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बुधवार, 17 जुलाई 2013

samyik charcha chunaav sudhar aur ummeeswar -rajiv thepra

                                         

सामयिक चर्चा:
चुनाव  सुधार और उम्मीदवार
राजीव ठेपरा *
अभी दो दिनों पूर्व ही भारत में चुनाव सुधार के लिए भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय का आदेश आया है कि किसी जन-प्रतिनिधि को दो साल की सजा होते ही उसकी सदस्यता उसी दिन से रद्द कर दी जाए,यह आदेश स्वागत-योग्य है साथ ही चुनाव सुधार की दिशा में वर्षों से मेरे मन में भी एक विचार आता रहा है, मैं चाहता हूँ कि यह विचार मैं इस मंच पर रखूं ताकि इस पर विमर्श हो सके और मैं चाहूँगा कि ज्यादा से ज्यादा लोग इस विचार की कमी-बेशी पर अपनी राय अवश्य प्रकट करें .
 
          जब से होश संभाला है तब से देख रहा हूँ कि भारत में होनेवाले चुनावों में भारत की आधी से ज्यादा आबादी हिस्सा ही नहीं लेती और इसमें रोचक किन्तु चिंतनीय पक्ष यह है कि चुनाव न करने वाले लोग हमारे जैसे व्यवस्था पर सदा चीखते-चिल्लाने वाले लोग हैं, जो राग तो हमेशा कोढ़ का अलापते हैं मगर ईलाज वाले दिन (इस सन्दर्भ में चुनाव वाले दिन) अस्पताल जाते ही नहीं और फिर परिणाम आते ही दुबारा चीखने-चिल्लाने लग जाते हैं कि हाय इलाज नहीं हुआ.... इलाज नहीं हुआ या फिर गलत इलाज हो गया !!  

इसमें सुधार हेतु मेरे मन में यह विचार हमेशा आता रहा है कि अब जब तकनीक में हम इतना आगे आ चुके हैं और तकनीक का इतना आनंद भी लेते हैं कि करोड़ों लोग ऐसे भी हैं जो भले ही भूखे मरते हों मगर मोबाइल का उपयोग अवश्य करते हैं !
 
            तो क्या ऐसा नहीं हो सकता कि हर नागरिक चुनाव-पूर्व मतदाता सूची में अपना एक फिक्स नंबर जुड़वा ले, यह एक नंबर परिवार के सभी सदयों के लिए भी हो सकता है या फिर हर-एक सदस्य अलग-अलग नंबर भी रजिस्टर्ड करवा सकता है और तब उस व्यक्ति या परिवार का वही नंबर एक तरह का यूनिक आई डी होगा और चुनाव होने पर उसी नंबर से आने वाले मैसेज को सही माना जायेगा,इस प्रक्रिया में चुनाव आयोग रजिस्टर्ड नंबरों पर क्षेत्र-विशेष की भाषानुसार चुनने के लिए दलों का विकल्प भेजेगा,जिसमें से मनचाहे दल को हम चुन कर मैसेज का रिप्लाई दे देंगे और चूँकि यह रिप्लाई हमारे रजिस्टर्ड नंबर से होगी तो इसमें घपले की कोई गुंजाईश नहीं दिखाई देती अगर एक परिवार में कई लोगों का रजिस्टर्ड नंबर एक ही है तो जितने लोगों का वह नंबर घोषित है उतनी बार रिप्लाई मान्य मानी जायेगी !
 
            अब रही बात करोड़ों अनपढ़ लोगों के इस प्रक्रिया में हिस्सा ना ले पाने की,तो इसके लिए परंपरागत चुनाव करवाए जा सकते हैं इससे होगा यह कि एक ही दिन में एक क्षेत्र में होने वाले चुनाव के कारण जो आधे लोग समय की कमी और लम्बी लाईनों की वजह से मतदान करने से छूट जाते हैं वो घर बैठे ही इस चुनाव-प्रक्रिया में शामिल हो सकेंगे और इस तरह एक पढ़े-लिखे प्रमुख वर्ग के करोड़ों लोगों की (समूचे लोगों की)सहभागिता इस लोकतंत्र में हो जायेगी तथा परंपरागत चुनाव में भी तब बाकी के बचे सारे लोग मतदान कर पाएंगे ! 

