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मंगलवार, 30 सितंबर 2014

patrkar ya deshdrohi?

विमर्श: 
पत्रकार का दायित्व 
राजदीप सरदेसाई का कुकृत्य : भारत की अस्मिता को लांछित  दुष्प्रयास
आप सबने अमेरिका में मोदी जी की विशाल जनसभा के पूर्व दुराग्रही पत्रकार राजदीप सरदेसाई को जनता द्वारा सबक सिखाये  वीडियो देखा किन्तु कुछ चैनलों पर उसकी व्याख्या गलत की गयी. कुछ चैनलों ने सभा के समाचार रोककर प्रलाप आरम्भ कर धरने की बात भी कही.  यहाँ सरदेसाई के सवाल जवाब देखिये:
राजदीप: क्या आप सोचते हैं कि एक आदमी भारत को बदल सकता है?
दर्शक: हाँ, यदि १ महिला भारत को लूट सकती है तो एक मनुष्य भारत को बदल सकता है.
राजदीप तुरंत सरक जाते हैं और अन्य युवा दर्शक से पूछते हैं: क्या आप सोचते हैं कि वह केवल एक समुदाय के प्रधान मंत्री हैं? (क्या यहाँ पत्रकार निर्वाचन आयोग, राष्ट्रपति और सर्विच्च न्यायलय की अवमानना नहीं  कर रहा जिन्होंने संवैधानिक प्रावधानों के परिपालन में मोदी जी को निर्वाचित, मनोनीत और शपथ दिलाकर प्रधानमंत्री की आसंदी पर पदासीन कराया?)
युवा दर्शक का उत्तर: यह किस तरह का प्रश्न है? क्या अपने उनके संबोधन में 'वसुधैव कुटुम्बकम, सर्वे भवन्तु सुखिनः तथा सबका साथ सबका विकास' नहीं सुना?
राजदीप: नहीं, मुझे यह बताइये आप २००२ के दंगों के बारे में क्या सोचते हैं? (प्रश्न पत्रकार की समझ, इरादे और सोच पर प्रश्न चिन्ह लगाता है.)
युवा दर्शक: क्या आप भारत के सर्वोच्च न्यायलय का सम्मान करते है? यह गोधरा काण्ड जहाँ कुस्लिमों द्वारा हिन्दू मारे गए थे, की प्रतिक्रिया थी. मोदी का इससे कुछ लेना-देना नहीं था.
राजदीप कैमरामैन से: यह सांप्रदायिक हिन्दुओं का आयोजन बन गया है. (राजदीप दर्शकों की प्रतिक्रिया  जानने गए थे या फैसला सुनाने? क्या उन्हें ऐसा निर्णय करने के अधिकार था? क्या वे इस तरह भीड़ को उत्तेजित नहीं कर रहे थे?)
भीड़ ने गगनभेदी नारा लगाया 'भारत माता की जय, राजदीप गद्दार है' राजदीप ने एक का कॉलर पकड़ लिया तो भीड़ उत्तेजित हो गयी और कैमरे उसे प्रसारित करने लगे. पूर्व संवाद हटकर सिर्फ भीड़ की उत्तेजना सैंकड़ों बार दिखाई जाने लगी.
क्या यह पत्रकारिता है? 
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राजदीप अन्य स्थान पर: 
प्रश्न. आप यहाँ क्यों हैं? क्या एक आदमी भारत को बदल सकता है? 
एक दर्शक: एक मनुष्य बदल नहीं, ऊर्जा को श्रृंखलाबद्ध कर रहा है.
दूसरा दर्शक: मोदी अकेले नहीं हैं, इनके साथ १.२५  भारतीय हैं.
प्रश्न.आपके टिकिट का भुगतान किसने किया? (वह सोच रहे थे कि किराये की भीड़ तो नहीं है?)
प्रश्न. क्या आप भारत जायेंगे? 
उत्तर: हाँ (राजदीप निराश)
प्रश्न: जिन्होंने मोदी को मत नहीं दिया, उनके बारे में क्या सोचते हैं?
उत्तर: वह चुनाव पूर्व की बात है, अब वे हम सबके प्रधानमंत्री हैं।
अन्य दर्शक: मैंने उन्हें नत नहीं दिया पर अब मैं उन्हें सुनने आया हूँ. 
प्रश्न: क्या  एक आदमी भारत बदल सकता है?
उत्तर: एक महिला भारत  तो एक मनुष्य भारत बदल सकता है. राजदीप ने  फिर जगह बदल ली। वे बार-बार यही सवाल पूछते रहे. वे जैसे उत्तर चाहते थे नहीं मिले। वे लगातार इंगित करते रहे कि भारत में दो तरह और एक वर्ग मोदी को नहीं चाहता लेकिन भीड़ उनके बहकावे में नहीं आयी। 
आखिरकार खीझकर बोल पड़े: ' भारतीय मूल के अमरीकी बातें बहुत करते हैं किन्तु देश के लिए अधिक नहीं करते।'  
किसी ने उत्तर दिया: 'हम सारा धन भारत भेजते हैं ताकि आर्थिक विकास में योगदान कर सकें।' 
भीड़ नारे लगाने लगी 'राजदीप मुर्दाबाद' 
राजदीप आक्रामक होकर एक दर्शक की और लपके कालर पकड़ने के लिए. राजदीप यही चाहते थे कि अव्यवस्था हो, मारपीट हो, कार्यक्रम स्थगित हो जाए और वे कैमरे में कैद कर भारत में बेचैनी फैला सकें। उनका दुर्भाग्य कि उनका दुष्प्रयास विफल हुआ. 
यूं ट्यूब परदेखें:  http://www.youtube.com/watch?v=dqOHCxmf2ak
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विचारणीय है कि जिस देश में गणेश शंकर विद्यार्थी, माखन लाल चतुर्वेदी, धर्मवीर भारती 

रघुवीर सहाय, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना जैसे संवेदनशील पत्रकार हुए हों वहां अंग्रेजी का दंभ 

 कर रहे पूर्वाग्रही पत्रकार देश की छवि धूमिल कर गद्दारी नहीं कर रहे हैं क्या? इन्हें कब और 

कैसे दंड दिया जाए? मुझे लगता है इनकी चैनलों का बहिष्कार हो, टी. आर. पी. घटे तभी इन्हें 

अकल आएगी। 

आपका क्या विचार है?


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