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मंगलवार, 23 अप्रैल 2019

सखी / गंग छंद

ॐ 
छंद बहर का मूल है: १० 
*
छंद परिचय:
संरचना: SIS SSI SS / SISS SISS
सूत्र: रतगग।
आठ वार्णिक अनुष्टुप जातीय छंद।
चौदह मात्रिक मानव जातीय सखी छंद।
बहर: फ़ाइलातुं फ़ाइलातुं ।
*
आप बोलें या न बोलें
सत्य खोलें या न खोलें
*
फैसला है आपका ही
प्यार के हो लें, न हो लें
*
कीजिए भी काम थोड़ा
नौकरी पा के, न डोलें
*
दूर हो विद्वेष सारा
स्नेह थोड़ा आप घोलें
*
तोड़ दें बंदूक-फेंकें
नैं आँसू से भिगो लें
*
बंद हो रस्मे-हलाला
औरतें भी सांस ले लें
*
काट डाले वृक्ष लाखों
हाथ पौधा एक ले लें
***
२३.४.२०१७
***

छंद बहर का मूल है: ११
*
छंद परिचय:
संरचना: SIS SS
सूत्र: रगग।
पाँच वार्णिक सुप्रतिष्ठा जातीय छंद।
नौ मात्रिक आंक जातीय गंग छंद।
बहर: फ़ाइलातुं फ़े ।
*
भावनाएँ हैं
कामनाएँ हैं
*
आदमी है तो
वासनाएँ हैं
*
हों हरे वीरां
योजनाएँ हैं
*
त्याग की बेला
दाएँ-बाएँ हैं
*
आप ही पालीं
आपदाएँ हैं
*
आदमी जिंदा
वज्ह माएँ हैं
*
औरतें ही तो
वंदिताएँ हैं
***
२३.४.२०१७
***

रविवार, 23 अप्रैल 2017

chhand-bahar 10

ॐ 
छंद बहर का मूल है: १० 
*
छंद परिचय:
संरचना: SIS SSI SS / SISS SISS
सूत्र: रतगग।
आठ वार्णिक अनुष्टुप जातीय छंद।
चौदह मात्रिक मानव जातीय सखी छंद।
बहर: 
फ़ाइलातुं फ़ाइलातुं ।
*
आप बोलें या न बोलें
सत्य खोलें या न खोलें  

*
फैसला है आपका ही
प्यार के हो लें, न हो लें 


कीजिए भी काम थोड़ा 
नौकरी पा के, न डोलें
*
दूर हो विद्वेष सारा
स्नेह थोड़ा आप घोलें   

*
तोड़ दें बंदूक-फेंकें
नैं आँसू से भिगो लें 

*
बंद हो रस्मे-हलाला  
औरतें भी सांस ले लें 
*
काट डाले वृक्ष लाखों 
हाथ पौधा एक ले लें 
***
२३.४.२०१७
***

सोमवार, 6 जून 2016

muktika

मुक्तिका
*
आँख जब भी बोलती है
राज दिल के खोलती है
.
मन बनाता है बहाना
जुबां गुपचुप तोलती है
*
ख्वाब करवट ले रहे हैं
संग कोशिश डोलती है
*
कामना जनभावना हो
श्वास में रस घोलती है
*
वृत्ति आदिम सगा-साथी
झुका आँख टटोलती है
*
याचनामय दृष्टि, दाता
पेंडुलम संग डोलती है
***
{ मानव जातीय सखी छंद}