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रविवार, 2 जुलाई 2017

नवगीत

एक रचना 
*
येन-केन जीते चुनाव हम 
बनी हमारी अब सरकार 
कोई न रोके, कोई न टोके 
करना हमको बंटाढार
*
हम भाषा के मालिक, 

कर सम्मेलन ताली बजवाएँ
टाँगें चित्र मगर 

रचनाकारों को बाहर करवाएँ
है साहित्य न हमको प्यारा, 

भाषा के हम ठेकेदार 
*
भाषा करे विरोध न किंचित, 

छीने अंक बिना आधार
अंग्रेजी के अंक थोपकर, 

हिंदी पर हम करें प्रहार
भेज भाड़ में उन्हें, आज जो 

हैं हिंदी के रचनाकार
लिखो प्रशंसा मात्र हमारी
जो, हम उसके पैरोकार
कोई न रोके, कोई न टोके
करना हमको बंटाढार
*
जो आलोचक उनकी कलमें 

तोड़, नष्ट कर रचनाएँ
हम प्रशासनिक अफसर से, 

साहित्य नया ही लिखवाएँ
अब तक तुमने की मनमानी, 

आई हमारी बारी है
तुमसे ज्यादा बदतर हों हम, 

की पूरी तैयारी है
सचिवालय में भाषा गढ़ने, 

बैठा हर अधिकारी है
छुटभैया नेता बन बैठा, 

भाषा का व्यापारी है
हमें नहीं साहित्य चाहिए,
नहीं असहमति है स्वीकार
कोई न रोके, कोई न टोके
करना हमको बंटाढार
*
२-७-२०१६

शुक्रवार, 29 जुलाई 2011

एक नवगीत: भोर हुई... संजीव 'सलिल'

एक नवगीत:                                                                           
भोर हुई...
संजीव 'सलिल'
*
भोर हुई, हाथों ने थामा
चैया-प्याली संग अखबार.
अँखिया खोज रहीं हो बेकल
समाचार क्या है सरकार?...
*
कुर्सीधारी शेर पोंछता
खरगोशों के आँसू.
आम आदमी भटका हिरना,
नेता चीता धाँसू.
जनसेवक ले दाम फूलता
बिकता जनगण का घर-द्वार....
*
कौआ सुर में गाये प्रभाती,
शाकाहारी बाज रे.
सिया अवध से है निष्कासित,
व्यर्थ राम का राज रे..
आतंकी है सादर सिर पर
साधु-संत, सज्जन हैं भार....
*
कामशास्त्र पढ़ते हैं छौने,
उन्नत-विकसित देश बजार.
नीति-धर्म नीलाम हो रहे
शर्म न किंचित लेश विचार..
अनुबंधों के प्रबंधों से
संबंधों का बन्टाधार .....
*****
Acharya Sanjiv Salil