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रविवार, 19 अप्रैल 2015

रेल विभाग में हो रही गडबडियों को दूर करने के लिए सुझाव

जागो! नागरिक जागो:
रेल विभाग में हो रही गडबडियों को दूर करने के लिए सुझाव निम्न लिंक पर भेजें.

https://www.localcircles.com/a/home?t=c&pid=c1JkPSJmxm8W17A9FSAPUH6cnEfqHwd71PC2PI2aL08

रेलवे समाज सेवा और जनकल्याण भावना से संचालित विभाग है जिसके सुचारू सञ्चालन हेतु लाभांश आवश्यक है किन्तु लाभ एकमात्र लक्ष्य नहीं हो सकता. ग्राहक अधीनस्थ नौकर या गुलाम नहीं रेलवे का जीवनदाता है. नियम और नीति बनानेवालों तथा कर्मचारियों-अधिकारियों को यह तथ्य सदा स्मरण रखना चाहिए तथा कार्यस्थलों पर अंकित भी करना चाहिए. सभी सूचनाएं हिंदी तथा स्थानीय भाषाओँ में प्राथमिकता से हों. अंग्रेजी को अंत में स्थान हो.
१. तत्काल में कन्फर्म टिकिट निरस्त करने पर कोइ राशी वापिस न हो तो कोई टिकिट निरस्त करेगा ही क्यों? रेलवे ऐसी बर्थ खाली न रख अन्य यात्री को आवंटित कर राशी वसूल लेती है. अत: निरस्त करनेवाले यात्री को ७५% राशी लौटानी चाहिए.
२. तत्काल टिकिट खिड़की पर रोज बुकिंग करनेवाले एजेंटों की पहचान कर उन्हें अलग किया जाने पर ही वास्तविक यात्री को टिकिट मिलेगा. वर्तमान में कुछ लडके हर स्टेशन पर यही व्यवसाय करते हैं. रोज थोक में टिकिट लेते हैं और बेचते हैं और इसमें रेलवे कर्मचारी भी सम्मिलित होते हैं.
३. खान-पान का सामान निम्न गुणवत्ता का, मात्रा में कम और निर्धारित से अधिक कीमत में उपलब्ध कराना यात्री की जेब पर डाका डालने के समान है. टिकिट निरीक्षक या कंडकटर्स ऐसी शिकायत पर ध्यान नहीं देते. पेंट्रीकर वाले भी ठंडा-बेस्वाद भोजन देते हैं. रेलगाड़ी के वीरान स्थल के समीपस्थ होटलों मो निर्धारित मूल्य पर भोजन समग्रे उपलब्ध करने का ठेका देने का प्रयोग किया जाना चाहिए.
४. वातानुकूलित डब्बे में आगामी स्टेशन की जानकारी देना जरूरी है. रेल के मार्ग तथा स्टेशनों की दूरी व् समय दर्शाता रेखाचित्र दरवाजों के समीप अंकित किया जाए. कोच अटेंडेंट को जानकारी हो की किस बर्थ का यात्री कहाँ उतरेगा ताकि वह यात्री से बिस्तर ले सके और दरवाजा खोलकर उसे उतरने में सहायता कर सके. अभी तो वह सोता रहता है या अपनी बर्थ किसी को बेचकर लापता हो जाता है.
५. यात्री के यात्रा आरम्भ करने से लेकर यात्रा समाप्त करने तक बिस्तर उससे नहीं लिया चाहिए. यात्रा आरम्भ होने के २-३ स्टेशन बाद बिस्तर देना और २-३ स्टेशन पहले से बिस्तर वापिस ले लेना गलत है. जबलपुर-दिल्ली की रेलगाड़ियों में प्रायः कटनी-सिहोरा के बीच बिस्तर दिया जाता है और यहीं वापिस ले लिया जाता है. अटेंडेंट झगडालू तथा बदतमीज हैं.
