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रविवार, 3 अगस्त 2014

lekh: naag ko naman -sanjiv

लेख :
नागको नमन :
संजीव
*
नागपंचमी आयी और गयी... वन विभागकर्मियों और पुलिसवालोंने वन्य जीव रक्षाके नामपर सपेरों को पकड़ा, आजीविका कमानेसे वंचित किया और वसूले बिना तो छोड़ा नहीं होगा। उनकी चांदी हो गयी.  

पारम्परिक पेशेसे वंचित किये गए ये सपेरे अब आजीविका कहाँसे कमाएंगे? वे शिक्षित-प्रशिक्षित तो हैं नहीं, खेती या उद्योग भी नहीं हैं. अतः, उन्हें अपराध करनेकी राह पर ला खड़ा करनेका कार्य शासन-प्रशासन और तथाकथित जीवरक्षणके पक्षधरताओंने किया है. 

जिस देशमें पूज्य गाय, उपयोगी बैल, भैंस, बकरी आदिका निर्दयतापूर्वक कत्ल कर उनका मांस लटकाने, बेचने और खाने पर प्रतिबंध नहीं है वहाँ जहरीले और प्रतिवर्ष लगभग ५०,००० मृत्युओंका कारण बननेवाले साँपोंको मात्र एक दिन पूजनेपर दुग्धपानसे उनकी मृत्युकी बात तिलको ताड़ बनाकर कही गयी. दूरदर्शनी चैनलों पर विशेषज्ञ और पत्रकार टी.आर.पी. के चक्करमें तथाकथित विशेषज्ञों और पंडितों के साथ बैठकर घंटों निरर्थक बहसें करते रहे. इस चर्चाओंमें सर्प पूजाके मूल आर्य और नाग सभ्यताओंके सम्मिलनकी कोई बात नहीं की गयी. आदिवासियों और शहरवासियों के बीच सांस्कृतिक सेतुके रूपमें नाग की भूमिका, चूहोंके विनाश में नागके उपयोगिता, जन-मन से नागके प्रति भय कम कर नागको बचाने में नागपंचमी जैसे पर्वोंकी उपयोगिता को एकतरफा नकार दिया गया. 

संयोगवश इसी समय दूरदर्शन पर महाभारत श्रृंखला में पांडवों द्वारा नागों की भूमि छीनने, फलतः नागों द्वारा विद्रोह, नागराजा द्वारा दुर्योधन का साथ देने जैसे प्रसंग दर्शाये गये किन्तु इन तथाकथित विद्वानों और पत्रकारों ने नागपंचमी, नागप्रजाजनों (सपेरों - आदिवासियों) के साथ विकास के नाम पर अब तक हुए अत्याचार की और नहीं गया तो उसके प्रतिकार की बात कैसे करते? 

इस प्रसंग में एक दुर्भाग्यपूर्ण पक्ष यह भी है कि इस देशमें बुद्धिजीवी माने जानेवाले कायस्थ समाज ने भी यह भुला दिया कि नागराजा वासुकि की कन्या उनके मूलपुरुष चित्रगुप्त जी की पत्नी हैं तथा चित्रगुप्त जी के १२ पुत्रों के विवाह भी नाग कन्याओं से ही हुए हैं जिनसे कायस्थों की उत्पत्ति हुई. इस पौराणिक कथा का वर्ष में कई बार पाठ करने के बाद भी कायस्थ आदिवासी समाज से अपने ननिहाल होने के संबंध को याद नहीं रख सके. फलतः। खुद राजसत्ता गंवाकर आमजन हो गए और आदिवासी भी शिक्षित हुआ. इस दृष्टि से देखें तो नागपंचमी कायस्थ समाज का भी महापर्व है और नाग पूजन उनकी अपनी परमरा है जहां विष को भी अमृत में बदलकर उपयोगी बनाने की सामर्थ्य पैदा की जाती है. 

शिवभक्तों और शैव संतों को भी नागपंचमी पर्व की कोई उपयोगिता नज़र नहीं आयी. 

यह पर्व मल्ल विद्या साधकों का महापर्व है लेकिन तमाम अखाड़े मौन हैं बावजूद इस सत्य के कि विश्व स्तरीय क्रीड़ा प्रतियोगिताएं में मल्लों की दम पर ही भारत सर उठाकर खड़ा हो पाता है. वैलेंटाइन जैसे विदेशी पर्व के समर्थक इससे दूर हैं यह तो समझा जा सकता है किन्तु वेलेंटाइन का  विरोध करनेवाले समूह कहाँ हैं? वे नागपंचमी को यवा शौर्य-पराक्रम का महापर्व क्यों नहीं बना देते जबकि उन्हीं के समर्थक राजनैतिक दल राज्यों और केंद्र में सत्ता पर काबिज हैं?  

