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शनिवार, 30 मई 2015

haiku: sanjiv

हाइकु सलिला: 
हाइकु का रंग पलाश के संग 
संजीव 
*
करे तलाश 
अरमानों की लाश
लाल पलाश 
*
है लाल-पीला
देखकर अन्याय
टेसू निरुपाय
*
दीन न हीन
हमेशा रहे तीन 
ढाक के पात 
*
आप ही आप
सहे दुःख-संताप 
टेसू निष्पाप 
*
देख दुर्दशा
पलाश हुआ लाल
प्रिय नदी की
*
उषा की प्रीत
पलाश में बिम्बित 
संध्या का रंग
*
फूल त्रिनेत्र
त्रिदल से पूजित
ढाक शिवाला
*
पर्ण है पन्त
तना दिखे प्रसाद
पुष्प निराला
*
मनुजता को
पत्र-पुष्प अर्पित 
करे पलाश 
*
होली का रंग
पंगत की पत्तल
हाथ का दौना
*
पहरेदार
विरागी तपस्वी या 
प्रेमी उदास
*

सोमवार, 23 फ़रवरी 2015

navgeet: sanjiv

नवगीत :
संजीव 
.
खिल-खिलकर 
गुल झरे 
पलाशों के 
.
ऊषा के 
रंग में
नहाये से.
संध्या को
अंग से
लगाये से.
खिलखिलकर
हँस पड़े
अलावों से
.
लजा रहे
गाल हुए
रतनारे.
बुला रहे
नैन लिये
कजरारे.
मिट-मिटकर
बन रहे
नवाबों से

*

शनिवार, 22 नवंबर 2014

navgeet:

नवगीत:



ज़िंदगी मेला
झमेला आप मत कहिए इसे

फोड़कर ऊसर जमीं को
मुस्कुराता है पलाश
जड़ जमा लेता जमीं में
कब हुआ कहिए हताश?
है दहकता तो
बहकता आप मत कहिए इसे 

पूछिए जा दुकानों में
पावना-देना कहानी
देखिए जा तंबुओं में
जागना-सोना निशानी
चक्र चलता
सिर्फ ढलता आप मत कहिए इसे

जानवर भी है यहाँ
दो पैर वाले सम्हलिए
शांत चौपाया भले है
दूर रह मत सिमटिए
प्रदर्शन है
आत्मदर्शन आप मत कहिए इसे 

आपदा में
नहीं होती नष्ट दूर्वा देखिए
सूखकर फिर
ऊग जाती, शक्ति इसकी लेखिए
है रवानी
निगहबानी आप मत कहिए इसे
***


मंगलवार, 8 मई 2012

दोहा सलिला: अमलतास है धन्य... --संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:
अमलतास है धन्य...
संजीव 'सलिल'
*

*
चटक धूप सह खिल रहा, अमलतास है धन्य.
गही पलाशी विरासत, सुमन न ऐसा अन्य..
*
मौन मौलश्री संत सम, शांत लगाये ध्यान.
भीतर जो घटता निरख, सत-शिव-सुंदर जान..
*
देवदारु पछता रहा, बनकर भू पर भार.
भू जल पी मरुथल बना, जीवन जी निस्सार..
*
ऊँचा पेड़ खजूर का, एकाकी बिन बाँह.
श्रमित पथिक अकुला रहा, मिली  न तिल भार छाँह..
*
आम्र बौर की पालकी, शहनाई है कूक.
अंतर में ऋतुराज के, प्रकृति मिलन की हूक..
*
कदली पत्रों से सजा, मंडप-बंदनवार.
कचनारी वधु ने किया, केसर-धवल सिंगार..
*
पवन झंकोरे झुलाते झूला, गाकर छंद.
प्रेम पींग जितना बढ़े, उतना ही आनंद..
*
शिशु रवि प्राची से रहा, अपलक रूठ निहार.
धरती माँ ने गोद से, नाहक दिया उतार..
*
जनक गगन के गाल पर, मलती उषा गुलाल.
लाड़ लड़ाती लडैती, जननी धरा निहाल..
*
चहक-चहक पंछी करें, कलरव चारों ओर.
पर्ण डाल पर झूमते होकर भाव-विभोर..
*
शैशव हँसता गोद में, बचपन करे किलोल.
गति किशोर, मति जवानी, प्रौढ़ शांति का ढोल..
*
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com

शनिवार, 25 जून 2011

नवगीत/दोहा गीत: पलाश... --संजीव वर्मा 'सलिल'



sanjiv verma 'salil'

नवगीत/दोहा गीत: 

पलाश... 

संजीव वर्मा 'सलिल'

*
बाधा-संकट हँसकर झेलो
मत हो कभी हताश.
वीराने में खिल मुस्काकर
कहता यही पलाश...
*
समझौते करिए नहीं,
तजें नहीं सिद्धांत.
सब उसके सेवक सखे!
जो है सबका कांत..
परिवर्तन ही ज़िंदगी,
मत हो जड़-उद्भ्रांत.
आपद संकट में रहो-
सदा संतुलित-शांत..

शिवा चेतना रहित बने शिव
केवल जड़-शव लाश.
वीराने में खिल मुस्काकर
कहता यही पलाश...
*
किंशुक कुसुम तप्त अंगारा,
सहता उर की आग.
टेसू संत तपस्यारत हो
गाता होरी-फाग..
राग-विराग समान इसे हैं-
कहता जग से जाग.
पद-बल सम्मुख शीश झुका मत
रण को छोड़ न भाग..
जोड़-घटाना छोड़,
काम कर ऊँची रखना पाग..
वीराने में खिल मुस्काकर
कहता यही पलाश...
****