६. कंबल पुराने-गंदे तथा टॉवल / नेपकिन न देना आम है. पैकेट पर लिखा होने की बाद भी नेपकिन नहीं दिया जाता. बेहतर हो की ठेकों से नेपकिन हटाकर उसकी राशि टिकिट में कम कर दी जाए. डिस्पोजेबल नेपकिन जी लौटना न हो भी इसका एक उपाय है.
७. यात्री को बिस्तर लेने या न लेने का विकल्प दिया जाए तो वह गंदा-पुराना सामान वापिस कर सकेगा और तब ठेकेदार स्वच्छ बिस्तर देने को बाध्य होगा.
८. यात्री के पास निर्धारित से अधिक वज़न का सामान होने पर तत्काल वज़न कर लगेज वैन में रखने और उतरते समय पावती देखकर लौटने की व्यवस्था हो तो रेलवे की आय बढ़ेगी तथा डब्बों में असुविधा घटेगी. अभी तो बारात या परिवार का पूरा समान ले जानेवाले अन्य यात्रियों के लिए मुश्किल कड़ी कर देते हैं और उन पर कोई कार्यवाही नहीं होती.
९. महत्वपूर्ण व्यक्ति को आवंटित टिकिट पर उसका चित्र अंकित हो ताकि उसका सहायक, रिश्तेदार या कोई अन्य यात्रा न कर सके.
१०. कैंटीन बहुत अधिक दाम पर खाद्य पदार्थ उपलब्ध करते हैं. अतः, प्लेटफोर्म पर स्थानीय लाइसेंसधारी विक्रेताओं को अवश्य रहने दिया जाए किन्तु उनकी सामग्री की गुणवत्ता और ताजे होने की संपुष्टि रोज की जाए.
११.  रिफंड के लिए टी.टी.इ. प्रमाणपत्र नहीं देते. अत: इसका प्रावधान समाप्त किया जाए और सेल्फ अटेस्टेशन की तरह टिकिटधारी की घोषणा को ही प्रमाण माना जाए. इससे आम आदमी में उत्तरदायित्व तथा सम्मान का भाव जाग्रत होगा.
१२. स्टिंग ऑपेरशन की तरह यात्री द्वारा कुछ गलत होते देखे जाने पर मोबाइल से रिकोर्ड/शूट कर ईमेल से भेजे जाने अथवा सूचित किये जाने के लिए कुछ चलभाष क्रमांक / ईमेल पते निर्धारित कर हर स्टेशन तथा डब्बों में अंकित किये जाए. इससे विभाग को बिना किसी वेतन के उसके ग्राहक ही सुचनादाता के रूप में सहयोग कर सकेंगे. आपात स्थिति, दुर्घटना अथवा नियमोल्ल्न्घन की स्थिति में तुरत कार्यवाही की जा सकेगी.
१३. रिफंड के नियम सरल किये जाएँ. कोई यात्र्र विवशता होने पर ही यात्रा निरस्त करता है. किसी की विवशता का लाभ उठाना घटिया मानसिकता है. यात्रे खुद को ठगा गया अनुभव करता है और फिर रेलवे को किसी न किसी रूप में क्षति पहुँचाकर संतुष्ट होता है. इसे रोका जाना चाहिए. रिफंड जल्दी से जल्दी और अधिक से अधिक किया जाए.
१४. आय वृद्धि के लिए डब्बों पर विज्ञापन दिए जाएँ जिनके साथ विज्ञापन अवधि बड़े अक्षरों में अंकित हो ताकि तत्काल बाद हटाकर नए विज्ञापन लगाये जा सकें.
१५. रेलवे के आगामी ५० वर्ष बाद की आवश्यकता और विस्तार का पूर्वानुमान कर बहुमंजिला इमारतें बनाई जाएँ. अधिकारियों के लिए बड़े-बड़े और अलग-अलग कक्ष समाप्त कर एक कक्ष में अधिकारी-कर्मचारी काम करें तो समयबद्धता, अनुशासन तथा बेहतर वातावरण होगा.     