महाराष्ट्र से अन्य राज्यवासियों को बाहर करनेके प्रति उत्सुक नेता और दल नागपंचमई को महाराष्ट्र की मल्लखम्ब विधा का महापर्व क्यों कहीं बनाते? क्यों नहीं यह खेल भी विश्व प्रतियोगिताओं में शामिल कराया जाए और भारत के खाते में कुछ और पदक आएं? 

अंत में सर्वाधिक महत्वपूर्ण तथ्य यह कि जिन सपेरों को अनावश्यक और अपराधी कहा जा रहा है, उनके नागरिक अधिकार की रक्षा कर उन्हें पारम्परिक पेशे से वंचित करने के स्थान पर उनके ज्ञान और सामर्थ्य का उपयोग कर हर शहर में सर्प संरक्षण केंद्र खोले जाए जहाँ सर्प पालन कर औषधि निर्माण हेतु सर्प विष का व्यावसायिक उत्पादन हो. सपेरों को यहाँ रोजगार मिले, वे दर-दर भटकने के बजाय सम्मनित नागरिक का जीवन जियें। सर्प विष से बचाव के उनके पारम्परिक ज्ञान मन्त्रों और जड़ी-बूटियों पर शोध हो. 

क्या माननीय नरेंद्र मोदी जी इस और ध्यान देंगे?

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शनिवार, 10 अगस्त 2013

nagpanchami

नागपंचमी :
लावण्या शाह

*

नाग पँचमी के अवसर पर भारत के उज्जैन शहर के मँदिर मेँ भगवान शिव और पार्वती जी की प्रतिमा पर शेष नाग छत्र किये हुए हैँ
जिसकी अत्याधिक महिमा है 

  • नाग पूर्वजोँ को भी कहा गया है कि सँपत्ति व सँतति के प्रति बहुत मोह या लोभ के कारण नाग योनि मेँ पैदा होकर वे रखवाली करते हैँ -
    गाईड फिल्म मेँ वहीदा जी का भी एक रोमाँचक सर्प नृत्य दीखलाया गया था -- नाग लोक पाताल लोक है जिसकी राजधानी भोगावती कहलाती है
  • तो आइये, नाग देवताओँ को प्रणाम करेँ --
  • नाग सारे कश्यप ऋषि की सँतान हैँ - और कद्रू और वनिता जो गरिद की माता थीम वे कश्यप जी की पत्नीयाँ थीँ
  • Anantha: अनन्त शेष नाग जिस पर महाविष्णु दुग्ध सागर मेँ शयन करते हैँ
  • Balarama: बलराम: श्री कृष्ण के बडे भाई, रेवती के पुत्र जो शेष नाग के अवतार हैँ
  • Karkotaka: कर्कोटक- जों आबोहवा के नियँत्रक हैँ
  • Padmavati: पद्मावती: राजा धरणेन्द्र की नाग साथिन
  • Takshaka: तक्षक :नागोँ के राजा
  • UlupiArjuna : की पत्नी : नाग वँश की राज महाभारत से (epic Mahabharata.)
  • Vasuki: वासुकी : नागोँ के राजा जिन्होँने देवोँ की अमृत लाने मेँ सहायता की (devas ) Ocean of Milk.

 WHERE NĀGA LIVE

  • Bhoga-vita: भोगावती : पाताल की राजधानी
  • Lake Manosarowar: मानसरोवर : नाग भूमि
  • Mount Sumeru : सुमेरु पर्बत
  • Nagaland : भारत का नागालैन्ड प्राँत
  • Naggar: नग्गर ग्राम : हिमालय की घाटी मेँ बसा Himalayas, तिब्बत
  • Nagpur: नागपुर शहर, भारत (Nagpur is derived from Nāgapuram, )
  • Pacific Ocean: (Cambodian myth)
  • Pātāla: (or Nagaloka) the seventh of the "nether" dimensions or realms.
  • Sheshna's well: in Benares, India, said to be an entrance to Patala.

नाग देवता पर फिल्माये गये नृत्य देखेँ जायेँ - लीजिये ..ये रहे लिन्क

शेष नाग की शैया पर लेटे हुए महा विष्णु की प्राचीन प्रतिमा
शिवलिँगम्`

नागिन फिल्म के गीत मन मेँ गूँज रहे हैँ - 
" मन डोले मेरा तन डोले रे मेरे दिल का गया करार रे ये कौन बजाये बाँसुरिया "


और श्रीदेवी की छवि मन पटल पर उपस्थित हो गयी ! 

