तसलीस (उर्दू त्रिपदी)
सूरज
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
*
बिना नागा निकलता है सूरज,
कभी आलस नहीं करते देखा.
तभी पाता सफलता है सूरज..
*
सुबह खिड़की से झाँकता सूरज,
कह रहा जग को जीत लूँगा मैं.
कम नहीं खुद को आंकता सूरज..
*
उजाला सबको दे रहा सूरज,
कोई अपना न पराया कोई.
दुआएं सबकी ले रहा सूरज..
*
आँख रजनी से चुराता सूरज,
बाँह में एक, चाह में दूजी.
आँख ऊषा से लड़ाता सूरज..
*
जाल किरणों का बिछाता सूरज,
कोई चाचा न भतीजा कोई.
सभी सोयों को जगाता सूरज..
*
भोर पूरब में सुहाता सूरज,
दोपहर-देखना भी मुश्किल हो.
शाम पश्चिम को सजाता सूरज..
*
काम निष्काम ही करता सूरज,
मंजिलें नित नयी वरता सूरज.
खुद पे खुद ही नहीं मरता सूरज..
*
अपने पैरों पे ही बढ़ता सूरज,
डूबने हेतु क्यों चढ़ता सूरज?
भाग्य अपना खुदी गढ़ता सूरज..
*
लाख़ रोको नहीं रुकता सूरज,
मुश्किलों में नहीं झुकता सूरज.
मेहनती है नहीं चुकता सूरज..
*****
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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रविवार, 9 जनवरी 2011
तसलीस (उर्दू त्रिपदी) सूरज आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
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taslees. geetika,
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शुक्रवार, 8 जनवरी 2010
तसलीस गीतिका: सूरज --संजीव 'सलिल'
तसलीस गीतिका:
सूरज
संजीव 'सलिल'
बिना नागा निकलता है सूरज.
कभी आलस नहीं करते देखा.
तभी पाता सफलता है सूरज.
सुबह खिड़की से झांकता सूरज.
कह रहा तंम को जीत लूँगा मैं.
कम नहीं ख़ुद को आंकता सूरज.
उजाला सबको दे रहा सूरज.
कोई अपना न पराया कोई.
दुआएं सबकी ले रहा सूरज.
आँख रजनी से चुराता सूरज.
बांह में एक चाह में दूजी.
आँख ऊषा से लडाता सूरज.
जाल किरणों का बिछाता सूरज.
कोई अपना न पराया कोई.
सभी सोयों को जगाता सूरज.
भोर पूरब में सुहाता सूरज.
दोपहर देखना भी मुश्किल हो.
शाम पश्चिम को सजाता सूरज.
कम निष्काम हर करता सूरज.
मंजिलें नित नयी वरता सूरज.
भाग्य अपना खुदी गढ़ता सूरज.
* * * * *
Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.com/
सूरज
संजीव 'सलिल'
बिना नागा निकलता है सूरज.
कभी आलस नहीं करते देखा.
तभी पाता सफलता है सूरज.
सुबह खिड़की से झांकता सूरज.
कह रहा तंम को जीत लूँगा मैं.
कम नहीं ख़ुद को आंकता सूरज.
उजाला सबको दे रहा सूरज.
कोई अपना न पराया कोई.
दुआएं सबकी ले रहा सूरज.
आँख रजनी से चुराता सूरज.
बांह में एक चाह में दूजी.
आँख ऊषा से लडाता सूरज.
जाल किरणों का बिछाता सूरज.
कोई अपना न पराया कोई.
सभी सोयों को जगाता सूरज.
भोर पूरब में सुहाता सूरज.
दोपहर देखना भी मुश्किल हो.
शाम पश्चिम को सजाता सूरज.
कम निष्काम हर करता सूरज.
मंजिलें नित नयी वरता सूरज.
भाग्य अपना खुदी गढ़ता सूरज.
* * * * *
Acharya Sanjiv Salil
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