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शनिवार, 17 सितंबर 2011

दोहा सलिला: दोहा के सँग यमक का रंग --- संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला:
दोहा के सँग यमक का रंग
संजीव 'सलिल'
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नागिन जैसी झूमतीं , श्यामल लट मुख गौर.
ना-गिन अनगिनती लटें, लगे आम्र में बौर..
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खो-खोकर वे तंग हैं, खोज-खोज हम तंग.
खेल रुचा खो-खो उन्हें, देख-देख जग दंग..
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खोना-पाना जिंदगी, खो-ना पा-ना खेल.
पाना ले कस बोल्ट-नट, सके कार्य तब झील..
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नट करतब कर नट नहीं, झटपट दिखला खेल.
चित-पट की मत फ़िक्र कर, हो चित-पट का मेल..
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गुजर-बसर सबकी हुई, सबने पाया ठौर.
गुजर गया जो ना मिला, कितना चाहा और..
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बाला-बाली कर रहे, झूम-झूम गुणगान.
बाला बाली उमर की, रूप-रसों की खान..
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खान-पान जी भर करो, हेल-मेल रख मीत.
पान-खान सीमित रहे, यही जगत की रीत..
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Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com