- एक गीत:
जीवन को महकाता चल
उदयभानु तिवारी 'मधुकर'* 
जीवन को महकाता चल...*
हँसता चल हँसाता चल गुलशन के सुमन सजाता चलजग पर्वत के कंटक पथ पर अपनी धुन में गाता चल...
चाहे आतप की दुपहर हो चाहे शीतल छाँव हो
मंजिल तक है तुम्हें पहुँचना धीमे पड़ें न पाँव हो
पग-पग पर अँगार दहकते डगर-डगर भटकाव हो
दर्द न बाँटे जग में कोई रखो छिपाकर घाव हो
क्रोध के कड़वे घूँट निगल मुस्कान अधर बिखराता चल...चाहे ग्रहण लगा हो सूरज सरसिज भी कुम्हलाया हो ;
घोर अँधेरी रात का चाहे सूनापन भी छाया होअसह वेदना ने आँखों में अश्रु-बिंदु छलकाया हो;
दृढ संकल्प कभी ना डोले चाहे तन मुरझाया हो
प्यार की गागर से बगिया में जीवन रस बरसाता चल...
*घबरानामत कभी धार में यदि छूटे पतवार हो
साहस भुजा समेट भँवर में धीरज से उस पार हो
नाव पुरानी इक दिन डूबे नश्वर यह संसार हो
क्या जाने जग में कब होगा फिर दूजा अवतार हो
निजकार्मों से इस धरती पर जीवन को महकाता चल..*
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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रविवार, 28 अगस्त 2011
एक गीत: जीवन को महकाता चल -- उदयभानु तिवारी 'मधुकर'
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