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शुक्रवार, 14 जुलाई 2017

muktak

मुक्तक:
मत सोच यार, पा-बाँट प्यार,
सह दर्द, दे ख़ुशी तू उधार।
पतवार-नाव, हो जोश-होश
कर-करा पार, तू सलिल-धार।।
***
salil.sanjiv@gmail.com
#हिंदी_ब्लॉगिंग 
#हिंदीब्लॉगर।कॉम 

रविवार, 15 जुलाई 2012

आज का विचार, Thought of the Day, salil

 
आज का विचार: 
 सलिल
विधि की कैसी विडंबना है?
जो करते हैं कद्र हमारी 
उनकी करी उपेक्षा हमने.
जो करते हैं हमें उपेक्षित 
उन्हें बिठाया सर पर हमने.
जिसने आहत किया उसी पर 
हमने खुद को वार दिया है.
उसको आहत किया हमेंशा 
जिसने हमको प्यार किया है। 
*
Thought of the Day:









 *

गुरुवार, 9 जून 2011

रचना-प्रति रचना: महेश चन्द्र गुप्त ’ख़लिश’ -- संजीव 'सलिल'

रचना-प्रति रचना:
ग़ज़ल : आभार ई-कविता
उम्र गुज़र गई राहें तकते, ढल गए अंधियारे में साए---   ईकविता, ९ जून २०११
महेश चन्द्र गुप्त ख़लिश
७ जून २०११
उम्र गुज़र गई राहें तकते , ढल गए अंधियारे में साए
अंत समय आया पर तुमको न आना था, तुम न आए
 
दिल ने तुमको बहुत बुलाया पर तुम तक आवाज़ न पहुँची
दोष भला कैसे  दूँ तुम तो सदा अजाने से मुस्काए
 
काश कभी ये भी हो पाता, तुम अपने से चल कर आते
पर दिल में अहसास भरा हो तब ही कोई कदम बढ़ाए
 
आज तपस्या पूरी हो गई, मिले नहीं पर तप न टूटा
तुम न होते तो फिर मैं रहता किस पर विश्वास टिकाए
 
नहीं समय का बंधन है अब, धरती-नभ हो गए बराबर
जाने अब मिलना हो न हो, दूर ख़लिश वह काल बुलाए.
 *
प्रति रचना: 
मुक्तिका
 संजीव 'सलिल'
*
राह ताकते उम्र बितायी, लेकिन दिल में झाँक न पाये.
तनिक झाँकते तो मिल जाते, साथ हमारे अपने साये..

दूर न थे तो कैसे आते?, तुम ही कोई राह बताते.
क्या केवल आने की खातिर, दिल दिलको बाहर धकियाये?


सावन में दिल कहीं रहे औ', फागुन में दे साथ किसी का.
हमसे यही नहीं हो पाया, तुमको लगाते रहे पराये..



जाते-आते व्यर्थ कवायद क्यों करते, इतना बतला दो?
अहसासों का करें प्रदर्शन, मनको यह अहसास न भाये..



तप पूरा हो याकि अधूरा, तप तो तपकर ही हो पाता.
परिणामों से नहीं प्रयासों का आकलन करें-भरमाये.. 

काल-अकाल-सुकाल हमीं ने, महाकाल को कहा खलिश पा.
अलग कराये तभी मिलाये, 'सलिल' प्यास ही तृप्त कराये..

****

शुक्रवार, 24 दिसंबर 2010

मुक्तिका: कौन चला वनवास रे जोगी? -- संजीव 'सलिल'

मुक्तिका:                                                                                            
कौन चला वनवास रे जोगी?

संजीव 'सलिल'
*

*

कौन चला वनवास रे जोगी?
अपना ही विश्वास रे जोगी.
*
बूँद-बूँद जल बचा नहीं तो
मिट न सकेगी प्यास रे जोगी.
*
भू -मंगल तज, मंगल-भू की
खोज हुई उपहास रे जोगी.
*
फिक्र करे हैं सदियों की, क्या
पल का है आभास रे जोगी?
*
गीता वह कहता हो जिसकी
श्वास-श्वास में रास रे जोगी.
*
अंतर से अंतर मिटने का
मंतर है चिर हास रे जोगी.
*
माली बाग़ तितलियाँ भँवरे
माया है मधुमास रे जोगी.
*
जो आया है वह जायेगा
तू क्यों हुआ उदास रे जोगी.
*
जग नाकारा समझे तो क्या
भज जो खासमखास रे जोगी.
*
राग-तेल, बैराग-हाथ ले
रब का 'सलिल' खवास रे जोगी.
*
नेह नर्मदा नहा 'सलिल' सँग
तब ही मिले उजास रे जोगी.
*