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बुधवार, 1 सितंबर 2010

दोहा दुनिया : छाया से वार्ता संजीव 'सलिल'

दोहा दुनिया :

छाया से वार्ता

संजीव 'सलिल'
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अचल मचल अविचल विचल, सचल रखे चल साथ.
'सलिल' चलाचल नित सतत, जोड़ हाथ नत माथ..
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प्रतिभा से छाया हुई, गुपचुप एकाकार.
देख न पाये इसलिए, छाया का आकार..
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छाया कभी डरी नहीं, तम उसका विस्तार.
छाया बिन कैसे 'सलिल', तम का हो विस्तार..
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कर प्रकाश का समादर, सिमट रहे हो मौन.
सन्नाटे का स्वर मुखर, सुना नहीं- है कौन?.
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छाया की माया प्रबल, बली हुए भयभीत.
माया की छाया जहाँ, होती नीत-अनीत..
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मायापति इंगित करें, माया दे मति फेर.
सुमति-कुमति सम्मति करें, यह कैसा अंधेर?.
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अंतरिक्ष के मंच पर, कठपुतली है सृष्टि.
छाया-माया ही ध्खीं, गयी जहाँ तक दृष्टि..
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दोनों रवि-राकेश हैं, छायापति मतिमान.
एक हुआ रजनीश तो, दूजा है दिनमान..
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मायापति की गा सका, पूरी महिमा कौन?
जग में भरमाया फिरे, माया-मारा मौन..
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छाया छाए तो मिले, प्रखर धूप से मुक्ति.
आए लाए उजाला, जाए जगा अनुरक्ति..
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छाया कहती है करो, सकल काम निष्काम.
जब न रहे छाया करो, तब जी भर विश्राम..
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छाया के रहते रहे, हर आराम हराम.
छाया बिन श्री राम भी, करें 'सलिल' आराम..
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परछाईं-साया कहो, या शैडो दो नाम.
'सलिल' सत्य है एक यह, छाया रही अनाम..
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दिव्यनर्मदा.ब्लॉगस्पोट.कॉम