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मंगलवार, 4 जून 2013

gazal santosh bhauwala

ग़ज़ल:
चले आइए 
 संतोष भाऊवाला
 *


बज़्म-ए-उल्फ़त सजी है चले आइए
कैसी नाराज़गी है चले आइए
 
ख्वाब में ढूंढ़ती मैं रही आप को
ऐसी क्या बे रूखी है चले आइए
 
याद आकर सताती रही रात भर
आँसु ओं की झड़ी है चले आइए
 
ईद का चाँद भी मुन्तज़िर आपका
कैसी पर्दादरी है चले आइए
 
चाँदनी चाँद से होने को है जुदा
रात भी ढल चली है चले आइए

शुक्रवार, 28 सितंबर 2012

मन्त्र विज्ञान: संतोष भाऊवाला

मन्त्र विज्ञान



संतोष भाऊवाला
*
शब्दों की ध्वनि का अलग-अलग अंगों पर एवं वातावरण पर असर होता है। कई शब्दों का उच्चारण कुदरती रूप से होता है। आलस्य के समय कुदरती आ... आ... होता है। रोग की पीड़ा के समय ॐ.... ॐ.... का उच्चारण कुदरती ऊँह.... ऊँह.... के रूप में होता है। यदि कुछ अक्षरों का महत्त्व समझकर उच्चारण किया जाय तो बहुत सारे रोगों से छुट...कारा मिल सकता है। वैज्ञानिक भी भारतीय मंत्र विज्ञान की महिमा जानकर दंग रह गये हैं।


'अ' उच्चारण से जननेन्द्रिय पर अच्छा असर पड़ता है।

  'आ' उच्चारण से जीवनशक्ति आदि पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। दमा और खाँसी के रोग में आराम मिलता है, आलस्य दूर होता है।

  'इ' उच्चारण से कफ, आँतों का विष और मल दूर होता है। कब्ज, पेड़ू के दर्द, सिरदर्द और हृदयरोग में भी बड़ा लाभ होता है। उदासीनता और क्रोध मिटाने में भी यह अक्षर बड़ा फायदा करता है।

'ओ' उच्चारण से ऊर्जाशक्ति का विकास होता है।

'म' उच्चारण से मानसिक शक्तियाँ विकसित होती हैं। शायद इसीलिए भारत के ऋषियों ने जन्मदात्री के लिए 'माता' शब्द पसंद किया होगा।

'ॐ' का उच्चारण करने से ऊर्जा प्राप्त होती है और मानसिक शक्तियाँ विकसित होती हैं। मस्तिष्क, पेट और सूक्ष्म इन्द्रियों पर सात्त्विक असर होता है।

ह्रीं 'ह्रीं' उच्चारण करने से पाचन-तंत्र, गले और हृदय पर अच्छा प्रभाव पड़ता है।

ह्रं 'ह्रं' उच्चारण करने से पेट, जिगर, तिल्ली, आँतों और गर्भाशय पर अच्छा असर पड़ता है।
 
***

सोमवार, 24 सितंबर 2012

कविता: प्रेम का अंकुर --संतोष भाऊवाला

कविता:
 
 
प्रेम का अंकुर
 
 
संतोष भाऊवाला 
 *
जिंदगी गर जाफरानी लगे
पूस की धूप सी सुहानी लगे  
 लगे अमन चैन लूटा है
तो समझो ह्रदय में
प्रेम का अंकुर फूटा है
भावों का सलिल बहने लगे
शब्दों का अभाव रहने लगे
सब्र का बाँध टूटा है
तो समझो ह्रदय में
प्रेम का अंकुर फूटा है
कुछ करने का न मन करे
तन्हाई में खुद से बाते करें
जग से नाता छूटा है
तो समझो ह्रदय में
प्रेम का अंकुर फूटा है

बढ़ने घटने लगे जब साँसों का स्पंदन
लगे प्यारा बस प्यार का ही बन्धन
रोम रोम में घुलता अहसास अनूठा है
तो समझो ह्रदय में
प्रेम का अंकुर फूटा है
मन जब ईश्वर में रम जाये
उसके प्रेम में बंध जाये
माया मोह झूठा है
तो समझो ह्रदय में
प्रेम का अंकुर फूटा है
 

मंगलवार, 28 अगस्त 2012

लघु कथा: ऐसा क्यों? -संतोष भाऊवाला

लघु कथा:
ऐसा क्यों?
 

 
संतोष भाऊवाला 
*
कुमारी का अपने पति से झगडा हो गया था I

उसका घर छोड़ कर वह अपनी माँ के घर रहने लग गई थी I  सुबह शाम मंदिर जाती और दिन में दूसरों के घर का काम कर अपना पेट पाल रही थी I

माँ बाप ने वापस जाने के लिये बहुत समझाया पर नहीं मानी I अब तो अजीबो गरीब हरकते करने लगी थी I कहती थी... उसमे माता का वास है जब जोर जोर से सिर हिलाती तो सभी उसके पैर छूने लगते ...जब वो ये बाते मुझे बताती तो मेरा मन नहीं मानता था .... कैसे किसी  लड़की में माता का वास हो सकता है , वह  माता स्वरुप हो सकती  है?

मैंने उससे पूछा: 'तुम दूसरी शादी क्यों नहीं कर लेती?'

कहती थी: 'ऐसी बात करना भी मेरे लिये पाप है अब मै देवी हूँ  I' मै चुप हो जाती क्या कहती?...

कल कोई बता रहा था कि कुमारी किसी के साथ भाग गई, वह भी दो बच्चों के पिता के साथ .....
 *


रविवार, 26 अगस्त 2012

कविता : मैं संतोष भाऊवाला

कविता :
मैं
 संतोष भाऊवाला 
*
मैं ..... अदना सा कण
या फिर एक बिंदु
या छोटा सा बीज
मैं  .... एक शब्द  भर
कर देता नि:शब्द पर
इसके अनेक विकार
स्वार्थ,इर्ष्या,अहंकार
कण से विराट
बिंदु से सिन्धु  
बीज से  वृक्ष
तक के  सफ़र में
मैं के अनेक रूप
बदलते स्वरुप
इसी मैं  के कारण
हुए घमासान युद्ध
इसे छोड़ा जब तो
हुए महात्मा बुद्ध
पर कोई अछूता रह न पाये
लक्ष्मीपति हो या लंकापति
इस मै से छुट ना पाये
जीवन भर पछताये
यह मै छोड़े से भी छुटता नहीं
पर जिस दिन छुट गया
मनुज महात्मा बन जाये
समझो तर जाये
बिना मांगे ,मोक्ष पाये  
 
*******