कुल पेज दृश्य

samiksha giri mohan guru navgeet लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
samiksha giri mohan guru navgeet लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

मंगलवार, 26 मार्च 2019

समीक्षा गिरि मोहन गुरु के नवगीत

कृति चर्चा:
गिरिमोहन गुरु के नवगीत : बनाते-नवरीत
चर्चाकार : आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
*
[कृति विवरण: गिरिमोहन गुरु के नवगीत, नवगीत संग्रह, गिरिमोहन गुरु, संवत २०६६, पृष्ठ ८८, १००/-, आकार डिमाई, आवरण पेपरबैक दोरंगी, मध्य प्रदेश तुलसी अकादमी ५० महाबली नगर, कोलार मार्ग, भोपाल, गीतकार संपर्क:शिव संकल्प साहित्य परिषद्, गृह निर्माण कोलोनी होशंगाबाद ]
*
विवेच्य कृति नर्मदांचल के वरिष्ठ साहित्यकार श्री गिरिमोहन गुरु के ६७ नवगीतों का सुवासित प्रतिनिधि गीतगुच्छ है जिसमें से कुछ गीत पूर्व में 'मुझे नर्मदा कहो' शीर्षक से पुस्तकाकार प्रकाशित हो चुके हैं। इन गीतों का चयन श्री रामकृष्ण दीक्षित तथा श्री गिरिवर गिरि 'निर्मोही' ने किया है। नवगीत प्रवर्तकों में से एक डॉ. शंभुनाथ सिंह, नवगीत पुरोधा डॉ. देवेन्द्र शर्मा 'इंद्र', पद्म श्री गोपालदास नीरज, डॉ. अनंतराम मिश्र अनंत, डॉ. गणेशदत्त सारस्वत, डॉ. उर्मिलेश, डॉ. परमलाल गुप्त, डॉ. रामचंद्र मालवीय, कुमार रवीन्द्र, स्व. कृष्णचन्द्र बेरी आदि ने प्रशंसात्मक टिप्पणियों में नर्मदांचल के वरिष्ठ नवगीतकार श्री गिरिमोहन गुरु के नवगीतों पर अपना अभिमत व्यक्त किया है। डॉ. दया कृष्ण विजयवर्गीय के अनुसार इन नवगीतों में 'शब्द की प्रच्छन्न ऊर्जा को कल्पना के विस्तृत नीलाकाश में उड़ाने की जो छान्दसिक अबाध गति है, वह गुरूजी को नवगीत का सशक्त हस्ताक्षर बना देती है।
कृति के आरम्भ में डॉ. अनंत ने आमुख में डॉ. शम्भुनाथ सिंह के साथ नवगीत पर परिचर्चा का उल्लेख करते हुए लिखा है कि "डॉ. शंभुनाथ सिंह ने नवगीत के वर्ण्य विषयों में धर्म-आध्यात्म-दर्शन, नीति-सुभाषित, प्रेम-श्रृंगार तथा प्रकृति-चित्रण की वर्जना की है। उन्होंने केवल युगबोधजनित भावभूमि तथा यत्र-तत्र एक सी टीस जगानेवाले पारंपरिक या सांस्कृतिक बिंब-विधान को ही नवगीत के लिए सर्वोपयुक्त बतलाया था।" महाप्राण निराला द्वारा 'नव गति, नव ले, ताल-छंद नव' के आव्हान के अगले कदम के रूप में यह तर्क सम्मत भी था किन्तु किसी विधा को आरंभ से ही प्रतिबंधों में जकड़ने से उसका विकास और प्रगति प्रभावित होना भी स्वाभाविक है। एक विचार विशेष के प्रति प्रतिबद्धता ने प्रगतिशील कविता को जन सामान्य से काटकर विचार धारा समर्थक बुद्धिजीवियों तक सीमित कर दिया। नवगीत को इस परिणति से बचाकर, कल से कल तक सृजन सेतु बनाते हुए नव पीढ़ी तक पहुँचाने में जिन रचनाधर्मियों ने साहसपूर्वक निर्धारित की थाती को अनिर्धारित की भूमि पर स्थापित करते हुए अपनी मौलिक राह चुनी उनमें गुरु जी भी एक हैं। विधि का विधान यह कि शम्भुनाथ जी द्वारा वर्जित 'धर्म-आध्यात्म-दर्शन, नीति-सुभाषित, प्रेम-श्रृंगार तथा प्रकृति-चित्रण' गुरु जी के नवगीतों में प्रचुरता से व्याप्त है। डॉ. अनंत ने प्रसन्नता व्यक्त की है कि "गुरु ने नवगीत से प्रभाव अवश्य ग्रहण किए हैं और उसके नवीन शिल्प विधान को भी अपने गीतों में अपनाया है परन्तु उन विशेषताओं को प्राय: नहीं अपनाया जो बहुआयामी मानव-जीवन के विविध कोणीय वर्ण्य विषयों को सीमित करके काव्य को प्रतिबद्धता की श्रंखलाओं में बंधने के लिए बाध्य करती है।"
नवगीत के शिल्प-विधान को आत्मसात करते हुए कथ्य के स्तर पर निज चिंतन प्रणीत विषयों और स्वस्फूर्त भंगिमाओं को माधुर्य और सौन्दर्य सहित अभिव्यंजित कर गुरु जी ने विधा को गौड़ और विधा में लिख रहे हस्ताक्षर को प्रमुख होने की प्रवृत्ति को चुनौती दी। जीवन में विरोधाभासजनित संत्रास की अभिव्यक्ति देखिए-
