेक में सरस्वती नहीं कल्कि द्वारा विघ्न आदि प्रसंग ‘आनंद रामायण’ की तरह वर्णित हैं. ‘गिरिधर रामायण’ में मंथरा-राम के विवाद का कारण उसके द्वारा झाड़ू लगाते समय उड़ रही धूल से क्षुब्ध राम द्वारा कुबड़ा किया जाना, गुह्यक द्वारा राम के पैर धोकर कंधे पर बैठाकर नाव में चढ़ाना, शूर्पणखा-पुत्र शम्बर का वध लक्ष्मण द्वारा करना तथा सुलोचना-प्रसंग भी वर्णित है. सीता निर्वासन के कारण लोकापवाद, रजक द्वारा लांछन तथा राम द्वारा दशरथ की आयु भोगना बताया गया है. तुलसी कृत गीतावली तथा उडिया रामायण के अनुसार भी इस समय दशरथ की अकाल मृत्यु के कारण राम उनकी आयु भोग रहे थे, अत: सीता के साथ दाम्पत्य जीवन नहीं निभा सकते थे इसलिए सीता को वनवास दिया गया.
जैन कवियों का अवदान चित्र-वृत्तान्त के रूप में स्मरणीय है. गुजराती रामायण में कैकेयी सेता से रावण का चित्र बनाकर दिखने का आग्रह करती है. लव-कुश से राम तथा अन्यों के युद्ध का वर्णन भी है. एक महत्त्व पूर्ण आधुनिक प्रभाव यह है कि राम के पक्ष में अयोध्यावासी हड़ताल करते हैं: ‘नग्र माहे पड़ी हड़ताल’. गिरिधर ने प्रचलित जनश्रुतियों, लोकगीतों आदि को ग्रहण कर कथा को मौलिक, रोचक और लोकप्रिय बनाने में सफलता पायी है. अनेक प्रसंगों में तुल्सो कृत मानस से कथा-साम्य तथा नामकरण ‘रामचरित्र’ उल्लेख्य है. सामाजिक परिवेश, जातियों, संस्कारों, परिधानों आदि दृष्टियों से ‘गिरिधर रामायण’ गुजरात का प्रतिनिधत्व करती है.
महाराष्ट्र में राम कथा
महाराष्ट्र में विद्वज्जनों और सुसंस्कृत परिवारों में वैदिक तथा जैन संतों द्वारा रचित राम कथाओं का प्रचलन पूर्व से होने पर भी आम जन में इसका प्रचार १७ वीं सदी में स्वामी रामदास द्वारा रामभक्ति संप्रदाय का श्री गणेश कर धनुर्धारी राम को आराध्य मानकर राम-हनुमान मंदिरों की स्थापन के साथ-साथ हुआ. नासिक में पंचवटी को राम-सीता के वनवास काल का स्थान कहा गया. संत एकनाथ (१५३३ – १५९९ ई.) कृत ‘भावनार्थ रामायण’ जिसके ७ कांडों में ३७५०० ओवी छंद हैं, महाराष्ट्र की प्रतिनिधि रामायण है. युद्धकाण्ड का कुछ भाग रचने के बाद एकनाथ जी का देहावसान हो जाने से शेष भाग उनके शिष्य गावबा ने पूर्ण किया.
‘भावनार्थ रामायण’ में रामकथा प्रस्तुति करते समय अध्यात्म रामायण, पुराणों, मानस, अन्य काव्य कथाओं तथा नाटकों से कथा सूत्र प्राप्त किये गये हैं. शिशु राम में विष्णु रूप का दर्शन, सीता द्वारा धनुष उठाना, रावण की नाभि में अमृत होना, लक्ष्मण-रेखा प्रसंग, हनुमान व अंगद दोनों द्वारा रावण-सभा में पूंछ की कुंडली बनाकर उस पर आसीन होना, सुलोचना की कथा, लक्ष्मण द्वारा शूर्पणखा-पुत्र साम्ब का वध आदि प्रसंगों का मानस से समय है. ‘पउस चरिउ’ में भरत-शत्रुघ्न दोनों कैकेयी के पुत्र वर्णित हैं. राम के असुर संहारक ब्रम्ह रूप को भक्तवत्सल मर्यादा पुरुषोत्तम रूप पर वरीयता दी गयी है. सीता द्वारा मंगलसूत्र धारण करने, जमदग्नि की सेना में पश्चिमी महाराष्ट्र निवासी हब्शियों के होने, मराठा क्षत्रियों के ९६ कुलों के अनुरूप सीता स्वयंवर में ९६ नरेशों की उपस्थिति आदि से स्थानीयता का पुट देने का सार्थक उपक्रम किया गया है. एकनाथ रचित ‘भावनार्थ रामायण’ से प्रेरित समर्थ स्वामी रामदास ने राम, राम मन्त्र, हनुमद-भक्ति तथा जयघोष कर मुग़ल आक्रान्ताओं से पीड़ित-शोषित जन सामान्य में आशा, बल और पौरुष का संचार किया गया. रामभक्तों के जिव्हाग्र पर रहनेवाला मन्त्र ‘श्री राम जय राम जय-जय राम’ का उत्स महाराष्ट्र की रामभक्त संत परंपरा में ही है.
*

