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गुरुवार, 20 जून 2019

स्मृति गीत: पिता

पुण्य स्मृति:
गीत 
हर दिन पिता याद आते हैं...
*
जान रहे हम अब न मिलेंगे. 
यादों में आ, गले लगेंगे.
आँख खुलेगी तो उदास हो-
हम अपने ही हाथ मलेंगे. 
पर मिथ्या सपने भाते हैं.हर
दिन पिता याद आते हैं...
*
लाड, डाँट, झिड़की, समझाइश
कर न सकूँ इनकी पैमाइश. 
ले पहचान गैर-अपनों को-
कर न दर्द की कभी नुमाइश.
अब न गोद में बिठलाते हैं.
हर दिन पिता याद आते हैं...
*
अक्षर-शब्द सिखाये तुमने.
नित घर-घाट दिखाए तुमने.
जब-जब मन कोशिश कर हारा-
फल साफल्य चखाए तुमने.
पग थमते, कर जुड़ जाते हैं 
हर दिन पिता याद आते हैं...
*

शनिवार, 15 जून 2019

दोहे पिता

पितृ दिवस पर- 
पिता सूर्य सम प्रकाशक :
संजीव 

पिता सूर्य सम प्रकाशक, जगा कहें कर कर्म 
कर्म-धर्म से महत्तम, अन्य न कोई मर्म
*

गृहस्वामी मार्तण्ड हैं, पिता जानिए सत्य
सुखकर्ता भर्ता पिता, रवि श्रीमान अनित्य
*
भास्कर-शशि माता-पिता, तारे हैं संतान
भू अम्बर गृह मेघ सम, दिक् दीवार समान
*
आपद-विपदा तम हरें, पिता चक्षु दें खोल
हाथ थाम कंधे बिठा, दिखा रहे भूगोल
*
विवस्वान सम जनक भी, हैं प्रकाश का रूप
हैं विदेह मन-प्राण का, सम्बल देव अनूप
*
छाया थे पितु ताप में, और शीत में ताप
छाता बारिश में रहे, हारकर हर संताप
*
बीज नाम कुल तन दिया, तुमने मुझको तात
अन्धकार की कोख से, लाकर दिया प्रभात
*
गोदी आँचल लोरियाँ, उँगली कंधा बाँह
माँ-पापा जब तक रहे, रही शीश पर छाँह
*
शुभाशीष से भरा था, जब तक जीवन पात्र
जान न पाया रिक्तता, अब हूँ याचक मात्र
*
पितृ-चरण स्पर्श बिन, कैसे हो त्यौहार
चित्र देख मन विकल हो, करता हाहाकार
*
तन-मन की दृढ़ता अतुल, खुद से बेपरवाह
सबकी चिंता-पीर हर, ढाढ़स दिया अथाह
*
श्वास पिता की धरोहर, माँ की थाती आस
हास बंधु, तिय लास है, सुता-पुत्र मृदु हास
*

रविवार, 17 जून 2018

पिता पर दोहे

पिता पर दोहे:
*
पिता कभी वट वृक्ष है, कभी छाँव-आकाश।
कंधा, अँगुली हैं पिता, हुए न कभी हताश
*
पूरा कुनबा पालकर, कभी न की उफ़-हाय
दो बच्चों को पालकर, हम क्यों हैं निरुपाय?
*
थके, न हारे थे कभी, रहे निभाते फर्ज
पूत चुका सकते नहीं, कभी पिता का कर्ज
*
गिरने से रोका नहीं, चुपा; कहा: 'जा घूम'
कर समर्थ सन्तान को, लिया पिता ने चूम
*
माँ ममतामय चाँदनी, पिता सूर्य की धूप
दोनों से मिलकर बना, जीवन का शुभ रूप
*
पिता न उँगली थामते, होते नहीं सहाय
तो हम चल पाते नहीं, रह जाते असहाय
*
माता का सिंदूर थे, बब्बा का अरमान
रक्षा बंधन बुआ का, पिता हमारी शान
*
कभी न लगने दी पता, पितृ-ह्रदय ने पीर
दुख सह; सुख बाँटा सदा, चुकी न किंचित धीर
*
दीवाली पर दिया थे, होली पर थे रंग
पिता किताबें-फीस थे, रक्षा हित बजरंग
*
पिता नमन शत-शत करें, संतानें नत माथ
गये न जाकर भी कहीं, श्वास-श्वास हो साथ
*
१७.६.२०१८, ७९९९५५९६१८
salil.sanjiv@gmail.com

