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शनिवार, 25 मई 2013

gazal shardula

ग़ज़ल:
शार्दूला 
 
*
प्यार के ख़त किताब होने दो 
रतजगों का हिसाब होने दो 

इल्म की लौ ज़रा करो ऊँची 
इस सिहाई में आब होने दो 

गैर ही की सही, ग़ज़ल गाओ 
रात को ख़्वाब ख़्वाब होने दो 

ज़िन्दगी ख़ार थी, बयाँबा थी   
दफ़्न सँग में गुलाब होने दो 

जिस अबाबील का लुटा कुनबा *  
अबके उस को उकाब होने दो 

सूरमा तिल्फ़ से लड़े क्यों कर
अफसरों का दवाब? होने दो!


*  उकाब - ईगल ;  अबाबील - स्वालो पंछी
अबाबील प्रजाति के कुछ ख़ास पक्षी अपनी लार से घोंसला बनाते हैं। इसके स्वास्थ्यलाभकारी  गुणों के कारण चीन, दक्षिण-पूर्वी एशिया (सिंगापुर, हांकांग)  और अमरीका में इसकी बहुत मांग है और यह घोंसाला लगभग लाख-दो लाख रुपये किलो बिकता है - अधिकतर इसे " बर्ड्स नेस्ट सूप " के लिए खरीदा जाता है । इससे  अबाबील की प्रजाति को व्यापक दोहन का सामना करना पड़ता है। इससे उनके अस्तित्व को  खतरा है।

शनिवार, 12 जनवरी 2013

गीत-प्रति गीत शार्दूला-राकेश खंडेलवाल

गीत-प्रति गीत

शार्दूला-राकेश खंडेलवाल


अभी गीत कोई नहीं होंठ छूता
*
अभी गीत कोई नहीं होंठ छूता, अभी भाव मन के सभी नींद में हैं
रही रोशनी श्याम चूनर लपेटे, अभी कल्पनाएँ गगन सीप में हैं
लगा इक सितारा कि टूटा, कि टूटा, मगर कामना एक मन में न आई
रहे कान सुनते कि बहुजन हितों की, सकल योजनायें अभी कीप में हैं

खुदी के सुखों पे अड़े राजनेता, भला देश को नीतियाँ कौन देगा
रही सभ्यता ओढ़ घर में जो घूंघट, नई सोच को रीतियाँ कौन देगा
न जाने समुन्दर लहर पी रहा क्यों, नहीं तीर पर धार रत्नाभ आती
जलें पाँव, झुक कर चुनें, क्या चुनें हम, गरम रेत को सीपियाँ कौन देगा

नहीं राम की दिव्यता जो समझते, कहें स्वर्ण मृग ने सिया को लुभाया
वृथा जो बजाते रहे गाल अपने, रहें चुप! बताया जो, काफी बताया
रही रीत महफ़िल सजेगी, चलेगा सफ़र गीत का बिन रुके शोक में भी
हुई हार जब भी धुनों की कलह से, दहक गीत ने राग कापी सुनाया

सादर शार्दुला
8 जनवरी 13
*
Rakesh Khandelwal

शार्दुला,एक खूबसूरत निर्वाह के लिये अशेष बधाईयाँ.

जहाँ से इस रचना की पंक्तियाँ प्रारम्भ होती हैं वहीं से चलकर कुछ पंक्तियाँ इस रचना को समर्पित:

अभी गीत कोई नहीं होंठ छूता अभी भाव मन के सभी नींद में हैं
रही रोशनी श्याम चूनर लपेटे, अभी कल्पनाएँ गगन सीप में हैं
लहर कोई उमड़ी नहीं सिन्धु में जो किनारे से जा बात कोई संवारे
सपन को निमंत्रण रहा भेजता मैं,छुपी दस्तकें अजनबी द्वीप में हैं

रहे ताकते सरगमों के सभी सुर, हुये तार खामोश सारंगियों के
फ़िसल्ती रही होंठ की कोर पर से गज़ल ने कोई नज़्म जो गुनगुनाई
उबासी समेटे रहे खिड्कियूं पर सकल सरजना के निमिष लड़खड़ाते
हवाओं की थिरकन रही प्रश्न ओढ़े, न संभव हुआ पत्र कुछ भी सुनाते

बिछी पंथ पर दृष्टि की चादरें जो बिना स्पर्श के रह गईं चांदनी सी
क्षितिज के सिरे तक टंगा शून्य केवल धुँआसा न हो कोई आकार उभरा
उठा टुटती डोर के चन्द टुकड़े नहीं उंगलियां बुन सकी हैं दुशाला
ना आया पुन:: चित्र बन सामने भी गया डूब स्मृति की गली में जो मुखड़ा


बुने मंत्र जितने कभी साधना को नहीं कोई सुर की चढ़ा पालकी में
रही दीप की वर्तिका थरथराती ना ढाढस अनिश्चय ने कोई बंधाया
सूना था टपकती सुधा है निशा में,टंके व्योम पर चौदहवें चन्द्रमा से
हथेली बढी की बढी रह गई है नहीं आंजुरी में अभी कुछ समाया
*

गुरुवार, 8 मार्च 2012

होली पर राधा-माधव -- शार्दुला


होली पर राधा- माधव 

 शार्दुला

*
 
जमुना के तीर, रंग उड़े न अबीर, राधा होती रे अधीर, कान्हा जान लो! 
सुभ सुवर्ण सरीर, नैना नील तुनीर, ता में  रँगे जदुवीर, राधा मान लो!   
 
लख-लख हुरिहार*, टेसू परस अंगार, राधा जाए न सिधार, कान्हा जान लो!         
हिरदय त्यौहार, कब तिथि के उधार, ये तो जग-व्यवहार, राधा मान लो!
 
निकसे  कन्हाई, काहे प्रीत लगाई, होती जग में हंसाई, कान्हा जान लो!
आखर अढ़ाई, मन-आतम बंधाई, माधो-श्यामा परछाईं, राधा मान लो!   
 
दुनु कमलक फूल, जाएं अलगल कूल, बिंधे बिरह त्रिसूल,  कान्हा जान लो! **
तन छनिक दुकूल, तोरे दुःख निरमूल, प्रीति तारे भव-शूल, राधा मान लो!
 
********
 
*  हुरिहार = होली खेलने वाले
**  मिथिला के एक खेल 'अटकन-मटकन' से प्रेरित, जिसमें बीच में  कहते हैं "कमलक फूल दुनु अलगल जाय".