बुधवार, 15 अप्रैल 2015

suggestions for improvements in coaches

https://www.localcircles.com/a/home?t=c&pid=tJWDnOuaxjEFbvkoxFAyqTTk7iNDexn5vIZ7PJJ78PM

१. डब्बों की सभी श्रेणियों तथा स्टेशनों पर शौचालयों के निर्माण में पुरुष / स्त्री, सामान्य /अशक्त-वृद्ध जनों / बच्चों का ध्यान रखकर संख्या तथा उपादान लगाये जाना चाहिए.

२. शौच की प्राकृतिक अनिवार्यता के मद्देनज़र यह सुविधा निशुल्क हो ताकि किसी की जेब में मुद्रा न होने पर भी उसे सार्वजनिक स्थल पर मल-मूत्र त्याग न करना पड़े.

३. रेलगाड़ी में वाश बेसिन बच्चों की कम ऊँचाई के अनुकूल नहीं हैं.

४. अस्थि रोग ग्रस्त यात्रियों को बढ़ती संख्या को देखते हुए हर डब्बे में दोनों छोर पर एक-एक कमोड (पश्चिमी शैली) युक्त शौचालय हो.

५. लंबी दूरी की रेलगाड़ियों में शावर हो तो स्नान की सुविधा हो सकती है.

६. वातानुकूलित डब्बों में आम यात्री के लिए परदे की कोई उपयोगिता नहीं है. यह अपव्यय रोका जा सकता है.

७. वातानुकूलित डब्बों में टॉवल / नेप्किन नहीं दिया जाता, टिकिट निरीक्षक यात्री से इसकी पुष्टि करें तो यात्री यह सुविधा पा सकेंगे.

८. ऊपरी शायिका पर सो रहे बच्चों के गिरने की दुर्घटना रोकने के लिए खुले छोर पर जाली की रेलिंग हो जिसे चाहने पर शायिका के नीचे मोड़ा जा सके.

९. बाजू की बीच की शायिका तत्काल हटाई जाए. इस पर बैठना या सामान रख पाना संभव नहीं होता.

१०.कम वज़न के तथा दुमंजिले डब्बे बनायें जा सकते हैं जो दोगुने यात्रियों को ले जा सकेंगे.

११. वृद्धों, महिलाओं, अशक्तों तथा बच्चों को ऊपरी शायिका आवंटित होने पर चढ़ने हेतु सुविधाजनक सीढ़ी हो. आड़े गोल पाइपों के स्थान पर चौड़े चौकोर पाइप हो तथा उनकी संख्या बढ़ा दी जाए.

१२. खतरे की ज़ंजीर खिड़की के ऊपर हो ताकि खतरे के समय कम ऊँचाई के यात्री भी खींच सकें.

१३. डब्बे अग्निरोधी हलके पदार्थ के हों.

१४. यात्रियों का अनुमति से अधिक सामान लगेज वान में रखकर तुरंत पावती देने तथा उअतारते समय पावती दिखानेपर सामान देने की व्यवस्था हो तो डब्बों में सामान की भरमार न होगी, यात्रा सुविधाजनक होगी.

१५.प्रतीक्षालय तथा विश्राम कक्षों में अधिकाधिक शायिकाएं हों. पुराने बड़े सभागारनुमा कक्षा में १-२ शायिका रखने का चलन बंद हो.

१६. रेलगाड़ियों के शौचालयों के नीचे ऐसी व्यवस्था हो की स्टेशन पर मल-मूत्र नीचे न गिरे तथा रेल रवाना होने के बाद बस्ती के बाहर निर्धारित स्थान पर चालक लीवर खींचकर मल-मूत्र नीचे गिरा सके.

१७. कचरा फेंकने का स्थान कम पड़ता है. वातानुकूलित डब्बों में वाश बेसिन के नीचे कचरे के डब्बे का आकार बढ़ाया जाए.

१८. खड़े होकर यात्रा कर रहे यात्रियों के लिए सामान्य तथा थ्री टायर डब्बों में मेट्रोट्रेन की तरह आड़े पाइप लगाकर पकड़ने के लिए लूप हों.

१९. अशक्त जनों के लिए विशेष डब्बे में शायिका संख्या बढ़ाई जाए तथा एक अशक्त के साथ एक सहायक के बैठने हेतु व्यवस्था हो.

२०. अशक्तजनों हेतु शौचालय का आकर बड़ा रखने के स्थान पर जगह-जगह पकड़ने तथा टिककर सहारा लेने के लिये  उपकरण हों.