अश्रु जल में तैरते हैं / स्वप्न के शैवाल
नाववाले नाविकों के / हाथ है जाल
.
हम रहे शीतल भले ही / आग के आगे रहे
वह मिला प्रतिपल कि जिससे / उम्र भर भागे रहे
वैषम्य और विडंबना बयां करने का गुरु जी अपना ही अंदाज़ है-
घूरे पर पत्तलें / पत्तलों में औंधे दौने
एक तरफ हैं श्वान / दूसरी तरफ मनुज छौने
अनुभूति की ताजगी, अभिव्यक्ति की सादगी तथा सुंस्कृत भाषा की बानगी गुरु के नवगीतों की जान है। उनके नवगीत निराशा में आशा, बिखराव में सम्मिलन, अलगाव में संगठन और अनेकता में एकता की प्रतीति कर - करा पाते हैं-
लौटकर फिर आ रही निज थान पर / स्वयं बँधने कामना की गाय
हृदय बछड़े सा खड़ा है द्वार पर / एकटक सा देखता निरुपाय
हौसला भी एक निर्मम ग्वाल बन / दूध दुहने बाँधता है, छोड़ता है
छंद-विधान, बिम्ब, प्रतीक, फैंटेसी, मिथकीय चेतना, प्रकृति चित्रण, मूल्य-क्षरण, वैषम्य विरोध और कुंठा - निषेध आदि को शब्दित करते समय गुरु जी परंपरा की सनातनता का नव मूल्यों से समन्वय करते हैं।
कृषक के कंधे हुए कमजोर / हल से हल नहीं हो पा रही / हर बात
शहर की कृत्रिम सडक बेधड़क / गाँवों तक पहुँच / करने लगी उत्पात
गुरु जी के मौलिक बिम्बों-प्रतीकों की छटा देखे-
इमली के कोचर का गिरगिट दिखता है रंगदार
शाखा पर बैठी गौरैया दिखती है लाचार
.
एक अंधड़ ने किया / दंगा हुए सब वृक्ष नंगे
हो गए सब फूल ज्वर से ग्रस्त / केवल शूल चंगे
.
भैया बदले, भाभी बदले / देवर बदल गए
वक्त के तेवर बदल गए
.
काँपते सपेरों के हाथ साँपों के आगे
झुक रहे पुण्य, स्वयं माथ, पापों के आगे
सामाजिक वैषम्य की अभिव्यक्ति का अभिनव अंदाज़ देखिये-
चाँदी के ही चेहरों का स्वागत होता झुक-झुक
खड़ा भोज ही, बड़ा भोज, कहलाने को उत्सुक
फिर से हम पश्चिमी स्वप्न में स्यात लगे खोने
.
सपने में सोन मछरिया पकड़ी थी मैंने
किन्तु आँख खुलते ही
हाथ से फिसल गयी
.
इधर पीलिया उधर खिल गए
अमलतास के फूल
गुरु के नवगीतों का वैशिष्ट्य नूतन छ्न्दीय भंगिमाएँ भी है। वे शब्द चित्र चित्रित करने में प्रवीण हैं।
बूढ़ा चाँद जर्जरित पीपल
अधनंगा चौपाल
इमली के कोचर का गिरगिट
दिखता है रंगदार
नदी किनारेवाला मछुआ
रह-रह बुनता जाल
भूखे-प्यासे ढोर देखते
चरवाहों की और
भेड़ चरानेवाली, वन में
फायर ढूंढती भोर
मरना यदि मुश्किल है तो
जीना भी है जंजाल
गुरु जी नवगीतों में नवाशा के दीप जलाने में भी संकोच नहीं करते-
एक चिड़िया की चहक सुनकर
गीत पत्तों पर लगे छपने
.
स्वप्न ने अँगड़ाइयाँ लीं, सुग्बुआऎ आस
जिंदगी की बन गयी पहचान नूतन प्यास
छंदों का सधा होना उनके कोमल-कान्त पदावली सज्जित नवगीतों की माधुरी को गुलाबजली सुवास भी देता है। प्रेम, प्रकृति और संस्कृति की त्रिवेणी इन गीतों में सर्वत्र प्रवाहित है।
जग को अगर नचाना हो तो / पहले खुद नाचो, मौसम के अधरों पर / विश्वासी भाषा, प्यासों को देख, तृप्ति / लौटती सखेद, ले आया पावस के पत्र / मेघ डाकिया, अख़बारों से मिली सुचना / फिर बसंत आया जैसी अभिव्यक्तियाँ पाठक को गुनगुनाने के लिए प्रेरित करती हैं।
नवगीतों को उसके उद्भव काल में निर्धारित प्रतिबंधों के खूँटे से बांधकर रखने के पक्षधरों को नवगीत की यह भावमुद्रा स्वीकारने में असहजता प्रतीत हो सकती है, कोई कट्टर हस्ताक्षर नाक-भौं सिकोड़ सकता है पर नवगीत संसद के दरवाजे पर दस्तक देते अनेक नवगीतकार इन नवगीतों का अनुसरणकर खुद को गौरवान्वित अनुभव करेंगे।
=============
संपर्क: विश्व वाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन जबलपुर ४८२००१, चलभाष: ७९९९५५९६१८, ९४२५१८३२४४ ईमेल: salil.sanjiv@gmail.com
============================