सरस्वती वंदना : ३
संजीव 'सलिल'
*
हे हंसवाहिनी! ज्ञानदायिनी!
अम्ब विमल मति दे...
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नाद-ब्रम्ह की नित्य वंदना.
ताल-थापमय सृजन-साधना.
सरगम कंठ सजे...
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रुनझुन-रुनझुन नूपुर बाजे.
नटवर-चित्रगुप्त उर साजे.
रास-लास उमगे...
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अक्षर-अक्षर शब्द सजाये.
काव्य-छंद, रस-धार बहाये.
शुभ साहित्य सृजे...
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सत-शिव-सुन्दर सृजन शाश्वत.
सत-चित-आनंद भजन भागवत.
आत्म देव पुलके...
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कंकर-कंकर प्रगटे शंकर.
निर्मल करें ह्रदय प्रयलंकर.
'सलिल' सतत महके...
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Acharya Sanjiv Salil
http://divyanarmada.blogspot.com/
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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बुधवार, 6 जनवरी 2010
सरस्वती वंदना : ३ संजीव 'सलिल'
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