मुक्तिका:
आँख नभ पर जमी
संजीव 'सलिल'
*
आँख नभ पर जमी तो जमी रह गई.
साँस भू की थमी तो थमी रह गई.
*
सुब्ह सूरज उगा, दोपहर में तपा.
साँझ ढलकर, निशा में नमी रह गई..
*
खेत, खलिहान, पनघट न चौपाल है.
गाँव में शेष अब, मातमी रह गई..
*
रंग पश्चिम का पूरब पे ऐसा चढ़ा.
असलियत छिप गई है, डमी रह गई..
*
जो कमाया गुमा, जो गँवाया मिला.
ज़िन्दगी में तुम्हारी, कमी रह गई..
*****************
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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सोमवार, 20 सितंबर 2010
मुक्तिका: आँख नभ पर जमी संजीव 'सलिल
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करें वंदना-प्रार्थना, भजन-कीर्तन नित्य.
सफल साधना हो 'सलिल', रीझे ईश अनित्य..
शांति-राज सुख-चैन हो, हों कृपालु जगदीश.
सत्य सहाय सदा रहे, अंतर्मन पृथ्वीश..
गुप्त चित्र निर्मल रहे, ऐसे ही हों कर्म.
ज्यों की त्यों चादर रखे,निभा'सलिल'निज धर्म.
शुक्रवार, 10 सितंबर 2010
मुक्तिका: कहीं निगाह... संजीव 'सलिल'
मुक्तिका:: कहीं निगाह...
संजीव 'सलिल'
*
कहीं निगाह सनम और कहीं निशाना है.
हज़ार झूठ सही, प्यार का फसाना है..
न बाप-माँ की है चिंता, न भाइयों का डर.
करो सलाम ससुर को, वो मालखाना है..
पड़े जो काम तो तू बाप गधे को कह दे.
न स्वार्थ हो तो गधा बाप को बताना है..
जुलुम की उनके कोई इन्तेहां नहीं लोगों
मेरी रसोई के आगे रखा पाखाना है..
किसी का कौन कभी हो सका या होता है?
एके आये 'सलिल' औ' अकेले जाना है..
चढ़ाये रहता है चश्मा जो आँख पे दिन भर.
सचाई ये है कि बन्दा वो 'सलिल' काना है..
गुलाब दे रहे हम तो न समझो प्यार हुआ.
'सलिल' कली को कभी खार भी चुभाना है..
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Acharya Sanjiv Salil
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