रविवार, 19 जून 2016

navgeet

स्मृति गीत:
हर दिन पिता याद आते हैं...

इनलाइन चित्र 1
संजीव 'सलिल' 
*
जान रहे हम अब न मिलेंगे. 
यादों में आ, गले लगेंगे.
आँख खुलेगी तो उदास हो-
हम अपने ही हाथ मलेंगे. 
पर मिथ्या सपने भाते हैं.
हर दिन पिता याद आते हैं...
*
*
लाड, डांट, झिडकी, समझाइश.
कर न सकूँ इनकी पैमाइश. 
ले पहचान गैर-अपनों को-
कर न दर्द की कभी नुमाइश.
अब न गोद में बिठलाते हैं.
हर दिन पिता याद आते हैं...
*

अक्षर-शब्द सिखाये तुमने.
नित घर-घाट दिखाए तुमने.
जब-जब मन कोशिश कर हारा-
फल साफल्य चखाए तुमने.
पग थमते, कर जुड़ जाते हैं 
हर दिन पिता याद आते हैं...
*

शुक्रवार, 24 अक्टूबर 2014

bal kavita: mere pita

बाल कविता: 

मेरे पिता   

संजीव 'सलिल'

जब तक पिता रहे बन साया!
मैं निश्चिन्त सदा मुस्काया!
*
रोता देख उठा दुलराया 
कंधे पर ले जगत दिखाया 
उँगली थमा,कहा: 'बढ़ बेटा!
बिना चले कब पथ मिल पाया?'  
*
गिरा- उठाकर मन बहलाया 
'फिर दौड़ो'उत्साह बढ़ाया
बाँह झुला भय दूर भगाया 
'बड़े बनो' सपना दिखलाया 
*
'फिर-फिर करो प्रयास न हारो'
हरदम ऐसा पाठ पढ़ाया
बढ़ा हौसला दिया सहारा 
मंत्र जीतने का सिखलाया 
*
लालच करते देख डराया 
आलस से पीछा छुड़वाया 
'भूल न जाना मंज़िल-राहें 
दृष्टि लक्ष्य पर रखो' सिखाया 
*
रवि बन जाड़ा दूर भगाया 
शशि बन सर से ताप हटाया 
मैंने जब भी दर्पण देखा 
खुद में बिम्ब पिता का पाया 
*

सोमवार, 18 जून 2012

स्मृति गीत: हर दिन पिता याद आते हैं... --संजीव 'सलिल'

स्मृति गीत:
हर दिन पिता याद आते हैं...

संजीव 'सलिल'

*

जान रहे हम अब न मिलेंगे.

यादों में आ, गले लगेंगे.

आँख खुलेगी तो उदास हो-

हम अपने ही हाथ मलेंगे.

पर मिथ्या सपने भाते हैं.

हर दिन पिता याद आते हैं...

*

लाड, डांट, झिडकी, समझाइश.

कर न सकूँ इनकी पैमाइश.

ले पहचान गैर-अपनों को-

कर न दर्द की कभी नुमाइश.

अब न गोद में बिठलाते हैं.

हर दिन पिता याद आते हैं...

*

अक्षर-शब्द सिखाये तुमने.

नित घर-घाट दिखाए तुमने.

जब-जब मन कोशिश कर हारा-

फल साफल्य चखाए तुमने.

पग थमते, कर जुड़ जाते हैं

हर दिन पिता याद आते हैं...

*
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
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