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गुरुवार, 25 जुलाई 2019

सवैया, मुक्तक

एक मुक्तक 
भावो- अभावों का है तालमेल दुनिया 
ममता मन में धार अकेले चल दे तू 
गैरों में भी तुझको मिल जाएँ अपने 
अपनापन सिंगार साजकर चल दे तू 
***

सवैया
*
नाक के बाल ने, नाक रगड़कर, नाक कटाने का काम किया है
नाकों चने चबवाए, घुसेड़ के नाक, न नाक का मान रखा है
नाक न ऊँची रखें अपनी, दम नाक में हो तो भी नाक दिखा लें 
नाक पे मक्खी न बैठन दें, है सवाल ये नाक का, नाक बचा लें
नाक के नीचे अघट न घटे, जो घटे तो जुड़े कुछ नाक बजा लें
नाक नकेल भी डाल सखे हो, न कटे जंजाल तो नाक चढ़ा लें
छंद का नाम और लक्षण बताइए.
***
salil.sanjiv@gmail.com
#दिव्यनर्मदा
#हिंदी_ब्लॉगर

मंगलवार, 19 मई 2015

doha salila: naak -sanjiv

दोहा सलिला: 
दोहा का रंग नाक के संग 
संजीव 
*
मीन कमल मृग से नयन, शुक जैसी हो नाक 
चंदन तन में आत्म हो, निष्कलंक निष्पाप 
*
आँख कान कर पैर लब, दो-दो करते काम 
नाक शीश मन प्राण को, मिलता जग में नाम 
*
नाक नकेल बिना नहीं, घोड़ा सहे सवार 
बीबी नाक-नकेल बिन, हो सवार कर प्यार 
*
जिसकी दस-दस नाक थीं, उठा न सका पिनाक 
बीच सभा में कट गयी, नाक मिट गयी धाक 
*
नाक-नार दें हौसला, ठुमक पटकती पैर 
ख्वाब दिखा पुचकार लो, 'सलिल' तभी हो खैर 
*
नाक छिनकना छोड़ दें, जहाँ-तहाँ हम-आप 
'सलिल' स्वच्छ भारत बने, मिटे गंदगी शाप 
*
शूर्पणखा की नाक ने, बदल दिया इतिहास
ऊँची थी संत्रास दे, कटी सहा संत्रास 
*
नाक सदा ऊँची रखें, बढ़े मान-सम्मान 
नाक अदाए व्यर्थ जो, उसका हो अपमान 
*
नाक न नीची हो तनिक, करता सब जग फ़िक्र 
नाक कटे तो हो 'सलिल', घर-घर हँसकर ज़िक्र 
*
नाक घुसेड़ें हर जगह, जो वे पाते मात 
नाक अड़ाते बिन वजह, हो जाते कुख्यात 
*
बैठ न पाये नाक पर, मक्खी रखिये ध्यान 
बैठे तो झट दें उड़ा, बने रहें अनजान 
*

सोमवार, 1 दिसंबर 2014

navgeet:

नवगीत:



पत्थरों के भी कलेजे
हो रहे पानी
.
आदमी ने जब से
मन पर रख लिए पत्थर
देवता को दे दिया है
पत्थरों का घर
रिक्त मन मंदिर हुआ
याद आ रही नानी
.
नाक हो जब बहुत ऊँची
बैठती मक्खी
कब गयी कट?, क्या पता?
उड़ गया कब पक्षी
नम्रता का?, शेष दुर्गति 
अहं ने ठानी
.
चुराते हैं, झुकाते हैं आँख
खुद से यार
बिन मिलाये बसाते हैं
व्यर्थ घर-संसार
आँख को ही आँख
फूटी आँख ना भानी
.
चीर हरकर माँ धरा का
नष्टकर पोखर
पी रहे जल बोतलों का
हाय! हम जोकर
बावली है बावली
पानी लिए धानी


 

 