navgeet: sanjiv

नवगीत:
संजीव
.
शिव के मन मांहि
बसी गौरा
.
भाँग भवानी कूट-छान के
मिला दूध में हँस घोला
शिव के मन मांहि
बसी गौरा
.

पेड़ा गटकें, सुना कबीरा
चिलम-धतूरा धर झोला   
शिव के मन मांहि
बसी गौरा
.
भसम-गुलाल मलन को मचलें
डगमग डगमग दिल डोला
शिव के मन मांहि
बसी गौरा
.
आग लगाये टेसू मन में  
झुलस रहे चुप बम भोला
शिव के मन मांहि
बसी गौरा
.
विरह-आग पे पिचकारी की
पड़ी धार, बुझ गै शोला
शिव के मन मांहि
बसी गौरा

.

navgeet: sanjiv

नवगीत
संजीव
.
दहकते पलाश
फिर पहाड़ों पर.
.
हुलस रहा फागुन
बौराया है
बौराया अमुआ
इतराया है
मदिराया महुआ
खिल झाड़ों पर
.
विजया को घोंटता
कबीरा है
विजया के भाल पर
अबीरा है
ढोलक दे थपकियाँ 
किवाड़ों पर
.
नखरैली पिचकारी
छिप जाती
हाथ में गुलाल के
नहीं आती
पसरे निर्लज्ज हँस 
निवाड़ों पर  

*

शनिवार, 21 फ़रवरी 2015

navgeet: sanjiv

नवगीत
संजीव
.
मैं नहीं नव
गीत लिखता
   उजासों की
   हुलासों की
   निवासों की
   सुवासों की
   खवासों की
   मिदासों की
   मिठासों की
   खटासों की
   कयासों की
   प्रयासों की
कथा लिखता
व्यथा लिखता
मैं नहीं नव
गीत लिखता
.
   उतारों की
   चढ़ावों की
   पड़ावों की
   उठावों की
   अलावों की
   गलावों की
   स्वभावों की
   निभावों की
   प्रभावों की
   अभावों की
हार लिखता
जीत लिखता
मैं नहीं नव
गीत लिखता
.
   चाहतों की
   राहतों की
   कोशिशों की
   आहटों की
   पूर्णिमा की
   ‘मावसों की
   फागुनों की
   सावनों की
   मंडियों की
   मन्दिरों की
रीत लिखता
प्रीत लिखता
मैं नहीं नव
गीत लिखता

*

navgeet: संजीव

नवगीत  : 
संजीव
*
द्रोण में 
पायस लिये
पूनम बनी,
ममता सनी
आयी सुजाता,
बुद्ध बन जाओ.
.
सिसकियाँ
कब मौन होतीं?
अश्रु
कब रुकते?
पर्वतों सी पीर
पीने
मेघ रुक झुकते.
धैर्य का सागर
पियें कुम्भज
नहीं थकते.
प्यास में,
संत्रास में
नवगीत का
अनुप्रास भी
मन को न भाता.
युद्ध बन जाओ.
.
लहरियां
कब रुकीं-हारीं.
भँवर
कब थकते?
सागरों सा धीर
धरकर
मलिनता तजते.
स्वच्छ सागर सम
करो मंथन
नहीं चुकना.
रास में
खग्रास में
परिहास सा
आनंद पाओ
शुद्ध बन जाओ.
.