२१. सूचना पटल पर तथा उद्घोषणाओं में हिंदी, स्थानीय भाषा हो. आवश्यक प्रतीत होने पर अंत में अंग्रेजी का प्रयोग हो.
Sanjiv verma 'Salil', 94251 83244
salil.sanjiv@gmail.com
http://divyanarmada.blogspot.in
facebook: sahiyta salila / sanjiv verma 'salil'

bharteeya railpath : suggestions


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भारतीय रेल द्वारा निम्न लिंक पर सुझाव आमंत्रित हैं, आप भी अपने सुझाव भेजें. 

https://www.localcircles.com/a/home?t=c&pid=Wkh0JPv7r7h8THiYuCc2ijERcawz8XRARzrl_9uaKY8

नयी दिल्ली रेलवे स्टेशन को अधिक सुविधाजनक बनाने हेतु सुझाव: 

१. सभी सूचना फलक,प्रपत्र तथा घोषणाओं में सामान्यतः बोली जा रही हिंदी का प्रयोग अधिकतम और सर्वप्रथम हो. 

२. मुसाफिरखाने और विश्राम स्थलों में अद्यतन (अप टू डेट) तथा सही सूचनाएं देते विद्युत् सूचना पटल हों. पूछताछ  खिड़की पर बैठे कर्मी सहयोगी रवैया रखें, पूछनेवाले की अनदेखी न करें, टालें या दुत्कारें नहीं.

३. शौचालयों की संख्या तथा स्थान बढ़ाए जायें व् स्वच्छ रखे जाएँ. 

४. विश्राम कक्षों में शायिकाओ की संख्या वृद्धि हो.

५. किसी रेलगाड़ी में चढ़ाने के लिए उससे कुछ पूर्व निकट के अन्य स्टेशनों से अन्य ट्रेनों में बिना अतिरिक्त टिकिट लिये सामान्य डब्बे में सवार होकर आने की सुविधा हो.  

६. किसी स्टेशन पर ट्रेन समाप्त होने पर उसी शहर के अन्य स्टेशन तक जाने के लिए सामान्य डब्बे में उसी टिकिट पर पात्रता हो. 

७. रेलवे स्टेशन और समीप स्थित मेट्रो स्टेशन से आवागमन हेतु सार्वजनिक वाहन टेम्पो आदि की सुनिश्चितता पूर्व भुगतान [प्री पेड] बूथ की तरह हो. 

८. निर्धारित वज़न से अधिक सामान की तौलकर भाडा लेने और लगेजवान में लोड करने तथा गंतव्य स्थल पर पावती दिखाने पर तुरंत देने की व्यवस्था हो तो सवारी डब्बों में असुविधा कम होगी. 

९. बहुसंख्यक आम यात्रियों के आवागमन हेतु  स्टेशन के मुख्या द्वार से सीधा और सबसे छोटा मार्ग हो जबकि चाँद महत्वपूर्ण व्यक्तियों के लिये इंजिन के तुरंत बाद डब्बा हो, और अलग से प्रवेश हो जहाँ केवल यात्री जा सके उसके साथ की भीड़ नहीं जा सके. इस डब्बे में आधा महत्वपूर्ण व्यक्ति हेतु हो तथा आधा शारीरिक अक्षम यात्री हेतु हो. इसके तुरंत बाद में महिला डब्बा तथा सामान्य डब्बा हो. यह व्यवस्था हर रेलगाड़ी में हर स्टेशन पर हो तो प्लेटफोर्म पर भीड़ कम होगी. 

१०. महत्वपूर्ण व्यक्तियों के चढ़ने की व्यवस्था मुख्या स्टेशन से न होकर समीपस्थ उपस्टेशन से की जाना भी एक उपाय हो सकता है. 

११. कैंटीन भूतल पर न होकर प्रथम तल पर हो. भूतल पर रेल में बैठे यात्री हेतु सामग्री विक्रेता मात्र हों. विक्रय हेतु उपलब्ध सामग्री के दाम मोटे अक्षरों में अंकित हों, सामग्री का वज़न, निर्माण तिथि तथा उपयोग की अंतिम तिथि भी अंकित हो. 

१२. किनारे के प्लेटफोर्म से बीच के प्लेटफ़ॉर्मों तक जाने के लिए एस्केलेटर या ट्रोली हो.
 
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