गुरुवार, 27 नवंबर 2014

muhavra / kahawat salila: naak

मुहावरे / कहावत सलिला: नाक 

नाक ऊँची होना = सम्मान बढ़ना। बिटिया के प्रथम आने से परिवार की नाक ऊँची हो गयी  
नाक ऊँची रखना = महत्व दिखाना। ब्राम्हणों को अपनी नाक ऊँची रखने की आदत है।  
नाक कटना = प्रतिष्ठा कम होना। गलत फैसलों से खाप पंचायतों की नाक कट गयी है 
नाक घुसेड़ना = हस्तक्षेप करना। बच्चों के बीच में नाक घुसते रहने से बड़ों का सम्मान घटता है  
नाक बचाना =  असामाजिक तत्वों से नाक बचाकर निकलना सही नीति है 
नाक रखना = मान रखना। प्रतियोगिता जीतकर बच्चों ने विद्यालय की नाक रख ली। 
नाक का बाल होना = खुशामदी कर्मचारी अधिकारी की नाक का बाल हो जाता है 
नाक का सवाल = प्रतिष्ठा का प्रश्न। नाक का सवाल हो तो गीदड़ भी शेर से भीड़ जाता है 
नाक पर मख्खी बैठना = प्रतिष्ठा नष्ट होना।  
नाक पर मक्खी न बैठने देना = सम्मान पर आंच न आने देना। 
नाक में दम करना = तंग करना। भारतीय सेना ने आतंकवादियों की नाक में दम कर दी  
नाक में नकेल डालना = नियंत्रित करना। उददण्डता रोकने के लिए नाक में नकेल डालना ही पड़ती है
नाक रगड़ना = दीनता दिखाना।कुकर्म करोगे तो नाक भी रगड़ना पड़ेगी। 
नाक के नीचे = बहुत निकट। नाक के नीचे चोरी हो गयी और पुलिस कुछ नहीं कर सकी
नाकों चने चबवाना = परेशान करना। अत्याधुनिका बहू ने सास-ससुर को नाकों चने चबवा दिये। 
छंद: नाक के बाल ने, नाक रगड़कर, नाक कटाने का काम किया है 
नाकों चने चबवाए, घुसेड़ के नाक, न नाक का मान रखा है 
नाक न ऊँची रखें अपनी, दम नाक में हो तो भी नाक दिखा लें 
नाक पे मक्खी न बैठन दें, है सवाल ये नाक का, नाक बचा लें  
नाक के नीचे अघट न घटे, जो घटे तो जुड़े कुछ राह निकालें 
नाक नकेल भी डाल सखे, न कटे जंजाल तो बाँह चढ़ा लें
*

मंगलवार, 28 सितंबर 2010

हास्य कविता: कान बनाम नाक संजीव 'सलिल'

हास्य कविता:

कान बनाम नाक

संजीव 'सलिल'
*
शिक्षक खींचे छात्र के साधिकार क्यों कान?
कहा नाक ने- 'मानते क्यों अछूत श्रीमान?
क्यों अछूत श्रीमान, न क्यों कर मुझे खींचते?
क्यों कानों को लाड़-क्रोध से आप मींचते??

शिक्षक बोला- "छात्र की अगर खींच दूँ नाक,
कौन करेगा साफ़ यदि बह आयेगी नाक?
बह आयेगी नाक, नाक पर मक्खी बैठे.
ऊँची नाक हुई नीची, तो हुए फजीते..

नाक एक है कान दो, बहुमत का है राज.
जिसकी संख्या अधिक हो, सजे शीश पर ताज..
सजे शीश पर ताज, सभी संबंध भुनाते.
गधा बाप को और गधे को बाप बताते..

नाक कटे तो प्रतिष्ठा का हो जाता अंत.
कान खिंचे तो सहिष्णुता बढ़ती, बनता संत..
संत बने तो गुरु कहें सारे गुरुघंटाल.
नाक खिंचे तो बंद हो श्वास हाल-बेहाल..

कान ज्ञान को बाहर से भीतर पहुँचाते.
नाक दबा अन्दर की दम बाहर ले आते..
टाँग अड़ा या फँसा मत, खींचेगे सब टाँग.
टाँग खिंची, औंधे गिरा, बिगड़ेगा सब स्वांग..

खींच-खिंचाकर कान, हो गिन्नी बुक में नाम.
'सलिल' सीख कर यह कला, खोले तुरत दुकान..
खोले तुरत दुकान, लपक पेटेंट कराये.
एजेंसी दे-देकर भारी रकम कमाये..

हम भी खींचें जाएँ, दो हमको भी अधिकार.
केश निकालेंगे जुलुस, माँग न हो स्वीकार..
माँग न हो स्वीकार, न तब तक माँग भराएँ.
छोरा-छोरी तंग, किस तरह ब्याह रचाएँ?

साली जीजू को पकड़, खींचेगी जब बाल.
सहनशीलता सिद्ध हो, तब पायें वरमाल..
तब पायें वरमाल, न झोंटा पकड़ युद्ध हो.
बने स्नेह सम्बन्ध, संगिनी शुभ-प्रबुद्ध हो..

विश्वयुद्ध हो गृह में, बाहर खबर न जाए.
कान-केश को खींच, पराक्रम सुमुखि दिखाए..
आँख, गाल ना अधर खिंचाई सुख पा सकते.
कान खिंचाते जो लालू सम हरदम हँसते..

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