           जिन लोगों ने मोबाइल द्वारा वोट कर दिया होगा वो परंपरागत चुनाव में स्वतः रद्द घोषित हो जायेंगे,इस प्रकार हम देखेंगे कि चुनाव का प्रतिशत नब्बे-फीसदी से ऊपर भी जा सकता है और तब सही मायनों में हमारे जन-प्रतिनिधि हमारे जन-प्रतिनिधि माने जा सकते हैं और तो और इस प्रकार के चुनाव में हिस्सा न लेने पर मतदाता को सो कॉल्ड का नोटिस का मैसेग भी भेज जा सकता है कि आपने इस मामूली सी प्रक्रिया में भी हिस्सा नहीं लिया है तो क्यों ना आपकी भारत की नागरिकता छीन ली जाए !!चुनाव की इस प्रक्रिया में वो लाखों-लाख लोग भी शामिल हो सकते हैं जो सफ़र में हों और अपने क्षेत्र से बाहर हों साथ ही इससे भी महत्वपूर्ण सुधार मेरे मन में है कि पार्टियों की संख्या सीमित करना और चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवारों को शामिल नहीं करना क्योंकि इसके चलते सैकड़ों उम्मीदवारों के कारण वोट का एक बहुत बड़ा प्रतिशत व्यर्थ सिद्ध हो जाता है और इसी के कारण मात्र दस फीसदी वोट पाकर जितने वाले हमारे जन-प्रतिनिधि मान लिए जाते हैं।
 
क्या यह राय आप सबों को उचित जान पड़ती है ??हाँ या नहीं अलग बात है मगर अगर भारत को सच में ही हम आगे बढ़ता देखना चाहते हैं तो कुछेक जलते सवालों पर हमें अपनी सहभागिता दर्शानी ही होगी और अपने देश की एक दिशा तय करनी होगी मगर चलते-चलते एक आखिरी बात यह है कि नेताओं-अफसरों की जवाबदेही तय करने वाले हम सब कर्तव्यहीन और करप्ट भारत के हित के लिए अपनी कौन-सी जवाबदेही तय करने जा रहे हैं या अपनी किस किस्म की सहभागिता हमने भारत-निर्माण के लिए तय की है !!??
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रविवार, 5 सितंबर 2010

सामयिक चर्चा : हिन्दी का शब्द भंडार समृद्ध करो ---दीपिका कुलश्रेष्ठ

सामयिक चर्चा : हिन्दी का शब्द भंडार समृद्ध करो 

दीपिका कुलश्रेष्ठ
Journalist, bhaskar.com


ताज़ा घोषणा के अनुसार अंग्रेजी भाषा में शब्दों का भंडार 10 लाख की गिनती को पार कर गया है.
विभिन्न भाषाओं में शब्द-संख्या निम्नानुसार है :
अंग्रेजी- 10,00,000       चीनी- 500,000+
जापानी- 232,000         स्पेनिश- 225,000+
रूसी- 195,000             जर्मन- 185,000
हिंदी- 120,000             फ्रेंच- 100,000
                                                     (स्रोत- ग्लोबल लैंग्वेज मॉनिटर 2009)

                 हमारी मातृभाषा हिंदी का क्या, जिसमें अभी तक मात्र 1 लाख 20 हज़ार शब्द ही हैं।
                 कुछ लोगों का मानना है कि अंग्रेजी भाषा का 10 लाख वां शब्द 'वेब 2.0' एक पब्लिसिटी का हथकंडा मात्र है।
                इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि वर्तमान में अंग्रेजी भाषा में सर्वाधिक शब्द होने का कारण यह है कि 
अंग्रेजी में उन सभी भाषाओं के शब्द शामिल कर लिए जाते हैं जो उनकी आम बोलचाल में आ जाते हैं। हिंदी में ऐसा क्यों नहीं किया जाता। जब 'जय हो' अंग्रेजी में शामिल हो सकता है, तो फिर हिंदी में या, यप, हैप्पी, बर्थडे आदि जैसे शब्द क्यों नहीं शामिल किए जा सकते? वेबसाइट, लागइन, ईमेल, आईडी, ब्लाग, चैट जैसे न जाने कितने शब्द हैं जो हम हिंदीभाषी अपनी जुबान में शामिल किए हुए हैं लेकिन हिंदी के विद्वान इन शब्दों को हिंदी शब्दकोश में शामिल नहीं करते। कोई भाषा विद्वानों से नहीं आम लोगों से चलती है। यदि ऐसा नहीं होता तो लैटिन और संस्कृत खत्म नहीं होतीं और हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू आदि भाषाएँ पनप ही नहीं पातीं। उर्दू तो जबरदस्त उदाहरण है। वही भाषा सशक्त और व्यापक स्वीकार्यता वाली बनी रह पाती है जो नदी की तरह प्रवाहमान होती है अन्यथा वह सूख जाती है  ।

क्या है आपकी राय ?
क्या हिंदी में नए शब्दों को जगह दी जानी चाहिए?
अपनी राय कमेंट्स बॉक्स में जाकर दें! 
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                                                                                    आभार : हिंदुस्तान का दर्द.