नगीना मेँ नीली , हरी आँखोँ के लेन्स लगाये , सँपेरे बने अमरीश पुरी को गुस्से से फूँफकारती हुई, 
डराती हुई लहराती हुई , नाचते हुए, लता जी के स्वर मेँ गाती हुई जादूभरी नागिन 
" मैँ तेरी दुशमन, तू दुशमन है मेरा, मैँ नागिन तू सँपेरा ..आ आ "

और भी एक अद्भुत नृत्य है - श्रीदेवी और जया प्रदा 
दोनोँ साथ नाच रहीँ हैँ मँदिर मेँ और जीतेन्द्र गा रहे हैँ " हे नाग राजा तुम आ जाओ " -

Nameste
http://lavanyam-antarman.blogspot.com/*
संजीव 'सलिल'
नागिन जैसी झूमतीं , श्यामल लट मुख गौर.
ना-गिन अनगिनती लटें, लगे आम्र में बौर..
नाग के बैठने की मुद्रा को कुंडली मारकर बैठना कहा जाता है. इसका भावार्थ जमकर या स्थिर होकर बैठना है. इस मुद्रा में सर्प का मुख और पूंछ आस-पास होती है. इस गुण के अधर पर कुण्डलिनी छंद बना है जिसके आदि-अंत में एक सामान शब्द या शब्द समूह होता है.

कुंडली  छंद :

हिंदी की जय बोलिए, हो हिंदीमय आप.
हिंदी में नित कार्य कर, सकें विश्व में व्याप..
सकें विश्व में व्याप, नाप लें समुद ज्ञान का.
नहीं व्यक्ति का, बिंदु 'सलिल' राष्ट्रीय आन का..
नेह-नरमदा नहा बोलिए होकर निर्भय.
दिग्दिगंत में गूज उठे, फिर हिंदी की  जय..
*
नव संवत्सर पर करें, शब्द-पुत्र संकल्प.
राष्ट्र-विश्व हित ही जियें, इसका नहीं विकल्प..
इसका नहीं विकल्प, समय के साथ चलेंगे.
देश-दुश्मनों की छाती पर दाल दलेंगे..
जीवन का हर पल, मानव सेवा का अवसर.
मानव में माधव देखें, शुभ नव संवत्सर..
*
साँसों के साम्राज्य का, वह मानव युवराज.
त्याग-परिश्रम का रखा, जिसने निज सिर ताज..
जिसने निज सिर ताज, शीश को नित्य नवाया.
अहंकार का पाश 'सलिल' सम, व्यर्थ बनाया..
पीड़ा-वन में राग छेड़ता, जो हासों के.
उसको ही चंदन-वंदन, मिलते श्वासों के..
*
हर दिन, हर पल कर सके, यदि मन सच को याद.
जग-जीवन आबाद कर, खुद भी होता शाद..
खुद भी होता शाद, नेह-नर्मदा बहाता.
कोई रहे न गैर, सकल जग अपना पाता.
कंकर में शंकर दिखते, उसको हर पल-छिन.
'सलिल' करे अभिषेक, विहँसकर उसका हर दिन..
*
धुआँ-धुआँ सूरज हुआ, बदली-बदली धूप.
ऊषा संध्या निशा सा, दोपहरी का रूप..
दोपहरी का रूप,  झुका आकाश दिगंबर.
ऊपर उठती धारा, गले मिल, मिटता अंतर.
सिमट समंदर खुद को, करता कुआँ-कुआँ.
तज सिद्धांत सियासत-सूरज धुआँ-धुआँ..
*
मरुथल बढ़ता, सिमटता हरियाली का राज.
धरती के सिर पर नहीं, शेष वनों का ताज.
शेष वनों का ताज, नहीं पर्वत-कर बाकी.
सलिल बिना सलिलायें, मधुशाला बिन साक़ी.
नहीं काँपता पंछी-कलरव बिन क्यों मानव?
हरियाली का ताज सिमटता, बढ़ता मरुथल..
*
कविता कवि करता अगर, जिए सुकविता आप.
सविता तब ही सकेगा, कवि-जीवन में व्याप..
कवि-जीवन में व्याप, लक्ष्मी दूर रहेगी.
सरस्वती नित लेकर, सुख-संतोष मिलेगी..
निशा उषा संध्या वंदन कर, हर ढल-उगता.
जिए सुकविता आप, अगर कवि करता कविता..
*