लघुकथा:
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सन्नाटा
संजीव
*
*
=
'लल्लन! एक बात मानोगी?
-- ''का?''
= 'मुन्नू खों गोद ले लेओ'
-- ''सुबे-सुबे काये हँसी-ठठ्ठा करत हो? तुम ठैरे पक्के बामन… हम छू भी जाएँ तो सपरना परे…''
-- 'सो तो है मगर मुन्नू को नौकरी नई मिल रई,जितै जाउत है उतै आरच्छन… एई सें सोची…'
दोनों चुप हो गये, पसरा रह गया सन्नाटा।
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Sanjiv verma 'Salil'*
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