navgeet: sanjiv

नवगीत: 
संजीव
.
चिन्तन करें,
न चिंता करिए 
.
सघन कोहरा
छटना ही है.
आज न कल
सच दिखना ही है.
श्रम सूरज
निष्ठा की आशा
नव परिभाषा
लिखना ही है.
संत्रासों की कब्र खोदने
कोशिश गेंती
साथ चलायें
घटे विषमता,
समता वरिए
चिन्तन करें,
न चिंता करिए
.
दल ने दलदल
बहुत कर दिया.
दलविहीन जो
ऐक्य हर लिया.
दीन-हीन को
नहीं स्वर दिया.
अमिया पिया
विष हमें दे दिया.
दलविहीन
निर्वाचन करिए.
नव निर्माणों
का पथ वरिए.
निज से पहले
जन हित धरिए.
चिन्तन करें,
न चिंता करिए
१६.२.२०१५, भांड़ई
*

navgeet: sanjiv

नवगीत: 
संजीव
.
सबके 
अपने-अपने मानक 
.
‘मैं’ ही सही
शेष सब सुधरें.
मेरे अवगुण
गुण सम निखरें.
‘पर उपदेश
कुशल बहुतेरे’
चमचे घेरें
साँझ-सवेरे.
जो न साथ
उसका सच झूठा
सँग-साथ
झूठा भी सच है.
कहें गलत को
सही बेधड़क
सबके
अपने-अपने मानक
.
वही सत्य है
जो जब बोलूँ.
मैं फरमाता
जब मुँह खोलूँ.
‘चोर-चोर
मौसेरे भाई’
कहने से पहले
क्यों तोलूँ?
मन-मर्जी
अमृत-विष घोलूँ.
बैल मरखना
बनकर डोलूँ
शर-संधानूं
सब पर तक-तक.
सबके
अपने-अपने मानक
.
‘दे दूँ, ले लूँ
जब चाहे जी.
क्यों हो कुछ
चिंता औरों की.
‘आगे नाथ
न पीछे पगहा’
दुःख में सब संग
सुख हो तनहा.
बग्घी बैठूँ,
घपले कर लूँ
अपनी मूरत
खुद गढ़-पूजूं.
मेरी जय बोलो
सब झुक-झुक.
सबके
अपने-अपने मानक
१७.२.२०१५
*

navgeet: sanjiv

नवगीत:
संजीव
*
झोपड़-झुग्गी से
बँगलेवाले हारे 
.
झाड़ू लेकर
राजनीति की
बात करें.
संप्रदाय की
द्वेष-नीति की
मात करें.
आश्वासन की
मृग-मरीचिका
ख़त्म करो.
उन्हें हराओ
जो निर्बल से
घात करें.
मैदानों में
शपथ लोक-
सेवा की लो.
मतदाता क्या चाहे
पूछो जा द्वारे
झोपड़-झुग्गी से
बँगलेवाले हारे
.
मन्दिर-मस्जिद
से पहले
शौचालय हो.
गाँव-मुहल्ले
में उत्तम
विद्यालय हो.
पंडित-मुल्ला
संत, पादरी
मेहनत कर-
स्वेद बहायें,
पूज्य खेत
देवालय हों.
हरियाली संवर्धन हित
आगे आ रे!
झोपड़-झुग्गी से
बँगलेवाले हारे
.
जाती जन्म से
नहीं, कर्म से
बनती है.
उत्पादक अन-
उत्पादक में
ठनती है.
यह उपजाता
वह खाता
बिन उपजाये-
भू उसकी
जिसके श्रम-
सीकर सनती है.
अन-उत्पादक खर्च घटे
वह विधि ला रे!
झोपड़-झुग्गी से
बँगलेवाले हारे
.
श्रम की
सबसे अधिक
प्रतिष्ठा करना है.
शोषक पूँजी को
श्रम का हित
वरना है.
चौपालों पर
संसद-ग्राम
सभाएँ हों-
अफसरशाही
को उन्मूलित
करना है.
बहुत हुआ द्लतंत्र
न इसकी जय गा रे!
झोपड़-झुग्गी से
बँगलेवाले हारे
.
बिना बात की
बहसें रोको,
बात करो.
केवल अपनी
कहकर तुम मत
घात करो.
जिम्मेवारी
प्रेस-प्रशासन
की भारी-
सिर्फ सनसनी
फैला मत
आघात करो.
विज्ञापन की पोल खोल
सच बतला रे!
झोपड़-झुग्गी से
बँगलेवाले हारे
१५-१६.२.२०१५
*