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रविवार, 17 दिसंबर 2017

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त्रिपदिक गीत "झरोखा"
सुनीता सिंह अँधेरे से उजाले की ओर, १७ स्याह से हरियाली की ओर, १६ आस का एक झरोखा खुलता है ।। १९ ५२ मन - तमस के उस पार ही, १४ कालिमा यदि हजार भी, १३ उम्मीद का सवेरा मिलता है।। १८ ४५
खुद ही चमकना सूरज सा, १५ घोर अँधेरा धीरज का, १४
बस यही फ़लसफ़ा चलता है ।। १६ ४४ लाखों आँधियाँ दिया बुझाएँ १७ आग जलाकर भस्म बनाएँ, १६ हर हाल अंतस दीप जलता है।। १८ ५१ उड़ान हौसलों की रखकर १५ पहाड़ मुश्किलों के चढ़कर १५ उपलब्धि का गुल खिलता है।। १५
४५ दिल ख्वाब खोकर आहत हो, १५ जड़ पत्थर सी चाहत हो, १४ वक्त नहीं किसको छलता है।। १६ ४५ ताश की तरह पत्तों का घर १६ या आग के कुछ ऊपर कागज १७ जीवन प्रतिकूल ही में पलता है। १९ ५२ दम घुटता धुआँ हटाओ, १४ खोल झरोखा नूर बुलाओ, १६ एक बार जीवन मिलता है।। १६
४६ छल-कपट का तोहफा लिए, १५ जो झूठा फ़लसफ़ा कहे, १५ इक दिन वो हाथ मलता है।। १५ ४५ गिरने पर जो हाथ बढ़ाए, १६ मन बदले तो साथ न आए, १६ कैसे बयां भी हो कितना खलता है।। २१ ५३ अतिशय पीड़ा सहकर, १२ राह भरोसे ठोकर खाकर, १६ नूर दिल में छुपा निकलता है। १७
४५ घाव जहांँ से रिसे अधिक १४ चोट जहाँ पर सर्वाधिक १४ प्रकाश वहीं प्रवेश करता है।। १७ ४५ उगता सूरज समां सजाये १६ किरणें बंद कोपलें खुलवायें १८ पर चढ़ता सूरज भी ढलता है।। १८
५२

बुधवार, 7 जून 2017

navgeet

अंतरजाल पर पहली बार :
त्रिपदिक नवगीत :
नेह नर्मदा तीर पर
- संजीव 'सलिल' 
*
नेह नर्मदा तीर पर,
अवगाहन कर धीर धर,
पल-पल उठ-गिरती लहर...
*
कौन उदासी-विरागी,
विकल किनारे पर खड़ा?
किसका पथ चुप जोहता?
निष्क्रिय, मौन, हताश है.
या दिलजला निराश है?
जलती आग पलाश है.
जब पीड़ा बनती भँवर,
खींचे तुझको केंद्र पर,
रुक मत घेरा पार कर...
.
पग आये पौधे लिये,
ज्यों नव आशा के दिये.
नर्तित थे हुलसित हिये.
सिकता कण लख नाचते.
कलकल ध्वनि सुन झूमते.
पर्ण कथा नव बाँचते.
बम्बुलिया के स्वर मधुर,
पग मादल की थाप पर,
लिखें कथा नव थिरक कर...
*
७.६.२०१०

सोमवार, 11 अक्टूबर 2010

त्रिपदिक गीत: करो मुनादी... संजीव 'सलिल'

त्रिपदिक गीत:

करो मुनादी...

संजीव 'सलिल'
*
करो मुनादी
गोडसे ने पहनी
उजली खादी.....
*
सवेरे कहा:
जय भोले भंडारी
फिर चढ़ा ली..
*
तोड़े कानून
ढहाया ढाँचा, और
सत्ता भी पाली..
*
बेचा ईमान
नेता हैं बेईमान
निष्ठा भुला दी.....
*
एक ने खोला
मंदिर का ताला तो -
दूसरा डोला..
*
रखीं मूर्तियाँ
करवाया पूजन
न्याय को तौला..
*
मत समझो
जनगण नादान
बात भुला दी.....
*
क्यों भ्रष्टाचार
नस-नस में भारी?
करें विचार..
*
आख़िरी पल
करें किला फतह
क्यों हिन्दुस्तानी?
*
लगाया भोग
बाँट-खाया प्रसाद.
सजा ली गादी.....
*